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मंगलवार, 27 अगस्त 2019

डॉ सुशील शर्मा के राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत का काव्य रूपांतरण : श्री राधा वंदना




श्री राधा वंदना
(राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत का काव्य रूपांतरण )

डॉ सुशील शर्मा

मुनि गण वन्दित शोक निकन्दित।
मुख मंदित मुस्कान प्रलंबित।
भानु नंदनी कृष्ण संगनी।
प्रभु मन बसती राजनंदनी।
    चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
    भक्ति का अनुगामी हूँ।
    कृपा कटाक्ष करो हे माता
    मैं मूरख खल कामी हूँ || 1 ||

वृक्ष वल्लरी मध्य विराजीं।
मंदित मुख मुस्कान से साजीं।
सुंदर पग कर कमल तुम्हारे।
सुख ,यश ,धर्म ,दान के धारे।
     चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
    भक्ति का अनुगामी हूँ।
    कृपा कटाक्ष करो हे माता
    मैं मूरख खल कामी हूँ || 2  ||

श्री नंदन को बस में करके
बाँकी भृकुटि में रस भरके
सहज कटाक्ष की बर्षा करतीं।
हे जगजननी दुःख को हरतीं।
         चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ || 3  ||

चम्पा पुष्प दामनी दमके।
दीप्तमान आभा सी चमके।
शरदपूर्णिमा सी तुम उज्जवल।
शिशु समान तुम नेहल कोमल।
       चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||4||

चिर यौवन आनंद मगन तुम।
प्रियतम की अनुराग अगन तुम।
प्रेम विलास कृष्ण आराधन।
रास प्रिया तुम अति मन भावन।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||5||

शृंगारों के भाव से भूषित।
धीरज रुपी हार विभूषित।
स्वर्ण कलश से अंगों वाली।
मधुर पयोधर धर मतवाली।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ || 6 ||

कमलनाल बाहें अति सुन्दर।
नीले चंचल नेत्र समंदर।
सबके मन को हरने वाले।
मुग्ध आप पर कान्हा काले।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||7 ||

स्वर्णमाल से कंठ सुशोभित।
मंगलसूत्र कंठ में शोभित।
रत्नों से आभूषित परिवेश।
दिव्य पुष्प संग सजे हैं केश।
       चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||8 ||

पुष्पमाल शोभित सुंदर कटि।
मणिमय किंकण रत्नजटित नटि।
स्वर्णफूल झंकार प्रलम्ब।
स्वर्ण मेखलाकार नितम्ब।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||9||

नूपुर चरण वेद उच्चारित।
मन्त्र सभी तुम पर आधारित।
स्वर्णलता से अंग लहरते।
नीलकांत तुम संग विचरते।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे।
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता।
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||10 ||

पारवती लक्ष्मी से वन्दित।
शारद इन्द्राणी से पूजित।
चरण कमल नख ध्यान जो धारित।
अष्टसिद्धि है उसको पारित।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे।
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता।
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||11 ||

सब यज्ञों की आप स्वामिनी।
स्वधा ,क्रिया सब देव दामनी।
तीनों वेद आपको गाते।
तीनों देव आपको ध्याते।
        चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे।
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता।
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||12 ||

यह स्तुति माँ आप हितार्थ।
दया दृष्टि से माँ करो कृतार्थ।
नाश करो संचित कर्मों को।
प्रेरित हो मन सत्कर्मों को।
       चरणों में माँ पड़ा हूँ तेरे।
        भक्ति का अनुगामी हूँ।
        कृपा कटाक्ष करो हे माता।
        मैं मूरख खल कामी हूँ ||13 ||

शुक्ल पक्ष की अष्टमी ,बन राधा का भक्त।
पाठ करे जो नर सदा ,राधा पग अनुरक्त।।14।।

अष्ट सिद्धि उसके मिले ,कृष्ण बने अनुकूल।
राधा कृपा कटाक्ष से ,मिटते जीवन शूल।।15।।

माँ राधा के चरण में ,है अनुरक्त सुशील।
अभयदान माता करो ,दिव्य लेखनी शील।।16।।

*।।आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।।*

सोमवार, 26 अगस्त 2019

मेरी यूरोप की यादगार यात्रा





टिटलिस की पहाड़ियों से वापस आकर ज्यूरिख के एक भारतीय रेस्तरां मे भोजन के लिए ले जाया गया जहां हम टूरिस्ट के लिए शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की व्यवस्था थी।  तत्पश्चात रात्रि कालीन विश्राम करने के लिए एक अलग होटल मे हमारे टूर संयोजक ले गये।   उस होटल मे आराम करने के बाद और सबेरे के नाश्ते के बाद हम आगे की यात्रा पर निकले दिन था 3 जून 2018 ।.   इस दिन केलिए यात्रा दल की टीमें पृथक पृथक हो गईं थीं।  एक टीम ज्यूरिख मे रुक गई  स्थानीय भ्रमण के लिये और  दूसरी टीम ने यूरोप के सबसे ऊंचे  पर्वत की बर्फीली श्रंखला का आनन्द उठाने केलिए निकल पड़ी।

Jungfraujouch की दुरूह पहाड़ियों पर वर्ष 1912 के पश्चात सैलानियों के लिये चढ़ाई आसान वहाँ पर बिछाई गई रेलवे लाइन के कारण संभव हो पाया है। लगभग 11500 फिट की एकदम खड़ी ऊँचाई पर बना इसका रेलवे-स्टेशन विश्व मे यान्त्रिकी के क्षेत्र में अजूबा ही  है।. भारत मे दार्जिलिंग का रेलवे स्टेशन भी लगभग 7500 फिट  ऊँचाई पर है और वह खड़ी ऊँचाई पर भी नहीं है।   Junghfrajouch  स्टेशन पर जाने की यात्रा टनेलस्  गहरी खाईयों बर्फीली ग्लेशियर के बीच से होती हुई बहुत रोमांचक है ।. रेल की पटरियां विशेष रूप से रेल के पहियों के साथ इन्टरलॉकिंग सिस्टम से बंधी हुई होती हैं जो ट्रेन को खड़ी  ऊचाईयों तक ले जाती है।

इस स्टेशन पर एक  बड़ा रेस्टोरेंट और एक  पोस्ट आफिस भी है



शरद कुमार  श्रीवास्तव 






महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना : किशन कन्हैया





किशन कन्हैया
(गीत  -- सार छंद)

किशन कन्हैया रास रचैया , सबको नाच नचाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा , दौड़ी दौड़ी आये ।।

बैठ डाल पर मोहन भैया,  मुरली मधुर सुनाये ।
इधर उधर सब ढूँढे उसको , डाली पर छुप जाये ।।

मधुर मधुर मुरली की तानें , सबके मन को भाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा,  दौड़ी दौड़ी आये ।।

छोटा सा है किशन कन्हैया  , नखरे बहुत लगाये ।
उछल कूद करता हैं दिनभर , सबको बहुत सताये ।।

हरकत देख यशोदा मैया , बहुते डाँट लगाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा  , दौड़ी दौड़ी आये ।।

चुपके चुपके घर पर आते , माखन मिश्री खाये ।
गोप ग्वाल सब पीछे रहते , लीला बहुत रचाये ।।

लीला धारी कृष्ण मुरारी , कोई समझ न पाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा  , दौड़ी दौड़ी आये ।।


महेन्द्र देवांगन "माटी" (शिक्षक)
पंडरिया  (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

मेढकी की शापिंग : शरद कुमार श्रीवास्तव








कहा मेढकी ने मेढक से
जाना है बाजार
पर्स निकालो दे दो मुझको
रुपए दस हज़ार

बनारसी साड़ी लेनी है  मुझको
झुमका बरेली वाला
नेलपालिश और लिपस्टिक
है लाना चश्मा काला
शापिंग करने जाना माॅल में
जल्दी निकालो गाड़ी
मेकअप सारा व्यर्थ जायगा
बरबाद मेहनत सारी

मेढक बोला भागदौड़ में हुए
रुपये खत्म हमारे
अब तो सारे बैंक बंद होगये
ठप एटीएम सारे

शरद कुमार श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना : रक्षा बंधन




आ या है त्यौहार , रक्षाबंधन का आज।

भाइयों के सिर पर है , खुशियों का ताज।।

खिल उठी है मन में , खुशी की कलियाँ।
महक रही है आज ये , घर संसार और गलियां।।

मीठे मीठे पकवानो की , महक मन में आई है।
राखी से बहना , अपनी थाल सजाई है।।

वचन मांगती भाई से , मुस्कुराकर आज।
हमेशा पूरी करना मेरी , छोटी बड़ी काज ।।


प्रिया देवांगन प्रियू
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़

अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव की प्रस्तुति : क्रिकेट मैच







गोलू     बहुत   तैय्यारी से      क्रिकेट की किट लेकर 

सफ़ेद ड्रेस      पहिन    कर    उत्साह से घर से गया 

था।     आज उसके      स्कूल का मैच   नेशनल स्कूल 

से था  उसे इस मैच को लेकर बड़ा उत्साह था। 

खेल     के मैदान पर पहुँच कर     उसे  पता चला 

कि      दोनों टीमों के      काफी सदस्य    सर्दी जुकाम 

बुखार आदि से   पीड़ित हो गये हैं अतः मैच रद्द  हो गया है।

उसका  सारा उत्साह ठण्डा हो गया और घर पहुँचने पर

किट एक ओर फेंक दुःखी होकर सोफे पर बैठ गया ।

मम्मी ने देखा     तो पास आकर पूछा, क्या हुआ बेटा ?

आप     इतनी जल्दी     कैसे आ गये   और मूड क्यों 

ख़राब है ?   गोलू जी बोले, दोनों टीमो के बच्चे बीमार है 

अतः मैच रद्द हो गया। 

मम्मी के पूछने से      गोलू ने बताया    उन बच्चों ने 

स्कूल के     बाहर गन्दी चाट    खायी थी    और छोटी 

छुट्टी (अवकाश )     में बरसते    पानी में खेले भी थे। 

वे लोग टिफिन खाने से     पहले साबुन से 

अच्छे से हाथ    भी नहीं धोते है।   अब बात मम्मी जी 

की समझ में आ गयी थी।     उन्होंने       गोलू जी की 

खूब तारीफ की      और उनको        खूब प्यार किया 

क्योकि गोलूजी ने बाकी      बच्चों की तरह   गन्दे काम 

नहीं किये थे और   अपनी मम्मी का कहना माना था।


                        अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव 
                         कल्याण, मुम्बई 


प्रकृति को बचायेंगे रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"









एक एक पेड़ लगायेंगे , प्रकृति को बचायेंगे।
पेड़ पौधे लगाकर , शुद्ध हवा सब पायेंगे ।।
पौधे सभी  लगायेंगे , ताजा ताजा फल खायेंगे  ।
सेहत अपना बनायेंगे , सादा  जीवन अपनायेंगे।।

सोनू मोनू चिंटू पिन्टू , सब मिलकर पेड़ लगायेंगे ।
रोज डालेंगे पानी उसमें , प्रकृति को बचायेंगे।। 
चारों तरफ घेरा लगाकर  , गाय बकरी से बचायेंगे। 
क्यारी बनाकर मिट्टी ड़ाले , नये नये पौधे  लगायेंगे।।

प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया  (कबीरधाम) 
छत्तीसगढ़ 

रसीले चुटकुले





1 राजू — नमन मै कभी झूट नही बोलता हूँ.
नमन — अभी तुम कल ही रामू के आने पर कह रहे थे
कि उससे कह दो कि तुम कहीं बाहर गये हो
राजू — मै झूट नहीं बोलता हूँ लेकिन तुम्हे बोलने की
मनाही नहीं है.

2 लड़का दुकानदार से- यें बन्दर की फोटो कितने की है?
दुकानदार चुप
लड़का फिर से- ये बन्दर की फोटो कितने की है?
दुकानदार फिर चुप
लड़का- अरे सुन नही रहे हो , बताओ ना यह बन्दर वाली फोटो कितने की है?
दुकानदार-ये फोटो नहीं आईना है.

3 रमेश अपने दार्शनिक मित्र से अरे इस फटी मच्छरदानी मे पाइप क्यो लगा रहे हो.
मित्र ताकि एक सिरे से मच्छर आयें तो दूसरी तरफ निकल जाएं.

4 एक अंग्रेज ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा: “भारतीय स्त्रियाँ हाथ क्यों नहीं मिलाती हैं .
स्वामी विवेकानंद जी ने जवाब दिया: “क्या आपके देश में कोई साधारण व्यक्ति आपकी महारानी से हाथ मिला सकता है???”
अंग्रेज: “नहीं”
स्वामी विवेकानंद: “हमारे देश में हर स्त्री एक महारानी होती है।”


                               संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव 

महेन्द्र देवांगन माटी की रचना चिड़िया की पुकार




























देख रही है बैठी चिड़िया,  कैसे अब रह पायेंगे ।
काट रहे सब पेड़ों को तो , कैसे भोजन खायेंगे ।।

नहीं रही हरियाली अब तो , केवल ठूँठ सहारा है ।
भूख प्यास में तड़प रहे हम , कोई नहीं हमारा है ।।

काट दिये सब पेड़ों को तो , कैसे नीड़ बनायेंगे ।
उजड़ गया है घर भी अपना , बच्चे कहाँ सुलायेंगे ।।

चीं चीं चीं चीं बच्चे रोते  , कैसे उसे मनायेंगे ।
गरमी हो या ठंडी साथी , कैसे उसे बचायेंगे ।।

छेड़ रहे प्रकृति को मानव , बाद बहुत पछतायेंगे ।
तड़प तड़प कर भूखे प्यासे , माटी में मिल जायेंगे ।।


महेन्द्र देवांगन "माटी " (शिक्षक) 
पंडरिया (कवर्धा) 
छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना कागज की नाव









कागज की नाव चली
टिंकूजी के गांव चली
सड़क मोहल्ले व गली
बहते हुए पानी मे चली

वो छुपती छुपाते चली
वो बचती बचाते चली
टिंकूजी की नाव चली
कागज की नाव चली

बरसाती पानी में चली
झूमती झामती चली
टिंकूजी की नाव चली
कागज की नाव चली

पिंटू की एक न चली
मन्टू की एक न चली
टिंकू ही की नाव चली
कागज की नाव चली


           शरद कुमार श्रीवास्तव 

सुशील शर्मा की रचना ओम नमो मोबाइल मामा






 ओम नमो मोबाइल मामा।
 तेरे बिना न पूरन कामा।
 इक इक क्षण तुम बिन है भारी।
तुम बिन बेबस दुनिया सारी।
कलियुग के तुम नाम अधारा।
तुमको नमन करत जग सारा।
 सुबह होत सब तुम्हें पुकारें
 कर कमलों में तुमको धारें।
 मम्मी के तुम प्यारे भैया।
 नाचें तुम संग ता था थैया।
 पापा के तुम प्राणों प्यारे।
 भैया के तुम राज दुलारे।
 बहिना के तुम प्राण अधारा।
 तुम बिन सूना ये जग सारा।
 पब टिकटाक खेल के राजा
 फेसबुकी ये बना समाजा।
 सारे व्यापारी ,संसारी।
 बिन तेरे बन जायँ भिखारी।
 ओ मेरे मोबाइल मामा
 मेरे पूरन कर दो कामा
 सदबुद्धि तुम मुझको देना।
 ज्ञान सुधा मुझ में भर देना।
 ज्ञान का दर्पण मुझे दिखाना ।
 सुंदर बातें मुझे सिखाना।

           सुशील शर्मा

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना हरियाली










 पौधा एक लगाकर देखो , हरियाली छा जायेगी।


महक उठेंगे बाग बगीचे,  चिड़िया गाना गायेगी।।

झूम उठेंगे पौधे सारे , नदिया भी लहरायेगी ।
चहक उठेगें पक्षी सारे , अपनी प्यास बुझायेगी ।।

हरी भरी पेड़ों की छाया , राही भी सुस्तायेंगे ।
खूब लगेंगे मीठे फल जब , बड़े मजे से खायेंगे ।।

शुद्ध हवा जब आयेगी तो , दिल भी खुश हो जायेगें ।
रहे स्वस्थ बच्चे बूढ़े भी,  बीमारी को दूर भगाएगें।।

आओ साथी मिलकर सारे , हम भी पेड़ लगायें ।
अपनी धरती अपनी माटी  , इसको स्वर्ग बनायें ।।




            प्रिया देवांगन "प्रियू"
            पंडरिया  (कवर्धा) 
            छत्तीसगढ़ 

महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) की रचना तेरी यादें






जैसे सूरज की किरणों से , गर्मी हमको मिलती है ।
और भोर की लाली में ही , कली डाल में खिलती है ।।
बागों में भी फूल देखकर  , तितली भी  इठलाती है ।
वैसे ही मन चहक उठे जब ,   याद तुम्हारी आती है 

जैसे कलियाँ देख देखकर , भौंरे गाना गाते हैं ।
फूलों की खुशबू को पाकर,  लोग सभी सुख पाते हैं ।।
बारिश की पहिली बूँदों से , सौंधी खुशबू आती है ।
वैसे ही मन चहक उठे जब , याद तुम्हारी आती है ।।





महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)

पंडरिया (कबीरधाम) 
छत्तीसगढ़ 
8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com