बंद हुई गाड़ी में भैया,
नित लगवाते धक्का,
चार कदम चलकर रुक जाते,
चारों उसके चक्का।
सुखा- सुखाकर सभी पसीना,
बार - बार धकियाते,
इंजन की निस्तेज चाल को,
देख - देख खिसियाते।
सोहन तू हिम्मत मत हारे,
गोलू ज़ोर लगा रे,
बोल गई यदि एक बार तो,
होंगे वारे - न्यारे।
कल्लू, मल्लू, धक्का मारो,
रखकर दूर पजामी,
चालू होगी इसमें तुमको,
शंका है सरनामी ।
ज़ोर लगाकर सबने अपना,
दूर तलक दौड़ाया,
बोला जब गाड़ी का इंजन,
सबने हर्ष मनाया ।
बैठाकर भैया ने सबको,
चक्कर एक लगाया,
मेहनत का फल होता मीठा,
सबको यह समझाया।
वीरेन्द्र ब्रजवासी
9719275453
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