मंगलवार, 26 नवंबर 2019

गिलहरी



धरा पर कभी पेड़ पर ठहरी
दाना-तृन खाती हुई  गिलहरी
पिछले पैरों पर खड़ी हो जाती
दाना खाती हुए वो हमे लुभाती

पंछी चिडियों से वह पंगा लेती
दाना किसी को नहीं खाने देती
फुदक इधर से उधर वह जाती
कण-कण दाना चट कर जाती

                             शरद कुमार श्रीवास्तव


अम्मा मेरी : शादाब आलम





मैं जब भी शैतानी करता
तो अम्मा चिल्लाती है
नहीं मानता कभी-कभी तो
मुझको चपत लगाती है।
जैसे ही मैं रोने लगता
अपने पास बुलाती है
दुलराती-सहलाती मुझको
और बहुत पछताती है















शादाब आलम 

प्रिंसेस डॉल और टिंकपिका का जादूगर. : शरद कुमार श्रीवास्तव






प्रिंसेस डॉल स्कूल से लौट कर आई तो थोड़ा कुछ खा लेने के बाद वह स्कूल का होम वर्क ले कर बैठ गयी। आज मैथ वाली मैम ने उसे 100 अंकगणित ( मैथ) के सवाल कर के लाने को कहा था। वह सवाल करने बैठ तो गयी लेकिन वह एक भी सवाल कर नहीं पा रही थी। उसे ध्यान आया कि क्लास में जब मैथ टीचर सवाल करना सीखा रहीं थी, तब प्रिंसेस और रूपम, कट्टिम कुट्टा का खेल क्लास में खेल रही थी। अब जब सवाल नहीं समझ में आ रहा था तब प्रिंसेस को रुलाई छूट रही थी। वह क्या करे कैसे करे वह सोच रही थी। उसने सोचा की रूपम को फोन लगाए लेकिन रूपम भी तो कट्टिम कट्टा खेल रहजी थी वह क्या बतायेगी. वह रो रही थी कि दीवार पर बैठा मकड़ा उससे बोला रो मत ! मैं, अगर, सब सवाल कर दूँ तो तुम मुझे क्या खाने को दोगी। प्रिंसेस खुश होकर बोली मैं तुम्हे अपनी फेवरिट नट चॉकलेट दूंगी।


 मकड़े ने उससे कहा की तुम अपने खिलोनो से खेलो मैं अभी तुम्हारे मैथ के सवाल कर देता हूँ। प्रिंसेस ने अपना मुंह खिलौने की तरफ किया, तब तक मकड़े ने, उसकी कापी के सब सवाल हल कर दिया और चॉकलेट उठा कर गायब हो गया।

मैथ की टीचर को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने अंग्रेेजी की मैडम से कहा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने भी प्रिंसेस को 100 लाइन का ट्रांसलेशन दिया आज भी स्कूल में प्रिंसेस और रूपम साथ साथ खेल रही थी। इसलिए उसे पता ही नहीं लगा । परन्तु जब उसने घर में होम वर्क की कापी खोली तब उसे देख कर रोने लगी। वह मकड़ा फिर आया और बोला आज तो मैं तुम्हारा कलर बॉक्स लूंगा। उसने उसी तरह उसने प्रिंसेस डॉल का ध्यान हटा कर सारे ट्रांसलेशन कर डाले। अब मकड़ा प्रिंसेस डॉल का कलर बॉक्स भी चला गया। 

दो दिनों के बाद पेरंट टीचर मीटिंग में प्रिंसेस की मम्मी से मैथ की मैम और अंग्रेजी की मैम ने प्रिंसेस की बहुत तारीफ़ किया। लेकिन कहा कि घर से सब सवाल कर लाती है पर क्लास में रूपम से बातें बहुत करती है। कहीं आप तो घर में उसकी मदद तो कहीं नहीं कर देती हैं । ऐसे उसके सवाल कोई दूसरा कर देगा तो आप की प्रिंसेस बुद्धू रह जायेगी उसे तो कुछ नहीं आएगा।

 प्रिंसेस की माँ को भी दाल में कुछ काला नजर आया। घर आ कर वह जादू से गायब होकर दरवाजे के पीछे छुप कर बैठ गयी। उन्होंने देखा की एक मक्खी और एक मकड़ा आपस में बात कर रहे थे। मकड़ा बोला की मैं टिंकपिका से आया हूँ वहाँ के जादूगर ने भेजा है। प्रिंसेस के सब सवाल मैं ही कर देता हूँ। धीरे धीरे जब वह वीक (कमजोर) हो जायेगी तब उसे बुद्धू बना कर टिंकपिका का जादूगर अपने साथ पकड़ कर ले जाएगा और बार्बी डॉल बना कर अलमारी में बंद कर देगा । इससे वह बहुत पावरफुल हो जाएगा , तब उसका कोई कुछ नहीं कर सकता और वह बहुत ताकत वाला बन जाएगा।

प्रिंसेस को ना तो उस मकड़े और मक्खी की बात कुछ सुनाई दे रही थी न तो वह समझ ही पा रही थी कि मकड़ा उसका काम क्यों कर दे रहा है। प्रिंसेस की माँ तो वहाँ जादू से छुपी थीं उन्होंने मकड़े की सब बातें सुन ली थी । वो जाला साफ़ करने वाला एक झाड़ू लेकर आयीं और उन्होंने जाला साफ कर दिया और मकड़े को मार दिया। प्रिंसेस की मम्मी प्रिंसेस से बोली की यह मकड़ा तुम्हारा होम वर्क करके तुम्हे कमजोर कर दे रहा था ताकि तुम्हे बुद्धू बनाकर वह बदमाश जादूगर पकड़कर ले जाय और बार्बी डॉल बना कर अपनी अलमारी में बंद कर दे। अब तुम अपना होम वर्क खुद किया करो जिससे तुम अधिक बुद्धिमान बन सको।

शरद कुमार श्रीवास्तव 

शामू 5 एक धारावाहिक कहानी शरद कुमार श्रीवास्तव :







अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पडे  कचडे में  लोहा  बीन रहा  था  ।  तभी  गैरेज के लडकों ने उसे पकड़ कर गैरेज में बैठा दिया यह सोंच कर कि शामू कबाड़ से चोरी कर रहा है । गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे।   शामू की सारी बातें सुन कर द्रवित हो गए। इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था।  गैरेज में  वर्कर की जरूरत थी।  इशरत मियाँ  ने शामू से पूछा कि काम करोगे।   शामू ने तुरंत हाँ कर दी  और इशरत ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।
शामू  अपने हँसमुख  स्वभाव  और भोलेपन  के  कारण  सब लोगों  का  चहेता बन गया था । अपने एक साथी की मदद से खाने के समय या खाली समय थोड़ी पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई थी ।  कुछ  ही दिनो  मे गैरेज के  टूल्स  औज़ार  आदि  के  नाम  का  पता  हो गया था।   इस नये काम से उसपिता बिहारी  और  उसकी दादी  भी खुश  थी ।    इशरत भाई  को उसने कई बार ग्राहक के छूटे रुपए पैसे जो गाडी में मिलते थे वह ला कर दिए थे ।   इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे।
आगे पढिये :-
इशरत मियाँ  के पिता के भाई लोग  भारत  पाकिस्तान  के  बटवारे  के  समय पाकिस्तान  चले गये  थे ।  लेकिन  इशरत  मियाँ  के  पिता  जी   अपने  परिवार  के  साथ  भारत  छोड़कर  नहीं  गये ।  इशरत  मियाँ  अपने  माता पिता की इकलौती  संतान  थे  और उनका  भी एक ही बेटा था ।  इन्टरमीडियेट मे पढ़ रहा था नाम था नुसरत सिद्दीकी ।  वह लिखने पढने मे तेज था।  इशरत  भाई  उसकी मेहनत  लगन  को अहमियत  देते  थे  ।  नुसरत  की  पढ़ाई  लिखाई  की ओर विशेष  ध्यान  दिया  करते थे ।  नुसरत पढाई में से कुछ समय निकाल कर अपने पिता के गैरेज जाता था अपने पिता को खाना खाने के लिये घर भेजने के लिए । उस समय वह कालेज से आ चुका होता था । शामू के पढने के शौक को देखकर वह समय समय पर उसकी सहायता भी कर दिया करता था । दरअसल कालेज में नुसरत के एक लेक्चरार ने गरीब बच्चों की पढ़ाई की समस्या का जिक्र किया था । संवेदनशील नुसरत भी सोचता था कि वह इस दिशा में काम करे तो उसको आसानी से इस बात का मौका भी मिल गया अतः शामू को अपनी खुशी से पढ़ा रहा था और वह इसके लिए भगवान का शुक्रगुजार था ।
शामू का पिता , बिहारी, हमेशा इतवार को आता था । अपने माँ को और अपने बेटे के पास , उन्हें देखने के लिए । वह शामू से खुश रहता था। उसकी हमेशा इच्छा रहती थी कि शामू पढ लिख कर बड़ा आदमी बन जाय। लेकिन स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाने से वह असहाय महसूस करता था। भीख से पाये पैसे वह अपनी माँ के हाथों में सौंप जाता था। शामू की दादी उन पैसों को बहुत जतन से रखती थी। शामू को भी वह पता नहीं था कि दादी के पास पैसा है।
एक दिन शामू घर गया तो उसने देखा कि उसकी दादी रो रही है । शामू ने जब दादी से पूछा तब दादी ने उसे कुछ रुपयों की गड्डी दिखाई जिसे कीड़े खा गये थे । शामू दूसरे दिन गैरेज गया तब दादी से पूछकर अपने साथ उन रुपयों को भी ले गया ।
इशरत मियाँ को उसने नोट दिखाए । कुछ नोट काम के थे । कुछ नोट बाजार में चल नहीं सकते थे उन रुपयों को लेकर इशरत भाई शामू के साथ नोट बदलने वाले की दुकान में ले गये जहाँ कमीशन पर नोट बदले जाते थे । वहां भी शामू को कुछ रुपये मिल गये । इशरत मियाँ ने शामू से कहा अब तो तुम कुछ पढ़ लिख सकते हो अपना नाम लिख सकते हो और बारह साल के हो गये हो । अतः पैसों को बैंक के खाते में रखो । उन्होंने शामू को बैंक के खाते के बारे मे समझाया । शामू को इशरत मियाँ एक दिन अपने साथ बैंक लेकर गये और उसका खाता खुलवा दिया । अब उसने हर माह अपनी तनख्वाह के रुपये और दादी के दिये रुपये बैंक की पासबुक में जमा करना शुरू कर दिये थे ।

आगे छठे अंक में 



शनिवार, 16 नवंबर 2019

नशा छोड़ो : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना






नशा नाश का जड़ है प्यारे , इसको मत अपनाओ ।
स्वस्थ अगर रहना चाहो तो , सादा भोजन खाओ ।।

इज्जत पैसा दोनों होते , एक साथ बर्बादी ।
रोज लड़ाई झगड़ा होते , बनो नहीं तुम आदी ।।

टूटे घर परिवार सभी से , रिश्ते नाते छोड़े ।
ऐसी आदत वालो से अब , काहे रिश्ता जोड़े ।।

खाने को लाले पड़ जाते , बच्चे भूखे सोते  ।
जीना मुश्किल हो जाता है  , कलप कलप कर रोते ।।

मद्यपान अब करना छोड़ो,  सादगी को अपनाओ ।
मिट जायेगा क्लेश कलह सब , घर में खुशियाँ लाओ ।।
       
                         महेन्द्र देवांगन माटी
                         पंडरिया छत्तीसगढ़

नन्ही चुनमुन और ब्लू क्रेयॉन शरद कुमार श्रीवास्तव







मम्मी  ने  देखा  कि  चुनमुन स्कूल से  आकर , उससे बगैर  मिले या प्यार  किये ही कुछ  खोजने में  लग गई  थी  ।   मम्मी  को  आश्चर्य  हुआ  कि  ऐसा  तो  कभी  नहीं होता था   ।   चुनमुन स्कूल  से घर  आकर  सबसे  पहले  वह  अपनी  मां  से  अवश्य  मिलती  है ।   मम्मी  कौतुहल-वश चुनमुन के  कमरे  में  गई।  मम्मी  को  वहाँ  देखकर चुनमुन तुरन्त  बोलने लगी  कि  मम्मी  मेरा ब्लू  रंग  का  क्रेयान कहीं  नहीं  मिल  रहा  है  ।   आज  टीचर  जी ने  सबके  सामने मुझे  बहुत  डाँटा  था ।  वो कह रहीं  थीं  कि  तुम  अपना  सब सामान  फेंकती  रहती हो ।    मम्मी  कल ही  तो  मैंने उससे   पेंटिंग  की  थी और  पेटिंग  के  बाद   वह  कहाँ चला  गया  पता  नहीं चल रहा  है इसी लिए  मै अपने  कमरे में  तलाश  कर  रही  हूँ ।   यह  सुनकर  मम्मी  बोली कि  कितनी  बार  तुम्हें  समझाया  है  कि  अपना सब सामान  संभाल  कर रखो और  इस्तेमाल  करने  के बाद  उसे  फिर  अपनी  जगह  पर  रख  दो   लेकिन  तुम  सुनती कहाँ हो।   तुम्हारी  मैम  ने  ठीक ही  तुम्हें  डाँटा  है ।   यह सुनकर  चुनमुन बोली मम्मी  अब मै  समझ गई  हूँ ।   मै अब अपना सब सामान  ठीक  जगह  रखूंगी  और  इस्तेमाल करने  के  बाद   उसे  फिर  सही  जगह  पर  रखूँगी  ।   मैं  आपसे  प्रामिस करती हूँ ।    नन्ही  चुनमुन की यह बात   सुनकर  मम्मी  मुस्करायी ।  वह बोली,  यह लो तुम्हारा  ब्लू क्रेयान  !  अब  सब  सामान  ठीक  से  रखना ।   सबेरे  तुम्हारे  स्कूल  जाने  के  बाद   काम वाली  आन्टी  ने कूड़े  वाली  बाल्टी  में  से निकाल  कर  यह ब्लू  क्रेयान मुझे  दिया था।    

चुनमुन  खुश  हो  गई  और  मम्मी  के  गले  से  लग गई ।  



          शरद  कुमार श्रीवास्तव 

चुटकुले : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव




1  रामू  ट्रेन  में  पिछले डिब्बे  में  सफर कर रहा था कि  उस ट्रेन  को  पीछे  से  एक इंजन  ने  टक्कर मार दी ।  राजू ने शिकायत  पुस्तिका  में  लिखा  कि ट्रेन  में  कोई  आखिरी  डिब्बा  नहीं  होना  चाहिये  । अगर  आवश्यक  हो तो इसे बीच  में  होना चाहिये ।

2  एक डाक्टर  एक  आदमी  के  पीछे भाग  रहे  थे ।  लोगों ने  रोक  कर पूछा  तो डाक्टर  बोला यह आदमी  दिमाग़  का  ऑपरेशन  कराने  के लिए  आया  था  ।  बाल कटवाने के  बाद  भाग रहा है ।

3  शिक्षक  : बच्चो   दूध  न फटे इसके  लिए  क्या  करना चाहिए
एक  बच्चा   : ूूौसर उसे  पी लेना चाहिये ।

4  शिक्षक  छात्र  से : तूने  मेरा  दिमाग  खराब  कर दिया  है । अपने पिता  को  बुलाकर  लाना   मै तेरे  पिता  जी  से  मिलूंगा
छात्र  :  पिता  जी को नहीं  ताऊ को  लाऊंगा दिमाग  के  डाक्टर  ताऊ है पिताजी  नहीं

5 एक मेढक ने एक ज्योतिषी से अपना भविष्य पूछा
ज्योतिषी बोला इस सप्ताह तुम्हारा उद्धार होगा
मेढक खुश हो गया उसने पूछा कैसे?
ज्योतिषी बोला कालेज की बाइलाॅजी के प्रेक्टिकल के क्लास में ।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

बचपन : अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव









प्यारा बचपन   न्यारा बचपन

मैगी खा के ख़ुश होता बचपन

नटखट हरकतों से लुभाता बचपन

सब को हर्षित करता यह बचपन

बचपन की हरकतों को देखो

रोटी दाल देख मुँह बनाता बचपन

सबका बचपन फ़िर से लौट आये

पचपन को भी बचपन फिर आये

मैगी देख के ललचाता पचपन

फिर भी बड़प्पन दिखा के न खाता पचपन























अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

सृजन करें ( लावणी छंद ). : रचना महेन्द्र देवांगन माटी





नई सृजन की बेला आई , आओ कुछ निर्माण करें ।
आगे बढ़ते जायें हम सब , भारत माँ का नाम करें ।।

 कदम रुके मत बाधाओं में  , संकट से हम नहीं डरें ।
लक्ष्य साध कर बढ़ते जाओ , मन में अपना धीर धरे ।।

करें खोज विज्ञान जगत में  , छू लें चाँद सितारों को ।
 सृजन करें ऐसे हम साथी  , माने सब उपकारों को ।।

मिटे गरीबी गाँवों के सब , ऐसे कोई सृजन करें ।
हाथों में हो काम सभी के,  भूखों से अब नहीं मरे ।।

पढ़ लिखकर सब बढ़ते जायें , जग में ऊँचा नाम करें ।
भेदभाव को छोड़ साथियों  , नहीं किसी से कभी डरें ।।


महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

बुधवार, 6 नवंबर 2019

प्लास्टिक छोड़ो : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"





प्लास्टिक को छोडो सब,देशी पत्तल अपनाओ।
डिस्पोजल को फेको सब,कागज का थैला बनाओ।।

गोबर खाद का उपयोग करो, पर्यावरण को स्वच्छ बनाओ।
माटी से बर्तन बनाओ,कचरा को मत फैलाओ।।

फल फूल और पत्ती, सबको तुम उपयोग में लाओ।
कूड़ा कर्कट छिलके को,गड्ढा बनाकर दफ़नाओ।।

छोड़ विदेशी चीजों को , मिट्टी का दीप जलाओ ।
भारत को खुशहाल बनाओ ,स्वच्छता को अपनाओ।।


                                         प्रिया देवांगन "प्रियू"
                                         पंडरिया छत्तीसगढ़

शामू 4 शरद कुमार श्रीवास्तव






अभी तक
शामू एक भिखारी का बेटा है और वह अपनी दादी के साथ रहता है । दूसरे बच्चो के साथ वह कचड़ा प्लास्टिक, प्लास्टिक बैग कूड़े से बीनता है । उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में आता है । एक बार उसका पिता उसको पढने का सपना दिखाता है शामू अपने पिता के साथ स्कूल के लिये गया था । स्कूल के बाहर खड़े गार्ड ने उन्हें रोका और बोला कि अंदर कहाँ जा रहे हो। साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहन कर स्कूल में आना। अगले सप्ताह एक नये उत्साह के साथ शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ स्कूल गया। गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया। बिहारी निराश हो कर शामू से बोला चल यहाँ से चल पढना तेरी किस्मत मे नहीं है । दादी उसे फिर आगे बढ़ने के रास्ते सुझाती है । लेकिन साथ के बच्चे उसे फिर पुरानी प्लास्टिक पन्नी लोहा खोजने के लिए लगा देते है । इन वस्तुओं को बीनते हुए वह एक गैरेज के बाहर पडे कचडे में लोहा बीनने लगता है । तभी गैरेज के वर्कर उसे पकड़ लेते हैं ।
आगे पढ़िए
थोड़ी देरमें उस गैरेज के वर्कर आ गये थे। गैरेज के मालिक ने कहा कि इसे कौन लड़का जानता है। सब चुप थे तब एक लड़का बोला मैं जानता हूँ। ये बिहारी नाम के एक भिखारी का बेटा है। मालिक बोला तब तो जरूर चोरी कर रहा होगा । इन लोगों से मेहनत तो की नहीं जाती है। शामू गरम होकर बोला बाबू हम भिखारी जरूर हैं लेकिन चोर नहीं हैं। हमें कोई काम नहीं देता है तब भीख माँगने के आलावा और क्या रास्ता रह जाता है। हम चंदू भैय्या के लिए पुरानी पन्नी , प्लास्टिक कचड़ा-प्लास्टिक और अब कचड़ा- लोहा जमा करते हैं इसी में दो पैसे हमे मिल जाते हैं। हमसे कोई मजदूरी भी नहीं कराता है। इतना कह कर वह रोने लगा। उस गैरेज के मालिक इशरत मियाँ थे। शामू की बात सुन कर कुछ द्रवित हो गए। उस दिन इत्तेफाक से एक हेल्पर लड़का नहीं आ रहा था। वह लड़का कई दिन से नहीं आ रहा था। गैरेज में एक हेल्पर की जरूरत थी। इशरत मियाँ ने शामू से पूछा कि काम करोगे? शामू ने तुरंत हाँ कर दी और इशरत ने उसे अपने गैराज मे हेल्पर के काम पर रख लिया।
पाठकगण नाराज हो रहे हैं कि एक तरफ देश में चाइल्ड लेबर के विरुद्ध आवाज़ उठाने की मुहीम चल रही है और दूसरी ओर शामू को पढ़ाई की सुविधा ना दिला कर उसे गैरेज में नौकरी करने के लिये भेज रहे हैं। देखिये मै भी चाइल्ड लेबर एब्यूज के विरुद्ध में आवाज़ उठाने वालों का पक्षधर हूँ । हमारा फर्ज है कि हम उन सभी बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षा की व्यवस्था कर सकें, जिनके माँ बाप उनके लिए उचित व्यवस्था नहीं कर सकते । लेकिन हकीकत की दुनिया में वास्तविकता कुछ और है । मै ऐसे चन्द बच्चों को जानता हूँ। जिन्होंने बहुत परिश्रम से पूरे जुनून से पढाई लिखाई की थी । लेकिन समुचित शिक्षा पूरी करने के बाद भी कोई उपयुक्त नौकरी / काम नहीं पा सके । वे अभी भी घरो में झाड़ू पोछा कर रहे हैं । कुछ तो वह भी नहीं कर पा रहे हैं । तालीमी शिक्षा उन्हें शर्म की जंजीर मे जकड़ कर रोटी से अलग रख रही है। वो किताबी शिक्षा किस काम की जो गरीब को दो वक्त की रोटी भी नहीं दिला पाये । अपंग अलग बना दे। आपका बहुमूल्य समय नहीं लेते हुए हम कहानी को आगे बढ़ाते हैं।
शामू अपने हँसमुख स्वभाव और भोलेपन के कारण सब लोगों का चहेता बन गया । उसे मेहनत काफी करनी पडती थी । घन चलाना पड़ता था । गाड़ियों के जैक लगाकर पहियो को निकालना लगाना पड़ता था । रिंच पाना टूल्स सब पहिचानना और मिस्त्री द्वारा मांगे जाने पर उन्हे देना आदि उसके काम थे । कुछ ही दिनो मे गैरेज के टूल्स औज़ार आदि के नाम का पता हो गया था। इस नये काम से बिहारी और शामू की दादी भी खुश थी । महीने में कुछ रुपये हाथों में आ जाते थे और शामू काम भी सीख रहा था।
शामू को यद्यपि अक्षरों का क्रमबद्ध तरीके से ज्ञान नही था । परन्तु उसकी चेष्टाएँ जारी थीं। साथ में काम करने वाले लड़कों ने उसे अक्षर ज्ञान करा दिया था। यह इशरत भाई की कृपा और आज्ञा से हुआ था। खाने की छुट्टी में एक लड़का राधे ने उसको अक्षर ज्ञान कराया ऐसा उसने शामू के बार बार अनुरोध किये जाने पर किया था। उसके बदले में शामू दादी के हाथ की बनी रोटी खिलाता था। शामू अक्षरों को मिला कर आवाज के हिसाब से पढ़ना लिखना सीख रहा था। जीवन ढर्रे पर आ गया था। दादी ने उसे सिखाया कि जो भी काम करो मेहनत और लगन से करो। इशरत भाई को उसने कई बार ग्राहक के छूटे रुपए- पैसे जो गाडी में मिलते थे वो ला कर देता था । इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे।।

शरद कुमार श्रीवास्तव 


शाही हज्जाम ( बारबर) शरद कुमार श्रीवास्तव






एक राजा था उसके सिर पर एक सींघ जैसी कोई चीज उग आई थी राजा को बड़ी शर्म महसूस हुई कि जब लोग इस सींघ के बारे जानेगे तो उसे जानवर समझेंगे. रानी तो उसका साथ ही छोड़ देगी. राजा ने इस बात को छुपाने के लिए  अपने बाल कई महीने तक नहीं कटवाऐ. राज पुरोहित ने जब देखा कि राजा ने काफी दिनो से बाल नहीं कटवाए है तो उसने राजा से कहा महाराज आप के सलोने चेहरे पर यह घास की तरह बड़े बड़े बाल बड़  मनहूसियत पैदाकर रहे है. राज्य पर कोइ विपत्ती आ स कती है अतः उससे बचने के लिये अपने बाल कटवा लीजिये.
जब दरबार के और लोगों ने भी ऐसा ही कहा तो उन्होने शाही हज्जाम को बुलवाया और अकले मे उसको कड़ी चेतावनी दे दी कि अगर उनकी सींघ की बात किसी से कहा तो उसे भयंकर दंड मिलेगा.
शाही नाई ने राजा के बाल काट दिये. अब राजा  हर समय टोपी पहने रहता था।  लेकिन  उस नाई की एक खराब आदत थी कि वह अपने पेट मे कोई बात पचा नहीं पाता था. किसी न किसी के सामने वह बात उगल जरूर देता था. नाई की हालत खराब थी. बिना बात बताए उसका पेट फूला जा रहा था. वह न खा सकता था न पी सकता  था और न सो सकता था. वह बहुत कोशिश करके भी उस रहस्यमय बात को भुला नहीं सका. वह नदी के पास गया तो उसे डर लगा कहीं कोई मछली या मछुवारा या नदी के घाट का धोबी उसकी बात सुन लेगा और राजा को बता देगा तो उसे भयंकर दंड मिलेगा. वह खेतों मे गया तो वहाँ भी उसे डर लगा कि कहीं कोई किसान न सुन कर राजा से उसकी शिकायत कर दे. रहस्यमय बात को नहीं कह पाने पर उसका पेट फूलता ही जा रहा था. अन्त मे वह जंगल चला गया और उसने   एक बड़े पेड़ के तने मे बने एक बडे छेद मे मुँह डाल कर कहदिया कि राजा के सिर पर सींघ है. यह कहने के बाद वह बहुत हल्का अनुभव कर रहा था. जब शाही नाई घर आगया और अपने को बहुत ही सामान्य अनुभव कर रहा था.
उसी रात एक तूफान आया और वह बड़ा पेड गिर गया. बढाई ने उस पेड़ के बड़े छेद वाले हिस्से को काट कर उस पर चमडा मढ़वाकर एक खूब बढ़िया नगाड़ बनवाया. शीघ्र ही जब बहुत सारे लोगों के बीच जब वह नगाड़ा बजाया गया तो उस नगाड़े के बजाने पर विचित्र सी धुन मे चिल्लाकर नगाडा बोला राजा के सिर पर सीघ है. किन ने कहा किन ने कहा? शाही हज्जाम ने. नगाड़ा ने हर बार यही बात जब दोहराई . राजा को पत चल गया. राजा ने शाही हज्जाम को बुवाया और पूछा कि जब मेरी यह बात जो तुम्हे छोड़ किसी को नहीं पता थी तो नगाडे को क़ैसे पता चला है. शाही हज्जाम ने राजा के सामने रोरो कर अपना बुरा हाल कर लिया और क्षमा माँगी तब राजा ने उसे क्षमा कर दिया. राजा को पता चल चुका था कि कोई रहस्य क तक रहस्य मय रह सकता है जब तक वह स्वयं से किसी और को नहीं कहता है.


                                 शरद कुमार  श्रीवास्तव

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना लक्ष्मी माता





शाम सबेरे उठ के माता , दीपक रोज जलाते हैं।
आशिर्वाद हमें दो माता , रोज द्वार पर आते हैं।।

छोटे छोटे बच्चे हैं हम , पूजा पाठ न आता है।
जो भी मन से पूजे माता , कष्ट दूर हो जाता है।।

करे सवारी उल्लू की जी, सबके भाग्य विधाता हो।
हे लक्ष्मी माँ नमन करूँ मैं, तुम ही जीवन दाता हो।।

जो भी पूजे सच्चे दिल से,  पास वही आ जाती हो।
कर्म करे जो अच्छे माता, उनको नहीं सताती हो।।

सुबह शाम जो पूजा करते, खाली झोली भरती हो।
भाग्य चमक जाता है उनका, कृपा जहाँ पर करती हो।।


             प्रिया देवांगन प्रियू
             पंडरिया  (कबीरधाम)
             छत्तीसगढ़

नरकासुर की कथा विकिपिडिया के सौजन्य से






 नरक चौदस के  दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी  सत्यभामा की मदद से  नरकासुर  का बध किया था उसकी  कहानी  हम विकिपिडिया के सौजन्य से प्रस्तुत  कर रहे हैं संपादित करें

प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी त्रास देने लगा। महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। उसने संतों आदि की 16 हजार स्त्रीयों को भी बंदी बना लिया। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसान दिया। लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया।  नरकासुर के बधाई के उपरान्त मुक्त की गई  स्त्रियों को उनके  घरों मे भगवान  श्रीकृष्ण  ने  वापस भेजा  लेकिन  उन स्त्रियों के  घर  वालों ने  श्रीकृष्ण  को उनके  साथ विवाह  करने के लिए  प्रार्थना की  जिसे  श्रीकृष्ण ने  स्वीकार किया   श्रीकृष्ण ने 8 और स्त्रियों  को  पटरानी  बनाया इस प्रकार  उनके  16008 रानियां थीं।  
 श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीए जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।