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रविवार, 16 जुलाई 2023

नया मछलीघर रचना शरद कुमार श्रीवास्तव





नन्ही के पापा कल बाजार से एक नया एक्वेरियम खरीद कर लाए थे । उसमे खूबसूरत पेड़, चट्टानें नया पम्प , बुलबुले निकालते हुए एक गुड्डा गोताखोर और उसमे छह-सात रंगीन मछलियां भी है । नन्ही को बहुत अच्छा लग रहा है परन्तु पापाजी ने उसे चेतावनी दे रखी है कि वह एक्वेरियम के बिल्कुल पास नहीं जाये नहीं तो ठोकर लगने से एक्वेरियम टूट सकता है ।



नन्ही को लेकिन चैन नहीं है । वह चाहती है कि वह इन मछलियों के पास जाये और उनसे बात करे । सुनहले रंग वाली मछली तो सबसे ज्यादा चंचल है और ब्लू वाली भी अच्छी है पर थोड़ा स्लो है । शायद यह सुनहली वाली मछली ही इनकी राजकुमारी है । यह एक्वेरियम बैठक में रखा हुआ है। यहाँ पर नन्ही के दादी बाबा तो हर समय बैठे हुए रहते हैं ,टीवी पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम देखते रहते हैं । नन्ही चाहकर भी उसके नजदीक जा नहीं सकती है। दूर से ही बैठकर एक्वेरियम को देखते हुए उसे लगा कि उसके डैने निकल आये हैं और वह नदी में तैर रही है । तैरने में उसे बहुत मजा आ रहा है । उसके साथ और मछलियां भी तैर रही हैं। वहीं एक कछुआ गर्दन उठा कर नन्ही की तरफ देख रहा है । इतना मे एक सुन्दर सी सुनहली मछली उसके पास आई । नन्ही थोड़ा डर गई तो उस मछली ने रोते हुए कहा कि नन्ही तुम बहुत अच्छी लडकी हो । प्लीज मेरी बच्ची को कैद से छुड़ा लो । नन्ही को कुछ समझ में नहीं आया । वह उस मछली से पूछने लगी तुम रो क्यों रही हो अपनी बात ठीक से समझा कर बताओ । मछली तो रोती रही परन्तु कछुए ने अपनी गर्दन उचका कर कहा नन्ही से कहा कि तुम्हारे पापा जी आज एक्वेरियम में सुनहरे रंग की जो मछली लाए हैं वह इसी मछली की बेटी है । उस कछुए ने फिर कहा कि जरा पीछे मुड़ कर देखो ब्लू कलर की मछली और बहुत सी मछली तुमसे कुछ कह रही है।

वह बहुत  बेचैन  हो गई और स्वप्न मे बस रोने लग गई ।  उसकी  दादी  ने  चुप  कराने  की  कोशिश  की।   उसकी  पसंदीदा  चाकलेट , स्नैक्स उसे  देना  चाह रही  थी  परंतु  वह किसी  भी  प्रकार  से चुप नहीं  हो रही  थी ।  कुछ देर बाद उसने अपनी  दादी  जी से कहा  कि दादी जी मैं चुप हो जाती हूँ लेकिन आप  को  प्रामिस करना होगा  । जब  दादी प्रामिस के  लिए  राजी हो गईं  तब  नन्ही  ने सपने  की  बात  उन्हें  बताई।   फिर उसने और दादी जी ने पापा के  आने पर  वह उसने उन मछलियों  को जब तक नदी में  वापस  नही  छोड़वा दिया  तब तक वह नही मानीं  ।   नदी में जाते समय सब छोटी मछलियाँ उसे प्यार  से विदा  हो रहीं  थीं  ।





शरद कुमार  श्रीवास्तव

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