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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

डॉ प्रदीप शुक्ला की बालकविता :आदमघर










झाँक रही नन्ही सी चिड़िया 

घर के अन्दर ऐसे 

चिड़ियाघर में झांकें हम 

नन्ही चिड़ियों को जैसे 



बड़े जानवर मगर भला 

क्यों धीरे धीरे चलते 

चलते क्या बस हौले हौले 

यहाँ से वहाँ सरकते 



छोटे से दड़बे में जाने 

कैसे ये रह लेते  

साँस छोड़कर वही साँस 

वापस फिर से ले लेते  



मन चाहा आकाश नापने 

का सुख ये क्या जानें 

इतना बड़ा शरीर भला 

ये कैसे उड़ें उड़ानें 



धन्यवाद भगवान तुम्हारा 

मुझको पंख लगाया  

इस दड़बे के बंधन से 

मुझको आज़ाद कराया 



पर इनके संग तुमने जाने 

क्यों की नाइंसाफ़ी

बड़े जानवर छोटे घर में 

जगह नहीं है काफ़ी 



' आदम घर ' को देख के मेरा 

मन अजीब सा भैय्या 

ऐसा ही कुछ मन में बोले 

बैठी हुई चिरैय्या.



                                  डॉ. प्रदीप शुक्ल 

  

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