सोमवार, 16 अगस्त 2021

तिरंगा झंडा स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर




खूब सलोना न्यारा  है अपने  देश का झंडा

बहुत सुन्दर प्यारा सा अपने  देश का झंडा

रंग  केसरिया बतलाए हममें कितना  बल है

श्वेत  रंग  दर्शाता भारत शांत सत्य सरल है

बीच मे चक्र है बना हुआ चौबीस तीली वाला

गतिशील, धर्म और जीवन को है दर्शाने वाला

इसमे हरे रंग की पट्टी सबसे नीचे लगी भाई

मेरे देश की मिट्टी की ये  सोंधी महक है लाई

पावन  है ये धरती अपनी सुन्दर  नील गगन है


तिरंगा जब लहराता है तब हर्षित होता  मन है

 खूब सलोना न्यारा   है अपने देश का झंडा

बहुत  सुन्दर प्यारा सा अपने देश का झंडा


शरद कुमार श्रीवास्तव

सोन मछरिया श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव की बाल कथा

 


एक गरीब मछुवारा नदी मे जाल डाल कर रोज मछलियों को पकड़ता था और फिर उन मछलियों को बेच कर वह अपना और अपनी पत्नी तथा बच्चो का जीवन पालता था . एक दिन वह मछलियों  का जाल जब पानी से बाहर निकाल रहा था तब उसने एक आवाज सुनी।   उसने इधर उधर देखा तो कोई भी दिखाई नहीं पड़ा ।   आवाज थी कि बस आये जारही थी ।  उसने ध्यान से देखा तो पकडी हुई मछलियों मे एक सुनहरी मछली ही बोले जा रही है कि मुझको मत पकड़ो पानी मे वापस डाल दो ।   मछुवारे ने कहा , अरे मै वापस क्यो डाल दूँ ?    तुम सुनहरी मछली हो मै तुमको बेचूगा तब मुझे कुछ और पैसे मिल जाऐंगे।   मछली बोली मै मछलियों की राजकुमारी हूँ ,तुम जब जो सामान भी चाहोगे वह तुम्हें  मिलेगा।   अच्छा मुझे बहुत भूख लगी है मुझे खाना चाहिये मछुवारे ने कहा ।   उसके मुँह से बात पूरी भी नहीं हुई थी कि उसके सामने थाल भर के खाना आ गया. गरम गरम पूरी सब्जी खीर मिठाई फल तथा और भी बहुत कुछ आ गया था।   मछली बोली अब तो छोड़ दो, तुम जब बोलोगे कि सोन मछरिया आओ अपना प्यारामुख दिखलाओ , तब  मै झटपट आ जाउगी और आप की इच्छा की पूर्ति हो जायगी. मछुवारा खुश हो गया.


मछुवारा बाकी मछलियों को बेच कर शाम को अपने घर पहुँचा त्रब उसने अपनी पत्नी को सोनमछली की बात बताई . मछुवारी की औरत बोली तुमने अकेले अकेले खा लिया और मछली को जाने दिया ।   उस मछली ने तुम्हे खूब बुद्धू बनाया है।   वह फिर बोली कि अच्छा जैसा उसने कहा वैसे ही तुम कह कर कल उसे फिर बुलाओ और हम सबके लिये खाना यहीं मंगवाओ। 


मछुवारा रोज की तरह नदी पर मछलियाँ पकड़ने गया. उसने जाल डाल दिया तभी उसे अपनी स्त्री की बात याद आ गयी।   उसने आवाज लगाई ‘ सोन मछरिया आओ अपना प्यारा मुख दिखलाओ’ . उसका यह कहना ही था कि सुनहरी मछली आ गई और बोली बताओ तुम्हे क्या चाहिये मेरे दोस्त ?   मछुवारे ने तुरन्त अपने और पूरे घर के लिये खाना माँग लिया।  उसका खाना आ गया, उसने खा लिया और शाम को वह जब घर पहुँचा तब उसने अप्नी पत्नी से पूछा खाना आया था क्या ? तब उसकी पत्नी ने बतया कि खाना तो बहुत अच्छा था अब कल तुम उससे हम सबक़े लिये नये कपडे और मेरे गहने तथा धन माँग लेना।


दूसरे दिन नदी पर फिर आवाज लगाई और सोन मछली के सामने अपनी बीबी की इच्छा बताई. तुरंत उसने देखा किं उसके पुराने कपड़े गायब हो गये और वह सूट बूट टाई हैट को पहने खड़ा है पाकेट मे उसके पर्स जिसमे बहुत सारे रुपये और ए टी एम कार्ड हाथ की कलाई घड़ी बंधी हुई थी।. वह जाल को वापस खींच घर पहुँचा. उसने घर मे देखा घर मे उसकी पत्नी एक मेम साहिबा की तरह खूब बढ़िया साड़ी पहने काला चश्मा लगाए खड़ी हैं पास मे उसके बच्चे भी नये कपडे पहने खडे है।   पत्नी के शरीर पर ढ़ेर सारे सोने के गहने लदे है।  यह देख वह बहुत खुश होरहा था. तब उसकी स्त्री बोली ज्यादा खुश होने की बात नहीं है मै तो इस चिन्ता मे हूँ कि यह सब सामान रखने के लिये कोई अलमारी इत्यादि नहीं फिर तुम्हारी टूटे टाटे घर मे !  कोई यह सब चोरी कर के ले गया तब क्या होगा।


मछुवारा नदी के पास फिर पहुँच कर आवाज लगाई ‘सोन मछरिया आओ अपना प्यारा मुख दिखलाओ. सोन मछली आ गई और बोली अब क्या चाहिये मेरे दोस्त. मछुवारे ने अपनी पत्नी की बात बताई तब मछली ने कहा तुम्हे बार बार ़तकलीफ करने की आवश्यकता नहीं है मैं तुम्हे सब सामान दे देती हूँ . मछुवारे ने घर पहुँच कर देखा तो उसे अपना घर कहीं है ही नहीं उसकी जगह एक बड़ा तीन मंजिला मकान खड़ा है वह रोने लगा मेरा घर कहाँ गया . उसकी बीबी छत पर खडी थी उसने कहा रोने की जरूरत नहीं है खुश होने का टाइम है यह तुम्हारा ही घर है अन्दर आ जाओ. उसने देखा कि घर मे अलमारियाँ फ्रिज टीवी कम्प्यूटर सोफा बेड, ऐसी, टेली फोन और बड़ी सी कार सभी कुछ है . उसने अपनी पत्नी से पूछा अब तो खुश हो ना.


पत्नी ने सब चीजे देखी फिर बोली खुश तो हूँ पर सोचती हूँ कि यदि कोई दूसरा ऐसी मछली को पकड़कर ले जाने से पहले तुम उस सोन  मछली  को  पकड़ कर ले आओ ।   हम उसे सोने के टब मे रखेंगे और उसकी बहुत हिफाजत करेंगे.।  बाद मे फिर कभी कोई चीज की जरूरत होगी तब उससे माँग लेगे।  मछुवारा फिर नदी पर गया और उसने आवाज लगाई ।  सोन मछली जब आई तब मछुवारा उसे पकड़ने को झपटा. सोन मछली झटपट दूर हो गई उसने मछुवारे के मन की बात पढ़ ली और बोली जाओ तुम लोग बड़े लालची हो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा ।  मछुवारे ने देखा कि उसका सूट बूट टाई घर पैसा जेवर इत्यादि सब चला गया।  . उसने वापस लौटकर अपनी पत्नी से कहा ज्यादा लालच करने का फल । लालच करने से  सब चला गया ।





श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव 
शीलकुंज 
मेरठ
 



शामू एक धारावाहिक कहानी

  



अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था उन्हें बहुत जतन के साथ रखने पर भी कुछ नोट कीड़े खा गये थे । उन नोटों को शामू ने इशरत मियाँ की मदद से बदलवा दिये थे और बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता था।
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बैंक के खाते में शामू प्रति माह अपनी तनख्वाह से कुछ रुपये और दादी के दिये रुपये  बचा कर  नियमित रूप से जमा करने लगा । दादी को भी खुशी हुई कि उसके पैसे बैंक मे जमा हो रहे हैँ । अब रुपये चोरी चले जाने या कीड़े /चूहों के द्वारा कुतरे जाने का डर नहीं है ।   बिहारी अभी पहले की तरह रुपये अपनी माँ को दे जाता था और अपनी माँ से उन रुपयों के बारे मे कभी नहीं पूछता था ।
शामू इशरत मियाँ के गैरेज में मेहनत से काम करता था । धीरे धीरे वह कार रिपेयरिंग के   कार्य  से पूरी तरह  से परिचित  हो  गया था ।     कार आते ही उसकी आवाज से ही समझ जाता था कि गाडी  का कौन सा हिस्सा  खराब हो  गया  है ।  इंजन  के  काम  में  काफी माहिर  हो गया था  ।   कार के  इंजन  का  पिस्टन  हो या रिंग  का बदला जाना या  इंजन  का  बदला जाना, सब काम  करने को वह बहुत  अच्छे  से  सीख  गया  था  ।  इसकी  वजह थी  कि  इशरत  मियाँ  शामू  को  हमेशा  अपने  साथ  लगाए रखते थे।   इशरत मियाँ  के  प्यार  और अपनी लगन  की वजह  से  वह  मोटर मैकेनिक  का काम  अच्छी  तरह  से  सीख  गया था।
नुसरत  से  शामू अपने काम भर की पढ़ाई  लिखाई  भी  सीख  गया  था ।    कुछ  समय  बाद , नुसरत  का एडमीशन  उनके प्रिय  विषय  कम्प्यूटर  साइंस   के  लिए जबलपुर  के   इंजीनियरिंग कालेज  मे  हो गया  था ।  कालेज  मे तीन साल कैसे निकल गये पता नहीं  चला और कैम्पस   सेलेक्शन  में   नुसरत  सिद्दीकी  को  बैंगलोर  की कम्पनी   ने  अच्छी  शुरुआत  पर बुला लिया  ।   अब नुसरत  को आसानी  से  छुट्टी  न  मिल  पाने  के  कारण  इशरत  मियाँ  को  तकलीफ  होती  थी  ।   उनके  या बेगम  की बीमारी  दवादारू  आदि  सब कामो  मे शामू  ही सुझाई  देते  थे ।  गैरेज हो या घर हर स्थान  पर शामू  अपनी  जिम्मेदारी  निभाता था ।   इशरत भाई  का हर काम शामू के बगैर पूरा  नहीं  होता  था
नुसरत  ने बंगलोर  पहुँचाने  के बाद  अपने  माता  पिता  को  बंगलोर घूमने  के  लिए  बुलाया  ।  वहाँ  एक  माह  बिता कर वह लोग  अपने  घर  वापस  लौट  आये ।   शामू  के ऊपर  गैरेज  का  पूरा भार था ।  जब इशरत  मियाँ  लौट  कर आये गैरेज  ठीक  ठाक  मिला  । प्रत्येक   दिन  का हिसाब किताब  लिखा हुआ   मिला । यह सब देखकर  इशरत  मियाँ  खुश हो  गए  ।    अब  गैरेज  के  सब काम  शामू  करता था  ।  शामू को अब अधिक  जिम्मेदारी के   काम  मिलने लगे  थे  ।  बैंक  मे रुपये  जमा  करना  या निकाल  कर लाना सारे काम  शामू  करता  था  इशरत  भाई  जब विशेष  जरूरत के समय ही  काम अपने  हाथ मे लेते थे ।    नुसरत   भाई  की  माँ  शामू  पर बहुत  भरोसा  करती थी  इशरत  मियाँ  को डायबिटीज  है इसलिए  शामू  को  उन्होंने  हिदायत  दे  रखी  थी  कि  इशरत  मियाँ  को  बाहर  की चीजें  नही  खानी है ।   बारह बजे  की  चाय  शामू   गैरेज  के  किसी  लड़के  को  घर  भेजा कर मंगवा  लेता था  ।   नुसरत  भाई  की माँ एक चाय  शामू  के लिये   भी भेजती थी।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

"मित्र" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 


सुख दुख के साथी सदा, बचपन के वो यार।
खेल खेलते साथ में, लगते अनुपम प्यार।।

मिलते हैं जब मित्र से, करते रहते बात।
बात खत्म होती नहीं, बीते सारी रात।।

हरकत बचपन की हमें, रह जाती है याद।
बैठे सारे साथ में, याद बढ़ाती स्वाद।।

ऐसे मित्र बनाइये, हो उस पर विस्वास।
सुख- दुख सबको बाँटते, होता है वह खास।।

मोबाइल जब से मिले, हुये कभी ना दूर।
बातें करते रात दिन, होता ना भरपूर।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"सावन तीज" (रोला) प्रिया देवांगन प्रियू की रचना



सावन की ये तीज, सभी के मन को भाये।
बनते घर पकवान, द्वार आँगन महकाये।।
हरियाली चहुँओर, पुष्प की खुशबू आती।
रंग बिरंगे पात, सभी के मन को भाती।।

सज धज नारी आज, मायके में वो जाती।
सखी सहेली साथ, बैठ के बात बताती।।
मिलकर बहना भ्रात, खूब मस्ती है करते।
मम्मी पापा साथ, घरों में खुशियाँ भरते।।

बाबा भोलेनाथ, भजन सब मिलकर गाते।
सखी सहेली साथ, सभी मन्दिर में जाते।।
करे तीज उपवास, पिया की उम्र बढ़ाती।
शिव भोले को आज, दूध अरु दही चढ़ाती

कर सोलह श्रृँगार, प्रार्थना करती नारी।
कर दो संकट दूर, कष्ट आये ना भारी।।
सावन की है तीज, डाल में बाँधे झूले।
तन मन भरे उमंग, दिलों में कलियाँ फूले।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बाल रचना/ घास उगाएं! : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की रचना

 


घास न  होती अगर  धरा  पर,

कैसे    बच     पाते    चौपाए,

गैया    नहीं    दिखाई    देती,

घोड़े     मरते    पूंछ   दबाए।


बकरी तड़प-तड़पकर मरती,

भैंसें     मरतीं     पेट   दबाए,

खरहा,गिलहरी  नहीं  दीखते,

मिट जाते बिन  घास  चबाए।


गधा अधमरा  होकर  गिरता,

बिना  घास  में  लोट ।लगाए,

दूध-दही   सपने   हो    जाते,

कैसे    बनती   सेहत    हाए।


अनगिन  ऐसे  जीव   धरापर,

मर जाते बिन झलक दिखाए,

बिना घास यह  कौन बताओ,

रखता  सब   गुब्बार   दबाए।


यह सब  ईश्वर  की  माया  है,

उसने    सारे    जीव   बनाए,

उनकी खातिर हरी  घास  से,

हरे - भरे     मैदान    सजाए।


गोलू, मोलू,  गुड़िया,  अस्मी,

चलो सभी को यह  बतलाएं,

बिना  घास  जीवन  सूना  है,

आओ  मिलकर घास उगाएं।

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             वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

                 9719275453

                  

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शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

ऑनलाइन शिक्षा" : प्रिया प्रियांगन प्रियू




हुआ साल बर्बाद, काल कोरोना आया।
हुए सभी बीमार, कहर दुनिया में छाया।।
कमरे में सब बंद, बैठ कर रहते सारे।
दूर- दूर सब लोग, लगे जैसे बेचारे।।

स्कूल कॉलेज बंद, पढ़ाई हुई अधूरी।
निकली कुछ तरकीब, ऑनलाइन से पूरी।।
बच्चें बैठे रोज, हाथ मोबाइल पकड़े।
बीमारी भी साथ, सभी बच्चों को जकड़े।।

करे बहाने रोज, हाथ मोबाइल भाये।
खेला करते गेम, पढ़ाई समझ न आये।।
पुस्तक कॉपी देख, परीक्षा लिखते सारे।
शिक्षक पकड़े माथ, सभी शिक्षा से हारे।।

जो गरीब परिवार, फोन भी पास न होते।
नहीं बैठते शांत, फूट कर बच्चें रोते।।
हुए अधूरे लक्ष्य, देख शिक्षा है पिछड़े।
पुस्तक कॉपी दूर, बिना बच्चें है बिगड़े।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

बालक ध्रुव :पौराणिक कथा: शरद कुमार श्रीवास्तव

 


विष्णु पुराण में ध्रुव की कहानी बताई गई है । यह इसप्रकार है ।
महाराजा उत्तानपाद की दो महारानियाँ थी । जिनमे बड़ी रानी का नाम था सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरुचि था । छोटी रानी महाराजा उत्तानपाद की बहुत प्रिय थी। ध्रुव बड़ी रानी सुनीति के पुत्र थे । रानी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। छोटी रानी महाराजा उत्तानपाद को बहुत पसंद थीं इसलिए वो बहुत नकचढ़ी भी थीं । महाराजा उत्तानपाद उनकी सही गलत सब बातों को पसंद करते थे और गलत बातों का कोई प्रतिरोध नहीं करते थे ।

पाँच साल की आयु के बालक ध्रुव, एक बार, जब उनके पिता उत्तानपाद अपने सिंहासन पर विराजमान थे तब वे अपने पिता की गोद में आकर बैठ गए थे। उसी समय छोटी महारानी सुरुचि अपने बेटे उत्तम के साथ वहाँ आई । उत्तम अपने पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगा । रानी सुरुचि ने ध्रुव को महाराजा की गोद से उतार और अपने बेटे को महाराजा की गोद में बैठा दिया । नन्हे राजकुमार ध्रुव रोने लगे, तब रानी सुरुचि ने बालक ध्रुव से कहा कि अगर तुम्हें महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठने का इतना ही शौक था तब मेरे गर्भ से जन्म लेना चाहिए था। बालक ध्रुव ने इस बात की शिकायत अपनी माँ सुनीति से की । रानी सुनीति ने उसे समझाया कि सुरुचि भी ध्रुव की माँ है। अतः माँ के द्वारा लिये फैसले पर कुछ कहना अनुचित होगा । माता सुनीति ने कहा कि माता से बडे सिर्फ़ भगवान है वे ही तुम्हारी बात सुन सकते हैं । बालक ध्रुव ने भगवान की तपस्या करने के लिये अपना घर छोड़ कर तपस्या करने के लिये वन निकल गए । रास्ते में उन्हें काफी अड़चने आयीं, लेकिन उन्होंने किसी बात की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य पर चलते रहे । देव ऋषि नारद बालक ध्रुव के सामने प्रगट हुए और उन्होंने तपस्या की कठिनाइयों के बारे मे भी बताया । ध्रुव पर किसी बात का जब असर नहीं पड़ा तब नारद मुनि ने उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन करने का मार्ग सुझाया । ध्रुव की घनघोर तपस्या से सम्पूर्ण ब्रह्मांड हिल गया । ध्रुव ने लगातार छह माह अन्न जल त्याग कर एक स्थान पर बैठकर घनघोर तपस्या की । उनकी तपस्या मे लीन होने की वजह से भगवान विष्णु सामने खड़े थे परन्तु ध्रुव ने अपनी आंखों को बंद रखा उनका ध्यान मन में विराजमान छवि की तरफ एकाग्रचित था । भगवान विष्णु ने जब उनके हृदय पटल से वह छबि लुप्त कर दी तब ध्रुव ने आंखोको खोला और प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए । भगवान विष्णु के दर्शन से ध्रुव इतना भाव विह्वल हो गये थे कि उन्हें तपस्या करने का मूल कारण याद नहीं आ रहा था । भगवान से उन्होंने धन सम्पत्ति मोक्ष कुछ नहीं माँगा । भगवान ने उन्हें ध्रुव पद प्रदान किया और एसे महान भक्त के गौरवपूर्ण व्यक्तित्व के चारों ओर महान सप्तऋषि आज भी चक्कर लगा रहे हैं ।
ध्रुव अपने पूर्ण लीन भक्ति के कारण ध्रुवीकरण ध्रुवीय आदि शब्दों के पूरक बन गये उत्तर में स्थित एक तारा का नाम भी आपके नाम से जाना जाने लगा ।हमारे एक हेलीकॉप्टर का नाम भी ध्रुव रखा गया है ।




 शरद कुमार श्रीवास्तव


अर्चना सिंह जया की रचना मेघा आए

 



मेघा आए, मेघा आए।

विरह वेदना को हर जाए। 


अपने संग जल का गागर लाए,

ताल, तलैया व नदियों में,

उमड़-उमड़ कर जल भर जाए।


पशु-पक्षियों और नदियों के,

विकल मन को पुलकित कर जाए।


मेघा आए, मेघा आए।

रिमझिम-रिमझिम की फुहार लाए,

मेंढक-झींगुर के संग सुर मिला।


इंद्रधनुषी सा मन हो जाए,

आनंदित हो मन मयूर झूमे गाए।


बाल मन कश्ती है तैराए,

और जोगनिया को जोग लगाए।



मेघा आए, मेघा आए। 

संग प्रियतम का संदेशा लाए,

मधुरिम बूंदों से नहलाए।


शीतल पवन तन छू जाए, 

बरखा की चंचल बूंदों से,

कोमल मन विचलित हो जाए। 



मेघा आए, मेघा आए।

प्रेम गीत, सावन संगीत 

बालिकाएं झूम झूमकर हैं गाएं।


उम्मीद-राहत की फुहार संग लाए,

खेतिहर के जीवन को हर्षाए। 


काले मेघा, भूरे मेघा 

जब-जब रूप बदल कर छाए,

कोमल बाल मन को है लुभाए।


मेघा आए, मेघा आए।

बरखा रानी के आगमन से ,

वातावरण खुशनुमा हो जाए।


रक्षाबंधन महाशिवरात्रि पर्व, 

श्रावण मास संग अपने लाए।

जीवनदायिनी है वर्षा ऋतु,

धान, मक्का, गन्ना फसल को भाए।


मेघा आए, मेघा आए।

विरह वेदना को हर जाए।


------ अर्चना सिंह जया


इंदिरापुरम 

गाजियाबाद 

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

बाल रचना/दादू की साइकिल! --- वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


चले  साइकिल  लेकर  दादू,

सौदा    लेने    को    बाज़ार,

उछल - कूद   गद्दी  पर  बैठे,

मारे    उसमें   पैडल    चार।


खड़-खड़ करता पुर्जा-पुर्जा,

चेन   उतर   जाती   हरबार,

चेन   चढ़ाकर   जैसे -  तैसे,

होते     चलने   को    तैयार।


हटो  - हटो   चिल्लाए   दादू,

घंटी   का  था  स्वर   बेकार,

ब्रेक   लगाया   पूरे   दम  से,

थमी  नहीं  फिर  भी रफ्तार।


टकराए  जाकर   रिक्शा  से,

टूट    गईं   तीली    दो - चार,

सॉरी  कहकर  पिंड  छुड़ाया,

झगड़े  में   क्या  रक्खा  यार।


राम   नाम   लेकर   दादा जी,

ज्यों   ही   होने   लगे   सवार,

गद्दी   गिरी   दूर   जा   करके,

हुए     बैठने      से    लाचार।


ढुलमुल  हुआ  हैंडिल   सारा,

निकल  गया  टायर  का  तार,

बिना  हवा  के  आगे   बढ़ना,

कितना    होता    है    दुश्वार।


भूल  गए   सब  सौदा  लाना,

भूले    सब्ज़ी   और   अचार,

चले  साइकिल  लेकर  पैदल,

कोस  रहे  खुद को  सौ  बार।


दादू  आप  कभी  मत  जाना,

हमें    छोड़कर    यूं    बाज़ार,

हाथ  जोड़  करते   हैं  विनती,

हम   सब     बच्चे     बारंबार।

        



              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   

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"झूला" (दोहा) : प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना






आया सावन झूम के, भीगे तन मन आज।
झूला झूले पेड़ पर, कर के नारी साज।।

बिजली चमके जोर से, घिरे घटा घनघोर।
पँख फैला कर नाचते, वन में सारे मोर।।

रिमझिम रिमझिम बारिशें, करती है संगीत।
सजनी झूला झूलती, होती है यह रीत।।

गिरे मूसलाधार जब, लगे हाल बेहाल।
झूले सखियाँ मिल सभी, बाँधे पेड़ो डाल।।

भीगे मौसम है यहाँ, भीगे से बरसात।
साजन सजनी साथ में, बैठे करते बात।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बाल रचना/नन्हा जुगनू! : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




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अम्मा कहती है जुगनू  के,

लगी     पेट     में    लाइट,

हो  जाती जो पलमें मद्यम

होती    पल    में    ब्राइट।

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दादी अम्मा आप बताओ,

क्या   माँ  सच  कहती  है,

नन्ही  सी यह  लाइट कैसे,

बिना    तार    जलती   है,

बोलो अंधियारे  से  जुगनू,

करता      कैसे     फाइट।


कभीयहाँ करता उजियारा,

कभी    वहाँ     करता   है,

सारी  रात  उड़ानें   जुगनू,

मस्ती    में     भरता     है,

नहीं बैठता थककर  बोलो,

क्या     लेता    है    डाइट।


दूर पेड़पर  कभी  चमकते,

लगते       जड़े      सितारे,

जलते-बुझते  एक साथ ये,

लगते        कितने     प्यारे,

जैसे  अम्मा  आसमान  में,

हौं      चमकीली     काइट।


सच में बया  चिरैया  लाती,

इनको   पकड़   पकड़कर,

बल्ब सरीखा  इन्हें लगाती,

घर    की     दीवारों    पर,

हाँ, बेटे  मैं झूठ  न कहती,

बोलूँ       हरदम      राइट।

    


           वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

               मुरादाबाद/उ,प्र,

               9719275453

                

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