सड़क किनारे बैठी माँ जी, सब्जी बेचा करती है।
मिल जाता है कुछ पैसे तो, उदर उसी से भरती है।।
बोझ नहीं मैं अपने घर में, ये सब को बतलाती है।
ताजी ताजी सब्जी ला के, माँ जी खुश हो जाती है।।
देख गरीबी हालत इनकी, नहीं कभी ठुकराना जी।
सही भाव में देती सब को, पीछे नहिँ तुम जाना जी।।
साथ रखी है नींबू बैंगन, हाथ जोड़ करती विनती।
जरा बोहनी कर दो भैया, मानव की करती गिनती।।
कड़ी धूप में बैठी बैठी, खूब पसीना बहती है।
आते-जाते लोगों को वह, क्या दूँ बहना कहती है।।
मैले कपड़े देख किसी के, दूर कभी नहिँ जाना जी।
एक सहारा दे कर तुम भी, जीवन खुशियाँ लाना जी।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
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