गुरुवार, 26 मार्च 2020

शहीदी दिवस 23 मार्च के अवसर पर: शरद कुमार श्रीवास्तव




अमर  शहीद भगत् सिंह  सुखदेव और राजगुरु 

1907 के 27 सितंबर  को भारत  का ऐसा  लाल हुआ
शीश चढाने  भारत  माँ  को जग मे आप  मिसाल  हुआ

सरदार किशन सिंह ,माँ  विद्यावती का प्यारा लाल हुआ

लायलपुर  के  बंगा गांव  का बेटा धरती पर कमाल हुआ

नाम भगत सिंह  सपूत  देश  का  अंग्रेजो  का काल हुआ

इसी लायलपुर मे 1907 में जन्म लिया एक सिंह- शावक ने

नाम सुखदेव दिया था उसको मात पिता अभिभावक ने

था छोटा कुछ माह  राजगुरु, पूने में जन्म लिया था जिसने

छापेमारी की युद्ध प्रणाली की निपुणता अद्भुत थी जिसमें




लाला जी पर लाठी का  बदला इन सिंहों ने खूब  लिया

राजगुरू सुखदेव संग भगतसिंह ने  सैन्डर्स को शूट किया

ये सिंह भारत माता की खातिर फाँसी पर हँस  झूल गए

शेर बन 23 मार्च1931 को फांसी पर चढ़े  शहीद हुए



भारत रत माता के इन सपूतों को शत शत नमन हम करते हैं

अपने मन के भावों के श्रद्धा प्रसून हम इनको अर्पित करते हैं



शरद कुमार श्रीवास्तव


कोरोना से डरो नहीं : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






फैल रहा है कोरोना वाइरस , इसका तुम करो उपाय।
बीमारी को तुम दूर भगाओ , ठंडा चीज को हाथ न लगाओ।।
गर्म चीज का करो तुम सेवन , स्वास्थ रहेगा तुम्हारा जीवन।
हाय हैलो से मुँह को मोड़ो , नमस्ते से तुम नाता जोड़ो।
भीड़ भाड़ में नही है जाना , वाइरस को दूर भगाना।।
नाक कान को ढक कर चलना , हाथ को साबुन से मलना।।
सर्दी खासी है इसके लक्षण , मांस का तुम करो न भक्षण।
खान पान का ध्यान तुम रखना , ठंडी चीज को नही है चखना।।
सर्दी खासी आये तो , डॉक्टर पास तुरंत है जाना।
कोरोना वाइरस को  दूर भगाना।।
कोरोना है महामारी रोग , सुबह शाम करो तुम योग।
कोरोना को सब दूर भगाओ , सादा जीवन को अपनाओ।।



























प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया छत्तीसगढ़

दिल्ली की महारानी : शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा







एक चुहिया एक बनिया की दुकान से छुपा कर मैदा घी और गुड़ लेकर आई.  उससे उसने कुछ पुऐ बनाए .  पुऐ बनने की खुशबू चुहिया के बिल से निकल कर बिल्ली की नाक मे पहुँची .  उसने पूछा क्या बन रहा है. हमे भी खाने को दो.  चुहिया अपने बिल से ही बोली पुऐ , लेकिन आप से मतलब. आप हैं कौन ?

बिल्ली बोली — मेरा नाम है बिल्ली रानी
मै दिल्ली की महारानी
जिसने मेरी बात न मानी
उसकी तो खतम कहानी

चुहिया ने जल्दी से कुछ पुऐ बाहर कर दिये कहा लीजिये महारानी जी, अपना हिस्सा खाइये और जाइये।

बिल्ली ने बड़े चाव से खाया
वह फिर चुहिया से बोली और लाओ.   चुहिया भला क्या करती डरकर,  उसने अपना हिस्सा भी दे दिया.   उसको खाकर भी बिल्ली बोली तुम कितनी अच्छी हो चुहिया रानी बाहर आओ अपना प्राइज तो ले जाओ.  चुहिया डर के मारे बिल मे छुप कर बैठ गई । लेकिन उसकी लम्बी दुम बिल से बाहर निकली थी . अब क्या था बिल्ली ने उसकी दुम पकड़ कर चुहिया को बाहर निकाला और उसे भी खा गई।

रास्ते मे बिल्ली को एक तोंता मिला .   वह बोला अरे कोई देखे तो  यह बिल्ली कितनी मोटी है.
बिल्ली बोली — मेरा नाम है  बिल्ली रानी
मैं दिल्ली की महारानी
जिसने मेरी हँसी उड़ाई
उसकी तो खत्म कहानी
तोता, बिल्ली का मोटा पेट देख कर बोला कि सबेरे सबेरे क्या खा कर आई हो?

बिल्ली बोली चुहिया ने पुऐ दिये थे वो खाया फिर चुहिया का हिस्सा छीन के खाया, फिर चुहिया को पकड़ के खाया। तुम ज्यादा बोल रहे हो तुम्हे भी खा जाती हूँ।  वह तोते को भी पकड़ के खा गई।

थोड़ी दूर पर बन्नी खरगोश ने देखा तो वह बिल्ली को देखकर खूब हँसने लगा  इतनी मोटी बिल्ली तो उसने पहले कभी देखी नहीं  थी एकदम गोलमटोल डिब्बे जैसी है।

बिल्ली बोली-  मेरा नाम है बिल्ली रानी
मैं दिल्ली की महारानी
तूने मेरी हँसी उड़ाई
अब तेरी खत्म कहानी।

बिल्ली झपट कर खरगोश को भी खा गई।  अब तो उसका पेट और फूल गया उससे चला भी नही जा रहा था । उसे  रास्ते एक बकरा मिला ।   उसकी बड़ी बड़ी सीगें थी .  बिल्ली उसके सामने से निकली वह कुछ नहीं बोला ।  बिल्ली बकरे से बोली- चुहिया के दिये पुए खाऐ , चुहिया के पुऐ छीन के खाऐ चुहिया को पकड़ के खाया तोते को खाया फिर खरगोश खाया अब अगर तूने कुछ बोला तो तुझे खा जाऊँगी.   बकरा अपनी सीगें लोहार के यहाँ से मढ़ाकर लौटा ही था उसे गुस्सा आ गया .  वह बोला  तूने कमजोर कमजोर को खाया है .  अब तेरा पाला मुझ से पड़ा है.  देखता हूँ  तू मुझको कैसे खाती है  .  बस वह  बड़ी दूर से और बड़ी जोर से दौड़कर आया और अपनी सीगं की टक्कर बिल्ली के पेट मे मारी कि बिल्ली का पेट फट गया .  चुहिया तोता और खरगोश बकरे को थैन्क्स कहते हुऐ अपने अपने घर चले गये। ।




                          शरद कुमार श्रीवास्तव 

खुशी जिंदगी की (गजल) : महेन्द्र देवांगन






जिंदगी को खुशी से बिताते चलो।
फासला तुम दिलों से मिटाते चलो।।

शौक पूरा करो तुम यहाँ से वहाँ ,
गीत धुन में सभी गुनगुनाते चलो।

बैठ कर यूँ अकेला रहा मत करो ,
बात दिल की हमें भी बताते चलो ।

चैन आये कभी अब न देखे बिना,
हाथ से यूँ न मुखड़ा छुपाते चलो।

आजकल राह में क्यों गुजरते नहीं ,
माथ "माटी"  तिलक भी लगाते चलो।




 











महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353

मम्मी मम्मी देखो आया कोरोना (बाल कविता ) डॉ सुशील शर्मा








मम्मी मम्मी देखो आया कोरोना
मम्मी मम्मी देखो छाया कोरोना

भागा भागा सड़कों पर
ये फिरता है।
छींकों की बूंदों में फिर
ये गिरता है।
हाथ हथेली में चुपके
से छुप जाता है।
मुँह के रस्ते से फिर
अंदर घुस जाता है।

जिसको ये लग जाता है
उसको फिर पड़ता है रोना।
मम्मी मम्मी देखो आया कोरोना।

हाथ मिलाना नहीं किसी से
करो दूर से नमस्ते।
रहो चार फुट दूर मिलो
सबसे हँसते हँसते।
एकमात्र बचने का विकल्प
घर पर रहना।
रखें सावधानी हम सब
ये हे मोदी जी का कहना।


अपने हाथों को साबुन से
रगड़ रगड़ कर तुम धोना।
मम्मी मम्मी देखो आया कोरोना।


मम्मी पापा से कह दो
वो बाजार नहीं जाएँ।
हम सब बच्चे बाहर की
चीजें न खाएँ।
घर के अंदर रहें सभी
अपने वाले।
हम खुद ही बन जाएँ
अपने रखवाले।

 नहीं चाहता कोई भी
अपनों को खोना।
मम्मी मम्मी देखो आया कोरोना।



             डॉ सुशील शर्मा




गाय मिली पर थाने में :प्रभूदयाल श्रीवास्तव






           ता-ता थैया,छन्न बटैया,
           चोरी हुई कल्लू की गैया.
                      चोरी अब पकड़ेगा कौन?
                      थानेदार खड़ा है मौन।
             ढूँढे शहर गॉंव सारे।
             लोग फिरे मारे- मारे।
                          की तलाश तहखाने में,
                          गाय मिली पर थाने में।


                          प्रभूदयाल श्रीवास्तव


सोमवार, 16 मार्च 2020

प्रिन्सेज डॉल और प्यारी तितली





बसंत  का मौसम  था ।   प्रिन्सेज डॉल के  बगीचे मे खूब सुन्दर प्यारे प्यारे  फूल खिले हुये थे ।  डाॅल,  स्कूल  जाने से पहले  अपने  बगीचे में  जरूर  जाती थी । फूलों  को हँसता  देख कर  उसको बहुत  अच्छा  लगता  था ।    उसे गुलाब बहुत पसंद  है ।  वह देखने  में  सुंदर  तो है ही उसकी खुश्बू भी   प्रिन्सेज डॉल को  बहुत  पसंद  है  ।  वैसे उसे दूसरे  फूल  भी पसन्द  हैं जैसे   डाहलिया, गुलदावदी , पैन्जी,  पाॅपी आदि लेकिये   फूल तो जाड़े के  फूल हैं  जो  प्रिन्सेज डॉल को  पसन्द  है ।    बेले के  फूल तो गर्मियों मे आते हैं   जिसकी  मोहक खुश्बू और उनका सफेद प्यारा  रंग  भी  प्रिन्सेज को पसंद  है  ।   परन्तु  गुलाब  के  फूल की  बात   ही  कुछ और  है  ।   हर  मौसम  में गुलाब  हँसते खिलखिलाते बहुत  प्यारे   नजर आते हैं उस दिन प्रिन्सेज को  बगीचे  में   प्यारी सी  तितलियाँ  भी  दिखाई  दीं  ।    प्रिन्सेज  को  बड़ा  मज़ा  आ गया  ।  वह एक  तितली  के  पीछे  दौड़ी जो  गुलाब  के  फूल  के  ऊपर आ बैठी थी और  उससे बातें  कर  रही  थी  ।   प्रिन्सेज डॉल को आता देख  कर  वह झट से  उड़ गई । डाॅल उसके  पीछे दौड़  रही थी लेकिन  उसको वह पकड़  नहीं  पा रही  थी ।    इतने मे पीछे  से  किसी  ने डॉल को  आवाज़  लगाई ।   उसने देखा  कि  गुलाब के  फूल  से  से आवाज  आ रही थी ।     गुलाब के  फूल  की  उदासी भी फूल  की  रंगत से साफ दिखाई  दे  रही  थी  ।     उसकी  दो  चार  पंखुड़ियाँ  झड़ गई  थी   और  गुलाब  का फूल  उससे  कह रहा था कि   काफी दिनों  के  बाद  उसकी  तितली  बहन उसके पास  आई थी  और तुम  ने उसे उड़ा दिया ।   उसी  समय  डॉल के  कान के  पास  से   तितली  निकली ।   वह भी  कह रही थी  कि  मै   इतने दिनों  के  बाद अपनी बहन  से मिलने  आई थी  और तुम मुझे  पकड़ने के  लिये  दौड़  पडीं  यह तो अच्छी  बात नही  है  ।   प्रिन्सेज डॉल बोली  मैं  क्या  करूँ  मुझे  तितलियाँ  बहुत  पसंद  हैं  ।   इस पर तितली  बोली लेकिन  पकडने से तो मेरे पंख टूट जायेगें  और मै मर जाऊँगी ।   प्रकृति ने सुन्दर  चीजें  बनाई है सिर्फ  देखने के  लिए  उन्हें  तोड कर बर्बाद  करने  के  लिए  नहीं  ।   प्रिन्सेज को याद  आया कि  जब जादूगर  ने उसे  पकड़  लिया  था तब उसे कितना बुरा लगा  था ।   वह अपनी मम्मी  के  लिए  कितना  रोई थी ।  उसने तुरन्त  उसे तितली  से माफी  मांगी और कहा कि  तुम हमेशा इसी तरह फूलों  से  मिलने  आया  करना ।   हम बच्चे तुम्हें  विश्वास  दिलाते हैं  कि  हम सिर्फ  तुम्हें  देखेंगे  और तुमको पडेगा नहीं ।   इतने में  स्कूल  की वैन का हार्न बजा और प्रिन्सेज डॉल स्कूल  चली गई ।




                        शरद कुमार श्रीवास्तव

एक संकलित स्मृति





हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी , *पहला चरण कैंची और दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी.

तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे.

तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।

"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे।

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है ।

आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था*।

हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए हैऔर गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।

अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में।

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी!  "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं ।

इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए !

और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।

और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी ।

हम लोग  की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !

*पहला चरण कैंची*

*दूसरा चरण डंडा*

*तीसरा चरण गद्दी।*


एस के श्रीवास्तव
संकलन कर्ता

  

प्रिंसेस डॉल और टिंकपिका का जादूगर







प्रिंसेस डॉल स्कूल से लौट कर आई तो थोड़ा कुछ खा लेने के बाद वह स्कूल का होम वर्क ले कर बैठ गयी। आज मैथ वाली मैम ने उसे 100 अंकगणित ( मैथ) के सवाल कर के लाने को कहा था। वह सवाल करने बैठ तो गयी लेकिन वह एक भी सवाल कर नहीं पा रही थी। उसे ध्यान आया कि क्लास में जब मैथ टीचर सवाल करना सीखा रहीं थी, तब प्रिंसेस और रूपम, कट्टिम कुट्टा का खेल क्लास में खेल रही थी। अब जब सवाल नहीं समझ में आ रहा था तब प्रिंसेस को रुलाई छूट रही थी। वह क्या करे कैसे करे वह सोच रही थी। उसने सोचा की रूपम को फोन लगाए लेकिन रूपम भी तो कट्टिम कट्टा खेल रहजी थी वह क्या बतायेगी. वह रो रही थी कि दीवार पर बैठा मकड़ा उससे बोला रो मत ! मैं, अगर, सब सवाल कर दूँ तो तुम मुझे क्या खाने को दोगी। प्रिंसेस खुश होकर बोली मैं तुम्हे अपनी फेवरिट नट चॉकलेट दूंगी।

 मकड़े ने उससे कहा की तुम अपने खिलोनो से खेलो मैं अभी तुम्हारे मैथ के सवाल कर देता हूँ। प्रिंसेस ने अपना मुंह खिलौने की तरफ किया, तब तक मकड़े ने, उसकी कापी के सब सवाल हल कर दिया और चौकलेट उठा कर गायब हो गया।
मैथ की टीचर को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने अंग्रेेजी की मैडम से कहा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने भी प्रिंसेस को 100 लाइन का ट्रांसलेशन दिया आज भी स्कूल में प्रिंसेस और रूपम साथ साथ खेल रही थी। इसलिए उसे पता ही नहीं लगा । परन्तु जब उसने घर में होम वर्क की कापी खोली तब उसे देख कर रोने लगी। वह मकड़ा फिर आया और बोला आज तो मैं तुम्हारा कलर बॉक्स लूंगा। उसने उसी तरह उसने प्रिंसेस डॉल का ध्यान हटा कर सारे ट्रांसलेशन कर डाले। अब मकड़ा प्रिंसेस डॉल का कलर बॉक्स भी चला गया। दो दिनों के बाद पेरंट टीचर मीटिंग में प्रिंसेस की मम्मी से मैथ की मैम और अंग्रेजी की मैम ने प्रिंसेस की बहुत तारीफ़ किया। लेकिन कहा कि घर से सब सवाल कर लाती है पर क्लास में रूपम से बातें बहुत करती है। कहीं आप तो घर में उसकी मदद तो कहीं नहीं कर देती हैं । ऐसे उसके सवाल कोई दूसरा कर देगा तो आप की प्रिंसेस बुद्धू रह जायेगी उसे तो कुछ नहीं आएगा। प्रिंसेस की माँ को भी दाल में कुछ काला नजर आया। घर आ कर वह जादू से गायब होकर दरवाजे के पीछे छुप कर बैठ गयी। उन्होंने देखा की एक मक्खी और एक मकड़ा आपस में बात कर रहे थे। मकड़ा बोला की मैं टिंकपिका से आया हूँ वहाँ के जादूगर ने भेजा है। प्रिंसेस के सब सवाल मैं कर देता हूँ। धीरे धीरे वह वीक (कमजोर) हो जायेगी तब उसे बुद्धू बना कर टिंकपिका का जादूगर अपने साथ पकड़ कर ले जाये जाएगा और बार्बी डॉल बना कर अलमारी में बंद कर देगा । इससे वह बहुत पावरफुल हो जाएगा , तब उसका कोई कुछ नहीं कर सकता और वह बहुत ताकत वाला बन जाएगा।
प्रिंसेस को ना तो उस मकड़े और मक्खी की बात कुछ सुनाई दे रही थी न तो वह समझ ही पा रही थी कि मकड़ा उसका काम क्यों कर दे रहा है। प्रिंसेस की माँ तो वहाँ जादू से छुपी थीं उन्होंने मकड़े की सब बातें सुन ली थी । वो जाला साफ़ करने वाला एक झाड़ू लेकर आयीं और उन्होंने जाला साफ कर दिया और मकड़े को मार दिया। प्रिंसेस की मम्मी प्रिंसेस से बोली की यह मकड़ा तुम्हारा होम वर्क करके तुम्हे कमजोर कर दे रहा था ताकि तुम्हे बुद्धू बनाकर वह बदमाश जादूगर पकड़कर ले जाय और बार्बी डॉल बना कर अपनी अलमारी में बंद कर दे। अब तुम अपना होम वर्क खुद किया करो जिससे तुम अधिक बुद्धिमान बन सको।


                    शरद कुमार श्रीवास्तव 

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता







  
                    
              क्यों? कैसे ?
         हुए चार दिन नहीं सुनाई
         नानी मुझे कहानी |

         चिड़ियों वाली आज सुना दो,
         कैसे खातीं खाना |
         दांत नहीं फिर भी चब जाता ,
         कैसे चुनका दाना |
         कैसे घूँट चोंच में भरती,
         कैसे पीतीं पानी |

         कैसे छुपा बीज धरती में ,
         पौधा बन जाता है |
         दिन पर दिन बढ़ते -बढ़ते वह ,
         नभ से मिल आता है |
         बिना थके दिन रात खड़ा वह ,
         कैसे औघड़ दानी |

         सुबह -सुबह से सूरज कैसा ,
         दुल्हन सा शर्माता |
         किन्तु दोपहर होते ही क्यों  ,
         अंगारा बन जाता |
         मुंह 
सीकर क्यों  खड़ी हो नानी,
         कुछ तो बोलो वाणी|

        नल की टोंटी में से पानी,
        बाहर कैसे आता |
        बनकर धार धरा पर गिरना,
        कौन उसे सिखलाता |
        घड़ों ,मटकियों की नल पर क्यों, 
        होती खींचातानी ?


प्रभुदयाल श्रीवास्तव 
१२ शिवम सुंदरम नगर 
छिंदवाड़ा म प्र
                             
        

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की एक बाल कविता







प्रभुदयाल श्रीवास्तव
12 शिवम सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र

काँटे उसके दोस्त हो गए

तितली फूलों की शाला में,
आई दाखला लेने।
झिझकी थोड़ी देख फूल सँग,
काँटे लंबे पैने।
       फूल ख़ुशी से रहते हैं तो,
       मैं क्यों न रह पाऊँ।
       मैं तो रानी तितली  हूँ क्यों,
       काँटों से डर जाऊँ?
अब तो तितली काँटों में भी,
बहुत देर रह आती।
काँटे उसके दोस्त हो गए,
तो फिर क्यों घबराती।

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

होली




बच्चों,हम आपके सम्मुख  होली विशेषांक रख रहे हैं। आशा है यह आपको पसंद आयेगा।  जैसा कि आप जानते ही हैं कि होली का त्योहार भारत और नेपाल सहित सभी हिन्दू धर्म के अनुयायियों में बहुत जोर शोर से मनाया जाता है ।   जानते हैं आप कि होली का त्योहार क्यों मनाते हैं? प्रहलाद नामक बालक भगवान का बड़ा भक्त था। उनके पिता हिरणाकश्यप दैत्यराज को अपने ऊपर बहुत घमंड था और वह स्वयं को भगवान से बड़ा समझता था। प्रहलाद भगवान की पूजा करता था तो उसको भगवान की पूजा नहीं करने  के लिए कहता था  भक्त प्रहलाद  तरके नहीं मानने पर तरह तरह से मार डालने की बहुत कोशिश की। प्रहलाद को पहाड से नीचे फेंका, पागल हाथी के सामने डाला,खाने में जहर मिलाया लेकिन भगवान भक्त प्रहलाद हमेशा बच जाता था। अपने भाई को परेशान देखकर हिरणाकश्यप की बहन होलिका  जिस के पास एक ओढनी थी जिसे ओढ कर अगर आग में बैठ जाय तो आग उसे नहीं जला पायगी , बालक प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई लेकिन भगवान के आशीष से ऐसी हवा चली कि ओढनी  हवा में उड गई और होलिका जल गई तथा प्रहलाद बच गये। तब से लोगों ने एक दूसरे के ऊपर रगों को डाल कर लोग खुशियाँ मनाने लगे। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात उसके अगले दिन  रंग खेल कर मनाते हैं। हाँ एक बात और है वह यह कि भारतीय कृषक के पास रबी की फसल कट कर घर में आ जाती है अत: यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।  मौसम बहुत सुहाना हो जाता है।   आम के पेड़ों पर बौर आ जाते हैं पेड़ों पर कोयल गाने लगती है। 

होली भाईचारा और आपसी सौहार्द का प्रतीक है। हम सभी भेदभाव दूर कर प्यार से एक दूसरे के गले मिल इसे मनाते हैं।ब्रज की होली, मथुरा की होली, वृंदावन की होली, बरसाने की होली, काशी की होली पूरे भारत में मशहूर है।
आजकल अच्छी क्वॉलिटी के रंगों का प्रयोग होली में नहीं होता है।    त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग खेले जाते हैं। यह गलत है।  होली के इस  त्योहार पर रसायनिक लेप व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। बच्चों को भी सावधानी रखनी चाहिए। बच्चों को बड़ों की निगरानी में ही होली खेलना चाहिए। दूर से गुब्बारे फेंकने से चोट लग सकती है । रंगों को भी आंखों और अन्य अंदरूनी अंगों में जाने से रोकना चाहिए। यह मस्ती भरा पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए। 

इस वर्ष कोरोना वाइरस का प्रकोप फैला है अतः बहुत सावधानी से और सजगता से होली का त्योहार मनाना चाहिए।. गुझिया तथा तरह तरह के पकवान का मजा भी एक उचित मात्रा में ही लेना चाहिए नहीं तो पेट खराब होने का डर रहता है और परेशान होना पड़ता है। 


                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 




















कुमारी आद्या कक्षा  1 डी प्रिसीडियम इन्दिरापुरम  गाजियाबाद  के द्वारा बनाया गया चित्र  




कुमारी मान्या रावत ,  डी पी एस इन्दिरापुरम, गाजियाबाद , द्वारा बनाया गया होली का  चित्र 

गुलाल संग : अर्चना सिंह गाजियाबाद











आओ चलो
फागुन का आनंद लें।
इस होली हम
जीवन में रंग भरें।.
संग गुलाल के
रंग प्रेम का,
रंग खुशियों का,
अपनी झोली में भर लें।
तन मन में
रंग गीत का,
रंग मीत का,
फाग गाकर झूम लें।
गुलाल मल दे
बैर भूलकर,
बिन पानी के भी
चल हो लेंं गीले,
स्नेह रस जो गर पी लेंं।
प्यार से मिल
होली में देखो,
फिर से धरा आज
हरी,गुलाबी,पीली,
नीली, है देखो हो - ली।





          ......अर्चना सिंह
                 गाजियाबाद 

वासन्ती रँग महेन्द्र देवांगन माटी की रचना







हुआ भोर अब देखो प्यारे, पूर्व दिशा लाली छाई।
लगे चहकने पक्षी सारे, गौ माता भी रंभाई।।

कमल ताल में खिले हुए हैं,  फूलों ने ली अँगड़ाई।
मस्त गगन में भौंरा झूमे, तितली रानी भी आई।।

सरसों फूले पीले पीले, खेतों में अब लहराये।
कूक उठी है कोयल रानी, बासन्ती जब से आये।।

है पलाश भी दहके देखो, आसमान में रँग लाई।
पढ़े प्रेम की पाती गोरी, आँचल अपनी लहराई।।

दिखे प्रेम का भाव अनोखा,  सुंदर चिकने गालों में ।
झूम रही है साँवल गोरी, गजरा डाले बालों में ।।


महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353

आग तापकर देह तपानी : प्रभु दयाल श्रीवास्तव




  बिछा बिछौना हरी दूब का,
  उस पर लेटी धूप सुहानी।
       ठंडी हवा चली जब सर- सर,
       धूप परी भी थर- थर कांपी।
       मौसम के थर्मामीटर ने,
       कड़क ठंड की डिग्री मापी।
       सतह ऊपरी बर्फ बन गई,
       रखा बाल्टियों में जो पानी।
  जब तब कुछ बादल हर कारे
  बन चादर सूरज ढक लेते।
  छू मंतर की दाई बोलकर,
  धूप तुरत गायब कर देते।
  शीत लहर की नटनी करती,
  बच्चों जैसी कारिस्तनी।
           घर के सारे बच्चे बूढ़े,
           छुपे रजाई में बैठे हैं,
           कोयले भरी अंगीठी के तो,
           मां ने कान अभी ऐंठे हैं।
           आग तापके पापाजी को,
           शायद अपनी देह तपा नी।   

  


प्रभु दयाल श्रीवास्तव
१२ शिवम् सुंदरम नगर
  छिन्दवाड़ा म प्र

गुड़िया की होली *****प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






रंग बिरंगे सभी ओर जी, हरियाली है छाई।


फागुन की होली है देखो , गुड़िया रंग है लाई।।
घूम घूम के खेले होली , सबको रंग लगाई।
पापा के संग गुड़िया रानी , पिचकारी खूब चलाई।।
चुन्नू मुन्नू दोनों आये , रंग साथ मे लाये।
गुड़िया रानी को देखकर , दंग सभी रह जाये।।
दादा जी मुखौटा पहने , गुड़िया को डराये।
दौड़ दौड़ के खेले होली , बच्चे शोर मचाये।।
घर घर मीठे पकवान बनाये , मिल बाँट कर खाये।
बच्चे बूढ़े सभी मजे से , होली खूब मनाये।।


प्रिया देवांगन प्रियू
पंडरिया (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़

लक्ष्य (लघुकथा) : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






एक गाँव मे एक गरीब बालक रहता था ।उसका नाम वैभव था। वैभव के माता -पिता बहुत गरीब थे।माँ दूसरो के घर बर्तन साफ करने का काम करती थीऔर पिता जी सब्जी बेचते थे।
वैभव बचपन से ही होशियार था ।  उसका लक्ष्य था कि वह बड़ा होकर सैनिक बने और देश की रक्षा करे। उसकी माँ ने अपने बच्चे के लिये बर्तन साफ करके तथा पिता ने सब्जी बेचकर वैभव को पढ़ाया - लिखाया।. वैभव अपने घर की गरीबी को देख कर अपने माता - पिता से अपने लक्ष्य के बारे में कुछ कह नही पाता था।  वैभव स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद कॉलेज के साथ - साथ अपने पिता जी के साथ सब्जी बेचने जाता था तथा धन इकट्ठा करता था।. धन इकट्ठा करने के बाद वैभव दिल्ली गया और वहाँ  अपनी अथक पढ़ाई और  कड़ी मेहनत के बल पर सैनिक  बनकर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।।





प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया (कबीरधाम) 
छत्तीसगढ़