चार मित्र गुरूकुल से पाकर शिक्षा घर प्रस्थान किये
राह में वे अपनी विद्या का बढचढ़ खूब बखान किये
उन लोगों को तभी राह मे हड्डियों का एक ढेर मिला
कौन तेज है अपनी विद्या मे समझाने का मिला सिला
एक बोला हड्डियों से मै शेर का कंकाल बना सकता हूँ
दूसरा बोला मै भी उस पर माँस खाल चढ़ा सकता हूँ
तीसरा दोस्त उस शेर को जीवित करना बता रहा था
चौथे मित्र का मन काम का परिणाम बोध करा रहा था
चौथा मित्र संकोच सहित बोला था वो सबसे जाकर
करो स्वयं सुरक्षा भाई कहता हूँ सबसे शीश नवाकर
कंकाल बना लो, चाहे तो हड्डी पे भी माँसचर्म मढ़ालो
जान डालने से पहले स्वयं खुद अपने को तो बचालो
मित्रो ने उपहास किया बोले हम निडर पर तू कायर है
बना रहे हैं शेर पर तुझको जाने किससे लगता डर है
हमारा बनाया शेर देखना हमेशा हमारा कहना मानेगा
हम कहेगे बात कोई भी तो वह हर्गिज कभी न टालेगा
वे बोले तू कायर है तुझको विद्या कुछ नही आती है
हमारे अचम्भा दिखाने की बात इसीसे तुझे न सुहाती
तुम्हे लगता है अगर डर तो भाई पेड़ पर चढ़ जाओ
हम सबके प्रदर्शन के बीच दोस्त तुम टाँग न अड़ाओ
चौथा मित्र झट जा बैठा पेड़ पर अपनी जान बचाकर
पहले दो ने शेर बनाया ,उसको फूलो से खूब सजाकर
तीसरे ने जैसे ही जान डालने हित मन्त्रों की फुँकाई
शेर तुरंत जीवित होकर तीनो को वह खा गया भाई
शरद कुमार श्रीवास्तव
Very Nice. Moral based poem.
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