गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

प्रिया देवांगन प्रियू की छत्तीसगढी रचना "संदेशा"



तन माटी के पुतरा संगी, माटी मा मिल जाथे।
कतको मनखे सज धज लै जी, बन के राख उड़ाथे।।
देह भीतरी साँस चलत ले, माया मोह बंँधाथे।
उड़े जीव बन पंछी मैना, कहाँ सँदेशा आथे।।

जनम धरे हे मानुष जिनगी, भोग लाख चौरासी।
कोनों ईर्ष्या द्वेष जगाये, कोनो हर सन्यासी।।
करव भजन शिव राम चन्द्र के, इही संग मा जाथे।
पाप पुण्य के लेखा जोखा, जम्मो इहें गिनाथे।।

लाख जतन कतको कर ले जी, हावय कंचन काया।
छिन भर मा जब सांँस रूकथे, छोड़े देह किराया।।
मया पिरित के डोर फँसे हे, जइसे मकड़ी जाला।
करम धरम ला देखत रहिथे, बइठे ऊपर वाला।।

बिना नाम के जनम धरे हव, सुग्घर नाम बनावव।
खाली हाथ सबो ला जाना, भगवन ध्यान लगावव।।
का राखे हे देह म संगी, पंच तत्व मिल जाथे।
कतको मनखे सज धज लै जी, बन के राख उड़ाथे।।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

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