गौरैयों के दो झुंडों में,
छिड़ी बहस यह भारी,
बड़े सब्र से खाना होगा,
दाना बारी बारी।
दाना चुगने में चालाकी,
जो भी दिखलाएगी ,
ज्वार- बाजरा गेंहूँ वह ,
भरपेट न खा पाएगी ।
पहले सब स्नान करेंगी,
फिर मिलकर बैठेंगी,
थोड़ा-थोड़ा खाना लेकर,
ख़ुशी - ख़ुशी चहकेंगी।
मिट्टी के कूण्डों में दाना,
पानी भरा हुआ है,
ज्वार बाजरे का चूरा भी,
छत पर धरा हुआ है।
भूखे बच्चे स्वयं हमारी,
राह देखते होंगे,
कब तक आएगी अम्मा,
बस यही सोचते होंगे।
सारी गौरैयों ने अपने,
सुंदर पँख हिलाए,
दाना खाने सारे बच्चे,
अपने पास बुलाए।
गौरैया पर बच्चों अपना,
प्यार लुटाते रहना,
खाने को दाना पीने को,
पानी लाते रहना।
चीं-चीं करके ढेर दुआएं,
तुमको दे जाएंगी,
उठो सवेरा हुआ बताने,
रोज़ - रोज़ आएंगी।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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