काले बादल आए आकर चले गए
कबतक लौटेंगेबतलाकर नहींगए।
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ताल, तलैया, नाले सारे सूखे हैं
दादुर, मोर,पपीहा भी तो भूखे हैं
ठहरी-ठहरी हैं कागज़ की नौकएं
बादल भैया क्यों बच्चों से रूठें हैं।
इंतज़ार में सारी छुट्टी बीत गईं
लगताहै इसबार गर्मियां जीत गईं
जीव-जंतु सब मारे-मारे फिरते हैं
पानीकी बोतल भी सारी रीत गईं।
छतरीभी कबसे खूंटी परलटकीहै
बरसातीभी अपना रस्ताभटकी है
लौंग बूट भी पड़े हुए हैं टांडी पर
धानलगाने मेंभी दुविधाअटकी है।
हम बच्चोंकीउतरी सूरत पढ़लेना
पानी बरसाने के बाद अकड़लेना
दयाकरोबादल अज्ञानी बच्चोंपर
घोरगर्जना करके खूब बरसलेना।
बारिश की बूदों में हमें नहाना है
नाच-नाच करकेआनंदउठाना है
बादलतुमसेइतनी विनतीकरतेहैं
वर्षाकरने तुमको वापसआना है।
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वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी'
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