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सोमवार, 16 जुलाई 2018

शैलेंद्र तिवारी की रचना : स्मृति सनबर्ड




स्मति सनबर्ड
09 अप्रैल, 2018 नौ बजे कार्यालय जाने के लिये मैने अपनी कार के शीशे की सफाई करने के लिये जैसे ही अगला दरवाजा खोला अचानक एक चिड़िया उसके अन्दर आ गई। मैं ठीक से देख भी नहीं पाया कि वो अचानक उड़ते हुये पीछे की सीट व शीशे के गैप से होती हुयी डिक्की में चली गई। इसमे पहले ही वह दाई साइड की खिड़की से भी टकरायी थी। गरमी बढ़ने का समय हो रहा था। मैने डिक्की खोली तो एक कोने मेरे बैठी हुई एक सनबर्ड फिमेल दिखाई दी जो कि काफी डरी हुयी थी। मैने धीरे से कार की सीट पर पड़े तौलिये को उठाकर हाथ में लेकर उसे ढककर पकड़ा और अपने घर की पहली मंजिल पर लकर गया। तौलिये को खोलने के बाद जब मैने उसे पकड़ा तो वह आराम से मेरे हाथ पर बैठ गई लेकिन उसकी हृदय गति बहुत तेज थी।
मै अपनी स्मृति में पहले भी कह चुका हू कि मैं एक पक्षी प्रेमी व्यक्ति हू और मेरे पास कई लकड़ी के डिब्बे भी है।
क्योंकि मुझे कार्यालय को देर हो रही थी फिर भी मैने उसे एक सिरिंज में पानी व शहद भरकर थोड़ा सा पिलाया और एक लकड़ी के डिब्बे में बन्द करके मै कार्यालय को चला गया। शाम को कार्यालय से वापस आते ही सबसे पहले में अपनी घर की ममटी (वह स्थान जोकि सीढ़ियो से छत को जाने का रास्ता हो और छत से ठका हो) में गया डब्बा उठाया और पहली मंजिल के कमरे में गया वह स्वस्थ थी। मैं जानता था कि सनबर्ड फूलो से जूस (छमबजवत) चूसती हैं इस कारण मैने शहद की शीशी से 4 बूंद शहद लेकर एक सिरिंज में भरकर (पानी के साथ) उसे पिलाया और डब्बे में रखकर कमरे के अन्दर रख लिया। रात को खाना खा कर मै भी सो गया।
सुबह 5.00 बजे जब उठा तो बाहर हल्का-हल्का उजाला दिखायी दे रहा था। मुझे समय पर्याप्त नहीं लगा तो मैने 30 मिनट और इन्तजार किया उसके बाद जैसे ही मैने डिब्बा उठाया चिड़िया के फड़फड़ाने की आवाज मुझे सुनाई दी। मैने डिब्बे को खोला। डिब्बा खोलते ही वह पहले अन्दर को गई फिर शायद उसे यह अहसास हुआ कि यहॉ पर कोई खतरा नहीं है। यह सोचकर वह बाहर निकली और फुर्र से उड़कर मेरे घर के सामने लगे बोगेनवेलिया पर बैठ गई। लगभग 15 से 20 सेकेन्ड बैठने के बाद उसने एक बार मुड़कर देखा और फुर्र हो गई।
मेरा घर फूलो के पौधो से भरा हुआ था उसमें कई चिड़िया आती थी उसमें कई चिड़िया आती थी और आती है कई सनबर्ड भी आती थी और आती है पर मुझे लगता है कि शायद आज भी वह आती है। एैसा मुझे इसलिये लगता है कि पूर्व मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है।


                     शैलेन्द्र  तिवारी 
                     सेक्टर  21 इन्दिरा  नगर  
                     लखनऊ 

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