ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 31 मार्च 2024

नव वर्ष मंगलमय हो! : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

2081


नए वर्ष  की  नूतन  किरणे,

भरें  उजाला  घर - घर   में,

दूर-दूर  तक  मानवता  का,

बने  शिवाला  घर - घर  में!

        ----------------

शीतल छाया रहे  प्यार की,

सुख  का   वातावरण   रहे,

विपदाओं को  दूरभगा कर,

खुशियों  का अवतरण  रहे,

ईश्वर का आशीष सभी पर,

रहे   निराला   घर-घर    में!


गंगा  की  निर्मल धारा  सा,

मन  का  कोना-कोना   हो,

सुखनींदों  को आदर्शो का,

सुन्दर  सतत  बिछोना  हो,

सबके तनपर सदाचार का,

रहे  दुशाला   घर-घर    में!


सुख वैभव की घिरें घटाएं,

दौलत   की    वर्षा   बरसे, 

अन्न फूल-फल मेवाओं से,

जन मानस का  मन  हरसे,

दूध-दही  की रीती  मटकी ,

भरें  कृपाला   घर-घर  में!


ईश्वर  से  है  यही  प्रार्थना,

नूतन   वर्ष     फले - फूले,

इक दूजे को गले लगाकर,

झूलें    प्यार    भरे    झूले!

     -----***🌹***------

        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

          मुरादाबाद /उ. प्र.

           9719275453

            

              -----🌹-----

छत्तीसगढ का एक शहर : राजिम पर छत्तीसगढी भाषा "सदरी" मे प्रिया देवांगन "प्रियू" का एक चित्रण

 गत् वर्ष हमारी पत्रिका के पटल पर  प्रिया देवांगन  प्रियू जी के एक छत्तीसगढी भाषा मे प्रकाशित एक लेख  का हम पुन: प्रकाशन कर रहे है ।  यह लेख राजिम  मे राजीव लोचन  भगवान के मंदिर  के बारे मे है जहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को एक विराट मेला लगता है


राजिवलोचन मंदिर 







कुंभ मेला राजिम 

लेख :

   // धरम अउ अध्यात्म के ठऊर : राजिम //
   
          हमर छत्तीसगढ़ धरम, अध्यात्म अउ दर्शन के भुइंयाँ आय। इहाँ देवी-देवता मन के वास होथे; अउ स्वयंभू भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग तको जगह-जगह विराजमान हे। छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा भी कहे जाथे काबर कि इहाँ धान के फसल जादा मात्रा मा उपजाय जाथे। अइसनेच हमर छत्तीसगढ़ ला तीरथगढ़ याने तीरतधाम के ठऊर घलो कहे जा सकथे काबर कि ये धरती मा कतको तीरतधाम अउ दार्शनिक स्थल हें, जेमा राजिम नगरी ह बड़ा नामी ठऊर आय। पहिली राजिम ला "कमलक्षेत्र" के नाम ले घलो जाने जात रिहिसे।
मा त्रिवेणी संगम राजिम नगरी :-
----------------------
          महानदी, पैरी अउ सोंढूर नदी मन जेन जगा मिले हे; तेन ला त्रिवेणी संगम कहे जाथे। हमर राजिम नगरी ह "छत्तीसगढ़ के प्रयाग" नाम से प्रसिद्ध हे। जेन हा गरियाबंद जिला मा स्थित हे। इहाँ के भुइंयाँ चारों मुड़ा हरियर - हरियर दिखत रहिथे। धान के बाली अउ किसम-किसम के फूल-पान मन ममहावत झूमत रहिथे। लोगन के बोली गुरतुर-गुरतुर लागथे। माघ के महीना मा कुम्भ के मेला के आयोजन होथे। राजिम नगरी हर भारत के पाँचवा धाम के रूप मा प्रसिद्ध हे। माघ पूर्णिमा मा शिवरात्रि तक भव्य आयोजन होथे, जेन पन्द्रह दिन तक रहिथे। छत्तीसगढ़ सरकार डहर ले राजिम मेला ल पाँचवा कुम्भमेला के दर्जा दे गे हे।
राजीव लोचन मंदिर :
--------------
          राजिम मा सुप्रसिद्ध राजीव लोचन भगवान विराजमान हे। इहाँ के भुइंयाँ पवित्र माने जाथे। कहे जाथे कि वनवास काल मा श्री रामचन्द्रजी अपन कुल देवता महादेव जी के पूजा करे रिहिस। राजीव लोचन के बारे मा कहे जाथे कि गाँव के एक माईलोगिन राजिम रोज घूम-घूम के तेल बेचत रिहिस। एक दिन वोहर तेल बेचे ला जावत रिहिस त हुरहा जमीन मा दबे पथरा मा हपट गे, अउ मुड़ी मा बोहे तेल के बर्तन हा पूरा खाली होगे। राजिम माता ला अब्बड़ चिंता होय लागिस। तेल के खाली बर्तन ला पथरा ऊपर रख दिस अउ कहे लागिस मँय का करौं भगवान ! कइसे होगे ! घर के मनखे ला का कइसे बताहूँ। अपन आँखी ला मूँद के भगवान ले विनती करे लागिस। हाथ ला थेम के धीरे-धीरे उठ के खाली बर्तन ला उठाये बर देखिस ता, ओखर पाँव तरी के जमीन खिसक गे। आँखी बड़े-बड़े होगे। एकदम अकचका गे। ओखर खाली बर्तन हा तेल से लबालब भर गे रहय। ओखर खुशी के ठिकाना नइ रहिगे। "राजिम" हा घर जा के जम्मों आपबीती ला बताइस त कोनों नइ पतियावत रिहिस। दूसर दिन फेर तेल बेंचे ला निकल गे। बिहनिया ले संझा होगे फेर तेल एकोकनी नइ सिराये रहय। तब राजिम के घर वाले मन वो पथरा के शिला ला निकालिस त भगवान के मूर्ति रिहिसे अउ ओला अपन घर मा राखिस। तब ले धंधा-पानी बने चले अउ गरीबी भी दूर होगे।
          एक दिन राजा जगत पाल के सपना मा राजीव लोचन भगवान हा आइस अउ कहिस कि मोर मूर्ति के स्थापना मंदिर मा करवा दे। मँय राजिम तेलिन के घर मा हो। राजा जगत पाल हा दूसर दिन राजिम तेली के घर चल दिस अउ सपना के बारे मा बताइस। राजिम ओखर बात ल नइ मानिस। राजा बहुत जिद्दी करीस । राजिम बिलख-बिलख के रोये मेहा मोर भगवान ला अपन से दूर नइ कर सकँव। राजा दूसर दिन अपन सैनिक मन ला भेजिस के जबरदस्ती उठा के मूर्ति ल लावव। मूर्ति एकदम गरू होगे, उठबे नइ करिस। तब फिर भगवान हा राजा के सपना मा आ के कहिस के जब तक राजिम के रजामंदी नइ होही, तब तक हिल नइ सकँव। तब राजा राजिम के पास जा के बोलिस कि माता तँय रो झन, जो माँगबे वो देहूँ; बस ये मूर्ति ला मंदिर मा स्थापना करन दे। राजिम माता बोलिस कि राजा मोला भगवान मिल गे अउ कुछ नइ चाही । ते हा भगवान के नाम ला मोर नाम से रखबे अउ ये पूरा संसार मा भगवान ला मोर नाम से जाने जाही । राजा मान गे। तब से  राजिम नगर के नाम से आज प्रसिद्ध हे।
महादेव मंदिर :
----------
          ये मंदिर के बारे मा सुने बर मिलथे कि नदिया के बीचों-बीच म कुलेश्वर महादेव विराजमान हे। कहे जाथे कि वनवास काल मा माता सीता अपन व्रत ला पूरा करे बर नदी मा स्नान कर के बालू (रेती) से महादेव के शिवलिंग बना के पूजा करे रिहिसे। अउ अँजुरी मा भर-भर के जल चढ़ाये रिहिस। तब शिवलिंग मा माता सीता के पाँच अंगरी ले छेद होगे रिहिस । ओखर कारण ओला पंचमुखी महादेव भी कहे जाथे। आज भी माता सीता के अंगरी के निशान देखे बर मिलथे। दूर-दूर से भक्त मन पंचमुखी महादेव के दर्शन करे बर आथे। माँघी पुन्नी मा भव्य कुम्भ मेला के आयोजन होथे। पन्द्रह दिन ले लगातार छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम चलथे अउ बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मी हीरो-हीरोइन, कलाकार मन अपन कला प्रर्दशित करथे। देश-विदेश के मनखे मन घलो देखे बर आथें। दर्शन अउ कार्यक्रम के लाभ उठाथे।
ममा-भांजा मंदिर :
------------
           राजीव लोचन मंदिर ले बाहिर निकलते साठ ममा-भांजा के मंदिर हे। कहे जाथे की कुलेश्वर महादेव अउ राजिव लोचन के दर्शन तब तक पूरा नहीं होय जब तक ममा-भांजा के मंदिर के दर्शन नइ करे। येखर दर्शन बिना लोगन के दर्शन अधूरा माने जाथे।
कहे जाथे कि बाढ़ मा जब कुलेश्वर  मंदिर डूबत रिहिसे तब उहाँ ले एक आवाज निकलत रिहिसे बचाव...बचाव.... ममा मँय बूड़त हौं...। तब ममा ह अपन भांजा ला नाव मा सवार हो के बचाये ला गिस। तब से उहाँ ममा अउ भांजा एक साथ एक नाव मा बइठ के नदिया पार नइ कर सकँय।
          नदिया के किनारे बने ममा के मंदिर अंदर शिवलिंग ला बाढ़ के जल जइसे ही छूथे, वइसे ही बाढ़ अटाना चालू हो जाथे। कतको बाढ़ आ जथे फेर कुलेश्वर महादेव हर नइ बूड़े।
राजिम त्रिवेणी संगम मा अस्थि विसर्जन करे बर भी आथे। इहाँ मोक्ष के प्राप्ति होथे। दुरिहा-दुरिहा के लोगन मन अस्थि विसर्जन कर के पिंड दान भी करथे।

कुम्भ मेला व दार्शनिक स्थल :-
---------------------
          माँघी पुन्नी मा कुम्भ के मेला के आयोजन करे जाथे। पन्द्रह दिन तक मनखे के कचाकच भीड़ रहिथे। देश-विदेश ले लोगन मन दर्शन करे बर अउ कुम्भ मेला के आनंद उठाये बर आथे। नदिया के तीर मा बाहर ले आये माला-मुँदरी बेचइया मन के पन्द्रह दिन तक डेरा रहिथे। बड़े-बड़े साधु-संत, चंदन-चोवा लगाय, हाथ मा तिरशूल धरे, डमरू धरे, भभूत चुपरे नागा साधु मन घूमत रहिथें। साधु मन के संगे-संग आम आदमी मन भी पुन्नी नहाये बर आथें। हमर राजिम नगरी हर बहुत बड़े तीरथ धाम कहलाथे । अपन जिनगी मा लोगन मन ला एक बार जरूर राजिम धाम के दर्शन करना चाही।
                ------///------

प्रिया देवांगन *प्रियू*

Hide quoted text
लेख :

   // धरम अउ अध्यात्म के ठऊर : राजिम //
   
          हमर छत्तीसगढ़ धरम, अध्यात्म अउ दर्शन के भुइंयाँ आय। इहाँ देवी-देवता मन के वास होथे; अउ स्वयंभू भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग तको जगह-जगह विराजमान हे। छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा भी कहे जाथे काबर कि इहाँ धान के फसल जादा मात्रा मा उपजाय जाथे। अइसनेच हमर छत्तीसगढ़ ला तीरथगढ़ याने तीरतधाम के ठऊर घलो कहे जा सकथे काबर कि ये धरती मा कतको तीरतधाम अउ दार्शनिक स्थल हें, जेमा राजिम नगरी ह बड़ा नामी ठऊर आय। पहिली राजिम ला "कमलक्षेत्र" के नाम ले घलो जाने जात रिहिसे।
त्रिवेणी संगम राजिम नगरी :-
----------------------
          महानदी, पैरी अउ सोंढूर नदी मन जेन जगा मिले हे; तेन ला त्रिवेणी संगम कहे जाथे। हमर राजिम नगरी ह "छत्तीसगढ़ के प्रयाग" नाम से प्रसिद्ध हे। जेन हा गरियाबंद जिला मा स्थित हे। इहाँ के भुइंयाँ चारों मुड़ा हरियर - हरियर दिखत रहिथे। धान के बाली अउ किसम-किसम के फूल-पान मन ममहावत झूमत रहिथे। लोगन के बोली गुरतुर-गुरतुर लागथे। माघ के महीना मा कुम्भ के मेला के आयोजन होथे। राजिम नगरी हर भारत के पाँचवा धाम के रूप मा प्रसिद्ध हे। माघ पूर्णिमा मा शिवरात्रि तक भव्य आयोजन होथे, जेन पन्द्रह दिन तक रहिथे। छत्तीसगढ़ सरकार डहर ले राजिम मेला ल पाँचवा कुम्भमेला के दर्जा दे गे हे।
राजीव लोचन मंदिर :
--------------
          राजिम मा सुप्रसिद्ध राजीव लोचन भगवान विराजमान हे। इहाँ के भुइंयाँ पवित्र माने जाथे। कहे जाथे कि वनवास काल मा श्री रामचन्द्रजी अपन कुल देवता महादेव जी के पूजा करे रिहिस। राजीव लोचन के बारे मा कहे जाथे कि गाँव के एक माईलोगिन राजिम रोज घूम-घूम के तेल बेचत रिहिस। एक दिन वोहर तेल बेचे ला जावत रिहिस त हुरहा जमीन मा दबे पथरा मा हपट गे, अउ मुड़ी मा बोहे तेल के बर्तन हा पूरा खाली होगे। राजिम माता ला अब्बड़ चिंता होय लागिस। तेल के खाली बर्तन ला पथरा ऊपर रख दिस अउ कहे लागिस मँय का करौं भगवान ! कइसे होगे ! घर के मनखे ला का कइसे बताहूँ। अपन आँखी ला मूँद के भगवान ले विनती करे लागिस। हाथ ला थेम के धीरे-धीरे उठ के खाली बर्तन ला उठाये बर देखिस ता, ओखर पाँव तरी के जमीन खिसक गे। आँखी बड़े-बड़े होगे। एकदम अकचका गे। ओखर खाली बर्तन हा तेल से लबालब भर गे रहय। ओखर खुशी के ठिकाना नइ रहिगे। "राजिम" हा घर जा के जम्मों आपबीती ला बताइस त कोनों नइ पतियावत रिहिस। दूसर दिन फेर तेल बेंचे ला निकल गे। बिहनिया ले संझा होगे फेर तेल एकोकनी नइ सिराये रहय। तब राजिम के घर वाले मन वो पथरा के शिला ला निकालिस त भगवान के मूर्ति रिहिसे अउ ओला अपन घर मा राखिस। तब ले धंधा-पानी बने चले अउ गरीबी घलो दूर होगे।
          एक दिन राजा जगत पाल के सपना मा राजीव लोचन भगवान हा आइस अउ कहिस कि मोर मूर्ति के स्थापना मंदिर मा करवा दे। मँय राजिम तेलिन के घर मा हो। राजा जगत पाल हा दूसर दिन राजिम तेली के घर चल दिस अउ सपना के बारे मा बताइस। राजिम ओखर बात ल नइ मानिस। राजा बहुत जिद्दी करीस । राजिम बिलख-बिलख के रोये मेहा मोर भगवान ला अपन से दूर नइ कर सकँव। राजा दूसर दिन अपन सैनिक मन ला भेजिस के जबरदस्ती उठा के मूर्ति ल लावव। मूर्ति एकदम गरू होगे, उठबे नइ करिस। तब फिर भगवान हा राजा के सपना मा आ के कहिस के जब तक राजिम के रजामंदी नइ होही, तब तक हिल नइ सकँव। तब राजा राजिम के पास जा के बोलिस कि माता तँय रो झन, जो माँगबे वो देहूँ; बस ये मूर्ति ला मंदिर मा स्थापना करन दे। राजिम माता बोलिस कि राजा मोला भगवान मिल गे अउ कुछ नइ चाही । ते हा भगवान के नाम ला मोर नाम से रखबे अउ ये पूरा संसार मा भगवान ला मोर नाम से जाने जाही । राजा मान गे। तब से  राजिम नगर के नाम से आज प्रसिद्ध हे।
महादेव मंदिर :
----------
          ये मंदिर के बारे मा सुने बर मिलथे कि नदिया के बीचों-बीच म कुलेश्वर महादेव विराजमान हे। कहे जाथे कि वनवास काल मा माता सीता अपन व्रत ला पूरा करे बर नदी मा स्नान कर के बालू (रेती) से महादेव के शिवलिंग बना के पूजा करे रिहिसे। अउ अँजुरी मा भर-भर के जल चढ़ाये रिहिस। तब शिवलिंग मा माता सीता के पाँच अंगरी ले छेद होगे रिहिस । ओखर कारण ओला पंचमुखी महादेव भी कहे जाथे। आज भी माता सीता के अंगरी के निशान देखे बर मिलथे। दूर-दूर से भक्त मन पंचमुखी महादेव के दर्शन करे बर आथे। माँघी पुन्नी मा भव्य कुम्भ मेला के आयोजन होथे। पन्द्रह दिन ले लगातार छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम चलथे अउ बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मी हीरो-हीरोइन, कलाकार मन अपन कला प्रर्दशित करथे। देश-विदेश के मनखे मन घलो देखे बर आथें। दर्शन अउ कार्यक्रम के लाभ उठाथे।
ममा-भांजा मंदिर :
------------
           राजीव लोचन मंदिर ले बाहिर निकलते साठ ममा-भांजा के मंदिर हे। कहे जाथे की कुलेश्वर महादेव अउ राजिव लोचन के दर्शन तब तक पूरा नहीं होय जब तक ममा-भांजा के मंदिर के दर्शन नइ करे। येखर दर्शन बिना लोगन के दर्शन अधूरा माने जाथे।
कहे जाथे कि बाढ़ मा जब कुलेश्वर  मंदिर डूबत रिहिसे तब उहाँ ले एक आवाज निकलत रिहिसे बचाव...बचाव.... ममा मँय बूड़त हौं...। तब ममा ह अपन भांजा ला नाव मा सवार हो के बचाये ला गिस। तब से उहाँ ममा अउ भांजा एक साथ एक नाव मा बइठ के नदिया पार नइ कर सकँय।
          नदिया के किनारे बने ममा के मंदिर अंदर शिवलिंग ला बाढ़ के जल जइसे ही छूथे, वइसे ही बाढ़ अटाना चालू हो जाथे। कतको बाढ़ आ जथे फेर कुलेश्वर महादेव हर नइ बूड़े।
राजिम त्रिवेणी संगम मा अस्थि विसर्जन करे बर भी आथे। इहाँ मोक्ष के प्राप्ति होथे। दुरिहा-दुरिहा के लोगन मन अस्थि विसर्जन कर के पिंड दान भी करथे।

कुम्भ मेला व दार्शनिक स्थल :-
---------------------
          माँघी पुन्नी मा कुम्भ के मेला के आयोजन करे जाथे। पन्द्रह दिन तक मनखे के कचाकच भीड़ रहिथे। देश-विदेश ले लोगन मन दर्शन करे बर अउ कुम्भ मेला के आनंद उठाये बर आथे। नदिया के तीर मा बाहर ले आये माला-मुँदरी बेचइया मन के पन्द्रह दिन तक डेरा रहिथे। बड़े-बड़े साधु-संत, चंदन-चोवा लगाय, हाथ मा तिरशूल धरे, डमरू धरे, भभूत चुपरे नागा साधु मन घूमत रहिथें। साधु मन के संगे-संग आम आदमी मन भी पुन्नी नहाये बर आथें। हमर राजिम नगरी हर बहुत बड़े तीरथ धाम कहलाथे । अपन जिनगी मा लोगन मन ला एक बार जरूर राजिम धाम के दर्शन करना चाही।
                


रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


बहना के झुमके! : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

 


सोने-चांदी के मशहूर व्यापारी लाला कांतिभूषण सब्बरवाल जिनकी सर्राफा बाज़ार में "आधुनिक आभूषण भण्डार" के नाम से बहुत ही आलीशान दुकान थी। बहुत से नौकर चाकर दिन-  रात लाला जी की सेवा में लगे रहते।

   लाला कांतिभूषण सब्बरवाल बड़े ही शांत स्वभाव, मृदुभाषी, ईमानदार और नेक नीयत इंसान थे। प्रतिदिन धूप बत्ती करके ईश्वर की आराधना के साथ दुकान पर अपनी गद्दी सँभालते।

    दुकान पर आने वाले सभी ग्राहकों को संतुष्ट करने के भरसक प्रयास के साथ ही सही कीमत पर सही माल देते। दुकान पर पधारने के लिए सभी ग्राहकों  का हृदय से धन्यवाद करना भी नहीं भूलते।

 एक दिन लाला जी ग्राहकों का इंतज़ार करते-करते सोच रहे थे कि आज दुकान पर कोई ग्राहक अभी तक क्यों नहीं आया। तभी एक लड़की आई और सामने पड़े सोफे पर बैठते हुए लाला जी से बोली,भाई साहब मुझे कान के झुमके दिखा दीजिए। झुमके लेटेस्ट डिज़ाइन के हों तो ज्यादा अच्छा रहेगा।

    लाला जी ने ख़ुशी-ख़ुशी भिन्न -भिन्न डिज़ाइन के कई जोड़ी झुमके लड़की के सम्मुख रख कर  पसंद करने की बात कहते हुए, और झुमके निकालकर लाने के लिए भेजे कर्मचारी को देखने अंदर चले गए।

    शीघ्र ही वापस आने पर लाला जी देखा कि पहले दिखाए गए झुमकों में से एक जोड़ी डायमंड के झुमके दिखाई नहीं दे रहे। लाला जी ने संदेह दूर करने के उद्देश्य से ग्राहक लड़की से पूछा, बहना.... एक जोड़ी डायमंड के झुमके आपने पसंद करके अलग रख लिए क्या? अगर आप कहें तो बाकी सारे झुमकों को हटा दिया जाए।

   लड़की ने चालाकी का प्रदर्शन करते हुए कहा, आप तो मुझ पर चोरी का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। जब कि मैंने तो उन झुमकों को देखा तक नहीं।

    जैसा कि आप सोच रहे हैं,कि मैं कोई ऐसे-वैसे परिवार की लड़की  हूँ। यह ख़याल तो आप अपने दिमाग़ से निकल ही दें तो अच्छा रहेगा। यह कहते हुए लड़की शोरूम से बाहर जाने का प्रयास करने लगी।

  लालाजी और उनके सुरक्षा कर्मियों ने उसे रोककर तलाशी देने की बात कहते हुए वहीं रुकने की सलाह दी। परन्तु लड़की ने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर सभी को अपने प्रभाव में लेने की भरपूर कोशिश की।

लड़की का ऐसा रूप देखकर लालाजी ने लड़की से बड़ी ही विनम्रता और शांतिपूर्ण तारीके से बात करते हुए कहा,बहना....... जब आप मेरी दुकान पर आयीं तो आपने मुझे भाई साहब का सम्बोधन देते हुए झुमके दिखाने को कहा।

     मैंने भी आपको बहना कहकर ही झुमके दिखाने शुरू किए। बहना मुझे झुमकों की इतनी चिंता नहीं, जितनी चिंता भाई -बहन के पावन प्यार और विश्वास  की कड़ी के टूटने की है। संसार में भाई - बहन के रिश्ते से बड़ा तो कोई रिश्ता होता ही नहीं है।

    ईश्वर ने मुझे तो कोई बहन नहीं दी है। तभी तो मैं बहन के न होने का दर्द भली भाँति समझता हूँ। मैं यह भी खूब जानता हूँ कि एक बहन अपने भाई के प्यार को कभी कम नहीं होने देगी। क्या आप मेरी बहन बनना पसंद करेंगी।

      क्यों नहीं...... विश्वास करो मेरा भी कोई भाई नहीं है। और आप जैसा....... सुंदर,सुशील,सहनशील,विनम्र भाई जिस बहन को मिले उसका तो जन्म ही सफल हो जाएगा। आज से ही आप मेरे भाई और मैं आपकी बहन कहलाऊंगी।

     इतना कहकर बहन अपने भाई से लिपटकर रोने लगी और अपने पर्स में छुपाकर रखे हुए डायमंड के झुमके निकालकर अपने भाई के हाथों में रखते हुए अपने घृणित कृत्य के लिए बारम्बार क्षमा मांगी।

    भाई ने कहा मुझे ख़ुशी है कि मेरी बहन को अपनी गलती का एहसास हो गया। भूल का प्रायश्चित करना ही तो जीवन की सबसे बड़ी सफलता होती है ।बहन को अपने अंक में भरते हुए भाई ने कहा......

   मैं अपनी सुंदर और भोली-भाली बहन पर ऐसे सैकड़ों झुमके निछावर करता हूँ।बुजुर्गों ने सही कहा है कि..........

    प्यार में ही तो सारी समस्याओं का हल विद्यमान है।

      


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

          मुरादाबाद / उ. प्र.

           9719275453

                ----🌹----


 

नई कक्षा में जाने का उत्साह अंजू जैन गुप्ता

  



 'टिमटिम 'शहर में आज चारों ओर चहल- पहल थी।जहाँ देखो वहीं दुकानों पर नया बस्ता, टिफिन और स्कूल का बाकी सामान खरीदने की होड़ लगी हुई थी।तभी अचानक  ज़ोरों से बारिश होने लगती है ।बारिश को होता देखकर  सभी बच्चे खुशी से उछल पड़े,किन्तु चार साल की टिया और उसका सात साल का बड़ा भाई सोमु रोने लगे। उन दोनों को रोते हुए देखकर, माँ ने पूछा कि , "बच्चो तुम दोनों रो क्यों रहे हो? " टिया तुतलाती हुई रोते- रोते कहती है ,"मम्मा-मम्मा हमें कल छकूल (स्कूल) जाना है।" मम्मा कहती है ,"तो ठीक है कल चले जाना इसमें रोने वाली क्या बात है?" तभी सोमु रोते-रोते कहता है कि," मम्मा बाहर तो बारिश हो रही है हम स्कूल कैसे जाएँगे?,हम तो अपना नया बस्ता और टिफिन भी नही ले जा पाएँगे ।"


 

तभी पापा कहते है," कि चलो- चलो , जल्दी कार में बैठो घर समय पर पहुँच कर जल्दी सोना भी तो है वरना सुबह स्कूल कैसे जाओगे? ; इतनी सी बारिश से कुछ नही होगा ये तो अभी रूक जाएगी।" पापा की बात सुनते ही दोनों झट से कार में बैठ जाते है।



घर पहुँचते ही मम्मी  मेज़ पर खाना लगा देती है।मम्मी खाना खाने के लिए आवाज़ लगाने के  लिए पीछे मुड़ी ही थी कि क्या देखती है ,दोनों पहले से ही मम्मी के पीछे खड़े थे।

सोमु कहता है कि ,"टिया जल्दी से खाना खा लो आज तो हमें जल्दी सोना है।"टिया कहती है,"हाँ-हाँ भैया, आप भी जल्दी से खा लो फिर हम सोने के लिए चलते है।"

खाना खाने के तुरंत बाद दोनों  अपने कमरे में जाकर सो जाते है।

अब जैसे ही सुबह होती है माँ उन दोनों को उठाने के लिए उनके कमरे में  जाती है किन्तु दोनों को ही बिस्तर पर न पाकर माँ घबरा जाती है। और टिया  -टिया तुम कहाँ हो ,सोमु तुम कहाँ हो की आवाज़ें लगाने लगती है।माँ को परेशान देखकर दोनों दरवाज़े के पीछे से बाहर निकल आते है और कहते है, "मम्मा  हम तो ये रहे । आप परेशान क्यों हो ? हम तो दरवाज़े के पीछे छिपे हुए थे। देखो हम तो स्कूल जाने के लिए तैयार भी हो गए। "



माँ उन दोनों को तैयार देखकर बहुत खुश होती है और कहती है कि," बस अब हर रोज़ इसी उत्साह से स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाया करना।"


अंजू जैन  गुप्ता