सुनो गजानन मेरी पुकार
पिछले वर्ष जब तुम आये थे।
हमें देख कर मुस्काये थे।
दर्द बहुत था इन आँखों में ,
फिर भी हम कुछ न कह पाए थे।
इस वर्ष आज तुम अब आये हो।
हमें देख कर मुस्काये हो।
स्वागत की सारी तैयारी ,
मेरे लिए तुम क्या लाये हो ?
आज सभी कुछ कहना तुमसे।
और नहीं चुप रहना तुमसे।
पिछले बरस के सारे किस्से ,
विस्तारों से कहना तुमसे।
जब से गए गौरी के पाले ,
कष्टों ने हैं घेरे डाले।
मंहगाई डायन है ऐसी ,
रोटी के पड़ गए हैं लाले।
चारों तरफ शोर है भारी।
किससे बोलें बात हमारी।
पक्ष विपक्ष के बीच फँसी ,
जनता फिरती मारी मारी।
झूठ सत्य का चोला पहने।
द्वेष ,दगा के पहन के गहने।
टी वी पर चिल्लाता फिरता,
उसके भाषण के क्या कहने।
पढ़े लिखे मेरे सब बेटे।
गले में डिग्री संग लपेटे।
गली गली सब घूम रहे हैं ,
नशे को तन मन संग समेटे।
हर गली दरिंदे घूम रहें हैं।
सत्ता के पद चूम रहें हैं।
सारी बेटी सहमी सहमी ,
मदमस्ती में झूम रहे हैं।
शिक्षा अब व्यवसाय बनी है।
नोटों का पर्याय बनी हैं।
गुरु नहीं अब कर्मी शिक्षक ,
सभी इरादे मनी मनी हैं।
मुग़ल मीडिआ चिल्लाता है।
पावर के ही गुण गाता है।
विज्ञापन के धुर लालच में,
सत्य चबा कर खा जाता है।
नेमीचंद भूख से मरता।
नीरव ,माल्या जेबें भरता।
पेट्रोल में आग लगी है ,
मौन हैं फिर भी कर्ता धर्ता।
हे !विघ्नविनाशक मन आधार
सुनलो अब दीनों की पुकार
भारत को समृद्धि दे दो
हे मेरे गजानन अबकी बार।
सत्ता को सेवा का मन दो।
जनता को सुख का आंगन दो।
पक्ष ,विपक्ष को बुद्धि देकर ,
जीवन को स्व अनुशासन दो।
सुशील शर्मा
सुशील शर्मा
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