बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

शून्य से शिखर शतक : मंजू श्रीवास्तव की एक अनमोल प्रेरणा दायक रचना





नमन के पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी |  नमन ने सोचा कुछ छोटा मोटा काम करके घर मे मदद करूं|
दूसरे दिन वह एक ऑफिस मे गया| ऑफिस के मालिक ने नमन से पूछा क्या तुम्हें कम्प्यूटर आता है? नमन ने कहा, आता तो नहीं पर सीख लूंगा |
ऑफिस के मालिक ने कहा इतना समय तो नहीं है मेरे पास| नमन निराश हो गया | ऑफिस से निकलकर वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया | वह सेव का पेड़ था |
    बैठे बैठे उसके मन मे एक खयाल आया | उसने पेड़ से कुछ सेव तोड़े और घर घर जाकर सेव बेच आया | सेव ताजे थे| सबने खुशी खुशी खरीद लिये |उसे सौ रूपये मिले| बाजार जाकर फिर सौ रुपये के सेव खरीदे | इस बार सेव बेचने पर उसे डेढ़ सौ रूपये मिले | बड़ा खुश हुआ |फिर उसने सौ रूपये के सेव खरीदे और शाम तक ३०० रूपये कमा लिये|
धीरे धीरे उसका काम बढ़ने लगा और उसने एक छोटी दुकान खोल ली |
वह अच्छी किस्म के सेव लाता था और ग्राहकों से व्यवहार बहुत अच्छा था | इसलिये उसकी दुकान मे भीड़ लगी रहती थी |
छोटी दुकान से बढ़ते बढ़ते  नमन ने कई दुकाने बना लीं और कई सेव के बगीचे भी खरीद लिये  |
आज वह बहुत बड़ा व्यापारी बन चुका था | अब उसके पास कार बंगला सब कुछ था |
करीब १० साल बाद नमन उसी बगीचे के पास से गुजर रहा था जहां वह पहली बार पेड़ के नीचे बैठा था| कार रुकने की आवाज सुनकर बगीचे का मालिक बाहर आया | नमन को देखकर बहुत अचम्भा हुआ |
इसके पहले कि बगीचे का मालिक कुछ पूछे नमन ने खुद ही कहा साहब आज जो कुछ मैं हूँ सिर्फ आपकी वजह से |
बगीचे के मालिक ने कहा कि यदि आज तुम्हें कम्प्यूटर आता होता तो तुम ऑफिस बॉय ही बनकर रह जाते |
बच्चों कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता| मन मे हौसला होना चाहिये कुछ कर गुजरने के लिये |



                               मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

सब्जियों की पाठशाला शरद कुमार श्रीवास्तव






चौधरी कटहल सर कक्षा  मे आ गये थे  ।   लेकिन  क्लास  बिल्कुल  सब्जी मंडी  बना  हुआ  था ।  सर बोले शान्त हो  जाओ । परन्तु  कोई  भी  चुप  नहीं  हो  रहा  था  ।  सबसे  ज्यादा  शोर  हरी मिर्च  कर रही  थी  । वह  कह रही थी  कि  सब जगह उसका ही बोलबाला  है  ।  किसी  ने  उसको मुँह  में  डाल  लिया  तो सी सी करता  फिरेगा  , फिर  भी  कोई  भी सब्जी  उसके  बगैर  फीकी  है ।   कटहल सर जी  बोले  कि  इस  क्लास  का मानीटर कौन  है  ।    सब सब्जियाँ  बोले ही   जा रहीं  थीं  कोई  चुप होने  का नाम  नहीं  ले रहा था ।    तब कटहल  सर बोले  कि  चलो सब लोग  बारी बारी से अपने  अपने  बारे मे बताओ फिर  मैं  मानीटर  बनाऊंगा ।
कद्दू  भैया  लुढ़क  कर  बोले  : सर जी  पहले  आप  अपना  परिचय  तो दीजिए ।

   कटहल सर  बोले   मेरा  नाम  कटहल  है  ,  कुछ जगह   लोग  मुझे  पणस  तो कहीं  पर मुझे  गाछ पाठा यानी पेड़  का बकरा भी कहते है।  जो लोग  मांसाहारी  नहीं  है   वे लोग  मुझमे मांस का  स्वाद  ढूढते हैं ।   पका  हुआ  कटहल कहीं  कहीं  मिठाई  की  तरह  खाया  जाता  है  ।  हाँ  एक बात  और है! एक  ही  शक्ल सूरत  का  कटहल  दूसरा  नहीं  मिलता  है ।  यह कम रक्तचाप  के  लिए  बहुत  गुणकारी  होता है ।   फाइबर  भी प्रचुर मात्रा  में  मिलता है । कटहल सर  बोले मैने अपने  बारे  में  बताया  अब तुम लोगों  की  बारी  है ।

इस पर बैंगन  बोला  सर मानीटर  तो  मै बनूंगा  मेरे सिर  पर  पहले से ही ताज  भगवान  ने  दिया  है बैंगन  की  सब्जी  स्वादिष्ट  होती  है  ।   इसमे कैल्शियम  , फास्फोरस  , आइरन  होता है  और इसे खाने  से  अनिद्रा  दूर होती है  । 

 तब परवल बोला  बैंगन  तो  बादी बढ़ाता है  परवल को नियमित  खाने से बहुत  लाभ  मिलता  है  ।   यह दवा  का  मी काम करता है  ।   रोगी को  परवल का सूप अंदरूनी  कमजोरी  को दूर करने परवल  का सूप दिया  जाता है शोर वे दार और सूखी  सब्जी  दोनो बनाई जाती है ।  इसमे खोवा  भर के  बहुत स्वादिष्ट  मिठाई  भी  बनाई  जाती  है ।

अब फूल गोभी  का नम्बर  था । फूल  गोभी बोली  यद्यपि  मै प्रायः  सर्दियों की  सब्जी  हूँ परन्तु  बहुत  गुणकारी  होती  हूँ।  इसे कच्चा  भी  खाया  जाता  है  ।   लेकिन  अधिकतर  सूखी या रसेदार आलू और मटर के  साथ  बनाई जाती  है ।  गोभी  मुसल्लम भी  बड़े चाव से  खाई जाती है ।  गोभी खाने से यद्यपि  गैसें  बनती हैं  परन्तु  समान मात्रा मे गाजर  के  साथ  बनाने पर गैस बनने नहीं  पाती  है ।   तमाम तरह के  विटामिन  और  खनिज लवण  रहने से  फूल गोभी  दिल के लिये और तिल  को दूर करने  में  उपयोगी होती  है ।
पत्ता गोभी  से सर ने पूछा  तब उसने बताया  कि  वह बहुत गुणकारी  है  कैन्सर  तक मे लाभदायक  है  । एन्टी इन्फ्लेमेटरी   है  अल्माइजर को कम करता है  मोतियाबिंद  को रोकता  है। पेप्टिक  अल्सर , मोटापा  कम  करने  में विशेष  सहायक  है  चर्म  की  हिफाजत  करता  है।
सब अपनी  तारीफ  कर  रहे  थे  आलू से  नहीं गय। वह बोल उठा कि  आलू के  बगैर  तो तुम मे से अधिक सब्जियों   का काम  नहीं  चलता  । लगभग हर सब्जी  मे मुझे  डाला जाता है  ।    बच्चे  मुझे  चाव से खाते  हैं ।
करेला  आलू से  बोला  पड़ा  चुप रहो अपनी  नादानी  न दिखाओ आलू ज्यादा  खाने  से डायबीटीज  का खतरा रहता  है  ।   मुझमे  तो आलू नहीं  पड़ता  है ।  मै  कडुवा  जरूर हूँ, लेकिन  औषधीय  गुणों  से  परिपूर्ण  हूँ ।   करेला खाने से  डायबीटीज  नियन्त्रित  रहती  है  गुर्दे  साफ रहते हैं  ।  पेट के  विकार,  कीड़े,  अस्थमा  इत्यादि  मे काफी  लाभदायक है  ।
भिन्डी  बोली  आलू तो मेरी सब्जी  भे नहीं  पड़ता  है । भिंडी एक स्वादिष्ट सब्जी है जो स्वाद और पोषक तत्व दोनों में उच्च हैं। भिंडी विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर का एक अच्छा स्त्रोत हैं। भिंडी में कैल्शियम, पोटेशियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैंगनीज और फास्फोरस जैसे मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। भिन्डी कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कब्ज, एनीमिया, त्वचा रोग और संक्रमण के उपचार में इस्तेमाल किया जाता हैं।

कटहल  सर  ने समय पर ध्यान  दिया  और  कहा  कि  इसी तरह गाजर  खीरा लहसुन  प्याज टमाटर आदि   सभी  सब्जियाँ  गुणकारी  होती  हैं,  गाजर में  मौजूद बीटा -करेटिन रूखी  त्वचा  को  नर्म  बनाता  है  । खीरा तो बहुत लंबे समय से आंखों के आसपास के काले घेरों को दूर करने में उपयोग में लाया जा रहा है ।  लहसुन भी   उम्र  के  असर  को  कम करने में सहायक होता है । प्याज  और टमाटर  के  बगैर  शायद ही कोई  स्वाद  वाली  तरकारी  बनती हो  इसीलिए इनकी कमी कभी कभी  लोगों  को  बहुत खलती है ।   सब सब्जियाँ  अपनी  अपनी  जगह  बहुत लाभकारी  हैं।   इसलिये  बच्चों  को  चाहिये   कि वे  खूब  सब्जी  खायें ।  कटहल सर का पीरियड  समाप्त  हो  गया  और  उन्हें  बिना  मानीटर  चुने हुए  कक्षा  से जाना पड़ा ।।


शरद कुमार श्रीवास्तव


एक दुखद संदेश



बड़े दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि मंजू जी अब हमारे बीच नही है। प्रभु इच्छानुसार विगत 10 फरवरी को उनका स्वर्गवास हुआ है। 
उनकी निर्मल लेखनी ने उनके संपर्क में आनेवाले हर व्यक्ति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है । 
आशा करते है कि उनकी लेखनी आपके स्मृति पटल पर हमेशा अंकित रहेगी ।

आभार 

राजीव श्रीवास्तव (पुत्र)/ अन्जू निगम (पुत्री)







स्वर्गीया मंजू श्रीवास्तव जी नाना की पिटारी मे नियमित रूप से अपनी बालकथाओं के द्वारा जुड़ी रही। उनकी बालकथाएं प्रेरणा दायक रही है। उनके निधन पर शोक संतप्त " नाना की पिटारी" परिवार उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है 

शरद कुमार श्रीवास्तव 



सोने की चिड़िया : बेबी नाव्या कुमार







 पास के जंगल में  एक चिड़िया रहती थी।  वह सबकी मदद करती थी।  वह बहुत ही सुंदर यानि कि एक सोने के दिल वाली चिड़िया थी।  अपने कामों से वह अन्य पशु पक्षियों मे मेलजोल के संदेशों को पहुंचाती थी। एक बार एक देवी एक गिलहरी के रूप में धरती पर  यह देखने के लिये आई थी कि धरती पर सब ठीक ठीक है या नहीं ।  देवी ने उस चिडिया के बारे में बहुत कुछ सुना था।।  उसने उस चिडिया को परखने के लिए सोचा।  वह छुपकर चिन्टू बन्दर के पास गई और बोली कि सोन चिड़िया बहुत खराब है मेरा छुपा हुआ दाना चट कर गई है।  चिन्टू बोला कि तुम्हे कोई भ्रम हुआ है वह बहुत अच्छी है  वह बोला एक दिन मै पेड़ की एक टूटने वाली शाख पर खेल खेल में लटकने वाला था कि सोन चिड़िया ने देख लिया और चींचीं कर मुझे आगाह कर दिया और मै चोट खाने से बच गया।

वह गिलहरी फिर बन्टी खरगोश के पास गई और वहाँ भी उसने कहा कि सोन चिड़िया बहुत स्वार्थी है अपने अलावा वह किसी के काम नहीं आती है।. खरगोश कहीं तेजी से जा रहा था रुक गया और बोला नन गिलहरी बहन सोन चिड़िया बहुत ही अच्छा काम करती है वह जंगल के जानवरों की अकेली डाक्टर है उसदिन मुझे चोट लग गई थी तब वह गेन्दा के पत्तों की डाली लाई थी और मेरी मम्मी ने उसका रस मेरे जख्म पर लगाया और मै ठीक हो गया।. कुछ दिन पहले गज्जू हाथी को पानी मे भीगने के बाद छींक आने लगी तब सोन चिड़िया की लाई जड़ी का काढ़ा पीने के बाद वह बिल्कुल सही हो गया।

गिलहरी को अब विश्वास होगया था कि अच्छे-अच्छे कामो के चलते उस चिड़िया को सब सोन चिड़िया कहते हैं अतः संतुष्ट हो कर वहदेवी देवलोक वापस चली गई।





















नाव्या कुमार
कक्षा चार
रेयान अंतरराष्ट्रीय विद्यालय
रोहिणी दिल्ली 

त्रिलोक सिंह ठकुरेला की बाल कविता चिड़िया घर









चिड़ियाघर देखने शहर में
नन्हा सोनू ­ आया।
उसे पिता ने बड़े प्यार से,
केला एक दिलाया॥


रंग ­बिरंगी चिड़िया देखी,
देखा मोटू हाथी।
हिरण देख कर सोचा मन में,
खेलूँ बन कर साथी॥


शेर और चीता जब देखा,
तब थोड़ा घबराया।
मोर और बत्तखों ने उसके
मन को खूब लुभाया॥

पर सोनू जब लगा देखने,
बन्दर खड़ा अकेला।
दाँत दिखाता आया बन्दर,
छीन ले गया केला॥



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला 
बंगला संख्या-99, 
रेलवे चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड-307026 
जिला- सिरोही ( राजस्थान)

बसेरा : प्रिया देवांगन प्रियू








देखो माँ मैने आज अपना बसेरा बनाया ।
तिनका तिनका जोड़ जोड़ अपना घर बनाया।।
कभी भुख न रहने देती,खाना रोज लाती थी।
तुम नही खाती थी माँ , हमे रोज खिलाती थी।।
ठंडी गर्मी बरसात , इन सबसे बचाती थी।
कितनी मेहनत करती थी माँ ,अब समझ मे आया।
देखो माँ मैने आज अपना बसेरा बनाया।।


बरसातों में पेड़ो पर ,छाया तुम लाती थी।
जाड़े के दिनों में हमे , ठंड लगने से बचाती थी।।
छोटे छोटे बच्चे थे माँ , उड़ना हमे सिखाती थी।
कैसे जीना हमें चाहिए, राह नया दिखाती थी।।
देखो माँ मैने आज अपना बसेरा बनाया।
कितनी मेहनत करती थी माँ ,अब समझ मे आया।।







                          प्रिया देवांगन प्रियू
                          पंडरिया  (कबीरधाम)
                          छत्तीसगढ़
                          priyadewangan1997@gmail.com

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

मेरे घर प्यारा मंदिर :प्रभु दयालु श्रीवास्तव












































यह मंदिर कितना प्यारा है।
सुंदर है जग से न्यारा है।
भाण्डेश्वर धाम कहाता है।
शिवजी से इसका नाता है।

इनकी जय जय ,जय जय बोलो।
अपने अंतर के पट खोलो।
कल्याण तुम्हारा कर देंगे।
पल भर में सब दुख हर लेंगे।






    प्रभूदयाल श्रीवास्तव




गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

बसन्त पंचमी शरद कुमार श्रीवास्तव





बसन्त पंचमी त्योहार आया
बच्चो मे यह खुशियाँ लाया
चीबू भैया पहने शर्ट बसंती
माला दी की है फ्रॉक बसंती

सरस्वती पूजा संग ले आया
बसन्त पंचमी का वार आया
स्कूलो मे सबने खूब मनाया 
बच्चो मे ले उल्लास ये आया

बच्चे सब झुंडो मे घूम रहे हैं
नाच थिरक और झूम रहे है
हाथ मे लिये प्रसाद के दोने
मजे मे घूमे शहर के हर कोने



शरद कुमार श्रीवास्तव 

दोस्ती : श्रीमती मंजू श्रीवास्तव की बालकथा


























( श्रीमती मंजू श्रीवास्तव जी आजकल अस्वस्थ चल रही हैं  उनकी एक  पूर्व प्रकाशित कहानी  हम पुनः प्रकाशित कर रहे हैं।. नाना की पिटारी उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता है।)



यश और वीरू दोनो गहरे दोस्त थे | दोनो एक दूसरे के बिना रह नहीं पाते थे |
दोनो की फुटबॉल के खेल मे बहुत रूचि थी | यश  अपने खेल मे काफी  माहिर हो चुका था | कोई भी प्रतियोगिता हो हमेशा आगे ही रहता था |
वीरू थोड़ा संकोची स्वभाव का किशोर था | हर वक्त सोचने लगता कि यदि  हार गये तो क्या होगा? इसी कारण वह अन्य बच्चों से काफी पीछे था | यश उसे बहुत समझाता था कि अपनी सोच बदलो, आगे बढ़ने की कोशिश करो पर वीरू हिम्मत नहीं जुटा पाता था |
एक दिन वीरू  फुटबॉल मैच देख रहाथा | उसमे एक दुबला पतला लड़का बहुत अच्छा खेल रहा था |  बाद मे पता चला कि वह पोलियो से ग्रसित था पर अब बिल्कुल ठीक हो गया था |
अचानक ही वीरू के मन मे विचार आया कि वह लड़का जब इतनी हिम्मत जुटा सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता? यह विचार आते ही दूसरे दिन से ही उसने अभ्यास करना शुरु कर दिया |
   उसने कोचिंग जाना शुरू कर दिया और कोच की देखरेख मे अभ्यास शुरू कर दिया |कुछ ही दिनों मे उसके खेल मे काफी सुधार हो गया था |
अब वह फुटबॉल की छोटी मोटी प्रतियोगिताओं मे भाग लेने लगा था | यह देखकर यश बहुत खुश था |
उसने यश के साथ फुटबॉल मैचों मे जाना आरम्भ कर दिया था | कई पुरस्कार जीते |
यश भी उसका हौसला देखकर उसे प्रोत्साहित करता आगे बढ़ने के लिये |
आखिर वह दिन भी आगया जब वीरू  विश्व स्तर का खिलाड़ी बन चुका था |
वीरु यश के पास गया और बोला
मेरे दोस्त, यदि तुमने मझे प्रोत्साहित नहीं किया होता तो आज मैं जिस मुकाम पर हूँ, वहाँ नहीं होता | तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया |
यश बोला,मै तेरा दोस्त हूँ, शुक्रिया कैसा? तुझे सफलता की बुलंन्दियों  पर देखकर मुझे जो खुशी हो रही है उसे बयां नहीं कर सकता |
दोनो एक दुसरे से लिपट गये और खुशी के आँसू बह निकले |
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मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
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वाणी (दोहा छन्द). : डॉ सुशील शर्मा








वाणी में माँ शारदा, वाणी खिलती धूप।
वाणी नाद स्वरूप है ,वाणी ब्रह्म  अनूप।

वाणी से ही जानिए,लोगों का व्यवहार।
वाणी से पहचानिए,लोगों का आचार।

वाणी तो अनमोल है,इसको रखिये शुद्ध।
वाणी से ही बन गए,जाने कितने बुद्ध।

शब्द तीर से जब चुभें,रख दें सीना चीर।
शब्द सुमन से जब लगें,हरते सारी पीर।

वाणी संयम से मिटें,सारे कष्ट अपार।
मीठी बोली बोल कर ,जीतो तुम संसार।

कड़वी वाणी शत्रु दे,मीठी वाणी मित्र।
संयत वाणी से सदा,निखरे चाल चरित्र।



                    सुशील शर्मा

प्रिंसेज डाल और चूज़ा शरद कुमार श्रीवास्तव






सुबह सुबह प्रिन्सेज डाल को लगा कि  बालकनी  से  उसे कोई  पुकार  रहा है ।  वह बालकनी  में  आयी और जब  उसने इधर उधर देखा , तो उसे कोई  नहीं दिखा ।  फिर बहुत  धीमी  एक  आवाज  आयीं ' प्रिन्सेज डाल बिलेटेड हैप्पी  बर्थडे' ।  इस  बार  प्रिन्सेज डाल ने ध्यान  से देखा । बालकनी  के  गमले पर कबूतर का छोटा  सा चूजा उसे बधाई  दे  रहा  है ।  वह चूजा बोला  कि तुमने  मुझे  नहीं  बुलाया  लेकिन मैंने यहीं  से  तुम्हारा  जन्मदिन देख  लिया था । खूब रौनक  थी! तुम्हारे  जन्मदिन पर तुम्हारे घर तुम  जैसे तो बहुत सारे   बच्चे  आये थे ।  


प्रिन्सेज डाॅल बोली हाँ रूपम डाल, अनुश्री, गायत्री, वसुधा, सुयश  सहित  मेरे  क्लास के  बहुत सारे  बच्चे  आये थे ।  आशी,  शौर्य और  चीबू भैया  भी  आये थे  ।  मेरे  बाबा.दादी जी मौसी  जी भी  मौसा जी के  साथ  आए  थे ।   पता  है ! अब मै छह  साल की हो गई  हूँ ।  अब मै एक साल  बड़ी  हो गई  हूँ    


 



चूजा बोला  लेकिन तुम्हारे जन्मदिन  पर  रिदम नहीं  आया था?   प्रिन्सेज डाल ने  उससे  पूछा  कि  ये  रिदम कौन  है ?  मैं  तो उसे नहीं  जानती हूँ ।   कौन है वह और  तुम  उसे कैसे  जानते हो।   चूजे  ने  प्रिन्सेज डाल को बताया  कि  अरे वही जो  बूजो के  साथ  खेलता  है  और जिसके  साथ  बूजो ( कुत्ते के बच्चे  का नाम ) रहता  है  ।  मेरी मम्मी कहती  हैं  अपने दोस्तों  का नाम  जानना  चाहिये ।   मैं भी  तो उसको नहीं जानता था , लेकिन  मेरी  मम्मी   ने  मुझे  बताया  था ।   वो तो उड़ कर सब जगह  जाती  रहती  हैं  और सबको  पहचानती हैं ।  प्रिन्सेज डाल बोली मैं  उसे  जानती हूँ पर उसका नाम कभी  नही  पूछा  है । 

 

  


प्रिन्सेज डाल फिर  बोली ' पता है कि मेरे  जन्मदिन  पर छह स्टोरी वाला केक आया था ।  अब मै छह साल  की  हो  गई हूँ इसलिए ।  पहले  तो  हम सब बच्चे अपने  आप खूब  खेले ।   कोल्ड  ड्रिंक्स  और चिप्स टाफी  बिस्कुट खूब  खाया ।  फिर हमें  मजेदार खेल खिलाने एक  और अंकल  आये थे ।  हम सबने  खूब मजा किया था ।   उन अंकल ने हमें  प्राइज  भी दिया ।  सबसे ज्यादा  तो आशी और सुयश ने प्राइज पाये  थे।  दादी बाबा और नाना  जी  के आ जाने  से  बहुत  अच्छा  लग रहा था ।   हम लोगों  ने  खूब  डान्स  भी  किया था।  इसके  बाद मैंने  केक काटा था  ।  सब लोगों  ने हैप्पी  बर्थडे वाला गाना गाया था ।   मुझे  खूब  गिफ्ट्स मिले और हमने भी  सभी  बच्चों  को रिटर्न गिफ्ट्स भी  दिये ।  सचमुच  बहुत  मजा  आया 


   शरद कुमार श्रीवास्तव 



हंस और मूर्ख कछुआ (पंचतंत्र की कथाओं पर आधारित






एक सरोवर के पास बसता था हंसों का जोड़ा
रहता वहीं एक कछुवाा जो बातूनी था थोड़ा
पड़ा अकाल भयंकर भैय्या सूखे ताल तलैया
कछुआ बोला हसों से छोड़ें सरोवर हम भैया

हंस बोले हम उड़ जाये पर तुम कैसे जाओगे
सूखे ताल मे बिना दाना पानी के मर जाओगे
भले हंस थे सूखे ताल मे कछुआ छोड़ न पाये
भाग दौड़कर जुगत लगानेे लकड़ी खोज लाये

दोनो हसों ने अपनी चोंच से पकड़ी थी लकड़ी
कहा कछुए को जोर से बीच मे पकडो लकड़ी
बात न करना तबतक मन्जिल जबतक न आए
समझदार तुम हो अब दादा तुम्हे कौन समझाऐ.

बीच राह मे कुछ बालकों ने की हसों की बड़ाई
कितना चतुर हंस का जोड़ा खूब जुगत लगाई
कछुआ लगा उनको यह अपनी चुगत बताने
जैसे ही मुँह खोला उसने गिरा वह चारों खाने


शरद कुमार श्रीवास्तव