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2017
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नवंबर
(13)
- शरद कुमार का बालगीत : नानी की खीर
- सपना मांगलिक की बालकविता : घोड़ा
- मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा। खाना उतना ही लो ज...
- भुवन बिष्ट की वंदना : इतनी शक्ति देना दाता
- अर्पिता अवस्थी की रचना : चढ्ढी वाला फूल
- सिया राम शर्मा की रचना : गुल्लू गुड्डा
- अर्चना सिंह‘जया का बालगीत : बारह माह
- प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : बचपन
- सुशील शर्मा की लघु बालकथा : बच्चों की सोच
- शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : समोसे और जलेबी
- सपना मांगलिक का बालगीत : मुन्ना क्या बनेगा?
- मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा बच्चों की सीख
- डॉ. प्रदीप शुक्ल की रचना : घुर्रम – घुर्रम – घर्र
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नवंबर
(13)
रविवार, 26 नवंबर 2017
मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा। खाना उतना ही लो जितनी भूख हो
रवि बचपन से ही होनहार व अनुशासन प्रिय छात्रथा। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह सभी जगह क्या स्कूल क्या घर सभी लोगों के दिलों मे अपनी जगह बना चुका था।
कक्षा १२ वीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। रवि के सभी मित्रों ने कहीं घूमने का प्लान बनाया।
दूसरे दिन रवि अपने मित्रों के साथ लखनऊ के ऐतिहासिक स्थलों को देखने निकल पड़ा।
सबने खूब आनन्द उठाया। सब थक चुके थे दिन भर घूमने के बाद। रवि बोला अब कुछ पेट पूजा की जाय।
अपनी थकान मिटाने के लिये एक रेस्ट्रां मे गये। भीड़ बहुत थी। एक कोने मे खाली टेबल देखकर वहीं सब बैठ गये।
सबने अपनी अपनी पसन्द की डिश का आर्डर दिया।इडली, डोसा, सांभर,बड़ा आदि। सबने खूब डटकर खाया पर मन नहीं भरा। दुबारा और खाने का आर्डर दिया।
थोड़ा खाया और बाकी छोड़ दिया। बिल अदा करने के बाद सब चलने को तैयार हुए।
इतने मे मैनेजर ने बड़ी नम्रता से कहा आप लोगों को इतना खाना ऐसे छोड़कर नहीं जाना चाहिये।
रवि ने कहा मैनेजर साहब ठीक ही तो कह रहे हैं। दूसरे दोस्त ने कहा हमने बिल दिया है, खायें चाहे छोड़ दें।
रवि बोला नहीं दोस्त! हमारे देश मे कितने लोगों को एक वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। इस तरह खाना बर्बाद करना उचित नहीं है। थाली मे उतना ही खाना लो जितनी भूख हो। यह बात समझ मे आई सबके।
सबने खाना पैक करवाया और गरीबों को ले जाकर बांट दिया । पेट भर के खाना खाकर सब बड़े खुश थे।
रवि की सोच से सब दोस्त बहुत प्रभावित हुए और संकल्प लिया कि आगे से
खाने का एक भी दाना बर्बाद नहीं करेंगे। एक संस्था से जुड़ गये जो
बचे हुए खाने को गरीबों तक पहुँचाती है।
धीरे धीरे लोग इस काम मे जुटते गये और खाना बर्बाद होने के बजाय किसी भूखे का सहारा बना।
बच्चों तुम लोग भी संकल्प लो कि थाली मे खाना उतना ही लोगे जितनी भूख हो। ख़ाना बर्बाद नहीं होना चाहिये ।
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
अर्पिता अवस्थी की रचना : चढ्ढी वाला फूल
'जंगल जंगल बात चली है पता चला है. . . अरे चढ्ढी पहन के फूल खिला है', गाना सुन के चिंकु का मन मचल गया पाने को ऐसा अदभुत फूल जो चढ्ढी पहनता है.
सोच रहा था मम्मी पापा की मैरिज एनीवर्सरी के दिन उपहार मे चढ्ढी पहना हुआ फूल ही देगा इसीलिये अपने घर का पूरा बगीचा देख डाला पर कोई फूल ऐसा नही दिखा जिसने चढ्ढी पहनी हो फिर वो जल्दी- जल्दी तैयार होके स्कूल को निकल गया रास्ते भर
सारे फूल देखता रहा शायद कही चढ्ढी वाला फूल दिख जाये पर निराशा ही हाथ लगी. स्कूल मे चिंकु टीचर से सवाल पूछ बैठा कि ' मैम ये चढढी वाला फूल कहां पाया जाता है? सवाल सुनते ही टीचर का सिर चकरा गया और बोली कि ऐसा कोई फूल नही होता जो चढ्ढी पहना हुआ खिलता है? फिर भी चिंकु नही माना तो टीचर ने चिंकु को डांट कर चुप करा कर बैठा दिया. चिंकु निराश होगया घर मे पूरा दिन किसी से बात नही की, रात मे सपने मे चढ्ढी पहना फूल तलाशता रहा पर सपने मे भी ऐसा अदभुत फूल पाने मे नाकाम रहा. सुबह मम्मी ने उठाया और चिंकु को नहलाया धुलाया, चिंकु की स्कूल यूनीफॉर्म लेकर आई और उसे पहनाने ही वाली थी कि मम्मी का ध्यान चिंकु की रोनी सूरत पर गया तो मम्मी ने चिंकु की मायूसी का कारण पूछा तब चिंकु रोने लगा और बोला
"जंगल जंगल पता चला है चढ्ढी पहन के फूल खिला है. . . ., मम्मी हमेशा गाते रहते हो पर ये तो बताओ ऐसा फूल कहां उगता है? मुझे कही नही मिला."
सोच रहा था मम्मी पापा की मैरिज एनीवर्सरी के दिन उपहार मे चढ्ढी पहना हुआ फूल ही देगा इसीलिये अपने घर का पूरा बगीचा देख डाला पर कोई फूल ऐसा नही दिखा जिसने चढ्ढी पहनी हो फिर वो जल्दी- जल्दी तैयार होके स्कूल को निकल गया रास्ते भर
सारे फूल देखता रहा शायद कही चढ्ढी वाला फूल दिख जाये पर निराशा ही हाथ लगी. स्कूल मे चिंकु टीचर से सवाल पूछ बैठा कि ' मैम ये चढढी वाला फूल कहां पाया जाता है? सवाल सुनते ही टीचर का सिर चकरा गया और बोली कि ऐसा कोई फूल नही होता जो चढ्ढी पहना हुआ खिलता है? फिर भी चिंकु नही माना तो टीचर ने चिंकु को डांट कर चुप करा कर बैठा दिया. चिंकु निराश होगया घर मे पूरा दिन किसी से बात नही की, रात मे सपने मे चढ्ढी पहना फूल तलाशता रहा पर सपने मे भी ऐसा अदभुत फूल पाने मे नाकाम रहा. सुबह मम्मी ने उठाया और चिंकु को नहलाया धुलाया, चिंकु की स्कूल यूनीफॉर्म लेकर आई और उसे पहनाने ही वाली थी कि मम्मी का ध्यान चिंकु की रोनी सूरत पर गया तो मम्मी ने चिंकु की मायूसी का कारण पूछा तब चिंकु रोने लगा और बोला
"जंगल जंगल पता चला है चढ्ढी पहन के फूल खिला है. . . ., मम्मी हमेशा गाते रहते हो पर ये तो बताओ ऐसा फूल कहां उगता है? मुझे कही नही मिला."
तब मम्मी ने मुस्करा के कहा
" अरे ऐसा खास तरीके का फूल तो मेरे पास है"
चिंकु ने बड़े उत्साह से खिलखिलाते हुये पूछा
"पर कहां?"
तब मम्मी ने एक जगह अंगुली से इशारा करके दिखलाया पर चिंकु को नजर नही आया, मम्मी ने फिर बताया कि वही है ध्यान से देखो. चिंकु को फिर भी नजर नही आया और चिढ़ कर बोला
"यहां सिर्फ आईना है और उसमे मै दिख रहा हूं"
मम्मी मुस्कुराई
"अरे बाबू! तुम ही तो मेरा चढ्ढी वाला फूल"
आखिरकार मम्मी ने चिंकु का माथा चूमते हुये समझाया कि इस दुनिया मे छोटे-छोटे बच्चे ही एकमात्र ऐसे फूल है जो चढ्ढी पहन के खिलते है. मम्मी के द्वारा अपने कठिन सवाल का अदभुत जवाब सुन कर चिंकु खुश होकर मम्मी के गले से लग गया।
अर्पिता अवस्थी
raressrare@gmail.com
" अरे ऐसा खास तरीके का फूल तो मेरे पास है"
चिंकु ने बड़े उत्साह से खिलखिलाते हुये पूछा
"पर कहां?"
तब मम्मी ने एक जगह अंगुली से इशारा करके दिखलाया पर चिंकु को नजर नही आया, मम्मी ने फिर बताया कि वही है ध्यान से देखो. चिंकु को फिर भी नजर नही आया और चिढ़ कर बोला
"यहां सिर्फ आईना है और उसमे मै दिख रहा हूं"
मम्मी मुस्कुराई
"अरे बाबू! तुम ही तो मेरा चढ्ढी वाला फूल"
आखिरकार मम्मी ने चिंकु का माथा चूमते हुये समझाया कि इस दुनिया मे छोटे-छोटे बच्चे ही एकमात्र ऐसे फूल है जो चढ्ढी पहन के खिलते है. मम्मी के द्वारा अपने कठिन सवाल का अदभुत जवाब सुन कर चिंकु खुश होकर मम्मी के गले से लग गया।
अर्पिता अवस्थी
raressrare@gmail.com
गुरुवार, 16 नवंबर 2017
सिया राम शर्मा की रचना : गुल्लू गुड्डा
मिष्टी सोच में डूबी
क्या करूँ?
बुआ लायीं
डॉली डौल
चाचा लाये
स्मार्ट कॉर!
गुल्लू गुड्डा
टुकुर टुकुर
देखे तो देखे
बहुत उदास
नये नये
खिलौने
चमकते
दमकते स्मार्ट
अब उसकी
क्या बिसात?
सोच में डूबा
गुल्लू उदास!
मिष्टी
इधर घूमे,
उधर घूमे,
क्या करूँ?
नहीं, नहीं
मेरा प्यारा
गुल्लू!
बस
एक वो ही
हर पल का
साथी!
सॉरी!
मैं कैसे
उसे छोढ़ूँ!
नहीं, नहीं
कभी नहीं
बस और नहीं !
प्यार से
गुल्लू को
गोदी में ले
नीचे कुर्सी
पर बैठाया
गुड्डे का
बहुत लाड़ लडा़या
गुल्लू का भी
जी बहुत भर आया,
मेरी प्यारी
नन्हीं गुड़िया
मिष्टी प्यारी रानी है!
सिया राम शर्मा
प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : बचपन
छोटे छोटे बच्चे हैं हम , मिलजुल कर सब रहते हैं ।
खेल खेल में भले झगड़ ले , भेदभाव नहीं करते हैं ।
पढ़ लिखकर विद्वान बनेंगे, नया इतिहास रचायेंगे ।
नये नये सृजन कर हम , भारत को स्वर्ग बनायेंगे ।
छोटे हैं तो क्या हुआ, हममें भी समझदारी है ।
भारत माता के प्रति, हममें भी जिम्मेदारी है ।
नहीं झुकने देंगे तिरंगा, चाहे जो कुछ हो जाये ।
अड़े रहेंगे अपनी जगह पर, चाहे तूफान आ जाये।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
सुशील शर्मा की लघु बालकथा : बच्चों की सोच
जंगल के स्कूल में शेर सिंह प्राचार्य थे।जंगल के सभी बच्चे उनके स्कूल में पढ़ते थे।
हाथी चंद हिंदी के शिक्षक थे,लोमड़ प्रसाद सामाजिक विज्ञान पढ़ाते थे, भालू प्रसाद संस्कृत के शिक्षक थे, धनवंती घोड़ी विज्ञान की शिक्षिका थी।
आज शिक्षक दिवस पर सभी बच्चों ने धनवंती मेडम से कहा कि आप प्राचार्य महोदय से बाल मेला लगाने की अनुमति दिलवाओ।हम सभी अपनी अपनी दुकानें लगाना चाहते हैं।धनवंती मैडम ने कहा तुम चिन्तामत करो लगा लो मैं प्राचार्य महोदय से बात करूंगी।
स्कूल के समय से पहले ही सभी बच्चों ने अपनी अपनी चाट, खोमचे, और अन्य सामग्री की दुकानें लगा लीं।
स्कूल के लगने की घंटी बजी तो सभी लोग प्रार्थना स्थल पर आए।प्राचार्य शेर सिंह भी प्रार्थना स्थल पर पहुंचे बाजू में बच्चे छोटी छोटी दुकानें लगाए हुए थे।
"ये दुकानें किस ने लगाई किस ने अनुमति दी"शेर सिंह चिल्लाएं।
"जी मैंने दी है "डरते हुए धनवंती मैडम बोलीं।
"मैडम ये बच्चों के पढ़ने का समय है या मौज मस्ती का"शेरसिंह ने मैडम से प्रश्न किया।
"आप प्रेयर के बाद मेरे कक्ष में आइए"शेर सिंह ने आदेशात्मक स्वर में कहा।
सभाकक्ष में सन्नाटा था प्रेयर के बाद प्राचार्य महोदय शेरसिंह के कक्ष में धनवंती मैडम की पेशी हुई।
"इस विद्यालय की प्राचार्य आप हैं या मैं"शेरसिंह ने गुर्राते हुए कहा।
"जी आप"धनवंती मैडम ने कहा।
"फिर मेरी अनुमति के बगैर आपने इन्हें कैसे दुकान लगाने को कहा"शेरसिंह ने बात की तह तक जाते हुए कहा।
"सर कल बच्चे मेरे पास आये थे आपसे अनुमति के लिए कहा था किंतु आप मीटिंग में थे उन्होंने जो वजह बताई उस कारण में इनकार नही कर सकी"धनवंती मैडम ने सफाई देते हुए कहा।
"हम भी तो सुनें ऐसी क्या महत्वपूर्ण वजह है?"शेर सिंह ने प्रश्न वाचक दृष्टि से धनवंती मैडम को देखा।
"सर हमारे विद्यालय में कक्षा नवमी का एक छात्र है गोलू बंदर एक दुर्घटना में उसके माता पिता दोनो शांत हो गए और अब वह अनाथ है कुछ दिनों से बीमार चल रहा है ये बच्चे आज की कमाई से उसकी सहायता करना चाहते है इस कारण से मैंने आप से बगैर पूछे अनुमति दे दी। इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।मैं अभी इन सब दुकानों को बंद करवाती हूँ।" धनवंती मैडम ने कक्ष से बाहर जाने को उद्दत हुईं।
"रुकिए मैडम" प्राचार्य शेर सिंह की आवाज़ गूंजी।
"आप सभी बच्चों और स्टाफ को इकठ्ठा करें और भी बच्चों से दुकान लगवाए ,हम सभी उन बच्चों की सहायता करेंगे और बालदिवस के अवसर पर उस गरीब बच्चे की जितनी अधिक मदद हो सके हम करेंगे" शेर सिंह ने धनवंती मैडम की ओर प्रशंसा भरी दृष्टि से देखा।
उस दिन सबने पहलीबार देखा कि प्राचार्य शेरसिंह हर बच्चे की दुकान पर जाकर कुछ न कुछ खरीद रहें है।
शाम को सभी बच्चों ने जितना भी समान बेचा था वो सारे पैसे उन्होंने प्राचार्य महोदय की टेबिल पर जमा कर दिए।
शेरसिंह अपने विद्यालय के बच्चों की सोच से अभिभूत थे।
सुशील शर्मा
सोमवार, 6 नवंबर 2017
मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा बच्चों की सीख
उस दिन बाजार मे बहुत भीड़ थी। रमेश काफी देर से एक दुकान मे सामान लेने के लिये खड़ा था। खड़े खड़े जब थक गया तो सोचा कुछ पेट पूजा कर ली जाय, भूख भी तो लगी थी।
दुकान के पास ही मिठाई की दुकान थी। वहां जाकर उसने दो बर्फी ली और बेंच पर बैठकर खाने लगा।
उसने देखा दो बच्चे करीब १२ साल का लड़का और ८ साल की लड़की, दुकान पर आये। दो रसगुल्ले पैक करवाये। काउंटर पर महिला को पैसे देने आये। महिला ने कहा २० रूपये। लड़के ने अपने पास के पैसे गिने।पर ये क्या ! ये तो १५ रूपये ही हैं।
लड़के ने एक रसगुल्ला टेबल पर रखकर महिला से कहा ,आंटी आप मुझे एक ही रसगुल्ला दे दीजिये।
लड़के ने अपनी बहन से कहा हम एक ही रसगुल्ला ले सकते हैं। ये मां को दे देंगे। वह बहुत खुश हो जायगी। हम फिर कभी ले लेंगे। बहन का मन उदास हो गया।
रमेश यह सब देख रहाथा। वह अपनी जगह से उठा और महिला को १०० रूपये देकर कहा रसगुल्ले, बर्फी आदि पैक कर दीजिये।
दोनो बच्चों के चेहरे खुशी से खिल उठे। दोनों रमेश से लिपट गये और कहने लगे, अंकल आप कितने अच्छे हो।
बच्चों की इमानदारी और मां के प्रति इतना प्यार देखकर रमेश बहुत भावुक हो गया।
रमेश तो एक चोर था। बच्चों की इमानदारी देखकर उसका मन अचानक ही बदल गया।
उस दिन से उसने कसम खाई कि वह आगे से कभी चोरी नहीं करेगा।
एक अच्छा इन्सान बन के रहेगा।उसने सोचा जब बच्चे इमानदार हो सकते हैं तो मै क्यों नहीं अच्छा इन्सान बन सकता।
बच्चों के कारण रमेश का जीवन सुधर गया।
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
डॉ. प्रदीप शुक्ल की रचना : घुर्रम – घुर्रम – घर्र
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र
लिए नगाड़ा मुन्नी पीछे
कुर्रम – कुर्रम - कर्र
दौड़ रहा वो पूरे घर में
पहने केवल चड्ढी
उसके आगे से हट जाओ
बहुत तेज़ है गड्डी

थक कर दादी बैठ गयी हैं
मचिया बोली चर्र
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र
आगे आगे मुन्ना पीछे
दीदी हाँथ पसारे
गिर ना जाए चबूतरे से
पहुँचा हुआ किनार
बहुत जोर से तभी पास में
मेढक बोला टर्र
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र
मम्मी बोली रुक जा मुन्ना
खाना तो खा ले
पर निगाह में तितली उसके
पहले वो पा ले
मुश्किल से छू पाया मुन्ना
तितली भागी फ़र्र
दौड़ रही मुन्ना की गाड़ी
घुर्रम – घुर्रम – घर्र
डॉ. प्रदीप शुक्ल
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