रघु एक बहुत बड़ी कम्पनी का मालिक था| वह बहुत खुशमिजाज व मिलनसार व्यक्ति था| अपने कर्मचारियों से भी वह दोस्तों जैसा व्यवहार करता था|
एक दिन रघु ने अपने कर्मचारियों को अपने केबिन मे बुलाया और सबको बैठाकर कहा दोस्तों आज मै तुम लोगों को अपने बचपन का एक अनुभव सुनाने जा रहा हूँ |
हमारा साधारण परिवार था | हम आर्थिक रूप से भी साधारण ही थे | पर पिताजी ने किसी तरह मेरी पढ़ाई पूरी करवाई |
रात का खाना हम सब साथ ही खाते थे। |एक दिन खाते वक्त मै सबकी तरफ देख रहाथा कि प्लेट मे से जली रोटी कौन उठाता है |मेने देखा पापा वह रोटी उठाकर बड़े चाव से मक्खन लगगाकर खा रहे हैं किचन से मां के जाने के बाद मैने पापा से पूछा पापा सच बताइये कि उस जली रोटी मे कोई स्वाद था? पापा ने कहा देखो बेटा तुम्हारी मां सारे दिन घर का काम करके बहुत थक जाती है | यदि एक दिन रोटी जल गई तो क्या हुआ? वो मैने खा ली तो क्या हुआ? मां कम से कम थोड़ा शान्ति से सो जायगी |
देखो बेटा हर इन्सान मे कोई न कोई कमी होती है | हर इन्सान से गलती भी होती है | हमे चाहिये कि उस गलती को उभारने की बजाय उसे सुधारने की कोशिश करें |
किसी की गलतियों की आलोचना से बात बनती नहीं बल्कि और नुकसान ही होता है |
मैने वही किया | जिसको गलती करते देखता उसे सुधारने की कोशिश करता | उसका नतीजा आज आपके सामने है |
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बच्चों देखो हर इन्सान मे कोई न कोई कमी रहती है| गलतियाँ भी इन्सान से ही होती है | इसलिये एक सफल इन्सान बनने के लिये अपनी व दूसरों की गलतियों को सुधारने की कोशिश करो |
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
very nice story
जवाब देंहटाएंvery nice story
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