छुक छुक करती आती रेल ,
छुक छुक करती जाती रेल ।
चिंटू पिंटू मोनू सोनू
दौड़ लगाये खेले खेल ।
पटरी पर है चलती रेल ,
यात्रियों को भरती रेल ।
इस शहर से उस शहर तक ,
सबको भर ले जाती रेल ।
सौ सौ डिब्बों वाली रेल ,
कभी ना रहती खाली रेल ।
दौड़ लगाती खूब तेजी से,
जल्दी से पहुँचाती रेल ।
साफ सुथरा अब रहती रेल ,
पंखा एसी चलती रेल ।
कचरा फेंके जो डिब्बे में,
उसको तो पहुँचाती जेल ।
चुन्नू मुन्नू चढ़े रेल ,
दिनभर खेले अपना खेल ।
यात्रियों का पेलम पेल ,
एक दूजे से होये मेल ।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया (कबीरधाम )
छत्तीसगढ़
बहुत सुंदर रचना बधाई हो
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