सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

हाथी मेरा साथी : संस्कृति श्रीवास्तव




एक गाँव में  एक औरत रहती थी।  उसका नाम सुकन्या था।  वह गन्ने की फसल उगाती थी। उसके  गन्ने  बहुत तंदुरुस्त और रसीले होते  थे।  उसकी  बिक्री  से उसके घर का खर्च चलता था ।  एक बार वह फसल कटवाने जा रही थी तभी उसके  नौकर ने कहा कि  खेत में  एक  हाथी घुस आया है और वह हमारे  गन्ने  खा रहा है ।

सुकन्या  खेत मे जाकर बोली कि  हाथी  महाराज  तुम  हमारे गन्ने  क्यों खा रहे हो?  इसी से तो हमारे घर का खर्च चलता है ।  हाथी ने कहा कि मुझें  माफ करना  मुझे  नहीं  पता था कि यह तुम्हारे  गन्ने  हैं और   तुम्हारे  घर  का खर्च इससे चलता है ।  मै देवलोक  का हाथी हूँ और भटक कर ग़लती से  तुम्हारे  गन्ने के  खेत में  आ गया था   गन्ने  रसीले  दिखे तो मै खुद  को  नहीं  रोक  पाया ।  अब  मै तुमसे माफी मांगता हूं ।   बदले मे मै तुम्हारी सहायता करने के लिए  तैयार  हूँ ।  तुम्हें   जब भी जरूरत  पड़े मुझे तीन  बार  बुलाना मै आ जाऊंगा।  इतना  कह कर  वह देवलोक का हाथी  उड़ गया ।

 एक बार  सुकन्या  के घर में  चोरी  हो गयी थी   जिससे  उसका  बहुत  नुकसान हो गया  था   उसके  घर  के काम रुक गये ।  वह देश मे कहीं   जाना  चाहतीं  थी ।   उसका जाना बहुत आवश्यक हो  गया तब  उसने देवलोक के  हाथी की याद आई और उसने को तीन  बार  आवाज  लगाई कि हे  देव लोक के हाथी आ जाओ।   जैसे ही  उसने तीन बार  आवाज लगाई  कि देवलोक का  हाथी  प्रकट  हो गया ।  वह बोला कि  बोलो तुमने मुझे  कैसे बुलाया  सुकन्या?

सुकन्या  ने हाथी को  अपनी  बात  बताई  कि उसके घर में चोरी हो गयी  और उसका बहुत नुकसान हो गया  और उसका देश  में  कहीं जाना ज़रूरी हो गया है  क्या तुम मेरी मदद  करोगे  ।  हाथी ने कहा कि बस इतनी सी बात है  मै तुम्हारा काम  चुटकियों मे कर दूँगा  लेकिन  तुम मुझसे  मुलाकात की बात  किसी  से मत करना वर्ना  आगे फिर  कभी  मै नहीं  आ पाऊंगा ।   सुकन्या  ने झट से  उसकी  बात  को  मान लिया ।  देवलोक के हाथी  ने सुकन्या  को अपनी  पीठ पर बैठा कर उसकी  मनचाही जगह घुमा  लाया।

देवलोक के हाथी  को दिया  वचन  सुकन्या  ने कुछ दिन तो ध्यान  दिया और उसने किसी से नहीं  कहा ।  परन्तु  उसके यह बात  किसी से नहीं कह  पाने से उसका पेट  फूलता  जा  रहा था और  फिर एक  दिन खुद  अपनी  दोस्तों के साथ  बात  करते समय  देवलोक के हाथी  वाली  बात  बता दी ।   अब  देवलोक के हाथी  को  दिया वचन  टूट  चुका था अतः  जब उसकी दोस्तों  ने  देवलोक के हाथी  को  बुलाने  के लिए  कहा  तब वह देवलोक का हाथी नहीं बुला पाई और न  वह हाथी आया  और कभी  नही आया।




संस्कृति  श्रीवास्तव
सुपत्री श्रीमती स्तुति  और श्री  संजीव  श्रीवास्तव
कक्षा  सात
ज्ञान  भारती  स्कूल
नई दिल्ली

*अमर वलिदानी चन्द्रशेखर आज़ाद* रचना पशुपति पाण्डेय



===================

*२७ फ़रवरी १९३१/ बलिदान दिवस* के अवसर  पर 

===================

बड़ी-बड़ी आंखें, बलवान शरीर, मझला कद, चेहरे पर स्वाभिमान और देश प्रेम की चमक, तनी हुई नुकीली मूछें, ऊपर से कठोर, अन्दर से कोमल, चतुर और कुशल निशानेबाज. इन शब्दों से माँ भारती के उस शेर की तस्वीर बनती है जिन्हें हम चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम से जानते हैं।


"आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा और आज़ाद ही मरूँगा" यह नारा था भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान देने वाले देश के महान क्रान्तिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आज़ाद का. चंद्रशेखर आजाद का जीवन ही नहीं उनकी मौत भी प्रेरणा देने वाली है. आजाद ने अंग्रेजों के पकड़ में ना आने की शपथ के चलते स्वयं को गोली मार ली थी. आजाद जब तक जिए आजाद रहे, उन्हें कोई कैद नहीं कर पाया।


महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा नामक स्थान पर पंडित सीताराम तिवारी के यहाँ हुआ था, आजाद बचपन में आदिवासी इलाके में रहे इसलिए बचपन में ही उन्होंने निशानेबाजी सीख ली थी।


जिस वक्त जलियांवाला बाग में अंग्रेजी हुकूमत ने नरसंहार किया उस वक्त आजाद बनारस में पढ़ाई कर रहे थे. सन् १९२१ में महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन चलाया तो आजाद भी सड़कों पर उतर गए. उन्हें गिरफ्तार भी किया गया लेकिन हर हाल में वह वन्दे मातरम और महात्मा गांधी की जय ही बोलते रहे।


जब आजाद को अंग्रेजी सरकार ने असहयोग आंदोलन के समय गिरफ्तार किया और अदालत में उनसे उनका परिचय पूछा गया तो उन्होंने कहा- "मेरा नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा पता जेल है।"


जब गांधीजी द्वारा वर्ष १९२२ में चौरीचौरा कांड में २१ पुलिस कांस्टेबल और ०१ सब इंस्पेक्टर के मारे जाने से दु:खी होकर असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर दिया गया. तब आजाद की विचार धारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए।


रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश खजाना लूटने और हथियार खरीदने के लिए ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया था।


बात ०९ अगस्त १९२५ की है. शाम का वक्त था. हल्का हल्का सा अंधेरा छाने लगा था, लखनऊ की ओर सहारनपुर पैसेंजर एक्सप्रेस आगे बढ़ रही थी. लखनऊ से पहले ही काकोरी स्टेशन पर १० क्रांतिकारी सवार हुए और ट्रेन को लूट लिया।


लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए आजाद, राजगुरु और भगत सिंह ने योजना बनाई. १७ दिसंबर, १९२८ को आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले, तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी।


फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर ०४-०६ गोलियां दागी. जब सांडर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया. इसके बाद लाहौर में जगह-जगह पोस्टर लगे कि लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है।


एक दिन उन्हें इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में उन्हें उनके मित्र सुखदेव राज ने बुलाया. किसी ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी. वो बात कर ही रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलियां दागनी शुरू कर दी. दोनों ओर से गोलीबारी हुई. चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में ये शपथ ले रखी थी कि वो कभी भी जीवित पुलिस के हाथ नहीं आएंगे. इसलिए उन्होंने स्वयं को गोली मार ली।


जिस पार्क में उनका निधन हुआ था आजादी के बाद इलाहाबाद के उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क और मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहे थे उसका नाम बदलकर आजादपुरा रखा गया।




पशुपति पाण्डेय 

                  🙏

मेरा नाम है बिल्ली रानी: एक बाल कथा

 


 एक बिल्ली बोलती जा रही थी

 – मेरा नाम है  बिल्ली रानी

मैं दिल्ली की महारानी

जिसने मेरी हँसी उड़ाई

उसकी तो खत्म कहानी

तोता बिल्ली का मोटा पेट देख कर बोला कि सबेरे सबेरे क्या खा कर आई हो मौसी

बिल्ली बोली चुहिया ने पुए दिये थे वो खाया फिर चुहिया का हिस्सा छीन के खाया, फिर चुहिया को पकड़ के खाया ।   तुम ज्यादा बोल रहे हो तुम्हे भी खा जाती हूँ और वह तोते को भी पकड़ के खा गई.

थोड़ी दूर पर बन्नी खरगोश ने देखा तो वह बिल्ली को देखकर खूब हँसने लगा  इतनी मोटी बिल्ली तो उसने पहले कभी देखी नहीं  थी एकदम गोलमटोल डिब्बे जैसी।

बिल्ली बोली-  मेरा नाम है बिल्ली रानी

मैं दिल्ली की महारानी

तूने मेरी हँसी उड़ाई

अब तेरी खत्म कहानी

बस वह खरगोश को मारकर  खा गई।

कुछ देर बाद  वह आगे चली तो एक बकरा मिला वह बोला अरे घमण्डी बिल्ली कहाँ चलीं।  यह सुनकर बिल्ली  बोली

 बिल्ली बोली सुन- 

 मेरा नाम है बिल्ली रानी


मैं दिल्ली की महारानी


तूने मुझे घमण्डी कहा


अब तेरी खत्म कहानी

 अब तो तुझे भी खा जाऊँगी.   बकरा अपनी सीगें लोहार के यहाँ से मढ़ाकर लौटा ही था उसे गुस्सा आ गया .  वह बोला  तूने कमजोर कमजोर को खाया है .  अब तेरा पाला मुझ से पड़ा है.  देखता हूँ  तू मुझको कैसे खाती है  .  बस वह  बड़ी दूर से और बड़ी जोर से दौड़कर आया और अपनी सीगं की टक्कर बिल्ली के पेट मे मारी कि बिल्ली का पेट फट गया .  चुहिया तोता और खरगोश बकरे को थैन्क्स कहते हुऐ अपने अपने घर चले गये.

 


 शरद कुमार श्रीवास्तव

//सुनो ध्यान से बेटियाँ//प्रिया देवांगन "प्रियू"

 


//सुनो ध्यान से बेटियाँ//

विकसित होता देश है, फिर भी छोटी सोच।
हाथ बढ़ा धन माँगते, करे नहीं संकोच।।
इर्द गिर्द हैं घूमते, जैसे उड़ते बाज।
रचे स्वांग मानव यहाँ, सर पर पहने ताज।।

लालच कितना मन भरा, दौलत रखे अमीर।
नहीं गरीबी देखते, रखे कभी ना धीर।।
सुनो ध्यान से बेटियाँ, बदल रहा परिवेश।
हो गर अत्याचार तो, दर्ज करो तुम केश।।

कलयुग का यह दौर है, सभी चटाओ धूल।
जिनके मन में मैल हो, चुभे उन्हें भी शूल।।
कितने राक्षस घूमते, करते माँग दहेज।
तुम कलयुग की बेटियाँ, बनो सूर्य सा तेज।।

करे नौकरी बेटियाँ, भरती गगन उड़ान।
हैं लक्ष्मी का रूप वे, उनको दो सम्मान।।
स्नेह मिले माँ बाप सा, ऐसी हो ससुराल।
ये बेटी है या बहू, पूछे लोग सवाल।।

// रचनाकार //

प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


//बसंती रंग //प्रिया देवांगन "प्रियू" की छत्तीसगढी कविता



लगे हे मौर आमा मा, बसंती रंग निक भाथे।
सुनाथे कोयली कुहकी, धरा मधुमास हा आथे।।
बइठ के डार मा भौंरा, करे रसपान फुलवा के।
मगन हो नाचथे तितली, अगासा रंग बगराथे।।

पपीहा तान जब छेड़ै, मिलन बर नैन हर तरसै।
पिया आही इहाँ जोही, अहा! बड़ मोर मन  हरसै।।
दिखाये रात दिन सपना, घुमाहूंँ संग मा तोला।
नहीं संदेश हर आये, विरह के नीर हा बरसै।।

गहूंँ हर झूमथे सुग्घर, दिखे जस सोन के बाली।
हँसे ये मेड़ के परसा, फुले हे रंग ये लाली।।
मटर अरसी चना सरसों, धरा शोभा बढ़ाथे जी।
गिरे ये फूल परसा के, सजाथे फाग के थाली।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

"मेरी बातें" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



छोड़ चलो तुम अहंकार को, बनो नेक इंसान।
सदा सत्य मीठी वाणी हो, प्राप्त करो सम्मान।।
आज जमाना सुंदरता का, यहीं लगाते ध्यान।
चन्द्र तेज सा मुखड़ा जिनका, खूब उन्हें अभिमान।।

चार दिनों का जीवन सब का, कभी छाँव अरु धूप।
उम्र ढलेगी वृद्धावस्था, ढल जाएगा रूप।।
पढ़े लिखे मानव हैं सारे, फिर भी कैसी सोच।
गोरा मुखड़ा मन को भाये, काले से संकोच।।

नहीं सिखाती है संस्कृति ये, मानव करना भेद।
भाईचारा प्रेम जगाओ, पढ़ो सभी तुम वेद।।
मत भागो तुम इसके पीछे, रहे कभी ना यार।
हाथ सभी मलते बैठोगे, होगा दिन बेकार।।

अगर मिले जी सच्चा साथी, ग्रहण करो तुम ज्ञान।
ज्ञान बिना इस माटी तन का, नहीं बनै पहचान।।
गर संस्कार नहीं जीवन में, रंग रूप बेकार।
सुनो ध्यान से मेरी बातें, खुशी मिलै भरमार।।



रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


प्रिया देवांगन प्रियू की छत्तीसगढी रचना "संदेशा"



तन माटी के पुतरा संगी, माटी मा मिल जाथे।
कतको मनखे सज धज लै जी, बन के राख उड़ाथे।।
देह भीतरी साँस चलत ले, माया मोह बंँधाथे।
उड़े जीव बन पंछी मैना, कहाँ सँदेशा आथे।।

जनम धरे हे मानुष जिनगी, भोग लाख चौरासी।
कोनों ईर्ष्या द्वेष जगाये, कोनो हर सन्यासी।।
करव भजन शिव राम चन्द्र के, इही संग मा जाथे।
पाप पुण्य के लेखा जोखा, जम्मो इहें गिनाथे।।

लाख जतन कतको कर ले जी, हावय कंचन काया।
छिन भर मा जब सांँस रूकथे, छोड़े देह किराया।।
मया पिरित के डोर फँसे हे, जइसे मकड़ी जाला।
करम धरम ला देखत रहिथे, बइठे ऊपर वाला।।

बिना नाम के जनम धरे हव, सुग्घर नाम बनावव।
खाली हाथ सबो ला जाना, भगवन ध्यान लगावव।।
का राखे हे देह म संगी, पंच तत्व मिल जाथे।
कतको मनखे सज धज लै जी, बन के राख उड़ाथे।।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बाल रचना भैया की कार : वीरेन्द्र सिंहबृजवासी

 

    


बंद   हुई    गाड़ी     में   भैया,

नित        लगवाते      धक्का,

चार कदम चलकर रुक जाते,

चारों        उसके       चक्का।


सुखा- सुखाकर सभी पसीना, 

बार     -     बार      धकियाते,

इंजन की  निस्तेज  चाल  को,

देख    -   देख      खिसियाते।


सोहन  तू  हिम्मत   मत   हारे,

गोलू      ज़ोर       लगा       रे,

बोल  गई  यदि  एक  बार  तो, 

होंगे           वारे     -      न्यारे।


कल्लू,   मल्लू,  धक्का   मारो,

रखकर         दूर        पजामी, 

चालू    होगी    इसमें   तुमको, 

शंका         है           सरनामी  ।


ज़ोर   लगाकर  सबने  अपना,

दूर         तलक         दौड़ाया,

बोला  जब  गाड़ी   का  इंजन,

सबने         हर्ष          मनाया ।


बैठाकर   भैया    ने     सबको,   

चक्कर        एक        लगाया,

मेहनत का  फल  होता  मीठा, 

सबको       यह      समझाया।

         




              वीरेन्द्र ब्रजवासी

              9719275453

                    ----------

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

तितली रानी बालगीत

 





"तितली रानी"

देखो तितली रानी आयी।
नील गगन में पँख फैलायी।।
नीली पीली भूरी काली।
कुछ तितली हैं कितनी लाली!!

छोटी छोटी आँखें होती।
इन आँखों से स्वप्न सँजोती।।
सुंदर सुंदर डाली डाली।
और कभी लगती मतवाली।।

पुष्प रसों का सेवन करती।
तनिक पेट अपना वह भरती।।
मीठी मीठी बोले बानी।
सुनो ध्यान से सभी कहानी।।

स्पर्श करो तो वह डर जाती।
नाखुश होकर फिर उड़ जाती।।
तितली रानी बड़ी सयानी।।
दिनभर करती है मनमानी।।




रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

पार्थ गुप्ता सुपुत्र अंजू जैन गुप्ता की रचना







पार्थ गुप्ता सुपुत्र अंजू जैन गुप्ता
कक्षा 1
प्रेसीडियम स्कूल 
गुरूग्राम
 

संपादक की डेस्क से

 



हिन्दी मे बालसाहित्य का सृजन और प्रसारण के कार्य मे योगदान,"नाना की पिटारी"  04/02/2014 से कर रहा है ।    अंतर्जाल पर इसे छोटे बच्चों के  लिए पत्रिका का  स्वरूप  दिया गया है  ।   यह पत्रिका नवम वर्ष  से निकल कर दशम वर्ष मे प्रवेश कर  रही है  ।   इस पत्रिका को कोई  भी व्यक्ति विश्व  में  कहीं  भी,   गूगल  सर्च इंजन  मे हिन्दी अथवा अंग्रेजी  में 'नाना की  पिटारी' Nana Ki Pitari  लिख कर  पत्रिका अंतर्जाल  पर  प्राप्त  कर  सकता  है।

 ' नाना  की पिटारी'  पत्रिका  ने  बालसाहित्य के  लेखन और  प्रसारण  के लिए   बहुत  काम  किया ।  समय-समय पर विभिन्न  आदरणीय  लेखको और  कवियों जैसे डाक्टर प्रदीप शुक्ल, पशुपति पाण्डेय, सुशील शर्मा, श्री शादाब आलम ,वरिष्ठ साहित्यकार प्रभुदयाल श्रीवास्तव, महेंद्र सिंह देवांगन माटी (स्व) , वीरेन्द्र सिंह बृजवासी ,सुश्री अंजू जैन, प्रिया देवांगन प्रियू,,श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव, श्रीमती मिथिलेश शर्मा, श्रीमती अर्चना सिंह जया आदि उल्लेखनीय हैं। इन सबों का मै आभार प्रकट कर रहा हूँ, इनके उत्कृष्ठ  बालसाहित्य  जैसे बाल कविताओं, बाल  कथाओं ,   पहेलियों और   चुटकुलों  को नाना की  पिटारी ने   आपके समक्ष प्रस्तुत  किया  है ।  'शामू' धारावाहिक लम्बी कहानी,  प्राचीन  विश्व  के  सात अजूबे ,  नवीन  विश्व  के  सात अजूबे भी अपने नन्हे मुन्ने बच्चों  के  समक्ष प्रस्तुत किया है।  पेरिस का  इफेल टावर  दिखाया  और कभी  बर्लिन की  दीवार तो कभी जैसलमेर के रेगिस्तान  की सैर  कराई ।   हमारे  महापुरुषों, हमारे पूर्वजों  के  बारे  में भी  बताया ।  

नाना की पिटारी के प्रवेशीय  वर्षों मे  एक ज्ञान वर्धक,  बाल मनोरंजक    बाल कथाओं  की प्रिन्सेज डॉल नामक  21( फेरीटेल्स) की एक सीरीज प्रकाशित  की थी ।   तत्पश्चात उन्हे  एक रोचक  पुस्तक को  दो भागों  में   ताकि  बच्चे  बिना  बोझ समझे स्वयं  उठा कर  पढ़ सके, अलग  से पुनः मुद्रित और प्रकाशित  हुई ।    आपकी इसी पत्रिका से संग्रहित कर अपनी बालकविताओं को एक रंगीन  आकर्षक  पुस्तक  "चीकू आशी पीहू इन्नू के बालगीत "  का रूप  देकर  विगत वर्ष मे  प्रकाशित  कराया।


यह पत्रिका के प्रकाशन का दशम वर्ष है आशा है सदैव की तरह इस वर्ष भी आपका भरपूर सहयोग प्राप्त होगा


धन्यवाद 


शरद कुमार श्रीवास्तव 


संपादक