रामनवमी का त्योहार देश भर मे बड़ी धूमधाम से मनाया गया . इस दिन भगवान रामचन्द्र का जन्म दिन के बाारह बजे हुआ था..
गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस मे श्री रामचन्द्र जी के जन्म को कुछ इस प्रकार से वर्णित किया है.
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता .
अर्थात चारो हाथो मे शंख चक्र गदा धनु लेकर भगवान रााम काजन्म हुआ माता की प्रथनाा पर वह शिशु बनकर रोने लगे. भगवान राम को भगवान विश्नू का अवतार मानते है जो धरती पर रीवण और उस जैसी तमाम आसुरी शकक्तियों के नाश के लिये हुआ था. मानव जन्म लेकर. भगवान मानव की मर्यादा का प्रतीकरूप बनकरमर्यादा पुरुषोत्तम राम कहलाऐ.
भगवान राम का जन्म हर वर्ष के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को नवरात्रि के तुरंत बाद मे मनाते हैं श्री राम, अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ और उनकी बड़ी रानी कौशल्या के पुत्र थे । दशरथ की बाकी दो रानियों केकयी और सुमित्रा से तीन पुत्र क्मशः लक्षमण भरत शत्रुघन थे. भगवान राम इन सबमे सबसे बड़े थे . राजा दशरथ की छोटी रानी केकई स्वयं बहुत बहादुर थी एक बार राजा के रथ का पहिया का धुरा निकल गया उसी समय रानी ने धुरे की जगह उंगली डाल कर राजा के रथको संभाल लिया था राजा ने उनसे कुछ वरदान ( गिफ्ट) माँगने को कहा तब रानी ने कहा समय आने पर माँग लूंगी। बाद मे जब राजा दशरथ ने राम को अपने उत्तराधिकारी के रूप में राम को राज्य सौंपना चाहा तो महारानी कैकेई ने अपनी दासी मन्थरा के कहने पर राजा से अपने पुत्र भरत के लिये सिहासन और राम चन्द्र जी के लिये चौदह वर्षों का बनवास माँग लिया । उसके बाद पुत्र बिछोह में राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए और राम को बनवास जाना पड़ा जहां उन्होंने असुर रावण का वध किया ।
यह सब दैव रचित था ताकि राम आसुरी शक्तियों का नाश कर सकें।।
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