सोमवार, 26 मार्च 2018
.शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना :होली का हुड़दंग
होली का हुड़दंग
होली को आयुष घर मे जैसे ही घुसा सारा घर हँस पड़ा। वह बाहर से एकदम काले मुहँ वाला बन्दर बन कर आया था बाहर रोड पर किसी ने उसके चेहरे पर काला रंग लगा दिया था । आयुष के पापा बोले आप सब क्यों हँस रहे हैं । मनीष बोल पड़ा कि किसी बच्चे ने आयुष के चेहरे पर काला रंग पोत दिया है । हमारी कालोनी में तो सब लोग सफाई से होली खेलते हैं कोई गन्दे रंगों से नही खेलता है । पापा आयुष से पूछो यह मेन रोड की तरफ होली खेलने गया ही क्यों था । पापा ने कहा कि हाँ ठीक ही तो है कि होली के हुड़दंग मे छोटे बच्चों को बहुत एहतियात के साथ होली खेलना चाहिए । बच्चों की त्वचा बहुत कोमल होती है और हुडदंग में लोग खराब रंगों का भी इस्तेमाल करते हैं जिससे स्किन इंफेक्शन होने का डर रहता है । इसीलिए मैंने तुम सब लोगों को हाथ पैरों और मुह मे मास्चराइजर तथा बालों में जैतून का तेल लगवाया था
मनीष बोला कि पापा होली तो मेल मिलाप और प्रेम - सौहार्द का त्योहार है हमे सूखे अबीर गुलाल से होली खेलना चाहिए । पापा आगे बोले हमे प्राकृतिक रंग भी उपलब्ध हैं जैसे टेसू के फूल इत्यादि जो गांवों में तो मिल जाते हैं और पंसारी की दुकानों पर भी मिल जाते उनका गीला रंग बना कर होली खेलने का मजा ही कुछ और है ।
मम्मी ने पकवानों के साथ खाना भी लगा दिया । आज के दिन तो तरह तरह के पकवान भी बनते हैं और हर जगह थोड़ा बहुत तो खाना ही पड़ता है इसलिए मम्मी ने खाने की टेबल पर कहा कि बच्चों बाहर अधिक खाना खाने से बचना अगर खाना ही पडे तो बिल्कुल नाममात्र ही खाना चाहिए ।
शाम को घर के सब लोग दादी बाबा के घर पर गये दादी बाबा ने सब बच्चों को गले लगाया और होली का उपहार दिया
मंजू श्रीवास्तव की रचना : अच्छे कर्म का अच्छा नतीजा
छोटा परिवार | रमेश अपनी पत्नि व बेटे रामू के साथ एक छोटे से घर मे रहते थे |.…
रामू बहुत बुद्धिमान बालक था | आर्थिक स्थिति अच्छी न होते हुए भी रमेश ने बेटे की पढ़ाई जारी रखी |रामू के इरादे बहुत ऊंचे थे | वह डाक्टर बनना चाहता था |
आज रामू का मन था बर्गर खाने का | रमेश रामू को एक रेस्टरां मे ले गया| बर्गर का आॉर्डर दिया | बैरा बर्गर ले आया जो काफी महंगा था |
रामू ने बर्गर खाने के लिये मुंह खोला ही था कि एक बूढ़े व्यक्ति को बाहर दरवाजे के सा मैने देखकर ठिठक गया | उस व्यक्ति को देखकर लग रहा था जैसे कई दिन से खाना नहीं खाया है | रामू ने तुरत वह बर्गर उस व्यक्ति को दे दिया| इतना ही नही रेस्टरां से और खाना लेकर भरपेट भोजन कराया |
यह वाकया पास की सीट पर बैठी एक महिला देख रही थी | उसने इस घटना का वीडियो बना डाला और internet पर upload कर दिया| कुछ ही देर वह वायरल हो गया |
जबतक वह व्यक्ति वहां आता रहा, रामू रोज उसे भरपेट भोजन कराता रहा |
कुछ दिन बाद रमेश के घर एक सज्जन आये | उन्होंने रमेश को देखते ही धन्यवाद की झड़ी लगा दी | रमेश आश्चर्य से उन सज्जन को देखे जा रहा था | रमेश बोला आप जो कुछ कह रहे हैं मै समझा नहीं|
अब उन सज्जन ने रमेश की जिज्ञासा शान्त की | बोले मै इस शहर मे एक अस्पताल मे सर्जन हूँ | कुछ दिन पूर्व आपके बेटे ने जिस व्यक्ति को रेस्टरां मे खाना खिलाया था वो और कोई नहीं मेरे पिता थे | उनको भूलने की बीमारी है जिससे वो घर का रास्ता भूल गये थे | हमने बहुत ढ़ूंढ़ा |
आज अचानक internet पर नज़र पड़ी तो उसमे देखा| मैं ढ़ूंढ़ते हुए
आपके घर पहुंचा हूँ | आपका धन्यवाद किस तरह करूँ?
रमेश आश्चर्य से उनका चेहरा देखने लगा |
रमेश के घर की हालत देखकर और ऱामू की पढ़ाई मे रूचि जानकर उन सर्जन ने रामू की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का वादा किया |
रमेश को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था | लेकिन सच्चाई यही थी |
***
बच्चो अच्छे कर्म का परिणाम हमेशा अच्छा होता है |
दुखी व जरूरत मंद लोगों की मदद करने के लिये हमेशा तत्पर रहो |
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
महेन्द्र देवांगन की छतीसगढ़ी रचना : कलिंदर
वाह रे कलिन्दर , लाल लाल दिखथे अंदर ।
बखरी मा फरे रहिथे , खाथे अब्बड़ बंदर ।
गरमी के दिन में, सबला बने सुहाथे ।
नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे ।
बड़े बड़े कलिन्दर हा , बेचाये बर आथे ।
छोटे बड़े सबो मनखे, बिसा के ले जाथे ।
लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे ।
रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे ।
खाय के फायदा ला , डाक्टर तक बताथे ।
अब्बड़ बिटामिन मिलथे, बिमारी हा भगाथे ।
जादा कहूँ खाबे त , पेट हा तन जाथे ।
एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
कलिन्दर = तरबूज
बखरी = बाड़ी
अब्बड़ = बहुत
नानचुक = छोटे से
मनखे = आदमी
शुक्रवार, 16 मार्च 2018
शरद कुमार श्रीवास्तव का बाल गीत: नववर्ष की शुभ-कामनाए
नया वर्ष (विक्रम संवत 2075) की बधाई और शुभकामनाएं
चैत्र माह शुक्ल पक्ष आया
नव वर्ष की खुशियाँ लाया
नव-उल्लास भर कर आया
नवरात्रि पर्व लेके ये आया
नया वर्ष है आया
नया वर्ष है आया
नव पल्लव किसलय सुन्दर
सुखद हवा मनोहर सुखकर
नई कामना नई भावना लाया
नई खुशियों के उपहार लाया
नया वर्ष है आया
रबी की फसल को घर लाया
बागों में जामुन आम बौराया
तोते कोयल ने मधुर है गाया
सब लोगों ने नव वर्ष मनाया
नव वर्ष है आया
नव वर्ष है आया
सत्र परीक्षा का अंत है आया
बच्चों का मन बहुत हर्षाया
छुट्टियों का आनन्द मनाया
छुट्टियों का आनन्द मनाया
सब लोगों ने हिलमिल गाया
नया वर्ष है आया
शरद कुमार श्रीवास्तव
मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा : इन्सान का दुश्मन क्रोध
रमेश और कमल बचपन के गहरे दोस्त थे| लेकिन स्वभाव बिल्कुल विपरीत |
सबेरे सबेरे रमेश कमल के घर आया और कमल को उठाते हुए बोला ,चल कमल आज संडे है कहीं दूर सैर के लिये चलते हैं |
कमल फटाफट तैयार होकर आया और दोनो दोस्त सैर को निकल पड़े | थोड़ी दूर जाने के बाद दोनो को भूख लगी | इत्तेफाक से सड़क के किनारे एक फलवाला ठेले पर फल बेच रहा था | रमेश कार से उतरकर फल लेने लगा |फलवाले ने गलती से रमेश के खरीदे हुए फल के पैकेट मे एक खराब सेव डाल दिया था |
जब रमेश ने खाने के लिये पैकेट मे से सेव निकाला तो उसके हाथ मे खराब सेव आ गया | अब रमेश का चेहरा देखने लायक था | गुस्से से आग बबूला हो रहा था | उसने फलवाले का ठेला सड़क पर ही उलट दिया | सारे फल सड़क पर बिखर गये | कमल बोला ये क्या किया तुमने ? उस गरीब का इतना नुकसान कर दिया| इतना गुस्सा ठीक नहीं |
रमेश ने कमल को भी डांटकर चुप करा दिया| और कहा ये लोग इसी लायक होते हैं |
खैर कुछ देर बाद दोनो शान्त हुए और आगे बढे |
अभी कुछ ही दूर गये होंगे कि साइड से निकलती हुई कार ने कमल की कार मे जोर का धक्का मार दिया जिससे कार मे डेन्ट पड़ गया | लेकिन कमल कुछ नहीं बोला और हंसते हुए आगे निकल गया |
रमेश यह सब देख रहा था | उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कमल की इस चुप्पी पर | रमेश ने कमल से कहा कि तेरा इतना बड़ा नुकसान हुआ और तू चुप रहा |
कमल बोला गुस्सा करने से क्या होता | कार के डेन्ट को ठीक तो कार मेकेनिक ही करेगा | अपने आप तो ठीक होने से रही |
वैसे भी मैं शान्ति प्रिय इन्सान हूँ | बेकार मे गुस्सा करके मैं मन की शान्ति भंग नहीं करना चाहता |
रमेश को चुप हो जाना पड़ा |
*******""""************"''""'****"
बच्चों क्रोध मनुष्य का सबसे बडा दुश्मन है | गुस्सा करने से कोई भी कार्य सही नहीं होता बल्कि और बिगड़ जाता है| इसलिये छोटी छोटी बातों मे गुस्सा करना उचित नहीं है|
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : मुस्कराना सीखो
छोटी सी जिंदगी है ,
हमेशा मुस्कराना सीखो।
अपने बीते लम्हो को ,
प्रेम से सजाना सीखो।
1 क्या रखा है इस दुनिया में ,
मुस्कुरा के जीना सीखो।
चार दिन की है ये जिंदगी ,
इसको स्वर्ग बनाना सीखो।
कल क्या होगा इतना न सोचो,
जो आज हो रहा है उसमें जीना सीखो।
हार मान कर बैठने से कुछ नही होगा,
मन में हौसला बनाना सीखो।
हमेशा मुस्कुराना सीखो।
हमेशा मुस्कुराना सीखो ।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
मंगलवार, 6 मार्च 2018
सुशील शर्मा का होली नवगीत
नवल किशोरी खेलत होरी।
कान्हा ने जब बांह मरोरी।
सखियां करती जोराजोरी।
रंग दो पिया चुनरिया कोरी।
टूट गए हैं आज सारे बंध।
रस में भीगे है सब छंद।
थिरक उठे गोरी के अंग।
रसिक भये रति संग अनंग।
जीवन बना नया अनुबंध।
नाच उठा सारा आकाश।
उदित रंग से सना पलाश।
सांस सांस में तेरी आस।
मन में है बासंती विश्वास।
चलो मिले अमराई पास।
राधे रूठी श्याम मनावें।
मन में प्रीत के रंग लगावें।
श्याम सखा को अंग लगावें।
वृंदावन में रास रचावें।
देख युगल छवि मन हरसावें।
मुंह पर मलें अबीर गुलाल।
कान्हा की देखो ये चाल।
खुद बच कर भागे नंदलाल।
फेंक सभी पर प्रेम गुलाल।
कान्हा बिन है मन बेहाल।
देखो होली के हुड़दंग।
मन बाजे जैसे मृदंग।
गोरी बनी बड़ी दबंग।
बच्चे बूढ़े सब एक रंग।
लहराते सब पीकर भंग।
सुशील शर्मा
प्रिया देवांगन की रचना : जंगल में होली
एक समय की बात है एक बहुत ही घना जंगल था ।उसमें बहुत से पशु , पक्षी रहते थे।उस घने जंगल मे सभी पशु , पक्षी जंगल के राजा शेर से डरते थे । शेर की दहाड़ सुनकर सभी अपने अपने घरों में छिप जाते थे। जंगल का राजा शेर बहुत ही सीधा और बहुत ही अच्छे स्वभाव का था। वह सिर्फ बाहर से आये जानवरों का ही शिकार करता था और जंगल के सारे पशु पक्षियों को अपना परिवार मानता था। शेर की आवाज सुनकर सभी लोग कांप जाते थे। एक दिन की बात है सभी पशु पक्षियों की बैठक बुलाई और प्रस्ताव पारित किया कि इस बार होली नही खेलना है क्यों की यहां जंगल मे शेर आ गया है सभी अपने अपने घरों मे ही रहेंगे ।उसी बीच जंगल का राजा शेर आया सभी शेर को देखकर इधर उधर जान बचाने के लिए भाग रहे थे । शेर बोला अरे भाई रूको मैं तुम लोगों को नही खाऊंगा तुम लोग तो मेरे भाई बहन हो।
तभी चूहा डरते डरते बोला - आप झूठ बोल रहे हो ।शेर और हमारी दोस्ती कभी नही हो सकती हैं और सभी चूहा की बात से सहमत हो गये ।
और सभी अपने अपने घरों में चले गये।
दूसरे दिन होली था ।सभी अपने अपने घरों में शेर की डर से चुपचाप बैठे थे ।
तभी एक आवाज सुनायी दिया । भालू जोर जोर से चिल्ला रहा था , होली है , होली है, सभी अपने अपने घरो से रंग गुलाल लेके बाहर आ जाओ।
तभी सभी सोंचने लगे कि कल तो भालू ने कहा था होली नही खेलना है और आज कैसे?
तभी तोता निकला और बोला नही खेलेंगे होली अगर शेर आ गया तो हम सब की जान खतरे मे पड़ सकती है।तभी भालू बोला नही नही तोता भाई शेर तो जंगल से बाहर गया है मैं अभी शेर को जंगल से बाहर जाते देखा हूँ ।यह बात सुनकर सभी के चेहरे में खुशी छा गया और सभी अपने अपने घरों से रंग गुलाल लाने लगे ।सबसे पहले भालू ने तोता को रंग लगाया फिर सभी ने रंग खेलना शुरू किया ।हाथी दादा आये और अपने सूड़ से सभी जानवरों को नहलाये ।तभी वहाँ से चूहा आया और अपनी पिचकारी से खरगोश को नहलाने लगा । कौवा तोता मैना सभी होली खेलने लगे । उधर से मोर अपनी पिचकारी से सभी को भीगा रही थी।लोमड़ी सभी के लिए भांग बना रहा था और जिराफ सभी को भांग पिला रहा था।कोयल अपनी मिठी गीत सुना रही थी सभी कौआ , तोता , मैना और बंदर सभी भांग पी पीकर नाच रहे थे।कोयल और मोरनी फाग गीत गा रही थी और बंदर तबला बजा रहा था । इसी तरह सब मस्ती में झूम रहे थे।तभी शेर की आने की आहट सुनाई दिया सभी चुप चाप पेड़ के पीछे छुप गयें।तभी सब सोचने लगे और बोले सब मस्ती में पानी फिर गया।तभी कोयल बोली अब क्या किया जाय ।तो मैना बोली चलो अपने अपने घर चलें ।चूहा ने एक तरकीब सोंची की अगर शेर को भांग पीला देंगे तो शेर किसी को नही खायेगा।तो लोमड़ी बोला चूहा सही बोल रहा है लेकिन शेर के पास जायेगा कौन ? सभी एक दूसरे का नाम लेने लगे तोता बोला चूहा यह तरकिब सोचा है चूहा ही जायेगा , तो बोला मैं तुम लोगो को अपना तरकीब बताया अब मेरा काम हो गया ।तभी बंदर बोला भालू जंगल का मुख्य मंत्री है भालू जायेगा।तभी शेर की गुर्राने की आवाज सुनायी दी और शेर को जोर से प्यास लग रहा था ।शेर बोला अरे भाई कोई पानी पीलायेगा यहां सभी पानी तो रंगे हुए है।तो लोमड़ी बोला क्यों न शेर को पानी की जगह भांग दे दे।भालू बोला हां हा शेर नशे मे होगा तो किसी को नही खायेगा ।फिर भालू शेर के पास गया और बोला ये लो राजा पानी फिर शेर को भांग वाला पानी पिला दिये थोड़ी देर मे असर होना शुरू हो गया और सभी खुश हो गये अब शेर भांग के नशे में है अब हम होली खेल सकते हैं ।सभी फिर से रंग गुलाल खेलने लगे शेर को हाथी पिचकारी से भिगोने लगा और सभी जंगल में होली मनाने लगे और चूहे को शाबासी देने लगे ।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
बेबी संस्कृति की बालकथा : होलिका
बहुत साल पहले की बात है
एक राजा था । उसका नाम हिरनाकश्यप था । वह सोचता था कि वह भगवान् से भी ज्यादा ताकतवर है । इसीलिये उसने अपने राज्य में सब लोगों से कहा कि कोई भगवान् की पूजा नहीं करेगा जिसने भी भगवान् की पूजा की उसे बहुत बड़ा दण्ड मिलेगा । उस राजा के पास एक बेटा भी था जिसका नाम प्रहलाद था । प्रहलाद भगवान् का बड़ा भक्त था । वह अपने पिता के घमंड के विरुद्ध भगवान् की पूजा करने में लगा रहता था ।
एक दिन राजा प्रहलाद के कमरे के बाहर टहल रहा था । उसको किसी पूजा करने वाले की आवाज़ सुनाई दी । उसे बहुत गुस्सा आया और वह प्रहलाद के कमरे में गया उसने देखा कि प्रहलाद भगवान् की पूजा कर रहा है । वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने प्रहलाद से कहा कि भगवान् से ज्यादा मै शक्ति शाली हूँ । तुम्हें मेरी पूजा करनी चाहिए भगवान् की पूजा नहीं करनी चाहिए। प्रहलाद ने कहा पिता जी भगवान् सबसे शक्तिशाली है और उस से शक्तिशाली और कोई नहीं है । इस लिए हम सभी को भगवान् की पूजा करनी चाहिए । " प्रहलाद ! , मैं तुम्हें आखिरी मौका देता हूँ भगवान् की पूजा करना छोड़ दो " । प्रहलाद बोला " नहीं "। फिर हिरनाकश्यप ने प्रहको पकड़ कर जहर खिलाया और पहाड़ पर से नीचे फेकवा दिया तब भी प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ । इस पर राजा को बहुत गुस्सा आया । यह देखकर उसकी बहन जिस का नाम होलिका था ने कहा कि भैया आप परेशान मत होइये । मुझको वरदान मे यह दुपट्टा मिला है जिसको ओढ़कर अगर मै आग मे बैठूंगी तब भी मुझे कुछ नहीं होगा ।
हिरनाकश्यप के कहने पर होलिका दुपट्टा ओढ़कर प्रहलाद को गोद में उठा कर आग मे बैठी ही थी कि बहुत तेज हवा बहने लगी और होलिका के ऊपर से दुपट्टा उड़कर प्रहलाद पर पड़ा जिससे होलिका तो जल गई परन्तु भगवान् की कृपा से प्रहलाद बच गया । भगवान् के भक्तों ने होलिका दहन की राख से असत्य पर सत्य की विजय का त्योहार मनाया ।
होली मेल मिलाप का और प्रेम सौहार्द का त्योहार है इसे रंग गुलाल से खेलना चाहिए गंदे पानी गंदे रंगों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए । होली के अवसर पर घरो में पकवान बनते हैं आने जाने वालों के साथ मिलकर खाना चाहिए पर ध्यान रहे कि अपना पेट खराब नहीं हो जाए ।
संस्कृति श्रीवास्तव
कक्षा 2
ज्ञान भारती स्कूल
साकेत, नई दिल्ली 110068
मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : अपनी गलतियों का सुधार सफलता का मंत्र
रघु एक बहुत बड़ी कम्पनी का मालिक था| वह बहुत खुशमिजाज व मिलनसार व्यक्ति था| अपने कर्मचारियों से भी वह दोस्तों जैसा व्यवहार करता था|
एक दिन रघु ने अपने कर्मचारियों को अपने केबिन मे बुलाया और सबको बैठाकर कहा दोस्तों आज मै तुम लोगों को अपने बचपन का एक अनुभव सुनाने जा रहा हूँ |
हमारा साधारण परिवार था | हम आर्थिक रूप से भी साधारण ही थे | पर पिताजी ने किसी तरह मेरी पढ़ाई पूरी करवाई |
रात का खाना हम सब साथ ही खाते थे। |एक दिन खाते वक्त मै सबकी तरफ देख रहाथा कि प्लेट मे से जली रोटी कौन उठाता है |मेने देखा पापा वह रोटी उठाकर बड़े चाव से मक्खन लगगाकर खा रहे हैं किचन से मां के जाने के बाद मैने पापा से पूछा पापा सच बताइये कि उस जली रोटी मे कोई स्वाद था? पापा ने कहा देखो बेटा तुम्हारी मां सारे दिन घर का काम करके बहुत थक जाती है | यदि एक दिन रोटी जल गई तो क्या हुआ? वो मैने खा ली तो क्या हुआ? मां कम से कम थोड़ा शान्ति से सो जायगी |
देखो बेटा हर इन्सान मे कोई न कोई कमी होती है | हर इन्सान से गलती भी होती है | हमे चाहिये कि उस गलती को उभारने की बजाय उसे सुधारने की कोशिश करें |
किसी की गलतियों की आलोचना से बात बनती नहीं बल्कि और नुकसान ही होता है |
मैने वही किया | जिसको गलती करते देखता उसे सुधारने की कोशिश करता | उसका नतीजा आज आपके सामने है |
******* *******
बच्चों देखो हर इन्सान मे कोई न कोई कमी रहती है| गलतियाँ भी इन्सान से ही होती है | इसलिये एक सफल इन्सान बनने के लिये अपनी व दूसरों की गलतियों को सुधारने की कोशिश करो |
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार