मंगलवार, 26 जुलाई 2022

नन्ही चुनमुन और आइसक्रीम : शरद कुमार श्रीवास्तव

 



नन्ही चुनमुन  अपने मम्मी पापा के साथ एक  पार्टी मे गई थी ।  सुयश भैया भी साथ मे था ।  चुनमुन  की  फ्रेंड्स  भी उस पार्टी मे थी ।  पापा मम्मी अपने मित्र  मंडली मे थे तो सुयश भैया अपने दोस्तों के बीच मे था।  चुनमुन  के साथ  उसकी फ्रेंड्स  थीं।   सब आपस मे बातचीत  कर  रहे थे ।  कोल्ड ड्रिंक  स्नैक्स भी बाँटा जा रहा था ।   सब बच्चों   ने कोल्ड  ड्रिंक  लिया  स्नैक्स  भी खाया  फिर उन सबकी नजर आइसक्रीम  टेबल पड़ी तो सभी  आइसक्रीम  टेबल  को घेर कर  खड़ी हो गईं और  एक एक डबल  स्कूप आइसक्रीम  लेकर  अलग हट गईं । चुनमुन  को उसकी नानी ने समझाया था कि ज्यादा आइसक्रीम  नहीं खाना चाहिए उस  बात का ध्यान  आने पर चुनमुन  को शान्त  होकर बैठना पड़ा।

कुछ देर  बाद  सुयश  भैया का एक  दोस्त मोहन आइसक्रीम  टेबल  पर  गया ।  चुनमुन  को लगातार  आइसक्रीम  टेबल  की ओर देखता हुआ  देख मोहन एक आइसक्रीम का कोन चुनमुन  के लिए  लेकर आ गया ।  चुनमुन  ने शिष्टाचार  के नाते मोहन को धन्यवाद  भी दिया ।    नाचगाना सब समाप्त  हो गया था सब खाने की टेबल  पर  सपरिवार  बैठे ।  चुनमुन ने अपनी मम्मी के साथ  खाना खाया और आइसक्रीम  भी ।  तबतक  चुनमुन के पापा एक एक  आइसक्रीम  उसके तथा उसकी मम्मी के लिए  लेकर  आ गए। 

घर  तक पहुंचते पहुंचते चुनमुन  की नाक बहने लगी । देर रात  मे चुनमुन  का बदन तप रहा था  उसे बुखार  हो गया था ।  चुनमुन  के माता-पिता  चिन्तित  हो गए  थे ।   सबेरे  सबेरे चुनमुन  को डाक्टर  के क्लीनिक  मे ले गये ।  डॉक्टर साहब  ने चुनमुन  को एक इंजेक्शन  लगाया और कुछ  सिरप भी दिये ।  डॉक्टर  साहब  ने  चुनमुन के माता पिता को बतलाया कि अघिक  आइसक्रीम  खाने से यह बुखार  हुआ  है ।  चुनमुन  को याद  आया कि यही बात  तो उसकी नानी जी ने बहुत  पहले ही बतला दिया था।


शरद  कुमार श्रीवास्तव 

प्राचीन भारतीय मुद्रा प्रणाली

 1 अप्रैल 1957 को भारतीय मुद्रा का मैट्रिक करण किया गया और नया पैसा वजूद मे आया जिसमे एक रुपए का मान 100 नया पैसा हो गया था ।   वर्ष  1964 मे नये पैसे की नामांतरण सिर्फ पैसा हो गया और नया शब्द हमेशा के लिए हट गया।  इसके पहले जब मैट्रिक  प्रणाली नहीं थी तब निम्न प्रकार  की मुद्रा प्रणाली चलती थी ।



श्री एस डी सावंत (सेवानिवृत्त  अधिकारी )
भारतीय स्टेट बैंक, द्वारा 
अंतर्जाल  से संकलित 

*शिव भक्ति* प्रिया देवांगन प्रियू की रचना



सिर पर गंगा मैया बैठी, मस्तक चाँद विराजे।
नाग गले में धारण करते, डम डम डमरू बाजे।।
महाकाल भोले बाबा जी, अजर अमर अविनाशी।
ध्यान मग्न में रहते शम्भू , कहलाते कैलाशी।।

कानों में बिच्छी की बाला, है त्रिशूला धारी।
राक्षस अत्याचार करे तो, पड़ते उन पर भारी।।
बाघम्बर को सदा लपेटे, तन में भस्म लगाते।
मुख सुंदर मुस्कान रहे जी, बर्फानी कहलाते।।

जगत कृपा हे शिव शम्भू जी, तुम हो जग के स्वामी।
कब क्या होगा तुमने जाना, हो तुम अंतर्यामी।।
बढ़े कदम ना बिन आज्ञा के, परम पिता परमात्मा।
द्वेष कपट शिव को ना भाये, निर्मल उनकी आत्मा।।

सच्चे मन से जो भी पूजे, सदा तुम्हें ही पाते।
कष्ट निवारण कर दो भोले, तेरे दर पर जाते।।
नाम शिवा के जाप करे जो, हिय में होय निवासी।
सदा सहारा बनते भोले, घट घट के हैं वासी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


मंजू यादव की रचना आओ हम सब खेले खेल,

 



आओ  हम सब खेले खेल,

पंक्ति बनाकर बनाये रेल।

कुछ बच्चे बन जाएं डब्बे,

भागे,दौड़े रेलमपेल।।


चिंटू बनकर इंजन आगे,

बाकी पीछे,पीछे भागे।

छूक,छूक छूक,छू का

आगे बढ़ती ,

दो पटरी पर सरपत् चलती।

 बड़ा निराला है ये खेल

नियम जो तोड़े पहुंचे जेल।।


मंजू यादव 


नींद खुली तो हंसा रही थी बात बात में। बाल कविता रचना :प्रभु दयालु श्रीवास्तव

श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव  जी की एक पूर्व  प्रकाशित  रचना हम पुनः प्रकाशित  कर  रहे हैं




        नींद खुली तो
    हंसा रही थी बात बात में।
    परी आई थी गई रात में।
    एक हाथ में चॉक्लेट थी,
    चना कुरकुरे एक हाथ में।

    हम तो उसके दोस्त हो गए,
    बस पहली ही मुलाक़ात में।
    बोली इन्टर नेट सिखा ,
    लेपटॉप हूँ लाई साथ में।

     नींद खुली तो मां को ,देखा,
     गरम जलेबी लिए हाथ में।
     माँ ही बनकर परी आई थी,
     समझ गई मैं ,गई रात में | 


 प्रभुदयाल श्रीवास्तव छिंदवाड़ा

सौ-सौ आँसू! वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की बालरचना



सौ-सौ आँसू क्यों रोते हो,

बोलो      मेंढक      भाया,

चेहरा भी  है  उतरा-उतरा,

सूखी       सारी      काया।


खोयी  है रंगत  आँखों की,

बोली     भी     बेदम     है,

टाँगों  में  भी  पहले  जैसा,

बचा    नहीं   दमखम   है।


क्या  बतलाऊँ   चूहे  राजा,

अपनी      राम      कहानी,

ताल - तलैया   सूखे   सारे,

मेघ    पी      गए      पानी।


नष्ट   हो   रहे  कीट - पतंगे,

भूख     लगी     है     भारी,

सूख  रही  है  बिन पानी के,

कोमल     त्वचा     हमारी।


अच्छा  होता  धीरज  धरना,

चूहे           ने      समझाया,

हवा  चल  गयी  ठंडी  देखो,

बादल    भी    घिर    आया।


टिप-टिप बून्दों ने आकर के,

सबका       मन       हर्षाया,

खुशी-खुशी मेंढक राजा भी,

टर्र    -    टर्र        चिल्लाया।




     -------😊-😊-------

         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

                   ----😊----

"बादल छाये" रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"



छन्न पकैया छन्न पकैया, काले बादल छाये।
जोर जोर से बिजली चमके, सँग में बारिश लाये।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मेंढक शोर मचाते।
उछल कूद करते हैं दिनभर, घर में भी घुस जाते।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, आती है हरियाली।
नये नये से उगते पौधे, सुंदर दिखती डाली।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, झम झम गिरता पानी।
दुबके बैठे बंदर सारे, करे नहीं शैतानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, गिरते हैं जब ओले।
पशु पक्षी सब चुप हो जाते, अपना मुँह ना खोले।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

रविवार, 17 जुलाई 2022

बन्नी फन्नी लन्नी खरगोश: बालकथा शरद कुमार श्रीवास्तव




बन्नी फन्नी लन्नी  नन्हे खरगोश  बार बार  अपनी मम्मी  इन्नी खरगोश का कहना नही मान रहे थे ।   इन्नी बार बार  उन्हे समझा रही थी कि मांद  के बाहर मत झांको बाहर लूमड़ घूम रहा है।  लूमड़ बिल्कुल मांद  के आस-पास  ही है ।  यह समझाकर इन्नी खरगोश  अपने घर के कामो मे लग गई। 

यह देखकर  बन्नी ने अपने दोनों दाँत बाहर निकाल  कर हँस कर  कहा,  मम्मी मजाक कर  रही है ।  लूमड़ तो अपने परिवार  के साथ  पिक्चर  देखने गया है। 

फन्नी खरगोश  ने अपने दोनो कान खड़े कर दिए  और बोला " बन्नी तुम्हे कैसे मालूम कि लूमड़ सपरिवार  पिक्चर  देखने गया है।  अभी सुबह सुबह  कौन पिक्चर  जाता है।  मम्मी जी ठीक  कह रही हैं हमेशा सतर्क  रहना चाहिए  खतरे को कम  नही समझना चाहिए।   मुझे लूमड़  की गंध भी आ रही है।

लन्नी खरगोश  भला चुप कैसे बैठता।  लन्नी खरगोश  ने बन्नी खरगोश  का साथ दिया और  अपनी गोल मटोल आँखे मटका कर बोला ।  हमे डरना नहीं चाहिए।   फन्नी खरगोश  ने आगे  कहा  मम्मी ने हमे कहानी सुनाई  थी कि एक खरगोश  ने शेरसिंह  को कुएं मे डाल  दिया था ।

बन्नी खरगोश  और  लन्नी खरगोश  ने मम्मी इन्नी खरगोश तथा  फन्नी खरगोश  की बातों पर कोई ध्यान न देकर  दाँत  दिखलाते हुए और आँखे मटकाते हुए  माँद से बाहर  निकल  गये।  वे अभी थोड़ी  दूर ही गए थे  कि एक झाड़ी  के पीछे छुपा लूमड़ बाहर  आ गया और  बन्नी खरगोश  और लन्नी खरगोश  पर झपटा ।  

बन्नी खरगोश  ने लूमड़ से झगड़ते हुए कहा यह तो चीटिंग है ।   मांद  मे आई हवा ने तो संदेश  दिया था कि तुम  सपरिवार  पिक्चर  देखने गए हो।   लूमड़  ने अपनी बड़ी बड़ी आँखे, पँजे और  दाँत  दिखला कर  कहा।  फन्नी खरगोश और  तुम्हारी मम्मी इन्नी खरगोश  ने भी तुम्हे सावधान  किया था।  उनकी चेतावनी पर तुमने ध्यान  नहीं दिया तो लो अब भुगतो ।  यह कहकर  लूमड़  बन्नी खरगोश  और लन्नी खरगोश  को मारकर  खा गया।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

शनिवार, 16 जुलाई 2022

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना " नन्ही सी जान"

 




"नन्ही सी जान"

रहती माँ की कोख में, बनकर नन्ही जान।
नौ महिने परिपूर्ण से,लेकर आती मान।।

आते ही संसार में, रूदन करती जोर।
इंसानों को देख कर, करती है वह शोर।।

नयन खोलती है परी, झूम उठे घर द्वार।
मम्मी पापा सँग सभी, करते अनुपम प्यार।।

बेटी को जब देखती, बहती खुशियाँ नीर।
खो जाती कुछ पल वहाँ, याद रहे नहिँ पीर।।

माँ लेती जब गोद में, चुम्बन करती माथ।
कहती उसके कान में, हरपल हूँ मैं साथ।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

चालाक बनो मंजू श्रीवास्तव ( दिवंगत) की बाल कथा)

 नाना की पिटारी की पुरोधा,  बालकथा ,  लेखिका स्व श्रीमती मंजू श्रीवास्तव  जी का जन्मदिन  दिनांक  8 जुलाई  को था ।  उनकी स्मृति मे यह पत्रिका उनकी एक पूर्व  प्रकाशित  रचना को पुनः प्रकाशित  कर उन्हे श्रद्धा-सुमन  अर्पित  कर  रही है।



शाम होने लगी थी | धीरे धीरे सूर्य अस्त होने लगे थे | अंधेरा बढ़ता जा रहा था | पशु पक्षी अपने अपने घर वापस लौटने लगे थे |
जल्दी चलने वाले पशु अपने घर पहुँच चुके थे | कुछ धीरे चल रहेथे| वो अभी रास्ते मे ही थे | अंधेरा बढ़ता जा रहा था |
   लोमड़ी आज कुछ ज्यादा ही जोश मे थी | सोच रही थी कि अंधेरा हो गया तो क्या |  मै तो पहुंच ही जाउँगी | मुझे किस बात का डर|
अपनी धुन मे चली जा रही थी | सामने एक गड्ढा आया | वह देख नहीं पाई और उसमे गिर पड़ी | बहुत हाथ पैर मारे पर वह बाहर नहीं निकल पाई | रात भर उसी मे पड़ी रही |
  दूसरे दिन सवेरे एक बकरी उधर से गुजर रही थी | उसे लगी प्यास | गड्ढा देखकर उसने सोचा शायद यहाँ पानी मिल जाय |उसमे झाँककर देखा तो लोमड़ी  दिखाई दी |
      बकरी ने लोमड़ी से पूछा, बहन,  पीने के लिये थोड़ा पानी मिल जायगा?  लोमड़ी बोली हाँ हाँ जरूर मिल जायगा| लेकिन तुम्हें नीचे आना पड़ेगा |
      लोमड़ी तो इसी ताक़ मे थी  | बकरी ने भी आगा पीछा कुछ न सोचा और लोमड़ी की बातों मे आकर झट से गड्ढे मे कूद गई |

दोनो ने पानी पीकर प्यास बुझाई | दोनो सोचने लगी कि अब ऊपर कैसे चढ़ा जाय?

लोमड़ी ने बकरी से कहा एक उपाय है | तुम अपने दो पैर उठा कर दीवार के सहारे टिक जाओ | मै तुम्हारी पीठ पर पैर रखकर चढ़ जाऊंगी और बाहर निकल जाऊँगी |  बाहर निकलकर तुम्हे बाहर निकालने की कोशिश करूँगी |
बकरी को बात समझ आ गई |
     बकरी दीवार के सहारे खड़ी हो गई और लोमड़ी उसकी पीठ पर पैर रखकर चढ़के बाहर कूद गई |

बाहर जाकर लोमड़ी बहुत खुश हुई |और बकरी को गड्ढे मे छोड़कर अपने घर चली गई|

बच्चों, कहानी से ये शिक्षा मिलती है कि बिना सोचे समझे कोई कदम नहीं उठाना चाहिये|
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 मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार


बरखा रानी : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"



बिजलीचमकी बादल गरजे

हुई     रोशनी    अम्बर    में

धीरे-धीरे      बरखा    रानी

पहुंची  सबके   घर-घर   में।


बून्द-बून्द   के  बने   बताशे

बच्चे  दौड़   पकड़ने   जाते

लाख  जतन   करते  बेचारे

फिर भी हाथ नहीं वो आते।


भर जाता  आंगन  में  पानी

जी भर करते सब  मनमानी

छोटी  बहना   शोर  मचाती

नहलाती  जब गुड़िया रानी।


बादल यूं  ही जल  बरसाना

हमको ज्यादा मत तरसाना

आग  नहीं  बरसाना   भैया

सूरज को   बतलाते  आना।


अन्वी,अस्मि,अश्वथ आओ

माही, रुद्र, प्रशु  को  लाओ

टर्र-टर्र,  पीहू,   झींगुर   की

बोली के संग  नाचो  गाओ।


गयी  दुपहरी   संध्या  आई

शीतल हवा  साथ ले  आई

बारिश  की नन्हीं  बून्दों  ने

खुशियों की उम्मीद जगाई।

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         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

                ----😊-----

"गुरु दोहे" : प्रिया देवांगन "प्रियू की रचना



शिक्षा देते साथ में, बाँटे गुरुवर ज्ञान।
सभी देवता से बड़े, गुरुवर को ही मान।।

निशदिन पूजा मैं करूँ, जोड़ूँ दोनो हाथ।
भटकूँ मैं जब राह पर, गुरुवर देना साथ।।




कोरा कागज जो रहे, भरते उन में ज्ञान।
सभी देवता से बड़े, गुरुवर को ही मान।।

सत्य वचन कहते सदा, ध्यान लगाते शिष्य।
गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ते आज भविष्य।।

कृपा रहे जिस पर सदा, बनते वो विद्वान।
सभी देवता से बड़े, गुरुवर को ही मान।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


बुधवार, 6 जुलाई 2022

"मेरे पापा" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



प्यार हमेशा करने वाले।
जीवन खुशियाँ भरने वाले।।
सच्चे मित्र कहाते पापा।
अपने साथ घुमाते पापा।।

बचपन में वो साथ चलाते।
सदा हमें संस्कार सिखाते।।
बच्चों सँग बच्चे बन जाते।
जोर - जोर से हमें हँसाते।।

चाट पकौड़े खूब खिलाते।
मेले में लेकर भी जाते।
झूला हमें झुलाते पापा।
जोकर से मिलवाते पापा।।

सदा सत्य की राह दिखाते।
उस पर चलना हमें सिखाते।।
गलती में वे डाँट लगाते।
सदाचार हमको बतलाते।।

हिम्मत करना हमें सिखाते।
जीवन रक्षा कवच कहाते।।
अपना दर्द छुपाते पापा।
गम पर भी मुस्काते पापा।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


नन्ही चुनमुन और उसका यूनीकार्न

 


चुनमुन  को बहुत  अच्छा लग रहा था एक  नई  तरह का यूनीकार्न  उसके पास आ गया है ।   उस तरह  का यूनीकार्न  किसी और  के पास  नहीं है ।   संस्कृति , आशी ,शाम्भवी और यहाँ तक चीबू भैया के पास भी नहीं है।   पास के माॅल मे भी ऐसा यूनीकार्न  नहीं है नहीं तो  मम्मी मुझे बहुत पहले दिलवा देतीं आखिर  मैं अपनी मम्मी की बहुत  दुलारी हूँ।

चुनमुन  को अपने खिलौने के रैक मे तथा खिलौने के डिब्बों मे बंद खिलौनो मे से कोई  खिलौना  उस  को पसन्द नही आ रहे था।  उनमे से कोई भी तोहफा इसका मुकाबला नहीं कर सकता था ।  कितना प्यारा है यह प्यारा सा यूनीकार्न।  देखने मे तो यह ज्योमेट्री बाक्स जैसा लगता है परन्तु है यह यूनीकार्न  ही ।  एक प्यारी सी नुकीली सी इसके नाक पर काॅर्न (सींग) है।  इसके पहले के यूनीकार्न  तो पुराने हो गये हैं या खो गये हैं

नन्ही चुनमुन  उस यूनीकार्न  को सीने से चिपकाकर  गहरी नींद  मे सो रही थी ।  उसे लगा कि उसका सुयश भैया उस यूनीकार्न  को उससे छीनने की कोशिश कर  रहा है और  कह रहा है कि यह यूनीकार्न  उसका है।  नींद  मे ही चुनमुन  ने उसे और जोर से अपने सीने से चिपका लिया ।   उसे कुछ  चुभन सी हुई ।   उसी समय नन्ही चुनमुन  को कुछ गडता हुआ देखकर उसकी मम्मी ने उसे झझकोर कर उठाया और  बोली बेटा यह क्या हाल बना दिया है तुमने अपने पेन्सिल  बाक्स  का ।   पेन्सिल बाक्स  से पेन्सिल  निकलकर  तुम्हे चुभी जा रही है और पेन्सिल बाक्स भी पूरा टूट  चुका है ।  चुनमुन जिसे यूनीकार्न  समझ  रही थी वह एक टूटा पेन्सिल  बाक्स  है यह वह बड़े आश्चर्य  से देख रही थी।




शरद कुमार श्रीवास्तव 



सुग्घर परिपाटी" एक छत्तीसगढी भाषा मे प्रिया देवांगन प्रियू की कविता



रद रद रद रद बरसे पानी, जीव जंतु सकलाये।
साँप केचुआ मेंढक घोंघा, बिला निकल के आये।।

भरे लबालब तरिया नदिया, मछरी बड़ इतराये।
देख कोकड़ा तिर मा आवत, भीतर मा घुस जाये।।

बइठ खोंदरा चिरई चिरगुन, चिंव चिंव सुग्घर बोले।
हवा चले जब सरसर सरसर, मनवा ऊंँखर डोले।।

करे बिजुरिया चमचम चमचम, बादल गड़गड़ बाजे।
करा गिरे बड़ भुइयांँ संगी, मोती कस वो साजे।।

खेलय कूदे जीव जनावर, बछरू पल्ला भागे।
बइठे बइठे देखय मनखे, मन हर सुग्घर लागे।।

राज करे जी धरती मइया, चंदन कस हे माटी।
जीव जंतु सँग मनखे रहिके, गुण गावय परिपाटी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


हाथी और दरजी

 




पहाडों पर एक गाँव मे एक दर्जी रहता था। गाँव के लोग उसे कपड़े सिलने को देते थे ।  वह उनको सिलकर अपना और अपने परिवार का लालन पालन करता था । उसी गाँव मे एक हाथी भी रहता था ।  हाथी दर्जी की दुकान के सामने खड़ा हो जाता  और दर्जी को काम करते हुए देखता था । हाथी के दुकान के सामने खड़े होने से दर्जी की दुकान की रौनक बढ़ जाती थी। कुछ  दिनो के बाद दरजी और हाथी की  दोस्ती हो गयी ।  हाथी दर्जी के बच्चे को अपनी पीठ पर बैठाकर कभी कभी  गाँव की सैर करा लाता था।   इसके बदले मे दर्जी हाथी केले खिला देता था।   दर्जी के बच्चे को दर्जी का उस हाथी को खिलाना पिलाना पसंद नहीं था ।

एक बार दर्जी को दुकान का सामान लाने शहर जाना पड़ा।   हाथी रोज की तरह जब दर्जी की दुकान पर आया और उसने देखा कि दुकान बन्द है ।  उसे लगा कि दर्जी अभी सो रहा है जबकि दिन सिर के ऊपर तक निकल आया है ।   हाथी ने सोंचा कि अगर दर्जी सो रहा हो तो उसे जगा दें।  हाथी ने  चिंघाड़ कर दर्जी को  आवाज लगाई ताकि दर्जी सुने तो दुकान खोल कर अपने रोजी रोटी पर ध्यान दे । लेकिन  दर्जी तो शहर जा चुका था । उसके लड़के ने हाथी की चिंघाड़ का कुछ ध्यान नही दिया और न कुछ बोला ।   हाथी ने दुबारा चिंघाड़ा लेकिन दर्जी के घर से कोई आवाज नहीं आई ।   हाथी ने उत्सुकता वश घर के दरवाजे की ऊपर की दराज से अपनी सूंड़ डाली तब दर्जी के लड़के ने हाथी की सूंड़ मे सुई चुभा दिया।  सुई चुभते ही हाथी बहुत गुस्से मे आ गया और वह 
हाथी गुस्से से तालाब पर चला गया  ।   वह अपनी सूंड़ मे ढेर सारा कीचड़ और पानी भर कर ले आया और सारा कीचड़ तथा पानी दर्जी की दुकान मे उलट दिया ।   दर्जी की दुकान मे रखे नये नये सब कपड़े बरबाद हो गये।   दर्जी ने जब लौट कर देखा तो उसे बहुत दुख हुआ . वह केले लेकर हाथी को मनाने निकला लेकिन हाथी तब तक वह गाँव छोड़कर कहीं जा चुका था.



शरद कुमार श्रीवास्तव 

"मोबाइल " रचना प्रिया देवांगन प्रियू



भूले बचपन आज, हाथ पकड़े मोबाइल।
रखते अपने पास, तब वे करते  स्माइल।।

खेल खिलौने दूर, नहीं बाहर है जाते।
मोबाइल में गेम, सभी बच्चो को भाते।।

रिश्तों से अनजान, कहाँ अब दोस्त बनाते।
रखते दूरी लोग, इसे ही गले लगाते।।
बिन मोबाइल आज, नहीं खाना भी खाते।
रोते बच्चे देख, उसे कार्टून दिखाते।।

दादी बोले रोज, कहानी किसे सुनाऊँ।
पोता पोती दूर, पास कैसे मैं लाऊँ।।
बिगड़े बचपन देख, खूब दादा चिल्लाते।
नहीं मानते बात, रूठ कमरे घुस जाते।।

मोबाइल है खास, पास बैठे जब देना।
होते ही सब काम, उसे वापस है लेना।।
करना अच्छी बात, सीखते बच्चे सारे।
जैसे दो संस्कार, वही अपनाते प्यारे।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com