बुधवार, 6 जुलाई 2022

सुग्घर परिपाटी" एक छत्तीसगढी भाषा मे प्रिया देवांगन प्रियू की कविता



रद रद रद रद बरसे पानी, जीव जंतु सकलाये।
साँप केचुआ मेंढक घोंघा, बिला निकल के आये।।

भरे लबालब तरिया नदिया, मछरी बड़ इतराये।
देख कोकड़ा तिर मा आवत, भीतर मा घुस जाये।।

बइठ खोंदरा चिरई चिरगुन, चिंव चिंव सुग्घर बोले।
हवा चले जब सरसर सरसर, मनवा ऊंँखर डोले।।

करे बिजुरिया चमचम चमचम, बादल गड़गड़ बाजे।
करा गिरे बड़ भुइयांँ संगी, मोती कस वो साजे।।

खेलय कूदे जीव जनावर, बछरू पल्ला भागे।
बइठे बइठे देखय मनखे, मन हर सुग्घर लागे।।

राज करे जी धरती मइया, चंदन कस हे माटी।
जीव जंतु सँग मनखे रहिके, गुण गावय परिपाटी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


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