पाँच साल का कन्हैया अपनी मम्मी के साथ घर के बगीचे मे खेल रहा था। तभी वहाँ पर एक छोटी सी, प्यारी सी, लाल मुँह की रगींन चिड़िया आई । चिड़िया को देखकर कन्हैया बहुत खुश हुआ और अपनी माँ से बोला, माँ ,देखो देखो, ललमुनिआ आई है। माँ कुछ समझ नहीं सकीं । वे बोलीं कौन ललमुनिया ? नन्हा कन्हैया बोला, जो नाना जी के बगीचे मे उड़ कर आती है । छोटी सी सुन्दर सी , वही ललमुनिया । नाना जी बड़े प्यार से इसे ललमुनिया ही पुकारते हैं । मम्मी जी ने सुना और फिर अपने काम मे व्यस्त हो गईं ।
कन्हैया भी उस चिड़िया के साथ पकड़म पकड़ाई मे लग गया । वह उस चिड़िया से ढ़ेरों बातें करना चाहता था। अपनी नानी नाना के बारे मे । वहाँ की एक एक चीज के बारे मे पूछना चाहता था। अचानक उसे याद आया कि आखिर ललमुनिया सात समुद्र वहाँ आई कैसे ?
काफी पहले की बात है जब वह अपने मम्मी पापा के साथ नाना नानी के पास गया था। नानी के घर के आंगन मे एक अमरूद का पेड़ लगा था । उस अमरूद के पेड़ पर एक चिड़िया बैठती थी । कन्हैया तब और छोटा था । चिड़िया को देखकर वह बहुत खुश हो जाता था । दोनो मे बहुत दोस्ती थी । वह अपनी नानी के किचन से कच्ची दाल के दाने लेकर ललमुनिआ के पास पेड़ के नीचे डाल देता था। उस समय तो चिड़िया उड़ जाती थी । एक गिलहरी भी न जाने कहाँ से आती थी और दाल के दानों को उठाकर खाने लगती थी । कन्हैया को यह एकदम अच्छा नहीं लगता था। वह धत्-धत् कर गिलहरी को भगाता था कभी-कभार गिलहरी पिछले दोनो पैरों पर खडी होकर कन्हैया कै हाथ जोड़कर छमा माँगती थी। ललमुनिआ भी आ जाती थी और दोनो हिल मिल कर दाल के दानो को खाते थे। कन्हैया यह देखकर खूब ताली बजाता था।
उसकी बातें सुनकर मम्मी को भी याद आ गया कि कन्हैया की गिलहरी और ललमुनिआ की दोस्ती की कहानी। वे कन्हैया से बोलीं कि चिड़िया लोग को किसी देश का कोई वीसा, हवाई जहाज के टिकट की जरूरत नहीं होती है वे मौसम ,भोजन इत्यादि की उपलब्धता के अनुसार हजारों किलोमीटर चली जाती है । कन्हैया ने पूछा और गिलहरी ? माँ बोलीं वह अपने स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाती है ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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