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गुरुवार, 6 सितंबर 2018

सुशील शर्मा रचित पर्यावरण पर दोहे

सुशील शर्मा 


(1 )
नदियां मुझ से कर रहीं, चुभता एक सवाल।
कहाँ गया पर्यावरण ,जीना हुआ मुहाल।  
(2 )
तान कुल्हाड़ी है खड़ा ,मानव जंगलखोर। 
मिटा रहा पर्यावरण ,चोर मचाये शोर। 
(3 )
बादल से पूछो जरा ,पानी की औकात। 
बूंद बूंद पर लिखी है ,पर्यावरणी बात। 
(4 )
पर्यावरण मिटा रहे ,रेतासुर कंगाल। 
सिसक सिसक नदिया करे ,सबसे यही सवाल। 
(5 )
कूड़ा करकट फेंकते ,नदियों में सामान। 
फिर बांटे सब ओर हम ,पर्यावरणी ज्ञान। 
(6 )
पर्यावरण पर लिखना ,मुझको एक निबंध। 
सांसे एक दिन बिकेंगी ,करलो सभी प्रबंध। 
(7 )
हिमखंडों का पिघलना ,और सूरज का ताप । 
पर्यावरण मिटा रहा ,मानव करके पाप। 
(8 )
दूषित पर्यावरण से ,रोग हज़ारों होंय। 
तन मन धन सब मिटत है ,चैन ख़ुशी सब खोंय। 
(9 )
गौरैया दिखती नहीं ,गलगल है अब दूर। 
पर्यावरणी साँझ में ,पंछी सब बेनूर। 
(11 )
 जंगल पर आरी चले ,पर्यावरणी घात। 
रिश्ते सब मरते हुए ,चिंता है दिन रात। 
(12 )
ग्रीष्म ,शरद ,बरसात हैं ,जीवन के आधार। 
स्वच्छ रहे पर्यावरण ,ऐसे रखो विचार। 
(13 )
हरियाली के गीत में ,प्यार भरा पैगाम। 
पर्यावरण सुधारिये ,स्वस्थ रहो सुखधाम। 
(14 )
ओज़ोन क्षरण से हुआ ,तापमान अतितप्त। 
दूषित है पर्यावरण ,जीवन है अभिशप्त। 
(15 )
वृक्ष हमारे मित्र हैं ,वृक्ष हमारी जान। 
वृक्षों की रक्षा बने ,पर्यावरणी शान। 
(16 )
काट दिए जंगल सभी ,कांक्रीट हर छोर। 
दूषित कर पर्यावरण ,हम विकास की ओर। 
(17 )
वृक्षारोपण कर करें ,उत्सव की शुरुआत। 
पर्यावरण की सुरक्षा ,सबसे पहली बात। 
(18 )
हरे वृक्ष जो काटते ,उनको है धिक्कार। 
पर्यावरण बिगाड़ते ,वो सब हैं मक्कार। 
(19 )
जंगल के रक्षक बनो ,करके ये संकल्प। 
हरी भरी अपनी धरा ,पर्यावरण प्रकल्प। 
(20 )
वायु अब बदहाल है ,पर्यावरण विनिष्ट। 
दुष्ट प्रदुषण हंस रहा ,दे ना ना से कष्ट। 
(21 )
प्राणवायु देकर हमें ,वृक्ष बचाएं जान। 
पर्यावरण सुधारते ,जैवविविधता मान। 
(22 )
धरती बंजर हो गयी ,बादल गए विदेश। 
पर्यावरण बिगाड़ कर ,लड़ते सारे देश। 
(23 )
प्यासे पनघट लग रहे ,प्यासे सारे खेत। 
पर्यावरण विभीषिका ,लूटी सारी रेत। 
(24 )
सदियां सजा भुगत रहीं ,निज स्वार्थों को साध। 
पर्यावरण विनिष्ट है ,है किसका अपराध। 
(25 )
जल ही जीवन है सदा ,जल पर वाद विवाद। 
पर्यावरण विषाक्त है ,पीढ़ी है बर्बाद। 
(26 )
मानव स्वार्थो से घिरा ,बेचें सारे घाट। 
पर्यावरण निगल गया ,नदी ताल को पाट। 
(27 )
पृथ्वी माता जगत की ,हम सब हैं संतान। 
पर्यावरण सवांरिये  ,दे इसको सम्मान। 
(28 )
जल ,वायु ,पर्यावरण ,वृक्ष ,जीव ,इंसान। 
पर्यावरण बचाइए ,तभी बचेगी जान। 


सुशील शर्मा 

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