मै सोचती हूँ कि अगर कोई जलपरी सच मे होती तो मैं उसे अपना दोस्त बनाती और उसके साथ समुद्र में खेलती और मेरे पास भी उनके जैसी पतवार नुमा पूँछ होती । मुझे जलपरी के महल को देखने का बहुत मन होता है । मैं जानती नही हूँ कि कैसे पता करूं कि वास्तव में जलपरी होती है कि नही । मैने अपने सभी साथियो से पूछा ! क्लास टीचर से भी पूछा ! लेकिन वे सब मेरी बात का मजाक बना देते है ।
कल रात को सचमुच मै जलपरी के महल मे अचानक ही पहुँच गई । गई तो मै अपनी बुआ जी के घर के पास बने स्वीमिंग पूल मे थी लेकिन कैसे मै जलपरी के महल में पहुंच गई मुझे खुद भी नहीं मालूम पडा । खूब सुन्दर कोरल का बना जलपरी का महल था। सुन्दर सुन्दर मछलियाँ महल के आसपास घूम रही थीं शायद वे महल की सुरक्षा या महल से जुडे अनेक काम कर रही थी । जलपरी मेरा हाथ पकड कर जलपरी- लोक घुमा रही थी। जल सेवार का पार्क था । बड़ी सी शार्क जलपरी की कार थी । मेरा हाथ पकड़ कर जलपरी ने मुझे शार्क की पीठ पर बैठाकर समुद्र की खूब सैर करायी । समुद्री घोड़ा, ऑक्टोपस स्टार फिश आदि मुझे दिखाया । तबतक मुझे थकान लगने लगी थी । ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही थी । जलपरी समझ गई थी वह मुझे अपने ऑक्सीजन के प्लान्ट में ले गई। उसी जगह पर बहुत सी सीप मोती बनाने का काम कर रही थी । इन मोतियों का वह व्यापार करती थी । मै अभी और जलपरी के साथ बिताना चाह रही थी कि मम्मी ने प्यार से मुझे उठाया बोलीं कि कितनी देर तक सोती रहोगी , बहुत दिन निकल आया है।
संस्कृति श्रीवास्तव
कक्षा 3
सुपुत्री स्तुति एवं संजीव श्रीवास्तव
Bahut pyari aur bholepan se ot-prot kahani...very good Sanskriti beta
जवाब देंहटाएंअगली बार जब आप जलपरी लोक में जाइये तो मुझे और अपने नाना जी को भी साथ ले जाइयेगा.. हम लोग भी जलपरी से मिलकर खुश होंगे..और हमारी कहानियाँ सुनकर वोह खुशी से नाचने लगेगी..हमारी कहानियाँ हैं ही ऐसी..
जवाब देंहटाएंआपकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी.. बहुत बहुत शाबास और बधाई