जब से इस साल जेष्ठ- आषाढ का मौसम आया है गर्मी का प्रकोप छाया हुआ है । हरवक्त लू भरी गर्म हवाएं चल रही हैं । लेकिन नन्ही चुनमुन को चैन कहाँ है। उसे तो हर समय तेज धूप मे तपते हुए पक्षियों को देखकर उन बेसहारा पक्षियों की चिंता सता रही है ।
वृक्ष कम हो गए है आखिर ये पंछी भला कहाँ जाएं । चुनमुन बड़ी हो गई है । उसके कुत्ते और बिल्ली भी अब उसके साथ नहीं हैं । वे सब दूर चले गए है । फिर चुनमुन की अब खिलौनों या गुड़ियों से खेलने-कूदने की उम्र थोड़े ही है । उसे बस इन पक्षिंयों के लिए कुछ करना चाहिए । इसी सोच को अंजाम देने के लिए एक-दिन चुपचाप घर मे सामान सप्लाई के लिए आए कार्टन को लिया और अपने एस. यू. पी. डब्लू. की कैंची और अन्य समानो की मदद से "चिड़ियों का एक घर " अर्थात एक घोंसला तैयार किया। उसने फिर उस घोंसले को अपने घर के किचन के बाहर खिड़की के छज्जे पर अपने सुयश भइया की सहायता से रखा दिया ।
चुनमुन की मम्मी भी बहुत दयावान है , वे भी रोज एक प्याली मे साफ पानी चिड़ियों की प्यास बुझाने के लिए रखती है और चावल तथा अन्न के कच्चे पक्के कण भी रखती हैं। लेकिन चुनमुन ने इस गर्मी मे चिड़ियो का घोंसला तैयार किया है उन्हे मालूम नहीं है। सुयश भैया चुनमुन को बहुत प्यार करते हैं परन्तु उन्हे यह पसन्द नहीं आता हर पल चुनमुन इस कड़ी घूप मे घोंसले की निगरानी करे । लेकिन चुनमुन तो हमेशा इन चिड़ियों के घोंसले मे आगमन और उनके आतिथ्य के लिए उत्सुकता से तैयार बैठी रहती थी । लुकछिप के कोई मौका निकाल कर वह उसके बनाए कार्टन के घोंसले को निहार आती थी ।
काफी प्रतीक्षा के बाद वह भी उदासीन हो गई थी कि एकदिन उस कार्टन से बहुप्रतीक्षित किसी चिड़िया की चहचहाहट सुनाई दी। सुयश भाई ने भी उस चहचहाहट को सुना और अपनी बहन को बधाई दी ।
दोनो ने शाम को डाइनिंग टेबल पर इस बात को सबको बताया । मम्मी-पापा दोनो बहुत खुश हुए और चुनमुन को बहुत प्यार और आशीर्वाद दिया । पापा जी ने बच्चों को समझाया कि यह एक दीर्घकालीन हल नही॔ है । हमे अधिक से अधिक पौधा -रोपण करना चाहिए जिससे इन निरीह पक्षियों को राहत मिल सके और पर्यावरण का भी नियंत्रण हो सके। कल विश्व पर्यावरण दिवस पर हमलोग भी कम से कम 5 पौधे लगायेगे । पापा जी की इस बात पे नन्ही चुनमुन और उसके बड़े भाई सुयश को बहुत खुशी हुई और अपने पापा पर बहुत गर्व महसूस हुआ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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