चुनमुन को बहुत अच्छा लग रहा था एक नई तरह का यूनीकार्न उसके पास आ गया है । उस तरह का यूनीकार्न किसी और के पास नहीं है । संस्कृति , आशी ,शाम्भवी और यहाँ तक चीबू भैया के पास भी नहीं है। पास के माॅल मे भी ऐसा यूनीकार्न नहीं है नहीं तो मम्मी मुझे बहुत पहले दिलवा देतीं आखिर मैं अपनी मम्मी की बहुत दुलारी हूँ।
चुनमुन को अपने खिलौने के रैक मे तथा खिलौने के डिब्बों मे बंद खिलौनो मे से कोई खिलौना उस को पसन्द नही आ रहे था। उनमे से कोई भी तोहफा इसका मुकाबला नहीं कर सकता था । कितना प्यारा है यह प्यारा सा यूनीकार्न। देखने मे तो यह ज्योमेट्री बाक्स जैसा लगता है परन्तु है यह यूनीकार्न ही । एक प्यारी सी नुकीली सी इसके नाक पर काॅर्न (सींग) है। इसके पहले के यूनीकार्न तो पुराने हो गये हैं या खो गये हैं
नन्ही चुनमुन उस यूनीकार्न को सीने से चिपकाकर गहरी नींद मे सो रही थी । उसे लगा कि उसका सुयश भैया उस यूनीकार्न को उससे छीनने की कोशिश कर रहा है और कह रहा है कि यह यूनीकार्न उसका है। नींद मे ही चुनमुन ने उसे और जोर से अपने सीने से चिपका लिया । उसे कुछ चुभन सी हुई । उसी समय नन्ही चुनमुन को कुछ गडता हुआ देखकर उसकी मम्मी ने उसे झझकोर कर उठाया और बोली बेटा यह क्या हाल बना दिया है तुमने अपने पेन्सिल बाक्स का । पेन्सिल बाक्स से पेन्सिल निकलकर तुम्हे चुभी जा रही है और पेन्सिल बाक्स भी पूरा टूट चुका है । चुनमुन जिसे यूनीकार्न समझ रही थी वह एक टूटा पेन्सिल बाक्स है यह वह बड़े आश्चर्य से देख रही थी।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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