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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

पब्रह्मलीन साहित्यकार महेंद्र देवांगन "माटी" की पुण्यतिथि 16 अगस्त 2024 पर

 


// ब्रह्मलीन साहित्यकार पिता महेंद्र देवांगन "माटी" की पुण्यतिथि 16 अगस्त 2024 पर //

बाल प्रेरक प्रसंग :

                    // प्रेरणा //

          एक साहित्यकार पिता ने अपनी पुत्री से कहा- "बिटिया सुनो तो।"
          "हाँ, पापा क्या हुआ?" एक छोटी सी बच्ची दौड़ कर आई।
         "आज मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। बैठो ज़रा मेरे पास। मैं तुम्हें सुना रहा हूँ।" पिताजी बोले।
         "अच्छा! जी पापाजी।" बालिका ने बड़े ध्यान से पंक्तियाँ सुनी- "बहुत सुंदर बाल कविता बनी है। पापा जी, आप इतनी अच्छी पंक्तियाँ कैसे लिख लेते हैं?" मज़ाक़िया अंदाज में पिताजी बोले- "पेन-कॉपी पकड़ो तुम भी; और लिखते चलो।"
          "ओह पापा जी आप भी न! आप हमेशा ऐसे ही बोलते हैं। कुछ लिखना-विखना तो सिखाते नहीं।" मुँह बनाते हुए बालिका ने कहा।
         "बिटिया सुनो तो! इधर तो आना।" पिताजी ने बालिका को अपने और करीब बुलाया।
          "हाँ, पापा क्या हुआ? बालिका बोली।            "बैठो तो ज़रा।  "जी पापा!" बालिका स्टूल पर बैठ गयी ।
          थोड़ी देर बाद बालिका ने अपने मन की बात कही- "पापा जी! बताइए न आप कैसे लिखते हैं?" मैं आपसे सीखना चाहती हूँ।" बालिका हठ पर उतर आई। 
           पापा बोले- "मैंने रफ कॉपी में लिखा है, अब फेयर करने की बारी तुम्हारी है। बहुत सारी कविता, कहानी, कुछ... कुछ और है। अभी फेयर करने में तुम ध्यान नहीं दे रही हो रानी। चलो बेटा, आज तुम्हारी स्कूल की छुट्टी है। इसमें करेक्शन करते हैं।"
         "ठीक है पापा।" कहते हुए बालिका पेन–कॉपी पकड़ कर बैठ ही रही थी, तभी पिताजी फिर बोले- "बिटिया!"
          "हाँ पापा।"
          "ये बताओ, तुम मेरी हर कविता को फेयर करती होगी, चाहे वो छंद हो या मुक्तक। मुझसे ज्यादा तो तुम्हें याद रहता है कि अमुक कविता की अमुक पंक्ति है। बात छंद की है, तो तुम्हें मैं स्वयं सिखाऊँगा।"
          "नहीं.... नहीं....पापा। मुझे ये छंद–वंद के चक्कर में नहीं पड़ना है। आप ही संभालिए अपने छंद को।" बालिका हाथ हिलाकर हँसती हुई बोली ।
          पिताजी बोले- "अरे! कैसी बात करती हो? तुम्हें तो मुझसे आगे बढ़ना है। मुझे बहुत खुशी होगी।"
          "ढंग से लिखने भी तो आना चाहिए। कैसी बातें करते हैं पापा आप।" बालिका ने पिताजी की तरफ नजरें घुमाई ।
            पिताजी बोले -"जब तुम हरेक शब्द ध्यान से देख-सुन रही हो, तो तुम लिख क्यों नहीं पा रही हो? पता है, हमारे छंद कक्षा में हर उम्र के लोग सभी छंद की कविताएँ‌ लिखते हैं। एक–एक मात्रा का ध्यान रखते हैं; और तुम तो अभी की बच्ची हो। तुम भी एक अच्छी सोच छंदबद्ध कविता व मुक्तक लिख सकती हो। साहित्य में छंदबद्ध रचनाओं का विशेष स्थान है।"
           साहित्यकार पिताजी की बातों का बालिका पर गहरा असर हुआ। बालिका ने ठान लिया कि वह एक कविता लिख कर पापा जी को जरूर दिखाएगी। तुरंत उसने टूटी–फूटी भाषा में एक कविता लिख कर अपने पिताजी को दिखाई। पिताजी ने कविता पढ़ी, तो सचमुच वे बहुत खुश हुए। उन्हें लगने लगा कि उनकी बेटी में काव्य-सृजनशीलता है। उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले- "अरे वाह बिटिया! आज तुमने मेरे मन की इच्छा  पूरी कर दी। मुझे गर्व है तुम पर। मुझे उम्मीद है कि तुम एक दिन मुझसे बेहतर कविता लिखोगी; और मेरा नाम रोशन करेगी। खुद बहुत नाम कमाओगी।"
         "कुछ भी न.... आप भी। मुझे खुश करने के लिए बोल रहे हैं आप।" बालिका तिरछी मुस्कान भरती हुई बोली।
         "नहीं...नहीं...! मैं ऐसे ही तारीफ नहीं कर रहा हूँ। तुमने सचमुच बहुत अच्छी कविता लिखी है।" एक साहित्य साधक पिता की बातें बालिका को लग गयी। भले देर से ही सही, पर बालिका को लिखने की प्रेरणा मिली। आज वह अपने साहित्यपथ पर अग्रसर है। 
          बच्चो! क्या आप जानते हैं उस कलमकार को; और कौन है वह बालिका? ठीक है, मैं बताती हूँ। वो साहित्यकार पिता हैं छत्तीसगढ़ के एक नामी लेखक ब्रम्हलीन महेंद्र देवांगन जी "माटी" ; और वह बालिका प्रिया देवांगन "प्रियू" है ।
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//लेखिका//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ 


                 
                    


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