ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 26 अगस्त 2024

श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव का मधुर सम्मो




 

रक्षाबंधन पर एक सुन्दर गीत


 

जन्माष्टमी पर विशेष


 

वीणा श्रीवास्तव जी की पुण्य स्मृति मे


 

 

कल अर्थात अगस्त 27 को श्रीमती वीना श्रीवास्तव  जी की पुण्य  तिथि है।   उनको इस जगत से विदा लेकर ब्रह्मलीन  हुए 16 वर्ष  पूरे हो जाएंगे ।   श्रीमती वीणा श्रीवास्तव  महान शिक्षाविद  थी और  इस पत्रिका नाना की पिटारी की प्रणेता थीं।  पुण्य तिथि के अवसर पर नाना की पिटारी अपने भावपूर्ण  श्रद्धापुष्प अर्पित कर  रहा है।

शरद कुमार  श्रीवास्तव 

रविवार, 25 अगस्त 2024

वासुदेव कृष्ण

 




सजे किरीट मोर पंख कृष्ण माथ झूमते।
चले समीर मंद–मंद शीश केश चूमते।।
दिखे स्वरूप मेघ श्याम नैन नील साॅंवरे।
लपेट पीतवर्ण देह हाथ बाँसुरी धरे।।

अरण्य जात कृष्ण धेनु गोप ग्वाल संग में।
कदंब डाल बैठ श्याम डोलते उमंग में।।
करें विनोद वासुदेव साथ गोप गोपियां।
अनन्य भक्ति कृष्ण की बसा रखें सभी हिया।।

करे घमंड चूर नंदलाल कालिया डरे।
मिले क्षमा सदैव कृष्ण भक्ति भाव जो भरे।।
करे प्रणाम देवता निहारते स्वरूप को।
कृतार्थ तीन लोक देख कृष्ण विश्वभूप को।।

सनातनी अधर्म से अनीति राह जो चले।
पुराण वेद ग्रंथ ज्ञानहीन हस्त को मले।।
मनुष्य याचना करें पुनः धरा प्रवेश हो।
चतुर्भुजी करो कृपा सदा‌ परास्त क्लेश हो।।




//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ 


शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

पब्रह्मलीन साहित्यकार महेंद्र देवांगन "माटी" की पुण्यतिथि 16 अगस्त 2024 पर

 


// ब्रह्मलीन साहित्यकार पिता महेंद्र देवांगन "माटी" की पुण्यतिथि 16 अगस्त 2024 पर //

बाल प्रेरक प्रसंग :

                    // प्रेरणा //

          एक साहित्यकार पिता ने अपनी पुत्री से कहा- "बिटिया सुनो तो।"
          "हाँ, पापा क्या हुआ?" एक छोटी सी बच्ची दौड़ कर आई।
         "आज मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। बैठो ज़रा मेरे पास। मैं तुम्हें सुना रहा हूँ।" पिताजी बोले।
         "अच्छा! जी पापाजी।" बालिका ने बड़े ध्यान से पंक्तियाँ सुनी- "बहुत सुंदर बाल कविता बनी है। पापा जी, आप इतनी अच्छी पंक्तियाँ कैसे लिख लेते हैं?" मज़ाक़िया अंदाज में पिताजी बोले- "पेन-कॉपी पकड़ो तुम भी; और लिखते चलो।"
          "ओह पापा जी आप भी न! आप हमेशा ऐसे ही बोलते हैं। कुछ लिखना-विखना तो सिखाते नहीं।" मुँह बनाते हुए बालिका ने कहा।
         "बिटिया सुनो तो! इधर तो आना।" पिताजी ने बालिका को अपने और करीब बुलाया।
          "हाँ, पापा क्या हुआ? बालिका बोली।            "बैठो तो ज़रा।  "जी पापा!" बालिका स्टूल पर बैठ गयी ।
          थोड़ी देर बाद बालिका ने अपने मन की बात कही- "पापा जी! बताइए न आप कैसे लिखते हैं?" मैं आपसे सीखना चाहती हूँ।" बालिका हठ पर उतर आई। 
           पापा बोले- "मैंने रफ कॉपी में लिखा है, अब फेयर करने की बारी तुम्हारी है। बहुत सारी कविता, कहानी, कुछ... कुछ और है। अभी फेयर करने में तुम ध्यान नहीं दे रही हो रानी। चलो बेटा, आज तुम्हारी स्कूल की छुट्टी है। इसमें करेक्शन करते हैं।"
         "ठीक है पापा।" कहते हुए बालिका पेन–कॉपी पकड़ कर बैठ ही रही थी, तभी पिताजी फिर बोले- "बिटिया!"
          "हाँ पापा।"
          "ये बताओ, तुम मेरी हर कविता को फेयर करती होगी, चाहे वो छंद हो या मुक्तक। मुझसे ज्यादा तो तुम्हें याद रहता है कि अमुक कविता की अमुक पंक्ति है। बात छंद की है, तो तुम्हें मैं स्वयं सिखाऊँगा।"
          "नहीं.... नहीं....पापा। मुझे ये छंद–वंद के चक्कर में नहीं पड़ना है। आप ही संभालिए अपने छंद को।" बालिका हाथ हिलाकर हँसती हुई बोली ।
          पिताजी बोले- "अरे! कैसी बात करती हो? तुम्हें तो मुझसे आगे बढ़ना है। मुझे बहुत खुशी होगी।"
          "ढंग से लिखने भी तो आना चाहिए। कैसी बातें करते हैं पापा आप।" बालिका ने पिताजी की तरफ नजरें घुमाई ।
            पिताजी बोले -"जब तुम हरेक शब्द ध्यान से देख-सुन रही हो, तो तुम लिख क्यों नहीं पा रही हो? पता है, हमारे छंद कक्षा में हर उम्र के लोग सभी छंद की कविताएँ‌ लिखते हैं। एक–एक मात्रा का ध्यान रखते हैं; और तुम तो अभी की बच्ची हो। तुम भी एक अच्छी सोच छंदबद्ध कविता व मुक्तक लिख सकती हो। साहित्य में छंदबद्ध रचनाओं का विशेष स्थान है।"
           साहित्यकार पिताजी की बातों का बालिका पर गहरा असर हुआ। बालिका ने ठान लिया कि वह एक कविता लिख कर पापा जी को जरूर दिखाएगी। तुरंत उसने टूटी–फूटी भाषा में एक कविता लिख कर अपने पिताजी को दिखाई। पिताजी ने कविता पढ़ी, तो सचमुच वे बहुत खुश हुए। उन्हें लगने लगा कि उनकी बेटी में काव्य-सृजनशीलता है। उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले- "अरे वाह बिटिया! आज तुमने मेरे मन की इच्छा  पूरी कर दी। मुझे गर्व है तुम पर। मुझे उम्मीद है कि तुम एक दिन मुझसे बेहतर कविता लिखोगी; और मेरा नाम रोशन करेगी। खुद बहुत नाम कमाओगी।"
         "कुछ भी न.... आप भी। मुझे खुश करने के लिए बोल रहे हैं आप।" बालिका तिरछी मुस्कान भरती हुई बोली।
         "नहीं...नहीं...! मैं ऐसे ही तारीफ नहीं कर रहा हूँ। तुमने सचमुच बहुत अच्छी कविता लिखी है।" एक साहित्य साधक पिता की बातें बालिका को लग गयी। भले देर से ही सही, पर बालिका को लिखने की प्रेरणा मिली। आज वह अपने साहित्यपथ पर अग्रसर है। 
          बच्चो! क्या आप जानते हैं उस कलमकार को; और कौन है वह बालिका? ठीक है, मैं बताती हूँ। वो साहित्यकार पिता हैं छत्तीसगढ़ के एक नामी लेखक ब्रम्हलीन महेंद्र देवांगन जी "माटी" ; और वह बालिका प्रिया देवांगन "प्रियू" है ।
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//लेखिका//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ 


                 
                    


खेल भावना की पवित्रता को नमन!

 धन्य  धन्य  नीरज  चोपड़ा 



दो  आशीष  मुझे  भी  माता,

मैं, नीरज   सा   नाम   करूँ,

पाक ज़मीको स्वर्णपदक दे,

जग   में  नूतन   काम  करूँ।


मेहनत का फल मीठा  होता,

अरशद ,  तुझसे   कहती  हूँ,

तू  नीरज  से कम  थोड़ी   है,

पुत्तर-  मैं   सच   कहती   हूँ। 


मेरी   खुशी   बसी   दोनों  में,

किसको   कहूँ    पराया    मैं,

खेल भावना को  जीवन  का,

कहती     हूँ     सरमाया   मैं।


अरशद  की  अम्मी  ने बोला,

दीदी,   तुमने    सही    कहा,

मैंने भी  नीरज   की  खातिर, 

माँगी   दिल  से   यही  दुआ। 


स्वर्ण पदक से भी  महान  हैं, 

मानवता    के    भाव    यहाँ,

सच  कहता  हूँ  भर   जाएंगें,

जीवन  के  हर   घाव    यहाँ।


आज  आपके  आदर्शों   का, 

सकल   विश्व   आभारी    है,

माँ के  आशीषों  की  कीमत,

हर   कीमत   पर    भारी  है।

   


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" 

       मुरादाबाद/उत्तर- प्रदेश 

           9719275453

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ललमुनिआ और गिलहरी : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 



पाँच साल का कन्हैया अपनी मम्मी के साथ घर के बगीचे मे खेल रहा था।  तभी वहाँ पर  एक छोटी सी, प्यारी सी, लाल मुँह की रगींन चिड़िया आई ।  चिड़िया को देखकर  कन्हैया बहुत  खुश  हुआ  और  अपनी माँ से बोला, माँ ,देखो देखो, ललमुनिआ आई है।  माँ कुछ  समझ नहीं सकीं ।  वे बोलीं कौन ललमुनिया ?  नन्हा  कन्हैया  बोला,  जो नाना जी के बगीचे मे उड़ कर आती है ।   छोटी सी सुन्दर  सी , वही ललमुनिया ।   नाना जी बड़े प्यार  से इसे ललमुनिया ही पुकारते हैं ।  मम्मी जी ने सुना और  फिर अपने काम मे व्यस्त  हो गईं ।

कन्हैया भी उस चिड़िया के साथ  पकड़म पकड़ाई  मे लग गया ।  वह उस चिड़िया से ढ़ेरों बातें करना चाहता था।  अपनी नानी नाना के बारे मे ।   वहाँ की एक  एक  चीज के बारे मे पूछना चाहता था।  अचानक  उसे याद  आया कि आखिर  ललमुनिया सात समुद्र वहाँ आई कैसे ?  


  काफी पहले की बात  है जब वह अपने मम्मी पापा के साथ नाना नानी के पास गया था।  नानी के घर के आंगन  मे एक  अमरूद का पेड़ लगा था ।  उस अमरूद  के पेड़  पर एक चिड़िया बैठती थी ।  कन्हैया तब और छोटा था ।  चिड़िया को देखकर वह  बहुत खुश  हो जाता था ।  दोनो मे बहुत  दोस्ती थी ।  वह अपनी नानी के किचन  से कच्ची दाल के दाने लेकर ललमुनिआ के पास  पेड़  के नीचे डाल  देता था।  उस समय  तो चिड़िया उड़ जाती थी ।  एक गिलहरी भी न जाने कहाँ से  आती थी और दाल के दानों को उठाकर खाने लगती थी ।  कन्हैया को यह एकदम  अच्छा नहीं लगता था।  वह धत्-धत् कर गिलहरी को भगाता था कभी-कभार  गिलहरी पिछले दोनो पैरों पर खडी होकर  कन्हैया कै हाथ  जोड़कर छमा माँगती थी।   ललमुनिआ  भी आ जाती थी और  दोनो हिल मिल कर दाल के दानो को  खाते थे।  कन्हैया यह देखकर  खूब  ताली बजाता था।

उसकी बातें सुनकर  मम्मी को भी याद  आ  गया कि कन्हैया की गिलहरी और  ललमुनिआ  की दोस्ती की कहानी।  वे कन्हैया से बोलीं कि चिड़िया लोग को किसी देश का  कोई  वीसा, हवाई जहाज  के टिकट  की जरूरत  नहीं होती है वे मौसम ,भोजन  इत्यादि की उपलब्धता के अनुसार  हजारों किलोमीटर  चली जाती है ।  कन्हैया ने पूछा और  गिलहरी ?  माँ बोलीं वह अपने स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाती है ।




शरद कुमार श्रीवास्तव 



आजादी की चाहत :स्वतंत्रता दिवस विशेष : बालकथा : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

स्वतन्त्रता दिवस पर प्रिया देवांगन  प्रियू की रचना पुन: प्रकाशित  की जा रही है



 



           एक जंगल था बागबाहरा। हर पशु-पक्षी का अपना अलग समुदाय था। सब खुश थे। हाथियों का भी एक दल था। दल का नेतृत्व चंदा नाम की हथिनी करती थी। उस दल में एक हिरणी भी थी। नाम था किटी। उसे हाथियों के साथ रहने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी। उसकी विवशता थी कि उसके माता-पिता ने प्राण त्यागते समय उसे हाथी-दल को सौंप दिया था। शुरुआत में हाथियों का व्यवहार किटी के प्रति अच्छा था, पर समय के साथ उनके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। अब वे किटी के साथ गुलाम सा व्यवहार किया करते थे। किटी उनसे तंग आ चुकी थी। उसकी एक ही चाहत थी हाथियों से आजादी।

             किटी हमेशा सोचती रहती थी कि उसे आजादी कैसे और कब मिलेगी। अपने माता-पिता को याद कर के बहुत रोती थी। उसे इसलिए भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि यह सिर्फ हाथियों का समुदाय था। उन सब मे किटी अकेली महसूस करती थी। उनकी बातें भी किटी को नहीं समझ नहीं आती थी। चंदा हथिनी का एक बेटा था- मौजी। दल का अकेला वारिस था। मौजी और किटी में अच्छी मित्रता थी। दोनों साथ में खेलते कूदते थे। लेकिन चंदा को इन दोनों की दोस्ती बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी । चंदा को किटी से काम करवाने में बस ज्यादा दिलचस्पी थी। उसे मौजी से दूर रखने का पूरा प्रयास करती थी।

          कुछ दिन बाद पन्द्रह अगस्त आने वाला था। जंगल के सभी जानवर पन्द्रह अगस्त मनाने की तैयारी में लग गए। हाथी समुदाय ने इस वर्ष बड़े धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था। जंगल के सभी पशु-पक्षियों को भी आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया। जंगल को दुल्हन की तरह सजाया गया। फल-फूल , मिठाई , बूंदी, नये-नये पकवानों की महक जंगल में फैलने लगी थी। कार्यक्रम में खेल-प्रतियोगिता, गीत-कहानी , भाषण शामिल थे। मौजी और किटी बहुत खुश थे। मौजी और किटी चंदा हथिनी से पूछ ही डाले- "यह सब हम क्यों कर रहें हैं ? जंगल को क्यों इस तरह सजाया जा रहा है ?" चंदा हथिनी मुस्कुराते हुए बोली- "पन्द्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को हम अंग्रेजों के गुलामी से आजाद हुए थे। इसलिए हम हर साल इसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं; और तिरंगा भी फहराते हैं इस दिन।" तभी किटी खुशी से उछल पड़ी और बोली कि क्या मुझे भी यहाँ से आजाद कर दिया जाएगा। क्या मैं भी अपनी जाति-समुदाय में जा सकती हूँ।" चंदा किटी को घूरती हुई बोली- "बिल्कुल नहीं। तुम्हारे मम्मी-पापा ने तुम्हारी जिम्मेदारी हमें दी है। चिंता मत करो, तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी।"

            किटी की आँखों से आँसू बहने लगे। मौजी ने चंदा हथिनी से धीमे स्वर में कहा- "माँ ! हम किटी को आजाद क्यों नहीं कर सकते हैं  ? उसे हिरण-समुदाय से अलग क्यों रखा गया है ? अभी आपने ही बताया कि स्वतंत्रता का मतलब आजादी होती है, फिर किटी को क्यों नहीं मिल सकती आजादी।" चंदा हथिनी बिना कुछ बोले वहाँ से चली गयी। उसके पीछे-पीछे मौजी भी जाने लगा। बार-बार मौजी चंदा को एक ही प्रश्न करने लगा। चंदा परेशान हो गयी। आखिर चंदा हथिनी सोचने लगी। फिर मौजी ने किटी को कहा- "तुम चिंता मत करो किटी। मैं तुम्हे आजादी दिलाऊँगा। देखना, स्वतंत्रता दिवस हम सब के लिए यादगार होगा।"

            15 अगस्त आया। जंगल में सुबह सात बजे चंदा हथिनी के द्वारा ध्वजारोहण होना था। चिड़ियों की चहक गूँजने लगी। सभी शाकाहारी जानवर- नीलगाय, चीतल, बारहसिंगा, खरगोश और हिरण समुदाय भी शामिल हुए। किटी हिरणियों को देख कर उछल पड़ी। जैसे ही उनसे मिलने जाने वाली थी कि चंदा हथिनी ने उसको रोक लिया। किटी सहम गयी। वहीं मौजी खड़ा देखता रहा। चंदा हथिनी ने ध्वजारोहण किया। राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत हुआ। फिर कविता पाठ शुरू किया गया। किटी और मौजी भी कविता पाठ में शामिल थे। सबने बारी-बारी से कविता, गीत, भाषण दिया। मौजी ने अपने भाषण में चंदा हथिनी की ओर इशारा करते हुए कहा- "देश तो आजाद हो गया है, फिर भी न जाने कितने लोग अभी भी गुलामी में जीवन यापन कर रहे हैं। कुछ लोग दूसरों को नौकर बनाकर रखा है। कहीं तो पूरे परिवार पर अपना हक जमा बैठे हैं। बच्चों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। दूसरे बच्चों का लालन-पालन की जिम्मेदारी लेकर उनका शोषण कर रहे हैं।" सब समझ रहे थे कि किटी हिरणी और चंदा हथनी की बात हो रही है। मौजी ने अपनी बात जारी रखी- "एक बच्ची को उसके परिवार से दूर रख कर किसी को क्या मिलेगा भगवान जाने। उस बच्ची की बद्दुआ जो कभी आगे बढ़ने नहीं देगी। माँ, आज आप किटी को आजाद कर दीजिए। याद है, आपने कहा था कि बेटा तुम्हे इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप मुझे तोहफा देंगी।। आज मैं सब के सामने आप से यही माँगता हूँ कि इस नन्ही-सी जान किटी को छोड़ दीजिए। इससे बड़ा तोहफा मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता। सभी के आँखों से आँसू बहने लगे। सबको लगने लगा कि छोटा सा बच्चा भरी सभा में बहुत अच्छी बातें बोल रहा है। माँ, आप बताइए कि अगर मुझे आप से दूर कर दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा। क्या आप जिंदा रह पाएँगी मेरे बिना। आज किटी के माता-पिता नहीं है तो आप उसके साथ ऐसा क्यों कर रही हैं।" अपने बेटे मौजी की बातों से चंदा का दिल पिघल गया। उसने किटी हिरणी को आजाद कर दी। सब ने मौजी की जी खोलकर तारीफ की। इतना छोटा सा बच्चा इतना बड़ा काम कर दिया। इस तरह किटी हिरणी को हाथियों से आजादी मिली, जिसकी उसे चाहत थी। 

                 



रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

Life everyday नन्ही लीशा सिघल की कविता

 


LIFE EVERYDAY 


A stampede is thundering in the Savannah,

A family of bears are hibernating in a cave,

The sweet wind whistles deep in the night,

Someone runs awayfrom something with fright,

A fan is blowing winding an empty room,

Someone says sorry in a guilty tone,

A patient's heart starts to beat faster and louder,

As an elderly person's breath starts to fade,

A groupof miners finally find some jade,

A stampede is thundering in the Savannah,

A family of bears are hibernating in a cave.





Leesha Singhal 

Aged-10

Sheelkunj  

Meerut 

आर्टेमिस के भव्य मन्दिर

 




भारत  मे मन्दिरों का इतिहास बहुत  पुराना रहा है परन्तु  दुनियाभर मे भी मन्दिरो का अस्तित्व  भी पुराना रहा है जिसका प्रमाण  यूनान का आर्टेमिस  का मन्दिर  है।

आर्टेमिस के मन्दिर जिसे डाॅयना का मन्दिर  भी कहा जाता है यूनान का मन्दिर विश्व  के  पुराने सात अजूबों मे से एक  है

यह मंदिर  ग्रीक देवी आर्टेमिस के नाम से है अपोलो की कुमारी शिकारी जुड़वा ने

चन्द्रमा की देवी के रूप मे टाइटन सेलेन का स्थान  कब्जा कर लिया था

इस महान मंदिर का निर्माण लिडिया के राजा क्रोएसस ने लगभग 550 ईसा पूर्व में करवाया था और 356 ईसा पूर्व में हेरोस्ट्रेटस नामक एक पागल व्यक्ति द्वारा जला दिए जाने के बाद इसका पुनर्निर्माण नहीं किया गया था।

यह मंदिर  अपने 110×55 मीटर के वृहद आकार एवम अनुपम सुन्दरता के लिए  भी प्रसिद्ध  है ।



संकलन 

शरद कुमार  श्रीवास्तव