बुधवार, 26 दिसंबर 2018

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : प्रिन्सेज डॉल की डॉल














प्रिन्सेज घर मे दुखी बैठी उसकी प्यारी बिल्ली ने प्रिन्सेज से उसके भाई के बारे में पूछ लिया था ।   डॉल को मालूम नही कि उसका कौन भाइं है। उसका कोई भाई है भी कि नहीं उसे मालूम नहीं है।   उसकी मम्मी भी बस गोल मोंल जवाब देती हैं कभी वह कृष्ण भगवान को राखी बंधवा देती है ।   वैसे तो मौसी बुआ मामा दादी के घर मे उसके भाई बहन सब हैं परन्तु वे सब दूर रहते है काफी दूर दूर मे रहते हैं ।   वे लोग बहुत बहुत दिनों पर आते है, तब प्रिन्सेज किसके साथ खेले ।   रूपम का भाई तो उसक़े पास रहता दोनो साथ खेलते हैं . यह बात अलग है कि रूपम और उसके भाई मे कभी कभी झगड़ा भी होंता है उनकी मम्मी एक ही तरह की बॉल / खिलौने लाकर देती है परन्तु रूपम को तो वही गुडिया चाहिये होती है जो रूपम का भाई खेल रहा होता हैं अथवा उसके भाई को वही बॉल चाहिये होंती है जो रूपम खेल रही होती है. प्रिन्सेज ने सोचा कि उसका भी कोई भाई होता तो वह उससे रूपम डॉल की तरह झगड़ा नहीं करती दोनो लोग बहुत प्यार से खेलते.
प्रिन्सेज को उदास देख कर बिल्ली भी उदास हो गई वह बोली तुम्हारे पास भाई नहीं है तो क्या हुआ मै तो हूँ हम लोग साथ खेलते है . प्रिन्सेज बोली हाँ हाँ ठीक है पूसी जी . प्रिन्सेज पूसी के साथ वही पुराना, बाल थ्रो एन्ड पिक का खेल ,खेल रही थी. इतने मे किसी ने दरवाजा खटखटाया . प्रिन्सेज ने दरवाजा खोला तो देखा कि मम्मी आई है और उसके हाथ मे एक बोलने वाली सुन्दर सी डॉल है. प्रिन्सेज बहुत खुश हुई कि चलो भाई नही है तो क्या हुआ यह प्यारी सी डॉल उसके पास आ गयी है जिससे वह बात कर सकती है. पूसी तो साथ मे खेलती है पर ठीक से बात नहीं कर सकती . यह डॉल तो बड़े मजे की है स्टोरी सुनाती है राइम भी सुनातीं है . अब वह नई डॉल के साथ व्यस्त रहने लगी. एक दिन प्रिन्सेज की मम्मी पापा बाहर उसे घुमाने के लिये ले गये थे . प्रिन्सेज का होमवर्क करना छूट गया था . बिना होमवर्क किये प्रिन्सेज सो गयी थी. उसे लगा कि वह बोलने वाली डॉल उसे उठा कर कह रही है कि प्रिन्लेज का कुछ खो गया है . प्रिन्सेज झटपट बिस्तर से उठ बैठी उसने डॉल की तरफ देखा तो वह मुस्करा कर स्कूल बैग की तरफ देख रही थी तब उसी समय प्रिन्सेज को अपना छूटा हुआ होमवर्क याद आया और उसने झटपट होमवर्क कर लिया . उस समय पूसी को प्रिन्सेज का लाइट जलांना अच्छा नहीं लगा उसने एक बार प्रिन्सेंज को आँख खोल कर देखा फिर मुँह फेर कर सो गयी. प्रिन्सेज ने नई बोलने वाली डॉल जिस को वह प्यार से डॉल ही बुलाती थी को सोने से पहले थैन्क्स दिया नहीं तो स्कूल मे अगले दिन काम नहीं करने के लिये टीचर से डांट सुननी पड़ती .
डॉल तो वैसे एक गुड़िया थी लेकिन प्रिन्सेज को वह बहुत अच्छी लगती थी . वह इसलिये नहीं कि वह देखने मे बहुत खूबसूरत थी ऒंर बोलने वाली थी बल्कि इसलिये भी कि कोई जरुरी बात प्रिन्सेज करना भूल जाती थी तब डॉल को देखते ही याद आ जाती थी . इसलिये प्रिन्सेज कहीं जाते समय डॉल को बाई बाई कहना नहीं भूलती थी।।


                         शरद कुमार श्रीवास्तव

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : तब कविता बन जाती है




तब कविता बन जाती है 
हवा की सर सर  , मेंढक की टर टर 
बादलों की गड़ गड़  , झिंगुर की झर झर की
 आवाज जब कानों में गुंजती है
तब कविता बन जाती है ।

सांप की सरसराहट  , बिजली की चमचमाहट 
ठंड में कपकपाहट , नदी की कल कल की आवाज आती है
तब कविता बन जाती है 

पायल की छम छम , चूड़ी की खन खन 
झरनो की झर झर , पत्तों की खड़ खड़ 
की आवाज आती है 
तब कविता बन जाती है ।

          प्रिया देवांगन "प्रियू"
          पंडरिया 
          जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

प्रिया देवांगन "प्रियू" की कविता : बेटी






बेटी घर की शान जी ,
बेटी का करो सम्मान जी ।
सुख दुख सबको सहती है,
कभी न करो निराश जी।।

बेटी दुर्गा बेटी काली ,
बेटी सरस्वती का रूप जी।
जो भी संकट सामने आये,
सबको दूर कर देती जी।।

बेटी घर की लक्ष्मी है ,
बेटी है घर की मान जी।
बेटी बेटा में भेद न करो,
दोनों है एक समान जी।।



           प्रिया देवांगन "प्रियू"
           पंडरिया 
           जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

महेन्द्र देवांगन माटी की रचना : कर्म करो



कर्म किये जा प्रेम से  , चिन्ता में क्यो रोय ।
जैसा तेरा कर्म हो , वैसा ही फल होय ।।

सबका आदर मान कर , गीता का है ज्ञान ।
बैर भाव को छोड़कर  , लगा ईश में ध्यान ।।

झूठ कपट को त्याग कर , सब पर कर उपकार ।
दया धरम औ दान कर , होगा बेड़ा पार ।।

धन दौलत के फेर में  , मत पड़ तू इंसान ।
करो भरोसा कर्म पर , मत बन तू नादान ।।

कंचन काया जानकर , करो जतन तुम लाख ।
 माटी का ये देह है ,    हो जायेगा राख ।।




महेन्द्र देवांगन माटी 
पंडरिया छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

मंजू श्रीवास्तव की रचना क्रिसमस का त्योहार



क्रिसमस का आया त्योहार,
खुशियाँ लाया बेशुमार |
साथ मे सांता क्लॉज भी आये,
रंग बिरंगे तोहफे लाये
चुन्नु, मुन्नु, लीला, नीना,
पप्पू, टिंकू,पिंकू, मीना,.
जल्दी जल्दी सब लोग आओ,
क्रिसमस ट्री को सुन्दर सजाओ,
रात को जब बजे बारा,
मेरी क्रिसमस का लगाओ नारा |
सब मिलकर एक सुर मे गाओ,
जिंगल बेल, जिंगल बेल,
जिंगल  ऑल द वे,
जिंगल बेल, जिंगल बेल
जिंगल ऑल द वे |
गाना गाकर  जश्न मनाओ,
और मनाओ क्रिसमस का रंगीन
त्योहार |

                          मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

सुशील शर्मा की रचना : हम बच्चे



हम सभी प्यारे से बच्चे,
नहीं अक्ल के हैं हम कच्चे।
हम में न अभिमान है ,
न मान है सम्मान है।
न जात है न पांत है
ख़ुशी की बरसात है।
न सुख है न दुःख है ,
प्रेम ही प्रमुख है।












सुशील शर्मा

रविवार, 16 दिसंबर 2018

सुशील शर्मा की बालकविता ठंडी





मौसम कितना ठंडा ठंडा
मुर्गी भूली देना अंडा।
ओस की बूंदें जैसे मोती ,
धूप सुनहली दिन में सोती।



शाल ओढ़ दादाजी आये ,
दादी मन मंद मुस्काये।
गर्म पकोड़े तलती मम्मी,
गर्म जलेबी यम्मी यम्मी।
पापा कहते रोज नहाओ,,
कोई इनको तो समझाओ।



                        सुशील शर्मा

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : नसीहत


 


एक बार एक समुद्री जहाज भयंकर तूफान मे फंस गया | काफी लोग मारे गये |  सिर्फ दो लोग बचे थे| बाप और बेटा | किसी तरह दोनों जन एक टापू पर पहुँच गये  | एक छोर पर बाप ,दूसरे छोर पर बेटा | प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई नाव या जहाज दिखाई दे तो उस पर  चढ़कर अपने घर पहुँचा जाय  |~
पिता और बेटे को भूख लगी| बेटा प्रार्थना करने लगा 'हे भगवन कुछ खाने को मिल जाय | थोड़ी देर में बेटा देखता क्या है ,एक वृक्ष  फलों से लदा है | उसकी खुशी का ठिकाना न था |
  दूसरे दिन वह अकेलापन महसूस कर रहा थ | उसने फिर भगवान से कहा ,कोई साथी मिल जाय तो सफर आराम से कट जाय  |
  थोड़ी देर बाद देखता क्या है कि एक लड़की  तैरती हुई उसी तरफ आ रही है | बेटे ने हाथ पकड़कर उसे ऊपर खींच लिया | अरे! ये तो हमारे जहाज वाली लड़की है| दोनों मे दोस्ती Rहो गई |
फिर उसने प्रार्थना की कि भगवान एक नाव  मिल जाय तो हम अपने घर चले जांयें |
  उसकी ये कामना भी पूरी हो गई | नाव आ गई |
उसने लड़की से कहा चलो हम चलें | लड़की ने पूछा क्या तुम अपने पिताजी को नहीं बुलाओगे ? बेटे ने कहा, नाव मे केवल दो ही लोग आ सकते हैं | लड़की ने कहा क्या तुम जानते हो तुम्हारी हर मनोकामना कैसे पूरी हुई?
तुम्हारे पिता हर समय तुम्हारी सलामती की दुआ करते रहे | तुम्हारी हर कामना पूरी हो, इसके लिये वो दिन रात प्रार्थना कर रहे थे |
जब तुम्हारा काम पूरा हो गया तो तुम उन्हें इस विपत्ति मे छोड़कर जा रहे हो? हर पिता की कामना होती है कि उसके बेटे की हर इच्छा पूरी हो |  | यह सुनकर बेटे की आँखों मे आंसू आ गये | पिता से माफी मांगी |
   नाव मे और लकड़ियाँ जोड़कर सबलोग एक साथ घर को चल दिये

           बच्चों यह बात हमेशा याद रखो कि माता पिता कष्ट सहकर अपने बच्चों की सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं |तुम्हारा फर्ज़ है कि उनका सम्मान करो और कोई कष्ट न दो |

























मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

प्रिन्सेज डॉल के लड्डू : शरद कुमार श्रीवास्तव



:

प्रिन्सेज के स्कूल मे मैडम ने आज बच्चो की एक टिफिन पार्टी रखी थी. यह पांर्टी इसलिये थी ताकि बच्चे मिल जुल कर खायें. शेयर कर के खाने से एक सोशल बनने की प्रकृति जागृत होती है. शेयर करने से बच्चे हिल मिल कर रहना सीखेगे ।  टीचर ने हर बच्चे को अपने- अपने घरों से अलग- अलग किस्म की चींजे लाने को कहा  है. छह- छह बच्चो के ग्रुप में एक ही मेनू रखा गया और ग्रुप  को वही- वही चीजें लाने को कहा गया ताकि सामान बरबाद न हो और किन्ही पेरेन्टस् पर अधिक बोझ भी नहीं पडे़. रूपम डॉल को पोहा लेकर जाना था तो शुभम को पीजा ! लेकिन प्रिन्सेज डॉल को तो मिठाई लेकर जाना है ।   प्रिन्सेज को मिठाई मे लड्डू बहुत पसन्द है . उसे लड्डू पसन्द होने की एक वजह है ।   मोटू पतलू वाले मोटू को समोसे पसंद हैं तो छोटा भीम की तरह प्रिन्सेज को भी लड्डू पसंद हैं . उसकी मम्मी लड्डू घर मे कम लाती है. टीचर जी ने जब डायरी मे लिखकर दिया है तब तो मम्मी को पापा जी से लड्डू लाने को कहना पडा़ .
शाम जैसे ही हुई पापा जी आफिस से लौटते हुए लड्डू लेकर आये. उन्हे मालूम था कि उनकी प्यारी बिटिया को लड्डू बहुत पसंद है इसलिये मिठाई का डिब्बा खोल कर पापा जी अपने हाथों से दो लड्डू अपनी दुलारी बेटी को प्लेट मे रखकर दिया . प्रिन्सेज ने जल्दी जल्दी दोनो लड्डू गटक लिये . उसने पापाजी से एक और लड्डू की फरमाइश की तब पापा जी ने उसे एक और लड्डू दे दिया . उस समय तक प्रिन्सेज की मम्मी ऑफिस से नहीं आयी थीं . मम्मी जी जब ऑफिस से घर आईं और थोड़ी देर मे घर मे जब खाना खाना हो गया तब सबके साथ प्रिन्सेज ने लड्डू खाया.
सबेरे मम्मी ने एक टिफिन बॉक्स मे आठ लड्डू रख दिये थे . पाँच लड्डू तों ग्रुप के बच्चें के लिये थे, दो लड्डू मैडम के लिये थे और एक लड्डू एक्स्ट्रा था . वैंन मे लड्डू का ध्यान प्रिन्सेज को बेचैन कर रहा था . उसने सोचा मम्मी ने एक लड्डू एक्स्ट्रा रखा है वह मै किसी को नहीं दूंगी वह उसने सबसे छुपा कर वैन मे ही खा लिया . स्कूल पहुँचने के बाद कुछ देर तक प्रिन्सेज को लड्डू का ध्यान नहीं आया लेकिन जैसे ही शानू ने छुपा कर टाफी का रैपर खोला वैसे ही प्रिन्सेज को अपने लाये लड्डू याद आगये . उसने सोचा एक लड्डू मेरे हिस्से का है वह तो मै खालूँ. जैसे ही उसने वह लड्डू निकाल कर खाना चाहा लड्डू की महक टीचर की नाक मे पड़ी और उन्होने प्रिन्सेज के हाथ से वह लड्डू वापस रखा दिया . क्लास मे कोई चीज खाने के लिये उसे दस मिनट के लिये बेन्च पर खड़ा कर दिया गया.
टीचर ने सब बच्चो को अधिक मिठाई खाने से होने वाले नुकसान के बारे मे पूछा . रिंकी बोली मैम ज्यादा मिठाई खाने से बच्चों के पेट मे दर्द होने लगता है. मैम बोली शाबाश रिंकी बिल्कुल ठीक है मिठाई मे चिकनाई घी तेल अधिक होता है जिसको अंधिक खाने से पेट दर्द करने लगता है. मन्टू बोला  हाँ मैडम , इसी वजह से मोंटे भी हो जाते हैं जिससे ठीक से भाग दौड़ भी नहीं पीतें है. टीचर ने उसे तारीफ भरी नजरों से देखा. गायत्री बोली मैम ज्यादा मिठाई ख़ाने से मेरे भाई के दाँत को कीटाणु खा चुक़ें थे इसी लियें डाक्टर ने मुँह मे इन्जेंक्शन लगाकर प्लास से दाॅत निंकलवाये थे बहुत दर्द हुआ था. प्रिन्सेज के नाना जी को डायबटीज है उसने भी बेन्च पर खड़े खड़े कहा मैम ज्यादा चीनी की चीजे खाने से डायबटीज भी हो जाती है. टीचर ने खुश होकर कहा बच्चो तुम सब लोग अच्छी तरह से जान गये कि अधिक मीठा नहीं खाना चाहिये . तब तक टिफिन की बेल हो गई थी . सब बच्चो ने टिफिन शेयर कर के खुशी मनाई।।


                                 शरद कुमार श्रीवास्तव

स्कूल का मजा : प्रिया देवांगन " प्रियू"






छोटे छोटे बच्चे को देखो।
सुबह सुबह से स्कूल है जाते।।
गरम गरम पानी में नहा के।
जल्दी से तैयार हो जाते।।



इतनी ठंडी में भी सुबह सुबह स्कूल जाते।
कोई बच्चे रो रहे हैं कोई गाना है गाते।।
किट किट दाँत कापे, सर सर हवा चले।
स्वेटर जैकेट पहन के बच्चे स्कूल को चले।।

 सुबह सुबह से रिक्शा वाला ।
घर पर आ के खड़े हो जाते।।
गुड़िया रानी जल्दी से आओ।
रिक्शा वाला रोज चिल्लाते।।
मम्मी जल्दी भर दो टिफिन डिब्बा।
चिंटू मिंटू आवाज लगाते।।

























प्रिया देवांगन " प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

गुरुवार, 6 दिसंबर 2018



(हाइकु) 







पंचायत चुनाव 

(1)
चुनाव आया
नेता टिकट पाया
खुशी मनाया ।

(2)
गाँव में जाते 
सब्ज बाग दिखाते
हाथ मिलाते ।

(3)
वादा करते 
आश्वासन दिलाते
लोभ दिखाते ।

(4)
हाथ जोड़ते
झुककर चलते
पैर पड़ते ।

(5)
जीता चुनाव 
अब कहाँ है गाँव 
चूना लगाव ।


महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) 
                                 पंडरिया  (कवर्धा) 
                                 छत्तीसगढ़ 
                                 8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

बच्चों से मंजू श्रीवास्तव जी की ज्ञान की बातें |


बच्चों आज ज्ञान की बातें कर लें |

१) पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात,
देखत ही छिप जायगी ज्यों तारा
परभात |
अर्थ है:-
मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है | जो क्षण भर मे बुलबुले की तरह गायब हो जाता है |
जैसे सवेरा होते ही  तारे  छिप जाते हैं |
****************"*************

२)रहीमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय|
अर्थ:- 
प्रेम रूपी धागा मत तोड़ो, अर्थात मन मुटाव मत करो |धागा एक बार टूट जाये तो जुड़ता नहीं, जोड़ने पर गांठ पड़ जाती है|
**************"*"************

३)तिनका कबहुँ न नींदिये, जो पायन तर होय,
कबहुँ उड़ि आँखिन पड़े, पीर घनेरी होय |
अर्थ:- सड़क पर पैर के नीचे पड़े तिनके का अनदेखा मत करो.  | जब उड़कर आँखों मे पड़ जाय तो बहुत पीड़ा होती है |
*****************************

४)करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात हैं सिल पर परत निसान.
अर्थ:- अभ्यास करते करते बुद्धु इन्सान भी ज्ञानी बन जाता है |
जैसे कुँए के पत्थर पर रस्सी के बारबार आने जाने से निशान बन जाता है |
******†*********************†
५)
पोथी पढ़ पढ. जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित
होय |
अर्थ:- लोग पुस्तक पढ़ पढ़कर थक गये पर पंडित कोई न बन सका | जिसने सबसे प्रेम करना सीख लिया वही पंडित बन गया |
.
*****************************,


मंजू श्रीवास्तव
 हरिद्वार

श्रेया दुर्गपाल की रचना : ऐ सफलता कहाँ-कहाँ ढूँढा तुझे



ऐ सफलता कहाँ-कहाँ ढूँढा तुझे

ऐ सफलता, ऐ सफलता
कहाँ- कहाँ ढूँढा तुझे,
ऐ सफलता, ऐ सफलता
कहीं नहीं मिली तु मुझे
ढूँढा तुझे खुशियों की झोली में, 
खुशियों के मैदानों में
पर कभी नहीं मिल पाई तुझसे
ना जाने कहाँ छिपकर बैठी है तू।

फिर एक दिन मेरे पास एक चिट्ठी आई
उसमें लिखा था सफलता का पता - मेहनत नगर।
अब तो मैंने ठान लिया कि
अब तुझसे मिलकर ही रहूँगी
तुझसे मिलने के चक्कर में 
हँसी भी और कभी रोई भी।
रास्ते में पत्थर आए, तूफाँ आए
आँधी आई , सबका सामना किया
क्योंकि मन दृढ़ था
नगर के कोने में था साधारण पर सुंदर घर
मेहनत नगर में, मेरे सामने ही रहती थी सफलता
और नादान, अनजान मैं 
ढूँढती रही उसे गली- गली।

            - श्रेया दुर्गपाल
              कक्षा - नौ
              एमिटी इंटरनेशनल स्कूल
              सैक्टर - 46, गुड़गाँव

खुशी गर्ग की कविता मेरे पापा




मेरे पापा

पापा की लाडली हूँ मैं
पापा की दुलारी हूँ मैं
काम करके आते वह शाम को
लिपट जाती मैं झट से उनको
खून- पसीना बहाते वह हमारे लिए,
मेहनत वह बहुत करते वह हमारे लिए
पूरी करते वह सभी ख्वाहिशे मेरी
मैं भी पूरे करना चाहती हँू 
सपने उनके सभी.....
देखा उन्होंने सपना, मुझे डाॅक्टर बनाने का
करूँगी पूरा, मैं उनका यह सपना
बड़ी होकर, खूब पढ़- लिखकर
बनूँगी मैं डाॅक्टर ज़रूर ।
उनकी लाडली हूँ ,उनकी बेटी हूँ 
बड़ी होकर, रहूँगी उनके साथ हमेशा
बेटा बनकर, करूँगी देखभाल उनकी।

                 - खुशी गर्ग
                   कक्षा - नौ
                   एमिटी इंटरनेशनल स्कूल
                   सैक्टर - 46, गुड़गाँव

आओ बच्चों, मिलकर प्रण लें : अर्चना सिंह जया

आओ बच्चों, मिलकर प्रण लें, 
परीक्षा के भय को मन में न घर दें।
खेलकूद के समान ही अब हम ,
पढ़ने को भी उतना ही महत्तव दें।
एक समय में एक ही काम कर,
खेलकूद या पढ़ाई को वक्त दें।
विद्या धन है बड़ा अनमोल,
खर्च करो दोनों हाथ खोल।
ऊर्जा शक्ति होती तुममें अपार
नित अभ्यास से करो साकार।
आओ बच्चों, मिलकर प्रण लें।
नित परिश्रम का मंत्र अपना लो,
फिर जीवन के हर दौड़ में भागो।
नन्हीं चिड़िया व छोटी चींटी से,
खुद को उनसे कम न आॅंको।
अंदर की छुपी शक्ति को जानो,
कठोर संकल्प अब मन में ठानो।
मन के हारे, हार है जानो,
मन के जीते ,जीत है मानो।
आओ बच्चों, मिलकर प्रण लें, 
परीक्षा के भय को मन में न घर दें।



                        .........  अर्चना सिंह जया

बुद्धि, बल, विवेक : परी महाजन की रचना



बुद्धि, बल, विवेक

बल से बुद्धि सदा बड़ी है
यह सभी जानते हैं।
बुद्धि बिना हैं सब अज्ञानी 
यह सभी मानते हैं।

बल, बुद्धि, विवेक जहाँ
हर व्यक्ति है नेक वहीँ
बल ने बड़ों- बड़ो को हराया
कोई भी बुद्धि से जीत ना पाया।

रावण की कुबुद्धि ने उसे मरवाया
दुर्योधन की कुबृद्धि ने महाभारत का युद्ध रचाया
माना बल है बहुत ज़रुरी
पर बिना ज्ञान और बुद्धि -
है ज़िंदगी अधूरी।

परशुराम को जब गुस्सा आया
गुस्से में आ राम को डराया
राम ने लिया विवेक से काम
गुस्से को दिया उनके विराम

ना कर मनुष्य तू अभिमान
अभिमान कभी ना देता ज्ञान
जहाँ आती है बुद्धि काम
वहाँ करे क्यों बल का अभिमान।
            
                  - परी महाजन
                  कक्षा - नौ डी
                  ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल

गुड़िया रानी (सार छंद) : महेन्द्र देवांगन की रचना






छमछम करती गुड़िया रानी,  खेले छपछप पानी ।
उछल कूद वह करती रहती,  डाँटे उसको नानी ।।

बस्ता लेकर जाती शाला , ए बी सी डी पढ़ती ।
कभी बनाती चित्र अनोखे,  कभी मूर्ति को गढ़ती ।।

साफ सफाई रखती अच्छी,  कचरा पास न फेंके ।
कूड़ा कर्कट आग लगाकर,  हाथ पैर को सेंके ।।

सबकी प्यारी गुड़िया रानी,  दिनभर शोर मचाती ।
खेलकूद में अव्वल रहती,  सबको नाच नचाती ।।


                         महेन्द्र देवांगन माटी 
                         पंडरिया  (कबीरधाम) 
                         छत्तीसगढ़ 
                        8602407353
                         mahendradewanganmati@gmail.com

शादाब आलम :, ठन्डी हमे धमकाए




बाहर फैली धुंध, हवाएं
चलें सरर-सर सर
सुन्न पड़े हैं हाथ-पैर, हम-
कांपे थर-थर-थर।
पानी छूने से डर लगता
ठंड हमे धमकाए
फिर भी रिंकू रोज़ नहाकर
ही विद्यालय जाए।




                          शादाब आलम

प्रिंसेज डॉल की बर्थडे पार्टी : शरद कुमार श्रीवास्तव





मम्मी-पापा ने खुश होकर आज प्रिन्सेज डॉल के कान मे हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज सोते-सोते अपने पापा के गले से लिपट गई और आँखें बंद करके ही बोली पापा मेरा बर्थ डे है? पापा बोले हाँ बेटा, आज तुम पाँच साल की हो गई हो !
 अब तुम एक साल और बड़ी हो गई हो । प्रिन्सेज ने खुश होकर अपनी आँखे खोल दी । वह बोली  तो मै रूपम से एक साल बड़ी हो गई हूँ । रूपम डाॅल तो अभी फोर इयर की ही है। प्रिन्सेज खुशी से फूली नहीं समा रही थी । उसकी मम्मी ने भी प्यार करके उसे बिस्तर से बाहर निकाला और कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ स्कूल की देर हो रही है । आज तो तुम्हें नये कपड़ों में स्कूल जाना है । सब बच्चों के लिए टाफी बैलून भी लेकर जाना है ।
प्रिन्सेज जल्दी से तैयार होकर बच्चों के लिये टाफी बैलून के उपहार लेकर स्कूल वैन में बैठ कर स्कूल चली गई । स्कूल पहुंचने पर प्रेयर मे उसकी क्लास टीचर ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और हेड मैम के पास ले गई ।   हेड मैम ने भी उसे प्यार किया और प्रेयर के बाद सब बच्चों ने डाल को हैप्पी बर्थ-डे विश किया। क्लास में आने के बाद क्लास के बच्चों ने उसे हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज ने सभी बच्चों को बैलून और टाॅफियाँ बाटी । हरीश ने टाफी ले तो लिया पर उसने न तो प्रिन्सेज  हैप्पी बर्थ-डे कहा न थैंक्यू कहा । इस बात से प्रिन्सेज का चेहरा उतर गया। टीचर ने  जब देखा तब उन्होंने हरीश से अलग बुलाकर अकेले में पूछा कि यह क्या बात है । हरीश ने मैम को बताया कि पहले उसकी बर्थ-डे में प्रिन्सेज ने भी उसे विश नहीं किया था । मैम ने हरीश को समझाया कि बदला लेना बुरी बात होती है ।   फिर हरीश ने जाकर अलग से प्रिन्सेज को हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज ने हरीश से हाथ मिलाया और वे अच्छे दोस्त बन गए ।
शाम को सिटी होटेल में प्रिन्सेज के पापा ने प्रिन्सेज की हैप्पी बर्थ-डे की पार्टी रखी थी । पापा मम्मी के साथ प्रिन्सेज होटल पहुंच गई थी   ।   मम्मी-पापा प्रिन्सेज के लिए एक बहुत ही प्यारी फ्राक लाये थे वही फ्राक उसने पहन रखी थी फूलदार शू और गोल्डन हेयर बैन्ड भी उस के ऊपर बहुत सुन्दर लग रही थी । केक को तो अपने समय पर ही बेकरी से आना था । अतः उसके लिए चिंता की कोई बात नहीं है । चाचू अपने कैमरे के साथ फिट थे दादी बाबा जी भी चाचा-चाची के साथ ही आ गये थे । दोस्तों मे पहुचने वालों मे मुनमुन और बन्टी थे। धीरे-धीरे सभी लोग आ गये थे । कुछ दोस्त मम्मी-पापा के थे तो कुछ प्रिन्सेज डॉल के थे । उसी समय वेटर ने एक पार्सल लाकर दिया और बोला कि अभी अभी कोरियर ने लाकर दिया था । पापा ने पार्सल देखकर डॉल को बताया कि उसकी नानी जी ने भेजा है । पार्सल के साथ हैप्पी बर्थ-डे कार्ड लगा है। प्रिन्सेज बहुत खुश हुई कि नानी जी को उसका जन्मदिन याद था। सब बच्चों ने कौतुहल वश नानी जी की गिफ्ट देखना चाहा । सब लोगों के सामने गिफ़्ट पैक खोला गया तो पार्सल से एक सुन्दर सा खिलौने वाला खरगोश निकला जो गाना भी गाता है और जो कहानी भी सुनाता है । प्रिंसेज उसे पाने कर बहुत खुश हो गई । फिर सब बच्चों ने गेम खेले।
तब तक केक 🎂 आ गया था । सब बच्चे केक को घेर कर खड़े हो गये। प्रिन्सेज डॉल ने तब मम्मी-पापा और दादी बाबा के साथ केक काटा और सब लोगों ने केक खाया और फिर बच्चो ने पोयम, चुटकुले गाने सुनाए। हरीश का गाना " सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" की सबने खूब तारीफ की। वहाँ एक मैजेशियन भी आये थे उन्होने बच्चो के मन पसन्द जादू दिखाऐ कागज के फूल को कबूतर बना दिया। एक खाली डिब्बे के अन्दर से खरगोश निकाल दिया। सब बच्चों को खूब मजा आया।  खाने की प्लेटे आ गईं थी उन प्लेटो मे केक मैगी, स्प्रिंग रोल्स पकौड़ी , हलुआ और गुुलाबजामुन रखा था।  सब लोगों ने बड़े चाव से खाया। चाचू ने फोटो खींची । सभी बच्चों को रिटर्न गिफ़्ट मिली और वे सब अपने घर चले गये
घर आकर प्रिन्सेज  ने नानी जी की फोटो के सामने नानीजी को उनके प्यारे से गिफ्ट के लिए थैंक्स कहा तो नानी जी की फोटो मे नानीजी मुस्कराते हुए दिखाई पड़ीं ।


                          शरद कुमार श्रीवास्तव

माउंट ओलम्पस स्कूल, मालिबू टाउन, गुरुग्राम रिपोर्ट : हिंदी अंतर सदन प्रतियोगिता : श्वेता दिव्यांक








गुड़गांव के माउंट ओलम्पस स्कूल में 30 नवम्बर वर्ष 2018 को प्रथम हिंदी अंतर सदन प्रतियोगिता आयोजित की गई | इसमें कक्षा के.जी. से नौवीं तक के सभी छात्रों ने आल्टियस, सीटियस और फॉरटिय हाउस के द्वारा दोहे, गीता श्लोक, आर्यसमाज प्रार्थना और रामायण चौपाई आदि का वाचन किया | के.जी. व पहली के नन्हें-मुन्नों ने कबीरदास व रहीमदास के दोहे अर्थ सहित गाकर और दूसरी व तीसरी के बाल कलाकारों ने गीता के श्लोक अर्थ सहित सुनाकर मनमोहक प्रस्तुति देकर सबको अचंभित कर दिया | चौथी व पाँचवीं के छात्रों ने आर्यसमाज प्रार्थना व छठी से नौवीं तक के छात्रों ने रामायण चौपाई के गायन व नृत्य द्वारा लाजवाब प्रस्तुत दी | शिक्षार्थियों ने विद्यालय के प्रांगण को दोहे, श्लोक, प्रार्थना व चौपाई का उच्चारण कर वातावरण को शुद्ध किया और सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान की | निर्णायक मंडल में श्री शरद कुमार श्रीवास्तव जी, श्री सुनील कुमार शर्मा और श्रीमती आभा जैन जी ने अपना कीमती समय देकर प्रतियोगिता में चार चाँद लगाए | निर्णायक मंडल ने छात्रों को संस्कृति से जुड़े रहने की विद्यालय के इस पहल की और बच्चों के हुनर की जमकर तारीफ़ की | प्रधानाचार्या नीति सी. कौशिक ने कहा कि “हमें विश्वास है कि भविष्य के निर्माता सबका आशीर्वाद ले संस्कृति व सभ्यता के साथ भविष्य को अति सुंदर ढंग से सजाएंगे, सवारेंगे और एक नई शताब्दी की ओर अग्रसर होंगे |”  











श्वेता दिव्यांक