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सोमवार, 6 नवंबर 2017

मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा बच्चों की सीख






उस दिन बाजार मे बहुत भीड़ थी। रमेश काफी देर से एक दुकान मे सामान लेने के लिये खड़ा था। खड़े खड़े जब थक गया तो सोचा कुछ पेट पूजा कर ली जाय, भूख भी तो लगी थी।
दुकान के पास ही मिठाई की दुकान थी। वहां जाकर उसने दो बर्फी ली और बेंच पर बैठकर खाने लगा।
   उसने देखा दो बच्चे करीब १२ साल का लड़का और ८ साल की लड़की, दुकान पर आये। दो रसगुल्ले पैक करवाये। काउंटर पर महिला को पैसे देने आये। महिला ने कहा २० रूपये। लड़के ने अपने पास के पैसे गिने।पर ये क्या ! ये तो १५ रूपये ही हैं।
लड़के ने एक रसगुल्ला टेबल पर रखकर  महिला से कहा ,आंटी आप मुझे एक ही रसगुल्ला  दे दीजिये।
लड़के ने अपनी बहन से कहा हम एक ही रसगुल्ला ले सकते हैं। ये मां को दे देंगे। वह बहुत खुश हो जायगी। हम फिर कभी ले लेंगे। बहन का मन उदास हो गया।
   रमेश यह सब  देख रहाथा। वह अपनी जगह से उठा और महिला को १०० रूपये देकर कहा रसगुल्ले, बर्फी  आदि पैक कर दीजिये।
     दोनो बच्चों के चेहरे खुशी से खिल उठे। दोनों रमेश से लिपट गये और कहने लगे, अंकल आप कितने अच्छे हो।
    बच्चों की इमानदारी और मां के प्रति इतना प्यार देखकर रमेश बहुत भावुक हो गया।
रमेश तो एक चोर था। बच्चों की इमानदारी देखकर उसका मन अचानक ही बदल गया।
  उस दिन से उसने कसम खाई कि वह आगे से कभी चोरी नहीं करेगा।
एक अच्छा इन्सान बन के रहेगा।उसने सोचा जब बच्चे इमानदार हो सकते हैं तो मै क्यों नहीं अच्छा इन्सान बन सकता।

बच्चों के कारण रमेश का जीवन सुधर गया।


मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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