गुरुवार, 27 जुलाई 2023

सावन के मजा छत्तीसगढी रचना प्रिया देवांगन "प्रियू

 


सावन के मजा//

लग गे हावय सावन महिना, 
                  गिरय झमाझम पानी।
उल्होवय डारा पाना हा,
                लहर–लहर लहराये।
किसम –किसम के फुलवा फूले,
              महर –महर ममहाये।
किरा–मकोरा झींगा मिलके,
                 करे अबड़ मनमानी।।

 घूमे फिरे ल मनखे जावय,
          पिकनिक खूब मनाये।
दुःख दरद ला भूल सबोझन,
          फोटू बने खिचाये।।
खुशी –खुशी ले चेहरा खिले,
           गुरतुर निकले बानी।।

सरग बरोबर लागे भुइयांँ,
            जम्मों देव समाये।
बाबा भोले नाथ ह संगी,
           गंगा धार बहाये।
बरसत पानी मा खुश हो के,
           मनखे करे किसानी।।

पांँव पखारँय ये धरती के,
            गाथा जम्मों गाये।
जनम धरे हे ये माटी मा,
           माथा अपन नवाये।
छत्तीसगढ़ी हमर राज्य के,
            सुग्घर हवय 


//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

बुधवार, 26 जुलाई 2023

चुटकुले संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव

 


1 आशी-पापा मुझे लिखना आ गया है।
पापा — यह क्या लिखा, पढकर सुनाओ।
आशी- अभी पढना नहीं आता सीख रही हूँ।

2 बेटा- पापा आप बिना देखे दस्तखत कर लेते हैं।
पापा — हाँ बेटा लेकिन क्यों?
बेटा- मेरे रिपोर्ट कार्ड में कर दीजिये।

3 राजू- माली पौधों में पानी दो।
माली- सर तेज पानी बरस रहा है।
राजू- छाता लगा के पानी दो

4 सिपाही- ये बडे ध्यान से कौन मंजिल देख रहा था।
मुसद्दी- पाचवी मंजिल
सिपाही- निकालो पचास रुपए।
मुसद्दी ने खुशी खुशी पचास रुपए दे दिया। उन्हें खुशी इसबात की थी कि वह देख अट्ठारहवी मंजिल थे।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

सावन की झड़ी रचना प्रिया देवांगन प्रियू





रिमझिम बारिश की ये बूंँदें, 
      धरती पर आती।
नयी कोपलें विकसित होतीं,
          रहती  हरियाली।
कल–कल करती नदिया बहती, 
             होकर मतवाली।
झड़ी लगी है ये सावन की, 
             बौछारें लाती।।

 
भोर सूर्य से फैली लाली,
             छँटती अंँधियारी।
स्वर्ण चमक ये निर्मल जल की,
             लगती कितनी प्यारी।
ठंडी –ठंडी सी पुरवाई,
          हमें गुदगुदाती।।
           
 कली पुष्प की खिलने लगती, 
                   रमणीक बगीचे।
मिट्टी की वो सौंधी –सौंधी,
                 क्यारी के नीचे।
 इन अनुपम मोहक फूलों से
                     मस्त महक आती।।

नमन करूंँ ये दृश्य देखकर,
               मुझे मिला जीवन।
देख धरा अनुराग बढ़ा है,
               धन्य हुआ तन मन।
इक दूजे का साथ निभाना,
             यह हमें सिखाती।।
              
              
//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

*मंगल पांडेय* ======== पशुपति पाण्डेय

 



१९ जुलाई को क्रान्तिकारी मंगल पांडेय की जयन्ती पर एक परिचय

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देश को अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्त करवाने के लिये १८५७ में ज्वाला को धधकाने वाले क्रांतिवीर थे मंगल पांडेय. अंग्रेजी शासन के विरुद्ध चले लम्बे संग्राम का बिगुल बजाने वाले पहले क्रान्ति वीर मंगल पांडेय का जन्म १९ जुलाई १८२७, को ग्राम नगवा (बलिया, उत्तर प्रदेश) में हुआ था. 


युवावस्था में ही वे सेना में भर्ती हो गये थे. उन दिनों सैनिक छावनियों में गुलामी के विरुद्ध आग सुलग रही थी. अंग्रेज जानते थे कि हिन्दू गाय को पवित्र मानते हैं, जबकि मुसलमान सूअर से घृणा करते हैं. फिर भी वे सैनिकों को जो कारतूस देते थे, उनमें गाय और सूअर की चर्बी मिली होती थी. इन्हें सैनिक अपने मुंह से खोलते थे. ऐसा बहुत समय से चल रहा था, पर सैनिकों को इनका सच मालूम नहीं था।


मंगल पांडेय उस समय बैरकपुर में ३३वीं हिन्दुस्तानी बटालियन में तैनात थे. वहां पानी पिलाने वाले एक हिन्दू ने इसकी जानकारी सैनिकों को दी. इससे सैनिकों में आक्रोश फैल गया. मंगल पांडेय से रहा नहीं गया. २९ मार्च,१८५७ को उन्होंने विद्रोह कर दिया।


एक भारतीय हवलदार मेजर ने जाकर सार्जेण्ट मेजर ह्यूसन को यह सब बताया. इस पर मेजर घोड़े पर बैठकर छावनी की ओर चल दिया. वहां मंगल पांडेय सैनिकों से कह रहे थे कि अंग्रेज हमारे धर्म को भ्रष्ट कर रहे हैं. हमें उसकी नौकरी छोड़ देनी चाहिए. मैंने प्रतिज्ञा की है कि जो भी अंग्रेज मेरे सामने आएगा, मैं उसे मार दूंगा।


सार्जेण्ट मेजर ह्यूसन ने सैनिकों को मंगल पांडेय को पकड़ने को कहा, पर तब तक मंगल पांडेय की गोली ने उसका सीना छलनी कर दिया. उस की लाश घोड़े से नीचे आ गिरी. गोली की आवाज सुनकर एक अंग्रेज लेफ्टिनेंट वहां आ पहुंचा। 


मंगल पांडेय ने उस पर भी गोली चलाई, पर वह बचकर घोड़े से कूद गया. इस पर मंगल पांडेय उस पर झपट पड़े और तलवार से उसका काम तमाम कर दिया. लेफ्टिनेंट की सहायता के लिए एक अन्य सार्जेण्ट मेजर आया, पर वह भी मंगल पांडेय के हाथों मारा गया।


तब तक चारों ओर शोर मच गया. ३४वीं पल्टन के कर्नल हीलट ने भारतीय सैनिकों को मंगल पांडेय को पकड़ने का आदेश दिया, पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए. इस पर अंग्रेज सैनिकों को बुलाया गया. मंगल पांडेय चारों ओर से घिर गये।


वे समझ गये कि अब बचना असम्भव है. अतः उन्होंने अपनी बन्दूक से स्वयं को ही गोली मार ली, पर उससे वे मरे नहीं, अपितु घायल होकर गिर पड़े. इस पर अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया. जिसके बाद मंगल पांडे पर सैनिक न्यायालय में मुकदमा चलाया गया।


उन्होंने कहा, ‘‘मैं अंग्रेजों को अपने देश का भाग्य विधाता नहीं मानता. देश को आजाद कराना यदि अपराध है, तो मैं हर दण्ड भुगतने को तैयार हूं।’’


न्यायाधीश ने उन्हें फांसी की सजा दी और इसके लिए १८ अप्रैल का दिन निर्धारित किया, पर अंग्रेजों ने देश भर में विद्रोह फैलने के डर से घायल अवस्था में ही ०८ अप्रैल, १८५७ को उन्हें फांसी दे दी।


बैरकपुर छावनी में कोई उन्हें फांसी देने को तैयार नहीं हुआ. अतः कोलकाता से चार जल्लाद जबरन बुलाने पड़े. मंगल पांडेय ने क्रांति की जो मशाल जलाई, उसने आगे चलकर १८५७ के व्यापक स्वाधीनता संग्राम का रूप लिया।



ऐसे महान क्रांतिकारी देश भक्त मंगल पांडेय को उनके जन्म दिवस पर कोटि-कोटि प्रणाम्।

     


            

 पशुपति पाण्डेय 

सहायक  महाप्रबंधक  ( सेवानिवृत्त)

भारतीय स्टेट बैंक 



रविवार, 16 जुलाई 2023

चुनमुन की बरफ मलाई : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


झम झमाझम झम झम

 पानी वर्षा और भीगे हम

उसपर  खाई बरफ मलाई 

चटकारें थीं भरपूर  लगाई 


मम्मी पापा ने खूब था रोका

बाबा जी ने बहुत था टोका

चुनमुन  पर  मस्ती थी छाई 

अब बिस्तर मे लुढ़की भाई 


मम्मी पापा को सच्चा कष्ट 

बीमारी से था बच्चा लस्त

डॉक्टर जी ने सुई लगाई 

चुनमुन उठकर बैठी भाई



शरद कुमार श्रीवास्तव 

नया मछलीघर रचना शरद कुमार श्रीवास्तव





नन्ही के पापा कल बाजार से एक नया एक्वेरियम खरीद कर लाए थे । उसमे खूबसूरत पेड़, चट्टानें नया पम्प , बुलबुले निकालते हुए एक गुड्डा गोताखोर और उसमे छह-सात रंगीन मछलियां भी है । नन्ही को बहुत अच्छा लग रहा है परन्तु पापाजी ने उसे चेतावनी दे रखी है कि वह एक्वेरियम के बिल्कुल पास नहीं जाये नहीं तो ठोकर लगने से एक्वेरियम टूट सकता है ।



नन्ही को लेकिन चैन नहीं है । वह चाहती है कि वह इन मछलियों के पास जाये और उनसे बात करे । सुनहले रंग वाली मछली तो सबसे ज्यादा चंचल है और ब्लू वाली भी अच्छी है पर थोड़ा स्लो है । शायद यह सुनहली वाली मछली ही इनकी राजकुमारी है । यह एक्वेरियम बैठक में रखा हुआ है। यहाँ पर नन्ही के दादी बाबा तो हर समय बैठे हुए रहते हैं ,टीवी पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम देखते रहते हैं । नन्ही चाहकर भी उसके नजदीक जा नहीं सकती है। दूर से ही बैठकर एक्वेरियम को देखते हुए उसे लगा कि उसके डैने निकल आये हैं और वह नदी में तैर रही है । तैरने में उसे बहुत मजा आ रहा है । उसके साथ और मछलियां भी तैर रही हैं। वहीं एक कछुआ गर्दन उठा कर नन्ही की तरफ देख रहा है । इतना मे एक सुन्दर सी सुनहली मछली उसके पास आई । नन्ही थोड़ा डर गई तो उस मछली ने रोते हुए कहा कि नन्ही तुम बहुत अच्छी लडकी हो । प्लीज मेरी बच्ची को कैद से छुड़ा लो । नन्ही को कुछ समझ में नहीं आया । वह उस मछली से पूछने लगी तुम रो क्यों रही हो अपनी बात ठीक से समझा कर बताओ । मछली तो रोती रही परन्तु कछुए ने अपनी गर्दन उचका कर कहा नन्ही से कहा कि तुम्हारे पापा जी आज एक्वेरियम में सुनहरे रंग की जो मछली लाए हैं वह इसी मछली की बेटी है । उस कछुए ने फिर कहा कि जरा पीछे मुड़ कर देखो ब्लू कलर की मछली और बहुत सी मछली तुमसे कुछ कह रही है।

वह बहुत  बेचैन  हो गई और स्वप्न मे बस रोने लग गई ।  उसकी  दादी  ने  चुप  कराने  की  कोशिश  की।   उसकी  पसंदीदा  चाकलेट , स्नैक्स उसे  देना  चाह रही  थी  परंतु  वह किसी  भी  प्रकार  से चुप नहीं  हो रही  थी ।  कुछ देर बाद उसने अपनी  दादी  जी से कहा  कि दादी जी मैं चुप हो जाती हूँ लेकिन आप  को  प्रामिस करना होगा  । जब  दादी प्रामिस के  लिए  राजी हो गईं  तब  नन्ही  ने सपने  की  बात  उन्हें  बताई।   फिर उसने और दादी जी ने पापा के  आने पर  वह उसने उन मछलियों  को जब तक नदी में  वापस  नही  छोड़वा दिया  तब तक वह नही मानीं  ।   नदी में जाते समय सब छोटी मछलियाँ उसे प्यार  से विदा  हो रहीं  थीं  ।





शरद कुमार  श्रीवास्तव

क्वाॅक ब्लॉक फ्लाॅक और टर्र टर्र : शरद कुमार श्रीवास्तव

 




छोटी बत्तख क्वाॅक सोच रही थी कि मम्मी जब जागेगीं तभी नाश्ता मिलेगा इसलिए तबतक तालाब की एक सैर करके आतो हूँ ।   माँ को बगैर  जगाए दबे पांव  वह सरोवर पहुंच गई।  सरोवर  मे उसे ब्लॉक फ्लाॅक  नाम के दो दोस्त  बत्तखें भी मिल गई ।  बस फिर क्या था तीनो मित्र  बाते करते तैरते काफी दूर निकल गए।  प्यारा मौसम  था ठंडी ठंडी हवा चल रही थी और  इधर दोस्तो की लंबी बातें चल रही थीं ।  ब्लाॅक ने देखा कि पास मे  टर्र टर्र नन्हे  मेढक का घर है ब्लॉक ने क्वाॅक  और फ्लाॅक  को साथ लिया और  टर्र टर्र  के घर निकल गई।   टर्र  टर्र  अपने घर पर ही था और  अपनी मम्मी पापा के साथ  ब्रेकफास्ट  कर रहा था टर्र टर्र  की मम्मी पापा ने बत्तखों के बच्चों का खूब स्वागत  किया और  कहा कि वे लोग भी साथ मे  ब्रेकफास्ट  करें ।   बत्तख के बच्चे भूखे बहुत  थे परन्तु वे समझ नही पा रहे थे कैसे करे? 

टर्र टर्र  अपनी  बहुत लम्बी और बाहर से अंदर की ओर मुड़ी , चिपचिपी जुबान को झटके के साथ  बाहर की ओर निकालता है जिसमे कीड़ा उसकी चिपचिपी जुबान पर चिपक जाता है और फिर टर्र टर्र  के मुँह में समा जाता है|  लेकिन  बत्तखों की जुबान  ऐसी नहीं है बल्कि उनके तो लम्बी चोंच (बीक) है ।  उनका खाना भी वैसा नहीं है ।  उनका भोजन बिल्कुल  अलग  है जैसे धान के गिरे हुए अनाज, कीड़े, घोंघे, केंचुए, छोटी मछलियां और शैवाल जैसे जल पौधे इत्यादि।  

इन बच्चों को भूख सताए  जा रही थी पर मेढक का निमंत्रण  स्वीकार  नहीं कर  पा रहे थे और  शिष्टाचार  वश आमंत्रण  केलिए  धन्यवाद  कहकर  जल्द  अपने घर  वापस  लौट आए  जहाँ उन की मम्मियाँ ब्रेकफास्ट  पर उनका इंतजार  कर  रहीं थी




शरद कुमार श्रीवास्तव 

बाल कहानी //संगति का असर//प्रिया देवांगन "प्रियू"

 





          बहुत पुरानी बात है। बोरसी नामक एक घना जंगल था। वन की दक्षिण दिशा में किरवई नदी बहती थी। नदी की काली-कच्छार भूमि से लगी एक बहुत बड़ी खुली जगह थी। उस जगह का नाम टीला था। वहाँ कई तरह के पक्षी रहते थे। इनमें एक कौए का परिवार था। उसके बच्चों के साथ एक कोयल का भी बच्चा था। उसका नाम था पीहू। उसे सब पीहूरानी कहकर बुलाते थे।

उस पीहू कोयल को पता ही नहीं था कि उसके माता-पिता कौन है। आखिर उसका बचपन कौए के बच्चों के साथ बीता था। पर अब वह वयस्क हो चुकी थी। उसके माता-पिता  इस वन को छोड़कर  कहीं चले गए थे । कौए के बच्चों के साथ पीहू की परवरिश हुई थी। उसका खानपान, व्यवहार व रहन-सहन कौए जैसा था। यहाँ तक उसकी आवाज कर्कश हो गयी थी। अब तक वह अपनी जाति के पक्षी को देखा नहीं था।उसे तो अपनी ही आवाज अच्छी नहीं लगती थी।

अक्सर वह कौए के बच्चों से बतियाया करती थी कि उसे उसकी आवाज बिल्कुल भी पसंद नहीं है। बेसुरा लगता है। किसी से बात करने का तो मन ही नहीं करता। पीहू की आवाज काँव-काँव तो नहीं थी, पर कौए के बच्चों से मिलती जरूर थी। कभी–कभी वह गीत गाने का भी प्रयास करती थी, लेकिन कौए के बच्चों के साथ रहकर उसकी कोशिश रंग में भंग हो जाती थी।
          एक दिन पीहू बहुत उदास थी। कौए के साथ रहने का उसका बिल्कुल मन नहीं कर रहा था। अचानक वह उड़ गयी वहाँ से। एक आम के बगीचे में जा पहुँची। फलों से लदे पेड़ देख कर उसका मन आनंदित हो उठा। प्रकृति के सौंदर्य को वह बार–बार निहारती रही। आम का बगीचा उसे स्वर्ग सा लगा। वह एक डाली से दूसरे डाली पर उड़–उड़ कर जाती थी, तो कभी पत्तियों में छिप जाती। ठंडी–ठंडी चलती पुरवाई उसे भा गयी।
इस तरह साँझ होने लगी। जब सूरज ढलने लगा तो उसकी लालिमा आम के फलों में पड़ने लगी। आम और भी खूबसूरत दिखने लगे। पीहू को वहाँ से जाने का बिल्कुल मन ही नहीं हुआ। संध्या होते ही बगीचे में रहने वाले पक्षी आने लगे। उन पक्षियों में पीहू को अपनी जाति के पक्षी भी दिखाई देने लगे। उन्हें देख पीहू घबरा गयी कि वे उसे भगा न दे। वह तुरन्त पेड़ की पत्तियों में छिप गयी। डालियों पर बैठी अन्य कोयल एक–दूसरे से जब बातें करती थी, तो पीहू को बहुत ही अच्छा लगता था। उनकी आवाज में बड़ी मिठास थी। उसने स्वयं को और उन्हें देखने लगी। वे रंग-रूप में अपने जैसे लगे। पीहू सोच में पड़ गयी कि वह तो कौए का बच्चा है। भला इनके साथ कैसे रह सकती है। वहाँ से वह उड़ने ही वाली थी कि एक कोयल उसे देख लिया और अपने पास बुलाकर पूछने लगे- " अरी...! तुम कहाँ से आई हो। बहुत डरी हुई हो; और क्यों ? " पीहू के मुँह से जरा सी भी आवाज नहीं निकल पा रही थी। उसे अपने आप में शर्म महसूस हो रही थी कि दोनों की आवाज में कितना फर्क है। अगर मैं इनके सामने कुछ बोलूँगी तो सभी मेरा मजाक उड़ाएँगे और ऐसा ही हुआ। 

तभी एक कोयल पीहू से बोली- " घबराओ मत। तुम कुछ तो बोलो। तुम तो हमारी प्रजाति की हो। बोलो... बोलो....।" पीहू जैसे ही कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी बाकी कोयल और उनके बच्चे हँसने लगे, क्योंकि पीहू की आवाज कर्कश थी। उन्हें हँसते देख पीहू को रोना आ गया। तभी एक कोयल ने उसके आँसू पोछते हुए बोली- " इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। गलती तो हमारी है  और तुम  गलती से छूट गई औरअलग थलग पड़ गईं। तुम्हारी आवाज का कर्कश होना; तुम्हारा वहाँ रहना ही है। "पीहू सुबकते हुए बोली- " अब मेरी आवाज आप लोगों की आवाज जैसी सुरीली व मीठी कैसे होगी। " एक दूसरे कोयल ने कहा- " चिंता न करो पीहूरानी। अब से तुम हम सबके साथ रहोगी। तुम रोज मीठे-रसीले आम व अन्य मौसमी फल खाओगी। नदी व झरने का मीठा जल पियोगी। और ठंडे छायेेदार वृक्षों में रहोगी; साथ ही साथ रोज गीत गाने की कोशिश करेगी तो तुम्हारी आवाज सुरीली व मीठी हो जायेगी। फिर सब तुम्हें पसंद करेंगे। " 

उस दिन से पीहू कोयल रोज रसीले आम का आनंद लेने लगी। गाने का भी अभ्यास करने लगी। धीरे–धीरे उसकी आवाज सुरीली होने लगी। आवाज मिठास आ आने लगी। पीहू खुश हो गयी। वह सबको रोज गीत गा-गाकर कर सुनाने लगी। इस तरह पीहू कोयल को अपनी स्वयं की आवाज मिल गयी। 
             




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

शनिवार, 8 जुलाई 2023

भैया की कार बाल रचना : वीरेन्द्र बृजवासी

 


बंद   हुई    गाड़ी     में   भैया,

नित        लगवाते      धक्का,

चार कदम चलकर रुक जाते,

चारों        उसके       चक्का।


सुखा- सुखाकर सभी पसीना, 

बार     -     बार      धकियाते,

इंजन की  निस्तेज  चाल  को,

देख    -   देख      खिसियाते।


सोहन  तू  हिम्मत   मत   हारे,

गोलू      ज़ोर       लगा       रे,

बोल  गई  यदि  एक  बार  तो, 

होंगे           वारे     -      न्यारे।


कल्लू,   मल्लू,  धक्का   मारो,

रखकर         दूर        पजामी, 

चालू    होगी    इसमें   तुमको, 

शंका         है           सरनामी  ।


ज़ोर   लगाकर  सबने  अपना,

दूर         तलक         दौड़ाया,

बोला  जब  गाड़ी   का  इंजन,

सबने         हर्ष          मनाया ।


बैठाकर   भैया    ने     सबको,   

चक्कर        एक        लगाया,

मेहनत का  फल  होता  मीठा, 

सबको       यह      समझाया।


         


              वीरेन्द्र ब्रजवासी

              9719275453

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तितली रानी : निहाल सिंह

 



तितली रानी बड़ी सयानी
फिर भी करती है नादानी
कोंपलो सी मुस्कुराती है
गुलशनों पर मंडराती है

बागबां की सदा आती है
झटपट से वह उड़ जाती है
साॅंखो ऊपर चढ़ जाती है
मधुर- मधुर नगमा गाती है

शहद को संकलित करती है
वाचा के ऊपर भरती है
टहनियों पर छुपा देती है
खुद ही रखवाली करती है

संकट की लहरें उठती है
एक दल में सभी रहती है
होले- होले आगे बढ़ती है
फिर मिलकर हमला करती है


वाचा = जिह्वा

         

       
निहाल सिंह 
झुन्झुनू, राजस्थान

बिजली खंभा

 



सड़क किनारे बिजली खंभे। पड़ते बच्चे लगे अचम्भे।।
शहर शहर अरु गांँव गांँव में।खड़े रहे ये एक पांँव में।।

वायर रहता लम्बा काला।लगता जैसे मकड़ी जाला।।
घर दफ्तर बिजली पहुंँचाता।काम सभी लोगों के आता।।

धूप छांँव अरु गिरता पानी।देख इन्हें होती हैरानी।।
पावर रखता इतना भारी।कभी न छूते नर अरु नारी।।

मानव इससे नाता जोड़े।इनका पीछा कभी न छोड़े।।
जीवन भर ये सेवा करते।जन जन में खुशियांँ ये भरते।।

खड़े रहे ये बिना सहारे।सदा मौन गम्भीर बिचारे।।
जोड़ रखे परिवार हमेशा।हमें नेक मिलता संदेशा।।





//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़