नवल किशोरी खेलत होरी।
कान्हा ने जब बांह मरोरी।
सखियां करती जोराजोरी।
रंग दो पिया चुनरिया कोरी।
टूट गए हैं आज सारे बंध।
रस में भीगे है सब छंद।
थिरक उठे गोरी के अंग।
रसिक भये रति संग अनंग।
जीवन बना नया अनुबंध।
नाच उठा सारा आकाश।
उदित रंग से सना पलाश।
सांस सांस में तेरी आस।
मन में है बासंती विश्वास।
चलो मिले अमराई पास।
राधे रूठी श्याम मनावें।
मन में प्रीत के रंग लगावें।
श्याम सखा को अंग लगावें।
वृंदावन में रास रचावें।
देख युगल छवि मन हरसावें।
मुंह पर मलें अबीर गुलाल।
कान्हा की देखो ये चाल।
खुद बच कर भागे नंदलाल।
फेंक सभी पर प्रेम गुलाल।
कान्हा बिन है मन बेहाल।
देखो होली के हुड़दंग।
मन बाजे जैसे मृदंग।
गोरी बनी बड़ी दबंग।
बच्चे बूढ़े सब एक रंग।
लहराते सब पीकर भंग।
सुशील शर्मा
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