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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

बाल गीत-- -- वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की रचना

 





परेशानियां  सब  पर  आतीं

साथ समय के फुर हो जातीं

बच्चो बिल्कुल मत घबराना

यह भी सीख बड़ी दे  जातीं।


मन  में भय मत  आने  देना

सच का  साथ सदा  ही देना

झूठी  बातें   ही  जीवन  को

अक्सर दिशाहीन कर जातीं।


जो मुश्किल  से घबरा जाता

उसके हाथ नहीं  कुछ आता

सिर्फ हौसले की कड़ियाँ  ही

मानव  को  मजबूत  बनातीं।


जहां  चाह  है  राह   वहीं  है

इसमें  कुछ   संदेह   नहीं  है

अंतर्मन  की  पावन   किरणें

जीवनको जगमग कर जातीं।


आओ मिलकर कदम बढ़ाएं

हर  बाधा   को   दूर    हटाएं

केवल दृढ़ता के  सम्मुख  ही

बाधाएं  सब  सीस  झुकातीं।


प्यार  करें, करना  सिखलाऐं

 साथ-साथ रहकर  दिखलाएं

नाना -  नानी,    दादी -  दादी

सीख अनोखी  हमें  सिखातीं।

      

           


  

वीरेन्द्र  सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

       मो0-   9719275453

       दि0-    10/11/2020

गुड़िया की जिद,,वीरेन्द्र सिंह की रचना

 






गुड़िया के कानों को यूंही

नाम       मुम्बई     भाया,

मुम्बई जाना  है  रो रोकर,

पापा       को    बतलाया।


लोट-पोट हो गई  धरा पर,

सबने       ही    समझाया,

लेकिन जिदके आगे कोई,

सफल   नहीं   हो   पाया।


दादी  अम्मा ने समझाया,

दादू         ने     बहलाया,

चौकलेट, टॉफी,रसगुल्ला,

लाकर      उसे   दिखाया।


पापाजी  बाजा  ले   आए,

भैया       लड्डू      लाया,

चुपजा कहकरके मम्मी ने,

थोड़ा       सा    धमकाया।


चाचाजी ने तब गुड़िया को,

बाइस्कोप            दिखाया,

जुहू,  पारले,  चौपाटी  सब,

गुड़िया      को    समझाया।


घुमा- घुमाकर बाइस्कोप में,

मुम्बई     शहर      दिखाया,

शांत  हुई   गुड़िया  रानी  ने,

हंसकर      के     दिखलाया।

           

           


               वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,  

     मो0----    9719275453 

     






दाने-दाने को,,, (बालगीत) वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




     

दाने-दाने को मीलों की सैर किया करते,

कभी  सुरक्षित  घर  लौटेंगे सोच-सोच डरते।

        ------------------

कदम-कदम पर जाल बिछाए बैठा है कोई,

यही सोचकर आज हमारी भूख- प्यास खोई,

पर बच्चों की खातिर अनगिन शंकाओं में भी,

महनत से हम कभी न कोई समझौता करते।

दाने-दाने को----------------


बारी- बारी से हम दाना चुगने को जाते,

कैसा भी मौसम हो खाना लेकर ही आते,

खुद से पहले हम बच्चों की भूख मिटाने को,

बड़े जतन से उनके मुख में हम खाना धरते।

दाने-दाने को-------------------


सिर्फ आज की चिंता रहती कल किसने देखा,

कठिन परिश्रम से बन जाती बिगड़ी हर रेखा।

डरते रहने से सपनों के महल नहीं बनते,

बिना उड़े कैसे मंज़िल का अंदाज़ा करते।

दाने-दाने को---------------------


आसमान छूने की ख़ातिर उड़ना ही होगा,

छोड़ झूठ का दामन सच से जुड़ना ही होगा,

जो होगा देखा जाएगा हिम्मत मत हारो,

डरने वाले इस दुनियां में जीते जी मरते।

दाने-दाने को---------------------


श्रद्धा,फ्योना,अन्वी,ओजस,शेरी बतलाओ,

अडिग साहसी चिड़िया जैसा बनकर दिखलाओ,

छोटाऔर बड़ा मत सोचो धरती पर ज्ञानी,

किसी रूप में भी आ करके ज्ञान दान करते।

दाने-दाने को-------------------

        



                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

       मो0-     9719275453

       दि0-      23/11/2020










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पछतावा : प्रिया देवांगन प्रियू की बालकथा



 






एक समय की बात है , एक  गाँव में एक बहुत ही बुद्धिमान राजा रहता था। उसकी प्रशंसा गांव के हर छोटे - बड़े आदमी करते थे।राजा को अपना राजा होने का कभी घमण्ड नही हुआ ।  वह गरीबो को दान में कुछ न कुछ जरूरत की चीज देते रहते थे तथा बच्चो से भी राजा बहुत अच्छे से व्यवहार करते थे।  बच्चे भी राजा से खुश रहते थे। राजा की कोई संतान नही थी राजा को इसी बात का दुख होता था कि मेरे जाने के बाद मेरा राज्य कौन सम्भालेगा ।
बहुत दिनों बाद राजा का एक बेटा हुआ। राजा बहुत प्रसन्न हुये । राजा ने अपने बेटे का नाम वीर प्रताप रखा।   अपने पूरे गाँव और गाँव के आस पास के लोगो को भोजन खिलाया । अब राजा का बेटा बड़ा हो गया लेकिन राजा का बेटा राजा के बिल्कुल विपरीत था । राजा वीर प्रताप को खूब पढ़ाना- लखाना चाहता था।लेकिन वीर प्रताप का पढ़ने का बिल्कुल भी मन न करता था ।उसको बुरी लत लग चुकी थी ,उसको घमण्ड था कि मेरे पिता जी के बाद मै राजा बनूँगा।राजा ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि वह पढ़ लिख के आगे बढ़े और बुरी आदतें छोड़ दे लेकिन वीर नही माना ।  एक बार अचानक वीर गिर पड़ा । आँखों के आगे अंधेरा छा गया ।राजा तुरन्त हॉस्पिटल ले के गए । डॉक्टर के इलाज के द्वारा पता चला कि वीर को कैंसर है ।राजा बहुत दुखी हुये।वीर को जब पता चला कि अब ज्यादा दिन नही बचा है उसके बाद वीर बहुत रोने लगा ।और पछताने लगा कि मैं यदि समय के रहते पिता जी का बात मान लेता तो ऐसा नही होता।




रचनाकार 
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


दीप जगते हैं ,जगमगाते है :अंजू जैन गुप्ता

 







अँधियारा दूर कर रोशनी की 

किरणें चहुँ ओर फैलाते है। 

           यह मंगल दीप दिवाली है 

          खुशियों से भरी थाली है ।

          ये न सिर्फ तेरी है न मेरी है 

         ये तो हम सब की मिली-जुली   

         रंगोली है। 

हिंदू खुश हैं कि इस दिन 

राम जी अयोध्या लौट आये ,

सिक्ख भी खुश हैं कयोंकि 

इस दिन गोल्डन टेम्पल की

नींव रखी थी (तभी फिर मुसलिम और Christian भी कहे हम सब है भाई-भाई)

,चलो मित्रों  संग मिल जुल

ये पर्व मनाए।

अँधियारे भरी रात को दोनों से 

रोशन कर जाए।

दीप जगते हैं जगमगाते है 

अँधियारा दूर कर रोशनी की 

किरणें चहुँ ओर फैलाते है। 

सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के 

कोने कोने में हम इस पर्व को मनाते है।

सिंगापुर, मलेशिया, मारीशस, फिजी,

 श्री लंका और नेपाल भी इस पर्व को 

तहे दिल से मनाते है;और इस दिन को 

नैशनल होलीडे declare कर अपनापन दर्शाते है। 

        दीप जगते हैं जगमगाते है         अँधियारा दूर कर रोशनी की किरणें 

चहुँ ओर फैलाते है। 

तो आओ मिल जुल दीप जलाए

सुख और समृद्धि की बहारे फैला इस 

जग से दूर कर अँधियारा चहुँ ओर 

प्यार,विशवास व अपनेपन का एहसास जगाए।





(अंजू जैन गुप्ता)


टिंकपिका की सैर

 







नन्ही  चुनमुन  ' प्रिन्सेज डॉल '  फेरी टेल्स, की  पुस्तक  में  से "टिंकपिका का जादूगर "  वाली   कहानी  अपनी  दादी  से सुन चुकी  थी  ।  उसने सोचा  कि  कितना भयानक  होगा  टिंकपिका ।   उसे सोफे पर  बैठे  बैठे  ही दीवार  पर  एक मकड़ी  दिखाई  दी  ।  वह  पहले  घबरा  गई  लेकिन  उसने  फिर  सोचा कि वह  क्यों  घबरा रही है  ।  वह  तो अपने  स्कूल  का  सारा काम  जो घर मे करने के  लिए  दिया जाता  है  वह खुद अपने  आप  कर लेती है   बस  कभी कभी  अपने  पापा से  मदद  लेती है  ।   यह कोई भी  बुरी बात  नहीं  है  ।   तभी   उसे लगा कि दीवार की मकड़ी  बस उसे ही लगातार देखे जा रही है ।   उसने  अपनी  निगाह  मकड़ी  की  तरफ  से  फेर ली और  अपने मोबाइल  पर  गेम  खेलने मे बिजी  हो गई  । 

 उस समय गेम खेलते  हुए    न जाने  क्या  हुआ  कि  वह  मोबाइल की स्क्रीन  पर वह  एक अजनबी  जगह  पहुँच गई  जहाँ एक पुराना किला था  ।  उसके  दरवाजे  पर  भयानक  दिखने वाले  पहरेदार  खड़े  थे  जिनकी  बड़ी  बड़ी  मूछें थी ।  बडे-बडे  बाहर की  ओर  निकले दाँत  थे ।    इस किले में  घुसते  ही  एक बड़ा  सा  कमरा  था ।  उस कमरे मे काली  पोशाक  में  ऊँची  लम्बी  जादूगर  वाली कैप पहने  एक जादूगर  बैठा था  और उसके  सामने  मक्खी,  मकड़ी,  काकरोच, चींटे सहित कई  अन्य  कीड़े मकोड़े खडे होकर  अपनी  बातें   सुना रहे  थे ।     ज्यादातर  कीड़े उन बच्चों  की   खबर  लाए थे जो अलग अलग  वजह  से  कमजोर  हो रहे थे  ।     जादूगर  उनसे  कहा रहा  था  कि  ठीक  है वे उन बच्चों  को  उलझाए  रखें  ताकि  वे थोड़ा  और  कमजोर  हो  जाएँ तो जादूगर  खुद   जाकर  आसानी  से  उन्हें  टिंकपिका ले आए  और  रोबोट  बना  कर  उनसे  काम  कराए  ।    नन्ही  चुनमुन  ने इन कीडों  को यह कहते आगे सुना  कि  ज्यादातर  बच्चे  होमवर्क  तो कर लेते  हैं  परन्तु  मोबाइल  से चिपके  रहते  हैं  ।   वे  बाहर  खेल कूद  नहीं  कर सकते  हैं ।   इसलिये   ताकत मे कमजोर  हो  रहे हैं , हमारी  उनपर नजर  है ।   नन्ही  चुनमुन ने मोबाइल  फोन  पर  से नजर  हटाई  तो ऊपर मकड़ी   अपनी  आँखें  मटका  कर उसे  घूरते  नजर आई मानो वह कहते रही हो कि यही था  टिंकपिका का जादूगर  जो टिंकपिका  मे अपने किले मे बैठा था ।  अब तक  चुनमुन सचेत हो गई थी  और  वह मोबाइल  फोन  को छोड़कर अपनी   साइकिल  चलाने  लगी। 
  


शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुनिया रानी" (बालगीत ) महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")( चौपाई छंद )

 



भोली भाली मुनिया रानी । पीती थी वह दिनभर पानी ।।
दादा के सिर पर चढ़ जाती। बड़े मजे से गाना गाती ।।

दादा दादी ताऊ भैया । नाच नचाती ताता थैया।।
खेल खिलौने रोज मँगाती। हाथों अपने रंग लगाती।।

भैया से वह झगड़ा करती। पर बिल्ली से ज्यादा डरती।।
नकल सभी का अच्छा करती। नल में जाकर पानी भरती।।


दादी की वह प्यारी बेटी । साथ उसी के रहती लेटी।।
कथा कहानी रोज सुनाती। तभी नींद में वह सो जाती।।



रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़