सोमवार, 26 जून 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : पुरी की जगन्नाथ  यात्रा





कल यानी  कि  25 जून  17 को जगन्नाथ  यात्रा  पुरी सहित देश  विदेश  के  शहरो में  बड़े  धूम धाम  से मनाई गई  ।  यह यात्रा  प्रत्येक  वर्ष   आषाढ़  माह के शुक्ल  पक्ष  की  द्वितीया  को निकाली जाती है  पुरी के  जगन्नाथ  मन्दिर  से भगवान् जगन्नाथ  बहन  सुभद्रा  और बडे़  भाई बलराम  की मूर्तियां  उनके  अलग  अलग  रथों  में  हजारों  लोगों  के  द्वारा  खींचे जाते हैं  और उन्हें उनकी  मौसी के  मन्दिर  गुंडिचा मंदिर  में ले जाया जाता है ।   यहाँ  पर भगवान्  अपने बड़े  भाई  और बहन के  साथ  एक सप्ताह  विश्राम  करने  के  पश्चात   वापसी के  समारोह  के  साथ  जगन्नाथ मन्दिर  में  लौट  जाते हैं


                        शरद कुमार  श्रीवास्तव

सुधा वर्मा की कविता : मुस्कुरा उठा अनल




पहन पीले अमलताश की माला
गुलमोहर का लाल तिलक 
माथे पर लगा
वस्त्र गेंदों का पहने
रंग था जिसका पीला 
दोनों हाथ फैलाये
प्रकृति से कह रहा बसंत
आयो पास मेरे 
ले लो पहला चुम्बन
शरमाती लजाती
सरसों की पीली चुनरी ओढ़े
पलाश की बिंदिया,
मांग सजी टेशू से,
कानों पर कमल के कु़ंडल,
प्रकृति चली आई पास
चुम्बन का जैसे ही हुआ एहसास
खिल उठी धरती रंगो से
सूखे पत्तों से झांकने लगी 
नव कोपलें
भौरों के गुंजन से
गुनगुना उठा पवन
गाने लगी कोयल
तबले की थाप दे रहा कटफोड़वा
ओस की बूंदे 
लजाती शरमाती सी
छुप रही बादलों में
मुस्का उठा अनल।
बसंत को निहारता अब भी
मुस्का रहा अनल।


                    रचना 
                    सुधा वर्मा 
                    गीतांजली नगर रायपुर 
                    छत्तीसगढ़ 

महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना : रोज स्कूल जाएंगे



खतम हो गई छुट्टी अब तो, 

रोज स्कूल जायेंगे ।

मम्मी भर दो टिफिन डिब्बा, 

मिल बांटकर खायेंगे ।


नये नये जूता और मोजा, 

नया ड्रेस सिलवायेंगे ।

नई नई कापी और पुस्तक, 

नया बेग बनवायेंगे ।


नये नये सब दोस्त मिलेंगे, 

उनसे हाथ मिलायेंगे ,

नये नये शिक्षक और मैडम 

हमको खूब पढायेंगे ।


नहीं करेंगे अब शैतानी, 

डांट नहीं अब खायेंगे ।

टीचर जी के होमवर्क को ,

पूरा करके जायेंगे ।


मन लगाकर पाठ पढेंगे, 

अपना ज्ञान बढायेंगे ।

काम्पीटेशन के इस युग में, 

अव्वल नंबर लायेंगे ।



                         महेन्द्र देवांगन "माटी"

                        गोपीबंद पारा पंडरिया 

                        जिला -- कबीरधाम  (छ ग )

                         पिन - 491559

                        मो नं -- 8602407353 

Email -mahendradewanganmati@gmail.com



शुक्रवार, 16 जून 2017

डॉक्टर प्रदीप शुक्ला की रचना नन्हे श्रमिक






मई दिवस पर मजदूरों ने
डाल दिया है ताला
' वर्कर बी ' सब छुट्टी पर हैं 
शहद भी नहीं निकाला 

दौड़ दौड़ कर वो बेचारे 
कितना तो थक जाते 
लौट के घर में खाने को 
सूखी रोटी ही पाते अ

रानी मक्खी रॉयल जेली 
खूब चाव से खाती
दिन पर दिन वो मोटी औ’  
सेठानी होती जाती 

नए उमर के मजदूरों में 
भरा हुआ है गुस्सा 
अभी अभी टी वी पर देखा 
फ्रेंच क्रांति का किस्सा 

आनन फानन सभा बुलाई 
नन्हे मजदूरों ने 
हवा में मुट्ठी लहराई फिर 
शूरों - वीरों ने 

साथ हमारे काम करेगी 
अब से अपनी रानी 
और साथ में ही होगा अब 
सबका खाना पानी 

नन्हे बी वर्कर को सबने 
पानी डाल जगाया 
टूट गया था उसका सपना 
चला काम पर भाया 

                                  डॉ. प्रदीप शुक्ल
                                  गंगा चिल्ड्रंस हास्पिटल 
                                  लखनऊ  
  

अंशु विनोद गुप्ता की रचना : नन्हे मुन्नों के लिए







आज  चाँदनी खिली खिली
धरा गगन पर नहीं मिली

रूठ के बेटी कहाँ छुपीं
मॉंम को पुच्ची नहीं मिली

 तारों के घर बर्थडे  हैप्पी
बर्थडे जम्पिंग नहीं मिली

आओ मिलकर नाचें गायें
ढूंढों उदासी नहीं मिली

अंशु विनोद गुप्ता

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना : अम्मा लो बात करो फोन से







टीचर जी होल्ड किये,
बात उन्हें करना है।
लगता है मेरा ही ,
कोई सा उलहना है
न मालूम थोपेंगी,
काम मुझे कौन से।

टीचर ने बोला है,
मम्मी से कहलाना।
मैं कैसी शिक्षक हूँ,
उनका मत भिजवाना।
वेरी गुड़ लिखना मां,
अच्छे से पेन से।

सच में मां टीचरजी,
बहुत नेक सच्ची हैं,
बाहर से कर्कश हैं,
भीतर से अच्छी हैं
उनके कारण ही मैं,
पढ़ पाती चैन से।

प्रभुदयाल श्रीवास्तव


अनिता हंस सूद की बालकविता :अनुभव






हारने से आदमी खत्म नहीं होता
वह तब खत्म होता है
जब वह हिम्मत हार जाता है।

          उस व्यक्ति के समान कोई दुखी नहीं
          जो सब कुछ चाहता है
          मगर करता कुछ नहीं।


कोई भी व्यक्ति वह बन सकता है
यदि वह जानता है कि
वह क्या कर सकता है।

           परिवर्तन के लिए समय की नहीं
           संकल्प की आवश्यकता होती है।

इतना मत खर्च करो,
कि कर्ज लेना पड़े
ऐसी आमदनी मत करो
कि पाप करना पड़े।



                                 अनिता हंस सूद
                                 एमिटी इंटरनेशनल स्कूल
                                 सैक्टर - 46ए
                                 गुड़गाॅंव


शरद कुमार श्रीवास्तव की' हितोपदेश' की कथाओं से एक कहानी बुरी संगत का फल





बुरी  संगत का  फल






एक हँस और एक कौवा  एक पेड़ पर साथ ही साथ रहते थे।   हँस स्वभाव से शील, सज्जन और दूसरों के दुःख दर्द मे उसको  देने  वाला  था, लेकिन कौवा उसके  बिलकुल विपरीत स्वभाव  वाला और दुष्ट था।   जंगल के सब लोग हँस की बड़ाई करते थे तो कौवा इस बात से भी चिढ़ता था।

एक दिन धूप  बहुत तेज़ निकली थी।  जिस पेड़  के  ऊपर  कौवा और हँस रहते थे,   उसी पेड़ के नीचे एक शिकारी आया।  वह बहुत थक गया था ।  इस लिए पेड़ के नीचे आराम करने लेट गया।   थोडी देर में उसे नींद आ गयी।   तभी सूरज की तेज किरणे उसके चेहरे पर पड़ने लगी।   यह देख  के हँस से नहीं रहा गया।  दया वश उसने अपने दोनों पंखों को खोल कर उस शिकारी के चेहरे पर छाया कर दी।   दुष्ट प्रकृति का कौवा हंस के इस व्यव्हार को देख कर जल  भुन गया  और नीचे उड़ता हुआ वह शिकारी के मुँह पर बीट (potty ) करके भाग  गया।

शिकारी की नींद टूट गयी।  अपने मुहँ पर बीट  पड़ी देख कर वह गुस्सा हो गया। उसने ऊपर मुहँ उठाकर देखा तो हँस अपना पंख फैलाये हुए था।   शिकारी ने समझा की यह बीट इसी हँस ने ही की है इसलिए उसने अपना धनुष -बाण निकाल कर हंस को मार गिराया।



इसीलिए कहते  हैं कि  जो  लोग दुष्टों की संगत में  रहते हैं वे सदा इसी प्रकार नुकसान उठाते हैं.



                                         शरद कुमार  श्रीवास्तव 

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत: अच्छी बच्ची








यह तो अच्छी बच्ची है
बात एक दम सच्ची है
सुबह सबेरे ये उठती है
अपने से ब्रश करती है
मम्मी मुँह धुलवाती हैं
चोटी रोज करवाती है
गटागट दूध पी जाती है
फिर स्कूल ये जाती है

                                                          शरद कुमार श्रीवास्तव



सुधा वर्मा का बालगीत : क्यों मिली छुट्टी


एक नटखट बंदर मो
मुश्किल से मैं उसको झेलूं
कभी चढ़ा कुर्सी पर
तो कभी छत पर
परीक्षा का बुखार है उतरा
तो क्रिकेट के 
मैदान पर उतरा
घुटने पर चढ़ी पट्टी
फिर भी चल रही मस्ती
टी वी की तो खैर नहीं
महफिल घर पर ही जमीं

क्रिकेट की बॉल गुमी
विडियों गेम की तार टूटी
दो चार पुस्तकें गुमी
होने लगी घर पर छिना झपटी 
पंद्रह दिन में आया बुखार मुझे
शिक्षा विभाग से होने लगी
शिकायत मुझे
क्यों मिलती है इतने दिनों की
छुट्टी उसे?


                                                      सुधा वर्मा ,
                                                     प्लाट नम्बर 69, "सुमन"  
                                                     सेक्टर -1,गीतांजली नगर रायपुर
                                                    पिन -492001 

अर्चना सिंह 'जया का बालगीत : एक परिन्दा








एक परिंदा छज्जे पर
न जाने कब आ बैठा ?
उसे देख मैं प्रफुल्लित होती
और सोचती
पर होते उसके जैसे।
कभी नील गगन उड़ जाती,
कभी फुनगी पर जा बैठती।
पर नहीं मिले हैं मुझको
पर मन तो सदा उड़ान है भरता।


उस परिंदे के पर सजीले
और स्वर है मिश्री बरसाती।
डाल-डाल पर फुदक बाग में,
मेरे मन को सदा लुभाती।
ईश्वर की अदभुत रचना देख,
बिटिया की चाहत है जगती।
थाम कर बाहों में उसको
कोमल स्पर्श से उसे लुभाती।
पर वो परिंदा, भयभीत हो मानव से
भाव मन के समझ उड जाती।
पिंजरे का वो नहीं है प्राणी,
क्षितिज की चाहत है उसकी भी।
पर न काट, हे मानव
पर ही तो होती है
पहचान 'एक परिंदे' की ।

                                                            अर्चना सिंह 'जया'

सुशील शर्मा की कविता *टन टन बज गई घंटी









टन टन टन बज गई घंटी।
 गुरुजी की उठ गई शंटी।

गर्मी की छुट्टी फुर्र हो गई 
गुरुजी की गुर्र शुरू हो गई ।

गोलू भोलू खेलना बन्द
पढ़ना इनको नही पसंद।

मम्मी ऊपर से चिल्लाएं
पापा गुस्से में आंख दिखाएं।

सारी मस्ती भई छूमंतर।
पढ़ाई का डंडा है सिर पर।

सुबह सुबह स्कूल को जाना।
होम वर्क फिर करके लाना।

धमा धम्म सब कूदें खिड़की से।
डर गए सब मेडम की झिड़की से।

लंच में हम सब लूट मचाएं।
आलू रोटी हम क्यों खाएं।

मोहन की लूटी थी मिठाई।
कक्षा में पड़ गई पिटाई।

छुट्टी के दिन बीते रे भाई।
अब मन लगा कर करो पढ़ाई।

भोलू गोलू बिट्टो बंटी।
टन टन टन बज गई घंटी।



                             सुशील शर्मा

मंगलवार, 6 जून 2017

अंजू निगम की कहानी : आम का पेड़




अतिन जहाँ रहता हैं| वहाँ हरियाली बसी हैं| पीपल, नीम,शरीफा,मीठी नीमऔर एक आम का पेड़|
    अतिन के पापा जब तबादले में यहाँ आये थे| तो ये सारे पेड़ पहले से डेरा जमाये थे| हर दूसरे साल आम लगते थे|अतिन ने पेड़ो पर लगे आम जिदंगी में पहली बार देखे थे|   बौर आने पर उसे अंचभा ही ही हूआ|
" अरे!!!!!! पापा देखो आम के पेड़ में फूल निकल आये हैं"| अतिन खुशी से चिल्लाया था|
   पापा ने तब अतिन को समझाया था कि इसे "बौर" कहते हैं| इसमें ही आम निकलेगे| अतिन के लिये ये नयी बात थी|
   
      स्कूल जाने से पहले वो रोज एक नजर आम के पेड़ पर डाल जाता|   इतने विशाल आम के पेड़ की वजह से सुबह घर चिड़ियों की चहचाहट से भरा रहता|  ऐसा नजारा अब तक बड़े शहर में पले-बढ़े अतिन के लियेे तो नयी बात थी|   प्रकृति के इतना करीब वो पहली बार आया था|  यहाँ का जीवन शहर के जीवन से अलग था| जिन पेड़ो के नाम अतिन ने सुने न थे|  वे सब यहाँ लगे थे|   अतिन खुश था यहाँ आकर|
    जब पेड़ में पहली बार अमिया उतरी तब अतिन की खुशी का ठिकाना न था|  कुछ दिन तो सब शांत बना रहा| पर जैसे-जैसे आमो ने बढ़ना शुरु किया| आम पर अपनी दावेदारी करने वाले भी बढ़ गये|   माँ सारे दिन झींकती रहती| आये दिन उनकी किसी न किसी से रोज झड़प हो जाती|
     जब माँ ने अतिन को "अपने" पेड़ का पहला आम खाने को दिया| तब उसे पहली बार उसे "अपने" बगीचे के आम का स्वाद मिला|
     इस आम के पेड़ की वजह से अतिन के खूब दोस्त बन गये थे|दोस्ती के चक्कर में अतिन ने सबको आम खिलाने का पक्का वायदा भी कर लिया|
   माँ खीजती रहती," आम के पेड़ से गिरी सूखी टहनियाँ, पत्तियाँ साफ करे हम और आम का मजा लुटने सब हाजिर|"
      इसी फेर में अतिन की मम्मी ने अब तक किसी से पक्की दोस्ती नहीं गांठी| जितने दोस्त बनेगे उतने मुँह हो जायेगे आम खाने के लिये|
   वाह रे आम की महिमा!!!!!
एक दिन जब माँ घर पर नहीं थी| अतिन के दोस्तो ने मौके का फायदा उठा पेड़ पर चढ़ आम तोड़ने की ठानी| पेड़ की सीधी चढा़ई थी कहीं कोई घुमाव नहीं| पर  दोस्त भी पक्के थे| उन्होनें अतिन को भी पेड़ पर चढ़ने को उकसाया| थोड़ा ना-नुकुर के बाद अतिन पेड़ पर चढ़ने को तैयार हो गया|
        किसी तरह ढेल-ढाल आधे रास्ते चढ़ गया| पर अब वो पीछे नहीं जा सकता  था| थोड़ी और ऊपर जा मोटी टहनियों पर पैर रख वो आसानी से पेड़ पर चढ़ गया|
    ऊँचाई पर बैठ उसने खुब मजे लिये| दोस्तो ने जम कर आम पर हाथ साफ किये| अतिन न न करता रह गया| चढ़ने को तो चढ़ गया था| पर उतरना तो दोस्तो के ही हाथ में था|
       अभी सब धमा-चौकड़ी मचा ही रहे थे कि अतिन की मम्मी वापस आ गई| आम के पेड़ पर बच्चो की ऐसी धमा-चौकड़ी से उनका पारा गरम हो गया| अतिन के सारे दोस्त तो माहिर थे पेड़ पर चढ़ने-उतरने में| सो वे सब अतिन को छोड़ उतर भागे| माँ के डर से अतिन ने जो जल्दी जल्दी में उतरने की कोशिश की तो वो अपने को संभाल न पाया और जोर से जमीन पर आ लगा|
     आम खाने का सारा फितुर हवा में बह गया| अगले तीन महीने अपनी टूटी टांग ले वो बिस्तर में पड़ा रहा|
    तीसरे साल पापा ने वो आम के पेड़ तो एक फल वाले को बेच दिया| आम के पकने तक वो पेड़ की रखवाली करता रहा| किसी को एक आम खावे को नहीं मिला| हाँ,  सारे आम उतारने के बाद वो एक पेटी आम की अतिन की माँ को पकड़ा गया|
   अतिन को आम की खुब चटास लग गयी हैं| और हो भी क्यों न!!!! फलो का राजा जो ठहरा|


                                   अंजू निगम
                                   इन्दौर 

सुनिता देवी की रचना : बचपन






 बचपन होता है बड़ा सुहाना,
          झूमना, गाना और मौज उड़ाना।
          खेल-खेल कर मिट्टी में,
          डाॅंट के बाद फिर -
          माॅं के हाथ से खाना खाना।
               बचपन होता है बड़ा सुहाना.......

डाॅंट डपटकर फिर माॅं का,
          लाड प्यार से हमें समझाना।
          समझाकर बहलाकर और नहलाकर ,
          मनचाहा फिर खाना खिलाना।
               बचपन होता है बड़ा सुहाना.............

पापा का वो शाम को आना,
          ढेर सारी चीजें. लाना।
          दादी संग फिर पार्क जाना,
          खूब खेलना और शोर मचाना।
              बचपन होता है बड़ा सुहाना........

  थक हार कर खाना खाकर,
          माॅं के आॅंचल में छिप जाना।
          लोरी सुनते -सुनते गोद में,
          परियों की दुनिया में खो जाना,
          बचपन होता है बड़ा सुहाना ............

 काश मैं दोबारा बचपन में पहुॅंच जाऊॅं ,
         कागज की नाव बनाकर पानी में चलाऊॅं।
         हे ईश्वर बस बचपन ही रखना,
        क्योंकि  बचपन होता है बड़ा सुहाना..........


                                       - सुनीता देवी 
                                         एमिटी इंटरनेशनल स्कूल
                                         सैक्टर -46, गुड़गाॅंव

मधु त्यागी की बालकथा: आॅंचल की समझदारी







  आॅंचल बहुत समझदार बालिका थी। वह सबका कहना मानती थी। सबके काम करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। उसका विद्यालय घर से थोड़ी दूर था। वह सुबह अकेली, पैदल विद्यालय जाती थी। आॅंचल को रास्ते में रोज़ एक बालक मिलता। उसके कंधे पर भी छोटा सा बस्ता होता और छोटी सी पानी की बोतल भी होती। उसके हाथ में डंडा होता और वह डंडे को ज़मीन पर रगड़-रगड़कर चलता। अगर डंडा किसी चीज़ से टकरा जाता तो वह अपना रास्ता बदल लेता। आॅंचल ने उस बालक को कई बार गिरते हुए भी देखा था। वह गिरता तो उसका बोतल ंऔर बस्ता भी गिर जाता। कई बार सड़क पर चलने वाले लोगों से वह टकरा जाता और लोग पलटकर उसे ही डाॅंटते। आॅंचल उसकी मदद करना चाहती थी। एक दिन विद्यालय जाते समय, जब वह बालक दिखाई दिया तो आॅंचल उसके पास पहॅुची और उसका नाम पूछा। उसका नाम रोहित था, रोहित ने आॅंचल को बताया कि एक सड़क दुर्घटना में उसकी एक आॅंख की रोशनी बिलकुल समाप्त हो गई थी और दूसरी आॅंख से भी उसे थोड़ा ना के बराबर दिखाई देता था। कोई दुर्घटना ना हो जाए इसलिए रोहित डंडा लेकर चलता था। आॅंचल उसकी मदद करना चाहती थी पर उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। 
                        एक दिन आॅंचल अपनी माॅं के साथ बाज़ार गई, वहाॅं दुकान पर उसने घुॅंघरू देखे। 
घुंघरूओं का आवाज़ सभी ग्राहकों को आकर्षित कर रही थी। आॅंचल ने बहुत सारे र्घुॅंघरू खरीदे और अगले दिन उसने वे सब घुॅंघरू रोहित के डंडे पर बाॅंध दिए। रोहित ने जब चलना शुरू किया तो आगे जाने वाले और पीछे चलने वाले सभी राहगीर उसे देखने लगे। रोहित के डंडे में लगे घ्ंाुॅंघरू तेज़ आवाज़ कर रहे थे। आॅंचल ने देखा उन घुॅंघरूओं की आवाज़ सुनकर, सभी राहगीर रोहित के आगे से हटकर, उसे रास्ता दे रहे थे। यह सब देखकर आॅंचल बहुत प्रसन्न हुई, रोहित ने आॅंचल को धन्यवाद दिया। रोहित यह सोचकर संतुष्ट था कि कम से कम अब वह सड़क पर चलने वाले लोगों से नहीं टकराएगा।
            
                               

                           मधु त्यागी
                        ओ- 458 , जलवायु विहार
                        सैक्टर- 30 गुरूग्राम हरियाणा ।




अर्पिता अवस्थी का बालगीत : मम्मी पापा सबसे अच्छे




मम्मी पापा अच्छे सबसे
जन्म हुआ ये जाने तबसे
                 मम्मी बिन नींद न आये
                 सवारी पापा की पीठ भाये
                     दोस्तो संग कर लेते मस्ती
                    चॉकलेट खाते महंगी सस्ती

जरा भी दूर हुये तो जाने यही
सिवा तुम्हारे कोई अपना नही
मम्मी बनाती स्वादिष्ट पकवान
पापा दिलवाते  मनचाहा सामान
                     गलती करे तो डांटते है
                    अगले पल पुचकारते है
                   तुम दोनो ईश्वर नही पर
                  मेरे लिये हो उससे बढ़कर
    मम्मी पापा अच्छे सबसे
    जन्म हुआ ये जाने तबसे.


                   अर्पिता अवस्थी
                   बर्रा  , कानपुर 

प्रभु दयाल श्रीवास्तव की रचना लपक लिये आम



लपकी ने लपक लिए,

थैले से आम।


अम्मा से बोली है,

आठ आम लूँगी मैं।

भैया को दीदी को,

एक नहीं दूँगी मैं।

जो भी हो फिर चाहे,

इसका अंजाम।


न जाने किसने कल

,बीस आम खाये थे।

अम्मा ने दिन में जो,

फ्रिज में रखवाए थे।

शक के घेरे में था,

मेरा भी नाम।

नाना के आमों के,

बागों में जाउंगी।

आमों संग नाचूंगी,

आमों संग गाऊँगी।

गर्मी की छुट्टी बस,

आमों के नाम।


                        प्रभु दयाल श्रीवास्तव 
                         छिंदवाड़ा 

सुशील शर्मा की भारत - पाक संबंधों पर आधारित कुंडलियाँ




कुंडलियां
(भारत -पाक संबंधों पर )


1.

कूकर कौआ लोमड़ी ,ये होते बदजात।
लठ्ठ से इनको मारिये ,तब ये सुनते बात।
तब ये सुनते बात,पाक है लोमड़ ऐसा।
छाती पर हो लात ,बिलखता कूकर जैसा।
कह सुशील कविराय ,मिटा दो पाक का हौआ।
घुस कर मारो आज ,भगा दो कूकर कौआ।

2.

सीमा पर सेना लड़े ,घर उजाड़ें गद्दार।
कश्मीर में केसर जहर,कैसे होय उद्धार।
कैसे होय उद्धार,जहर है घर में अंदर।
सैनिक सीमा पास,ये घर में मस्त कलंदर।
कह सुशील कविराय,बना दो इनका कीमा।
मन में लगी है आग ,ख़त्म है सहन की सीमा।

3.
पाकी सेवा में लगे ,कुछ हैं वतन हराम।
भारत का खाएं पियें ,बनकर पाक गुलाम।
बनकर पाक गुलाम ,लाज नहीं इन्हे आवे।
रटे पाक का नाम ,भारत न इनको भावे।
कह सुशील कविराय,निकालो इनकी झाँकी।
कर दो काम तमाम,भगा दो ये ना पाकी।

                             सुशील शर्मा

सुरभि आशीष कुमार की रचना : सोन मछलिया




एक गरीब मछुवारा नदी मे जाल डाल कर रोज मछलिया को पकड़ता था और फिर उन मछलियों को बेच कर वह अपना और अपनी पत्नी तथा बच्चो का जीवन चलाता था . एक दिन वह मछलियों  का जाल जब पानी से बाहर निकाल रहा था तब उसने एक आवाज सुनी।   उसने इधर उधर देखा तो कोई भी दिखाई नहीं पड़ा ।   आवाज थी कि बस आये जारही थी ।  उसने ध्यान से देखा तो पकडी हुई मछलियों मे एक सुनहरी मछली ही बोले जा रही है कि मुझको मत पकड़ो पानी मे वापस डाल दो ।   मछुवारे ने कहा , अरे मै वापस क्यो डाल दूँ ?    तुम सुनहरी मछली हो मै तुमको बेचूगा तब मुझे कुछ और पैसे मिल जाऐंगे।   मछली बोली मै मछलियों की राजकुमारी हूँ ,तुम जब जो सामान भी चाहोगे वह तुम्हें  मिलेगा।   अच्छा मुझे बहुत भूख लगी है मुझे खाना चाहिये मछुवारे ने कहा ।   उसके मुँह से बात पूरी भी नहीं हुई थी कि उसके सामने थाल भर के खाना आ गया. गरम गरम पूरी सब्जी खीर मिठाई फल तथा और भी बहुत कुछ आ गया था।   मछली बोली अब तो छोड़ दो, तुम जब बोलोगे कि सोन मछरिया आओ अपना प्यारामुख दिखलाओ , तब  मै झटपट आ जाउगी और आप की इच्छा की पूर्ति हो जायगी. मछुवारा खुश हो गया.

मछुवारा बाकी मछलियों को बेच कर शाम को अपने घर पहुँचा त्रब उसने अपनी पत्नी को सोनमछली की बात बताई . मछुवारी की औरत बोली तुमने अकेले अकेले खा लिया और मछली को जाने दिया ।   उस मछली ने तुम्हे खूब बुद्धू बनाया है।   वह फिर बोली कि अच्छा जैसा उसने कहा वैसे ही तुम कह कर कल उसे फिर बुलाओ और हम सबके लिये खाना यहीं मंगवाओ। 

मछुवारा रोज की तरह नदी पर मछलियाँ पकड़ने गया. उसने जाल डाल दिया तभी उसे अपनी स्त्री की बात याद आ गयी।   उसने आवाज लगाई ‘ सोन मछरिया आओ अपना प्यारा मुख दिखलाओ’ . उसका यह कहना ही था कि सुनहरी मछली आ गई और बोली बताओ तुम्हे क्या चाहिये मेरे दोस्त ?   मछुवारे ने तुरन्त अपने और पूरे घर के लिये खाना माँग लिया।  उसका खाना आ गया, उसने खा लिया और शाम को वह जब घर पहुँचा तब उसने अप्नी पत्नी से पूछा खाना आया था क्या ? तब उसकी पत्नी ने बतया कि खाना तो बहुत अच्छा था अब कल तुम उससे हम सबक़े लिये नये कपडे और मेरे गहने तथा धन माँग लेना।

दूसरे दिन नदी पर फिर आवाज लगाई और सोन मछली के सामने अपनी बीबी की इच्छा बताई. तुरंत उसने देखा किं उसके पुराने कपड़े गायब हो गये और वह सूट बूट टाई हैट को पहने खड़ा है पाकेट मे उसके पर्स जिसमे बहुत सारे रुपये और ए टी एम कार्ड हाथ की कलाई घड़ी बंधी हुई थी।. वह जाल को वापस खींच घर पहुँचा. उसने घर मे देखा घर मे उसकी पत्नी एक मेम साहिबा की तरह खूब बढ़िया साड़ी पहने काला चश्मा लगाए खड़ी हैं पास मे उसके बच्चे भी नये कपडे पहने खडे है।   पत्नी के शरीर पर ढ़ेर सारे सोने के गहने लदे है।  यह देख वह बहुत खुश होरहा था. तब उसकी स्त्री बोली ज्यादा खुश होने की बात नहीं है मै तो इस चिन्ता मे हूँ कि यह सब सामान रखने के लिये कोई अलमारी इत्यादि नहीं फिर तुम्हारी टूटे टाटे घर मे !  कोई यह सब चोरी कर के ले गया तब क्या होगा।

मछुवारा नदी के पास फिर पहुँच कर आवाज लगाई ‘सोन मछरिया आओ अपना प्यारा मुख दिखलाओ. सोन मछली आ गई और बोली अब क्या चाहिये मेरे दोस्त. मछुवारे ने अपनी पत्नी की बात बताई तब मछली ने कहा तुम्हे बार बार ़तकलीफ करने की आवश्यकता नहीं है मैं तुम्हे सब सामान दे देती हूँ . मछुवारे ने घर पहुँच कर देखा तो उसे अपना घर कहीं है ही नहीं उसकी जगह एक बड़ा तीन मंजिला मकान खड़ा है वह रोने लगा मेरा घर कहाँ गया . उसकी बीबी छत पर खडी थी उसने कहा रोने की जरूरत नहीं है खुश होने का टाइम है यह तुम्हारा ही घर है अन्दर आ जाओ. उसने देखा कि घर मे अलमारियाँ फ्रिज टीवी कम्प्यूटर सोफा बेड, ऐसी, टेली फोन और बड़ी सी कार सभी कुछ है . उसने अपनी पत्नी से पूछा अब तो खुश हो ना.

पत्नी ने सब चीजे देखी फिर बोली खुश तो हूँ पर सोचती हूँ कि यदि कोई दूसरा ऐसी मछली को पकड़कर ले जाने से पहले तुम उस सोन  मछली  को  पकड़ कर ले आओ ।   हम उसे सोने के टब मे रखेंगे और उसकी बहुत हिफाजत करेंगे.।  बाद मे फिर कभी कोई चीज की जरूरत होगी तब उससे माँग लेगे।  मछुवारा फिर नदी पर गया और उसने आवाज लगाई ।  सोन मछली जब आई तब मछुवारा उसे पकड़ने को झपटा. सोन मछली झटपट दूर हो गई उसने मछुवारे के मन की बात पढ़ ली और बोली जाओ तुम लोग बड़े लालची हो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा ।  मछुवारे ने देखा कि उसका सूट बूट टाई घर पैसा जेवर इत्यादि सब चला गया।  . उसने वापस लौटकर अपनी पत्नी से कहा ज्यादा लालच करने का फल । लालच करने से  सब चला गया 


                     सुरभि  आशीष  कुमार