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रविवार, 26 नवंबर 2017

मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा। खाना उतना ही लो जितनी भूख हो




रवि बचपन से ही होनहार व अनुशासन प्रिय छात्रथा। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह सभी जगह क्या स्कूल क्या घर  सभी लोगों के दिलों मे  अपनी जगह बना चुका था।
कक्षा १२ वीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। रवि के सभी मित्रों ने कहीं घूमने का प्लान बनाया।
दूसरे दिन रवि अपने मित्रों के साथ  लखनऊ के ऐतिहासिक स्थलों को देखने निकल पड़ा।
सबने खूब आनन्द उठाया। सब थक चुके थे दिन भर घूमने के बाद। रवि बोला अब कुछ पेट पूजा की जाय।

अपनी थकान मिटाने के लिये एक रेस्ट्रां मे गये। भीड़ बहुत थी। एक कोने मे खाली टेबल देखकर  वहीं सब बैठ गये।
सबने अपनी अपनी पसन्द की डिश का आर्डर दिया।इडली, डोसा, सांभर,बड़ा आदि। सबने खूब डटकर खाया पर मन नहीं भरा। दुबारा और खाने का आर्डर दिया।
थोड़ा खाया और बाकी छोड़ दिया। बिल अदा करने के बाद सब चलने को तैयार हुए।
इतने मे मैनेजर ने बड़ी नम्रता से कहा आप लोगों को इतना खाना ऐसे छोड़कर नहीं जाना चाहिये।
रवि ने कहा मैनेजर साहब ठीक ही तो कह रहे हैं। दूसरे दोस्त ने कहा हमने बिल दिया है, खायें चाहे छोड़ दें।
रवि बोला नहीं दोस्त! हमारे देश मे कितने लोगों को एक वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। इस तरह खाना बर्बाद करना उचित नहीं है। थाली मे उतना ही खाना लो जितनी  भूख हो। यह बात समझ मे आई  सबके।

सबने खाना पैक करवाया और गरीबों को ले जाकर बांट दिया । पेट भर के खाना खाकर सब बड़े खुश थे।

रवि की सोच से सब दोस्त बहुत प्रभावित हुए और संकल्प लिया कि आगे से
खाने का एक भी दाना बर्बाद नहीं करेंगे। एक संस्था से जुड़ गये जो 
बचे हुए  खाने को गरीबों  तक पहुँचाती है।
धीरे धीरे लोग इस काम मे जुटते गये  और खाना बर्बाद होने  के बजाय किसी भूखे का सहारा बना।

बच्चों तुम लोग भी संकल्प लो कि थाली मे खाना उतना ही लोगे जितनी भूख हो। ख़ाना बर्बाद नहीं होना चाहिये ।



                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार 

  

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