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बुधवार, 26 सितंबर 2018

प्रिंसेज डॉल की बर्थडे पार्टी : शरद कुमार श्रीवास्तव



मम्मी-पापा ने खुश होकर आज प्रिन्सेज डॉल के कान मे हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज सोते-सोते अपने पापा के गले से लिपट गई और आँखें बंद करके ही बोली पापा मेरा बर्थ डे है?   पापा बोले हाँ बेटा, आज तुम पाँच साल की हो गई हो !
 अब तुम एक साल और बड़ी हो गई हो ।   प्रिन्सेज ने खुश होकर अपनी आँखे खोल दी ।   वह बोली,  तो पापा, मै रूपम से एक साल बड़ी हो गई हूँ । रूपम डाॅल तो अभी फोर इयर की ही है। प्रिन्सेज खुशी से फूली नहीं समा रही थी । उसकी मम्मी ने भी प्यार करके उसे बिस्तर से बाहर निकाला और कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ स्कूल की देर हो रही है । आज तो तुम्हें नये कपड़ों में स्कूल जाना है । सब बच्चों के लिए टाफी बैलून भी लेकर जाना है ।
प्रिन्सेज जल्दी से तैयार होकर बच्चों के लिये टाफी बैलून के उपहार लेकर स्कूल वैन में बैठ कर स्कूल चली गई । स्कूल पहुंचने पर प्रेयर मे उसकी क्लास टीचर ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और हेड मैम के पास ले गई ।   हेड मैम ने भी उसे प्यार किया और प्रेयर के बाद सब बच्चों ने डाल को हैप्पी बर्थ-डे विश किया। क्लास में आने के बाद क्लास के बच्चों ने उसे हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज ने सभी बच्चों को बैलून और टाॅफियाँ बाटी । हरीश ने टाफी ले तो लिया पर उसने न तो प्रिन्सेज  हैप्पी बर्थ-डे कहा न थैंक्यू कहा । इस बात से प्रिन्सेज का चेहरा उतर गया। टीचर ने  जब देखा तब उन्होंने हरीश से अलग बुलाकर अकेले में पूछा कि यह क्या बात है । हरीश ने मैम को बताया कि पहले उसकी बर्थ-डे में प्रिन्सेज ने भी उसे विश नहीं किया था । मैम ने हरीश को समझाया कि बदला लेना बुरी बात होती है ।   फिर हरीश ने जाकर अलग से प्रिन्सेज को हैप्पी बर्थ-डे कहा । प्रिन्सेज ने हरीश से हाथ मिलाया और वे अच्छे दोस्त बन गए ।
शाम को सिटी होटेल में प्रिन्सेज के पापा ने प्रिन्सेज की हैप्पी बर्थ-डे की पार्टी रखी थी । पापा मम्मी के साथ प्रिन्सेज होटल पहुंच गई थी   ।   मम्मी-पापा प्रिन्सेज के लिए एक बहुत ही प्यारी फ्राक लाये थे वही फ्राक उसने पहन रखी थी फूलदार शू और गोल्डन हेयर बैन्ड भी उस के ऊपर बहुत सुन्दर लग रही थी । केक को तो अपने समय पर ही बेकरी से आना था । अतः उसके लिए चिंता की कोई बात नहीं है । चाचू अपने कैमरे के साथ फिट थे दादी बाबा जी भी चाचा-चाची के साथ ही आ गये थे । दोस्तों मे पहुचने वालों भे मुनमुन और बन्टी थे धीरे-धीरे सभी लोग आ गये थे । कुछ दोस्त मम्मी-पापा के थे तो कुछ प्रिन्सेज डॉल के थे । उसी समय वेटर ने एक पार्सल लाकर दिया और बोला कि अभी अभी कोरियर ने लाकर दिया था । पापा ने पार्सल देखकर डॉल को बताया कि उसकी नानी जी ने भेजा है । पार्सल के साथ हैप्पी बर्थ-डे कार्ड लगा है। प्रिन्सेज बहुत खुश हुई कि नानी जी को उसका जन्मदिन याद था। सब बच्चों ने कौतुहल वश नानी जी की गिफ्ट देखना चाहा । सब लोगों के सामने गिफ़्ट पैक खोला गया तो पार्सल से एक सुन्दर सा खिलौने वाला खरगोश निकला जो गाना भी गाता है और जो कहानी भी सुनाता है । प्रिंसेज उसे पाने कर बहुत खुश हो गई । फिर सब बच्चों ने गेम खेले।
तब तक केक 🎂 आ गया था । सब बच्चे केक को घेर कर खड़े हो गये। प्रिन्सेज डॉल ने तब मम्मी-पापा और दादी बाबा के साथ केक काटा और सब लोगों ने केक खाया और फिर बच्चो ने पोयम, चुटकुले गाने सुनाए . हरीश का गाना " सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" की सबने खूब तारीफ की . वहाँ एक मैजेशियन भी आये थे उन्होने बच्चो के मन पसन्द जादू दिखाऐ कागज के फूल को कबूतर बना दिया. एक खाली डिब्बे के अन्दर से खरगोश निकाल दिया. सब बच्चों को खूब मजा आया. खाने की प्लेटे आ गईं थी उन प्लेटो मे केक मैगी, स्प्रिंग रोल्स पकौड़ी , हलुआ और गुुलाबजामुन रखा था सब लोगों ने बड़े चाव से खाया . चाचू ने फोटो खींची । सभी बच्चों को रिटर्न गिफ़्ट मिली और सब अपने घर चले गये
घर आकर प्रिन्सेज  ने नानी जी की फोटो के सामने नानीजी को उनके प्यारे से गिफ्ट के लिए थैंक्स कहा तो नानी जी की फोटो मे नानीजी मुस्कराते हुए दिखाई पड़ीं ।



                                        शरद कुमार श्रीवास्तव

महेन्द्र देवांगन माटी की गणेश वंदना


8

जय गणेश देवा
( सरसी छन्द )

गौरी पूत गणपति विराजो , मंगल कीजै काज ।
रिद्धी सिद्धि के स्वामी हो तुम,  रख लो मेरी लाज ।।1।।

पहली पूजा करते हैं सब , करें आरती गान ।
गीत भजन मिलकर गाते हैं, आँख मूंदकर ध्यान ।।2।।

लड्डू मोदक भाते तुमको, मूषक करे सवार ।
माथे तिलक लगाते भगवन , और गले में हार ।।3।।

ज्ञान बुद्धि के देने वाले,  सबके तारण हार ।
आया हूँ मैं शरण आपके,  कर दो बेड़ा पार ।।4।।












महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा) 
छत्तीसगढ़ 
8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com 

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना तितली रानी







तितली रानी बड़ी सयानी , दिनभर घूमा करती हो ।
फूलों का रस चूस चूस  कर , पेट अपना तुम भरती हो।

आसमान की सैर करके ,  कितनी मस्ती करती हो ।
रहती हो सब मिल जुलकर , आपस में कभी ना लड़ती हो ।

इधर उधर तुम घूमा करती , पास कभी न आती हो ।
रंग बिरंगे फूल देखकर  , पास उसी के जाती हो ।

                                प्रिया देवांगन "प्रियू"
                                पंडरिया  (कबीरधाम )
                                छत्तीसगढ़ 


मंजू श्रीवास्तव की प्रस्तुति चालाक कौवा










चालाक कौआ
एक जंगल मे बहुत सुन्दर पेड़ था जिसपर दो कौए रहते थे| दोनो पति पत्नि थे | एक दिन मादा कौए ने दो अंडे दिये | दोनो बहुत खुश थे |
     दूसरे दिन दोनो कौए उड़ गये खाने पीने की तलाश मे | जब शाम को वापस आये तो देखा कि दोनो अंडे गायब|   दोनो कौए बहुत उदास और दुखी हो गये |
      ऐसे ही कुछ दिन बीत गये | मादा कौए ने फिर दो अंडे दिये | दूसरे दिन दोनो कौए खाने पीने की तलाश मे फिर उड़ गये | शाम को वापस आये तो देखा कि दोनो अंडे फिर गायब |  | बहुत ज्यादा दुखी हो गये |
      समझ नहीं आया कि मामला क्या है | चारों तरफ देखा ,  कुछ नहीं समझ आया | फिर नीचे देखा तो पेड़ के बिल्कुल पास एक बिल दिखाई दिया |उसमे से एक अजगर ने मुंह बाहर निकाला तो मामला समझ मे आ गया |
        सवेरा होते ही दोनो कौए उड़ते हुए नदी के किनारे पहुंचे | वहां कुछ महिलाओं ने अपने जेवर उतारकर नदी के किनारे रख दिये और हाथ मुंह धोने लगीं|
          कौऔं ने मौका देखा और
हार चोंच मे दबाकर उड़ चले | महिलाओं ने शोर मचाया तो पुलिस वाले कौओं के पीछे भागे  |
        कौए उड़ते हुए पेड़ के पास आये और. हार बिल मे  डाल दिया |  |
पुलिस वालों ने हार निकालने के लिये बिल मे हाथ डाला तो हाथ मे अजगर आ गया | पुलिस वालों ने अजगर को पीट पीट कर मार डाला | और हार ले जाकर उन महिलाओं को दे दिया |
         कौओं ने यह सब देखा और बड़े खुश हुए  | अब उनका अंडा कोई नहीं खायगा |
**************************†*
बच्चों, जब विपत्ति आये तो उस समय घबड़ाना नहीं चाहिये | धैर्य से काम लो तो समस्या का हल निकल आता है.

              मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

रविवार, 16 सितंबर 2018

गुलाब परी के फफोले : शरद कुमार श्रीवास्तव




गुलाब परी


गुलाब परी सो कर उठी । उठ कर अपने घर के सामने वाले झरने पर मुँह धोने के लिए हाथ बढ़ाया तो पानी नहीं था । आज हवा सो गई थी । हवा आज झरने तक ओस की बूँदें भरकर नहीं लाई थी । सबेरे ही गर्मी का दैत्य लाल लाल आँखों से डरा रहा था । गुलाब परी के शरीर पर फफोले पड़ गये थे । यद्यपि उसके पापा मम्मी ने उसे सात मुलायम गद्दों के ऊपर सुलाया था फिर भी प्रदूषण की वजह से गुलाब परी के गद्दों के नीचे धूल की एक कण की वजह से गुलाब परी के बदन पर फफोले पड़ गये थे । गुलाब परी की मम्मी को अपनी बच्ची की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी । उसने अपनी बच्ची की तकलीफ़ की शिकायत महारानी प्रकृति से की । महारानी ने आदेश जारी किया कि गुलाब परी की तकलीफ के कारणो का पता लगाया जाय ।
नन्ही रंग-बिरंगी तितली को इस काम के लिए रानी ने लगाया । तितली ने हवा,जल और भूमि को दोषी पाया । तितली ने अपनी रिपोर्ट कोयल को प्रस्तुत किया । कोयल ने हवा की बात सुनी । हवा ने अपने साथ साथ जल और भूमि का पक्ष रखा । प्रदूषण से भरपूर हवा , कोयल के सुर को भी नुकसान पहुंचा रही थी । अतः पेड़ के ऊपर पत्तों के बीच मे छुपकर, जज कोयल ने हवा की बात सुनी। गन्दी सन्दी हवा ने जज कोयल को अपना पक्ष रखा । हवा बोली कि मानव जाति की वजह से हवा प्रदूषित हुई है । ऑटोमोबाइल से निकला धुँआ और उड़ती धूल फैक्टरियों की चिमनियों से उत्सर्जित गैसें और धुँआ, कचरा कचरे को जलाना भी हवा के प्रदूषण के कारण रहे हैं जो ओजोन परत में छेद कर रहे हैं और एक जटिल प्रक्रिया के दौरान प्रदूषण फैल जाता है । जज कोयल ने अपनी मीठी आवाज में हवा से निदान भी पूछा । हवा ने भूमि और जल की तरफ के पक्ष कोयल के समक्ष रखे । जिनमे मुख्य थे कि इन्सान अपने आस पास निजी और सामुहिक सफाई का ध्यान रखें । अधिक से अधिक पेड़ लगाए। अपने दैनिक जीवन शैली में बदलाव लाएं कम से कम आटोमोबाइल वाहनों का प्रयोग करें । पानी और बिजली को बचाए ताकि ऊर्जा के लिए जंगल नहीं कटे।
कोयल ने मामले को गंभीरता से लिया और प्रकृति महारानी से सिफारिश की कि मनुष्यों को कड़े और स्पष्ट शब्दों में निर्देश और चेतावनी दी जाऐ ताकि इस पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा बनी रहे और गुलाब परी को या किसी और को कोई नुकसान या तकलीफ नहीं हो।


                         




















  शरद कुमार श्रीवास्तव 

महेन्द्र देवांगन माटी की रचना : प्रेम



प्रेम करुं मैं प्रेम करुं , मानवता से प्रेम करुं ।
ऊँच नीच और जाति पाँति का , भेदभाव नहीं सहूं ।
प्रेम करुं मैं प्रेम करुं ।
हर गरीब को दाना मिले,  भूखे को खाना मिले ।
नहीं रहे कोई लाचार,  सबके मन में फूल खिले ।
आपस का झगड़ा छोड़े , सबके मन में प्रेम भरुं ।
प्रेम करुं मैं प्रेम करुं .....................
मर्यादा में सब रहें , नारी का सम्मान करें ।
न हो अपमान माता पिता का, उनका हम ध्यान रखें ।
नफरत की लाठी छोड़कर,  सबके ह्रदय सम्मान भरुं ।
प्रेम करुं मैं प्रेम करुं  , मानवता से प्रेम करुं ।


                             महेन्द्र देवांगन
                            पंडरिया छत्तीसगढ़


सुनो गजानन मेरी पुकार : सुशील. शर्मा

सुनो गजानन मेरी पुकार 
सुशील शर्मा



पिछले वर्ष जब तुम आये थे। 
हमें देख कर मुस्काये थे। 
दर्द बहुत था इन आँखों में ,
फिर भी हम कुछ न कह पाए थे। 

इस वर्ष आज तुम अब आये हो। 
हमें देख कर मुस्काये हो। 
स्वागत की सारी तैयारी ,
मेरे लिए तुम क्या लाये हो ?

आज सभी कुछ कहना तुमसे। 
और नहीं चुप रहना तुमसे। 
पिछले बरस के सारे किस्से ,
विस्तारों से कहना तुमसे। 

जब से गए गौरी के पाले ,
कष्टों ने हैं घेरे डाले।  
मंहगाई डायन है ऐसी ,
रोटी के पड़ गए हैं लाले। 

चारों तरफ शोर है भारी। 
किससे बोलें बात हमारी। 
पक्ष विपक्ष के बीच फँसी ,
जनता फिरती मारी मारी। 

झूठ सत्य का चोला पहने। 
द्वेष ,दगा के पहन के गहने। 
टी वी पर चिल्लाता फिरता, 
उसके भाषण के क्या कहने। 

पढ़े लिखे मेरे सब बेटे। 
गले में डिग्री संग लपेटे। 
गली गली सब घूम रहे हैं ,
नशे को तन मन संग समेटे। 

हर गली दरिंदे घूम रहें हैं। 
सत्ता के पद चूम रहें हैं। 
सारी बेटी सहमी सहमी ,
मदमस्ती में झूम रहे हैं। 

शिक्षा अब व्यवसाय बनी है। 
नोटों का पर्याय बनी हैं। 
गुरु नहीं अब कर्मी शिक्षक ,
सभी इरादे मनी मनी हैं। 

मुग़ल मीडिआ चिल्लाता है। 
पावर के ही गुण गाता है।  
विज्ञापन के धुर लालच में, 
सत्य चबा कर खा जाता है। 

नेमीचंद भूख से मरता। 
नीरव ,माल्या जेबें भरता। 
पेट्रोल में आग लगी है ,
मौन हैं फिर भी कर्ता धर्ता। 

हे !विघ्नविनाशक मन आधार 
सुनलो अब दीनों की पुकार 
भारत को समृद्धि दे दो 
हे मेरे गजानन अबकी बार। 

सत्ता को सेवा का मन दो। 
जनता को सुख का आंगन दो। 
पक्ष ,विपक्ष को बुद्धि देकर ,
जीवन को स्व अनुशासन दो।


सुशील शर्मा 

मंजू श्रीवास्तव की रचना गणेश उत्सव




गणेश चतुर्थी का त्योहार आनेवाला था |  चारों ओर जोर शोर से तैयारियाँ चल रही हैं | कॉलॉनी मे सभी लोग अपने अपने घरों की सफाई में जुटे पड़े हैं. |
       रघु के मन मे विचार आया कि इस बार गणेश पूजन मे क्यूँ न कुछ  नया किया जाय जो मिसाल बन जाय |
       रघु ने colony के सभी  बच्चों को पार्क मे बुलाया और अपने विचार  उनसे साझा किये | रघु ने कहा कि गणेश पूजन की स्थापना के लिये  सब लोग अपनी परंपरानुसार मिट्टी की मूर्ति  खरीदें  |
        इससे वातावरण को प्रदूषण से बचाने मे कुछ हद तक मदद मिल सकेगी | दूसरे, नदियाँ भी साफ रहेंगी |
         सभी को यह विचार पसन्द आया |
        तय हुआ कि  colony के हर घर मे दो दो जन जायेंगे और  uncle,aunty को अपने विचार बतायेंगे |
           सभी घरों मे लोगों ने इस योजना को स्वीकार कर लिया |
          गणेश चतुर्थी का दिन आ गया | सभी लोगों ने  अपने घरों मे मिट्टी से निर्मित गणेश जी की मूर्ति स्थापित की  | colony को रंगीन फूलों से सजाया गया | हल्की रोशनी के बल्व लगाये गये | स्थापना के दिन सब लोगों ने एक साथ मिलकर पूजा अर्चना की |
         वातावरण. भक्तिमय हो गया | था |
        बड़े बुज़ुर्गों ने बच्चों को  आशीर्वाद दिया इतना अच्छा  इन्तज़ाम करने के लिये |
      बुज़ुर्गों ने देखा और सोचा कि जब बच्चे पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने के प्रति और स्वच्छता के प्रति  इतने जागरुक हैं तो हमें तो और ज्यादा लोगों को जागरुक करने की जरूरत है |
      ये भी तय हो गया कि अब हर साल हर कार्यक्रम इसी  तरह करके  वातावरण स्वच्छ रखेंगे |


                मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
       

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

The Winged Heart A Mountain of Daisies by SONU TANW


It was a sunny afternoon as our train puffed into the small station of Kotdwara, nestling on the foothills of the mighty Garhwal Himalayas. Surrounded by the red-faced porters, who spoke loudly in their local language, we moved to the bus stop, from where we took a small green coloured bus to the tiny hill station of Lansdowne. I was filled with excitement as I thought of being surrounded with hills covered with pretty, dancing daisies.
The road was bumpy as we climbed the hairpin bends; the breeze chilly and fresh, while the valley seemed a silver ribbon of stream and sunshine. Turning another bend, we were greeted by a sea of pretty, dancing daisies dotting the hillside, hand in hand with the ferns, moss, creepers and the carpet of grass stretching for miles.
Soon our bus huffed and puffed through the cantonment and finally into the hustle and bustle of the colourful bazaar. A maze of wooden shops stood lining the sloping pavement, filled with sweet shops, clothes, souvenirs and daily supplies. It was evening and far from the valley, I heard the temple bells tolling, a sweet sound travelling across the valley. The twinkling lights seemed fairy like as dusk descended on the bustling city.
We spent the night at ‘ Roberts Hall’ in the cantonment . We were ready to see the bright and sunny town in the morning. Across the valley was a beautiful range covered with sparkling snow peaks. We discovered a telescope and a compass from where we could see the towering peaks of Nandadevi, Gangotri and Jamunotri. We were fascinated by the peace, cheered by the call of the mountain raven gliding in the valley through tufts of cottony clouds. The sky was electric blue and the leaves looked like silver mirrors as we stood at ‘Tiffin Top’ at 6000 feet. I felt on top of the world with the smiling daisies and sunflowers waving their bright faces all around.
We also heard many stories of wild leopards, langoors, and other animals who roamed the dense jungles and the valleys around Lansdowne, as we sat for a cup of hot tea. Soon night descended as the stars twinkled a silent goodbye as the next day we were to head back home, but I knew I would carry the memory of the mountains with daisy faces and delightful sunflowers forever in my mind, reminding me of the peace, joy and the quiet beauty of the hills of Garhwal.

Sonu Tanwar

सुशील शर्मा रचित पर्यावरण पर दोहे

सुशील शर्मा 


(1 )
नदियां मुझ से कर रहीं, चुभता एक सवाल।
कहाँ गया पर्यावरण ,जीना हुआ मुहाल।  
(2 )
तान कुल्हाड़ी है खड़ा ,मानव जंगलखोर। 
मिटा रहा पर्यावरण ,चोर मचाये शोर। 
(3 )
बादल से पूछो जरा ,पानी की औकात। 
बूंद बूंद पर लिखी है ,पर्यावरणी बात। 
(4 )
पर्यावरण मिटा रहे ,रेतासुर कंगाल। 
सिसक सिसक नदिया करे ,सबसे यही सवाल। 
(5 )
कूड़ा करकट फेंकते ,नदियों में सामान। 
फिर बांटे सब ओर हम ,पर्यावरणी ज्ञान। 
(6 )
पर्यावरण पर लिखना ,मुझको एक निबंध। 
सांसे एक दिन बिकेंगी ,करलो सभी प्रबंध। 
(7 )
हिमखंडों का पिघलना ,और सूरज का ताप । 
पर्यावरण मिटा रहा ,मानव करके पाप। 
(8 )
दूषित पर्यावरण से ,रोग हज़ारों होंय। 
तन मन धन सब मिटत है ,चैन ख़ुशी सब खोंय। 
(9 )
गौरैया दिखती नहीं ,गलगल है अब दूर। 
पर्यावरणी साँझ में ,पंछी सब बेनूर। 
(11 )
 जंगल पर आरी चले ,पर्यावरणी घात। 
रिश्ते सब मरते हुए ,चिंता है दिन रात। 
(12 )
ग्रीष्म ,शरद ,बरसात हैं ,जीवन के आधार। 
स्वच्छ रहे पर्यावरण ,ऐसे रखो विचार। 
(13 )
हरियाली के गीत में ,प्यार भरा पैगाम। 
पर्यावरण सुधारिये ,स्वस्थ रहो सुखधाम। 
(14 )
ओज़ोन क्षरण से हुआ ,तापमान अतितप्त। 
दूषित है पर्यावरण ,जीवन है अभिशप्त। 
(15 )
वृक्ष हमारे मित्र हैं ,वृक्ष हमारी जान। 
वृक्षों की रक्षा बने ,पर्यावरणी शान। 
(16 )
काट दिए जंगल सभी ,कांक्रीट हर छोर। 
दूषित कर पर्यावरण ,हम विकास की ओर। 
(17 )
वृक्षारोपण कर करें ,उत्सव की शुरुआत। 
पर्यावरण की सुरक्षा ,सबसे पहली बात। 
(18 )
हरे वृक्ष जो काटते ,उनको है धिक्कार। 
पर्यावरण बिगाड़ते ,वो सब हैं मक्कार। 
(19 )
जंगल के रक्षक बनो ,करके ये संकल्प। 
हरी भरी अपनी धरा ,पर्यावरण प्रकल्प। 
(20 )
वायु अब बदहाल है ,पर्यावरण विनिष्ट। 
दुष्ट प्रदुषण हंस रहा ,दे ना ना से कष्ट। 
(21 )
प्राणवायु देकर हमें ,वृक्ष बचाएं जान। 
पर्यावरण सुधारते ,जैवविविधता मान। 
(22 )
धरती बंजर हो गयी ,बादल गए विदेश। 
पर्यावरण बिगाड़ कर ,लड़ते सारे देश। 
(23 )
प्यासे पनघट लग रहे ,प्यासे सारे खेत। 
पर्यावरण विभीषिका ,लूटी सारी रेत। 
(24 )
सदियां सजा भुगत रहीं ,निज स्वार्थों को साध। 
पर्यावरण विनिष्ट है ,है किसका अपराध। 
(25 )
जल ही जीवन है सदा ,जल पर वाद विवाद। 
पर्यावरण विषाक्त है ,पीढ़ी है बर्बाद। 
(26 )
मानव स्वार्थो से घिरा ,बेचें सारे घाट। 
पर्यावरण निगल गया ,नदी ताल को पाट। 
(27 )
पृथ्वी माता जगत की ,हम सब हैं संतान। 
पर्यावरण सवांरिये  ,दे इसको सम्मान। 
(28 )
जल ,वायु ,पर्यावरण ,वृक्ष ,जीव ,इंसान। 
पर्यावरण बचाइए ,तभी बचेगी जान। 


सुशील शर्मा 

मंजू श्रीवास्तव की रचना : शिक्षक दिवस




नीरजा माथुर   विद्यालय मे गणित की शिक्षिका पद पर कार्यरत थीं|
  उनकी कक्षा मे करीब ४० छात्र थे | सभी छात्र पढ़ने मे होशियार थे |
एक छात्र अभय पढ़ाई मे  कमजोर था, खासकर गणित में |
निरजा जी ने  पहले सभी छात्रों को परखा | जो छात्र  पढाई मे कमजोर थे उनपर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया |
      अभय को गणित से बहुत डर लगता था | उसे फॉर्मुले आदि याद ही नहीं होते थे | लेकिन नीरजा जी ने उसकी अतिरिक्त क्लास लेनी शुरू कर दी| कुछ समय बाद ही नीरजा जी की मेहनत रंग लाई |
      अभय की अब गणित मे रुचि बढ़ने लगी थी | अब उसे सवाल हल करने में आनन्द आने लगा था| नीरजा जी भी जी जान से अभय को तराशने में लगी थीं | उधर अभय भी उनकी मेहनत  को साकार करने की कोशिश कर रहा था 
        नीरजाजी मे वह सारे गुण थे जो एक श्रेष्ठ शिक्षक मे होने चाहिये |छात्रों से प्रेम से बातें करना, सब छात्रों से समान व्यवहार करना, निःस्वार्थ भाव से अपना कार्य करना |      कक्षा के सभी छात्रों का ध्यान रखती थी |
       इसी कारण अभय निःसंकोच होकर नीरजा जी से अपने प्रश्न पूछता था |
        नतीजा ये हुआ कि अभय  वार्षिक परीक्षा मे अव्वल नम्बरो से
पास हुआ |
          कक्षा के अन्य छात्रों ने भी अच्छे नम्बरों से परीक्षा उत्तीर्ण की  |
        नीरजाजी की खुशी का ठिकाना न था |
        अभय को खुद पर यकीन नहीं हो रहा था |   
        चारों तरफ तारीफ  हो रही थी नीरजा जी की |
        स्कूल मे नीरजा जी के सम्मान मे स्वागत समारोह हुआ |
        सरकार की तरफ से नीरजाजी का नाम भारत के सर्व श्रेष्ठ शिक्षकों मे शामिल किया गया |

           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : चूं चूं चिड़िआ के बच्चे







भयंकर जाड़े में, बेबी पीहू के घर के छज्जे में  कबूतरी ने, गमलों के झुरमुट के बीच में, दो अंडे दिए थे।  रोज सबेरे स्कूल जाने से पहले चुपचाप दबे पाँव पीहू कौतुहल वश  अंडो को देखने जाती। स्कूल  से आकर भी  पहला काम होता था छज्जे पर जा कर अंडो को देखने जाना।  हर बार कबूतरी  अंडो के ऊपर बैठी मिलती थी। ऐसा कम ही मिलता कि कबूतरी वहाँ नहीं मिले एक दिन इत्फाक से कबूतरी वहाँ नहीं थी पीहू  बढ़कर जैसे ही अंडो को उठाने बढ़ी कि नाना जी आ गए उन्होंने पीहू को रोक दिया।  उन्होंने  बेबी पीहू को गोद मे उठाते  हुए बताया कि अंडो से बहुत जल्दी चूं चूं करते प्यार प्यारे चिड़िया के छोटे छोटे बच्चे निकलेंगे। इन्हे छूना भी मत।
पीहू का कौतुहल और बढ़ गया  रोज स्कूल से आते ही छज्जे पर देखने जाती और बार बार नाना जी से चूं चूं  करते चिड़िआ के बच्चों के बारे में पूछती  थी नाना जी बच्चे कब अंडो से बाहर निकलेंगे ? नानाजी कहते तुम उधर जाना नहीं बहुत  जल्दी ही बच्चे अंडे से बाहर निकाल आयेंगे चूं चूं करेंगे।
एक दिन अचानक पीहू के पापा जी छज्जे पर अखबार उठाने गए तो देखा कि अखबार वाले के जोर से अखबार फेंकने से लगे गमलो के कुछ पौधों की पत्तियां और डंडियां बुरी तरह से नष्ट हो गई हैं। वह बड़बड़ाते हुए अंदर आये।   पीहू तब तक स्कूल जा चुकी थी।  नाना जी ने जब सुना तो उनको चिड़िया के अण्डों का ख्याल आया।  वे छज्जे पर गए तो देखा कि दोनों अंडे फूट गए थे कुछ पौधे तहस नहस हो गए थे,  नाना जी कि आंखे नम हो गईं।
नन्ही पीहू के दिल को चूं चूं  चिड़िआ के बच्चे के ना देख पाने का कष्ट वह खुद महसूस कर रहे थे।  उन्होंने घर में इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। शायद  कबूतरी और उसके अण्डों  का प्रसंग घर के किसी व्यक्ति के प्राय: व्यस्त रहने के कारण, संज्ञान में नहीं था।  सिर्फ नानाजी और पीहू के बीच ही था।    पीहू के स्कूल से लौटने पर उसके पूछने पर नाना जी उसे बताया कि कबूतरी अपने चूं चूं  करते  बच्चे लेकर दूसरे घर चलीगई है।  अजन्मे कबूतरी के बच्चों के  बिछोह से नन्ही पीहू की  आँखे भी नम हो गईं।



              शरद कुमार श्रीवास्तव

महेन्द्र देवांगन तीन माटी की रचना ; अच्छे स्वास्थ्य



अगर रहना चाहते हो स्वस्थ, आसपास को रखो स्वच्छ ।
मैला कुचैला पास न फेंको, आजू बाजू सबको देखो ।
भोजन पानी ढककर रखो, बासी खाना कभी न चखो ।
ताजा ताजा सब्जी लाओ, हाथ मुंह को धोकर खाओ ।
गंदे पानी कभी न पीओ, फिर तो हजारों साल तक जीओ ।
गांव गली को रखो साफ, रहे स्वस्थ बच्चे मां बाप ।
मक्खी मच्छर का न हो पड़ाव, करते रहो डी डी टी का छिड़काव ।
चारों तरफ हो स्वच्छ परिवेश, भागे बिमारी मिटे क्लेश ।
आसपास में पेड़ लगाओ, शुद्ध ताजा हवा पाओ ।
अच्छे स्वास्थ्य की यही कहानी, सात्विक जीवन निर्मल पानी।


                          महेन्द्र देवांगन माटी 
                           पंडरिया  (कवर्धा )
                           छत्तीसगढ़ 
                          602407353

संपादक की डेस्क से




प्रिय  पाठकों

शिक्षक दिवस पर आप सभी को  अपनी  और  "नाना  की  पिटारी" की  ओर  से  हार्दिक बधाई और   शुभकामनाएं । इसी दिन महान शिक्षाविद डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।   वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति पद पर आसीन थे  और तदुपरांत भारत के राष्ट्रपति हुए थे।. हम उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं । 

एक बधाई हम आपको हिन्दी दिवस कीभी दे रहे हैं जो 14 तारीख को पड रही है  ।

 विदित हो, दिनांक 4  फरवरी वर्ष 2014 को यह पत्रिका ' नाना की पिटारी ' पहली बार प्रकाशित  होते हुई थी  ।  विगत वर्षो   में नाना की पिटारी  ने, लगभग  625 , पठन सामग्री प्रकाशित  किया  ।   इनमे  बालगीत, बालकथाएँ ,चुटकुले ,पहेलियों के अलावा ज्ञानवर्धक और मनोरंजक अन्य सामग्रियां  भी शामिल  रहीं हैं।
हमे आपको  यह बताते  हुए  खुशी  हो रही  है   बाल साहित्य  लेखन  में  राष्ट्रीय  स्तर  के  ख्याति  प्राप्त  रचनाकार   सर्वश्री  प्रभु दयाल श्रीवास्तव,  डॉ  प्रदीप  शुक्ला  भाई शादाब  आलम जी तथा उपासना  बेहार जी की रचनाएँ  हम लगातार  प्रकाशित  करते  रहे हैं  वही नये रचनाकारों श्रीमती मंजू श्रीवास्तव , भाई महेंद्र देवांगन​ , कुमारी प्रिया देवांगन प्रियू, श्री सुशील शर्मा श्री कृष्ण कुमार  वर्मा  आदि  की  रचनाओं  ने   नाना  की  पिटारी को सुशोभित  किया है हम सभी  रचना  कारो को   धन्यवाद ज्ञापित  करते  हैं  ।


हिन्दी लेखन की और हम संकल्पित हैं परन्तु  आजकल  बहुत  बच्चे  अंग्रेजी   माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं उनकी  रचनात्मक  प्रतिभा  को  निखारने  के  लिए  उन्हें  भी  सुयोग  प्रदान  करना  है अतः हमने अंग्रेजी​ की अच्छी रचनाओं को भी इस पत्रिका  में सम्मिलित करने का निर्णय लिया था    इस क्रम में हम मुम्बई से श्रीमती सोनू तनवार की अंग्रेजी की श्रंखला The Winged hearts  प्रकाशित कर रहे हैं. 

अंत मे सभी पाठकों  और  शुभेक्षकों से निवेदन  है  कि  इस  पत्रिका के  लिंक   को ईमेल  , फेसबुक  और वाट्सएप  में  शेयर  करके  अधिक   से अधिक  लोगों  तक  पहुंचाएं ताकि  इस निशुल्क  पत्रिका  का  लाभ  अधिक  से  अधिक  लोगों  तक  पहुंच सके। 

धन्यवाद


शरद कुमार श्रीवास्तव