लगी सिसकने चिड़िया रानी, देख सभी घबराये।
कौआ कोयल मैना तोता, पास जरा सा आये।।
क्यों आंँखें गीली करती हो, हमको तनिक बताओ।
परेशान बैठे हैं सारे, इतना नहीं सताओ।।
धीमी धीमी बोली चिड़िया, देह घुसी बीमारी।
पेट दर्द सोने ना देता,इससे मैं हूंँ हारी।।
चलो पास डॉक्टर के चिड़िया, कोयल मैना बोली।
मगर डरी थी ये चिड़िया जो,जुबान तक ना खोली।।
उड़ कर कौआ संँग में लाया, डॉक्टर गिल्लू राजा।
हुई बड़ी आंँखें चिड़िया की,बज गया बैंड बाजा।।
सुई निकाली गिल्लू ने जब, जोर जोर चिल्लाई।
गुपचुप चिवड़ा और समोसे, याद सभी की आई।।
हाथ जोड़ कर माफी मांँगी, कभी नहीं खाऊंँगी।
आम सेब अरु केला खाकर, ताकत मैं लाऊंँगी।।
बीमारी जब देह लगी तो, आया होश ठिकाना।
गिल्लू ने सबको समझाया, सादा भोजन खाना।।
//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
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