शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

बाल कविता जंगल की बारात : रचना मंजू यादव







मेंढक जी जब बनकर दूल्हा, चले मेंढकी को लाने।
सारे मेंडक बने बाराती,लगे जोर से टर्राने।।
टर्र्,टर्र की आवाजें सुनकर शेर नींद से जाग गया।
देख के शेरू जी का गुस्सा चूहा डरकर भाग गया।।
चतुर सयानी  लोमड़ी मौसी पहुंची शेरू जी के पास।
जंगल में मंगल है शेरू ,चलो चलें हम भी बारात।।
किसकी शादी? कैसीशादी? मुझे निमंत्रण न आया।।
किसकी जुर्रत इस जंगल में   जिसने हमको नहीं बुलाया।।
लोमड़ी थी कुछ चतुर सयानी, बातों में थी सबकी नानी।
ये कैसी जुर्रत कर डाली? जो  फुदकू ने न तुम्हें बुलाया।।


अब जंगल में शेरू राजा जोर,जोर से था गुर्राया।
सुनके दहाड़ शेरू जी की,फुदकू दौड़ा,भागा आया।।
पैर पकड़ कर शेरू जी के जोर से रोया था टर्रा या।।
माफ़ी मांग कर शेरू जी से सारा मामला था सुलझाया।।
जंगल में अब सारे जानवर चले मेंढकी को लाने।
तान दे रहा गधा सुरीली,झिंगुर गाते हैं गाने।।




मंजू यादव 
(एटा) उत्तर प्रदेश 
Manju yadav 925925@ gmail. Com

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