ब्लॉग आर्काइव

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018




मेरे घर मे जो सबसे बुजुर्ग इन्सान दिखाई देतें हैं वो मेरे प्यारे दादा जी हैं।   घर मे जो मुझे बहुत प्यार करते हैं वो मेरे दादा जी ही हैं।   स्कूल से जब मै घर वापस आता हूँ तो चुपके से मुझे कोई न कोई खाने की चीज जैसे टाफी, चॉकलेट तो कभी-कभी चिप्स का पैकेट आदि देते रहते हैं।   मेरी माँ मुझे इस बात के लिए मना करती हैं यहाँ तक दादाजी की इस हरकत पर नाराज भी होती है तो भी वे भगवान के प्रसाद के रूप में मीठे इलाइची दाने मेरे हाथ पर रख देते हैं। अब कोई भगवान के प्रसाद को मना भी कैसे करे।  मेरे प्यारे दादा जी मुझे हमेशा स्कूल के होमवर्क पूरा करने में मदद भी करते हैं।

यूँ तो दादा जी मेरे दादा जी हैं परन्तु आसपास के मेरे मित्र लोगों के भी दादाजी हैं।   वे मेरी बुआ जी के बच्चों के नानाजी भी हैं।   

सोमवार, 26 नवंबर 2018

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना : दीवाली मनायेंगे




चलो जलायें दीप साथियों , मिल कर खुशियाँ मनायेंगे।
एक एक दीप जलाकर हम , अंधियारा दूर भगायेंगे।।
गली मुहल्ले साफ रखेंगे , कचरा नही फैलायेंगे।।
स्वच्छ वातावरण रहेगा , मिलकर दीप जलायेंगे।
नही लगायें झालर मालर , एक एक दीप जलायेंगे।।
 दीपक की रौशन से हम , घर घर को सजायेंगे ।
खूब खायेंगे खील बताशा  , दिवाली मिलकर मनायेंगे।।
आतिशबाजी बड़े करेंगे , फुलझड़ी बच्चे जलायेंगे।
 मिलकर सब खुशियाँ मनाये , एक एक दीप जलायेंगे ।।

प्रिया देवांगन "प्रियू"
 पंडरिया 
जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)





प्रिया देवांगन प्रियू की रचना :बचपन



















बचपन कितना सुहाना था  , सुबह होती स्कूल जाते ।
 थक कर आते , फिर भी खेलने जाते ।

न किसी का बोझ सहना , न किसी  पर बोझ थे हम
छोटी छोटी बातों में रोना , छोटी सी बातों में हँसते थे हम।

न रोने की वजह थी ,न हँसने का बहाना था
बारिश की फुहार से , खेलना अच्छा लगता था

कागज की नाव बना कर , कितने खुश हो जाते थे
बच्चों के संग मम्मी पापा, बच्चे बन जाते थे

थोड़ी सी बातों में रूठना, फिर सबका मनाना
कितना अच्छा लगता था।
न किसी की फिक्र थी , न किसी का गम था।

कहां गया वो बचपन हमारा , जिसमें खुशियों का खजाना था
बचपन कितना सुहाना था , बचपन कितना सुहाना था ।


प्रिया देवांगन " प्रियू"
 पंडरिया 
जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)


मधु चौहान की रचना :मेरी परछाईं

   
               
      
   एक मैं और एक वो मुझ -सी 
   मैं श्वेत वो स्याह श्याम - सी 
   कभी जुदा, कभी मुझ में समाती
   बनकर एक अनजाना साथी 
   खेले मुझ संग आँख- मिचैली
   तपती दोपहरी की हमजोली
   मैं और मेरी परछांई

   एक दिन मैं हँसकर यूँ बोली-
   ”क्यों तू साथ मेरे है चलती
   आगे- पीछे कभी दाएँ- बाएँ
   पर छोड़ मुझे कहीं न जाती ?” 
   हँस कर इठला कर वो बोली-
   ”तुझ से बना मेरा ये रुप
   कैसे रहँू भला तुझ से दूर ?”



   साथ चाहे कोई छोड़ दे तेरा 
   पर मैं साथ निभाऊँगी
   जलती धूप में भी संग तेरे
   आगे- आगे आऊँगी
   कैसे तुझे छोडँू और बनूँ पराई
   आखिर हँू तो तेरी परछांई 
   आखिर हँू तो तेरी परछांई ।।


                                          मधु चैहान

                                  

सर्दी आई (चौपाई छन्द) : महेन्द्र देवांगन माटी





सुबह सुबह अब चली हवाएँ  । सर्दी आई जाड़ा लाए ।
ओढे कंबल और रजाई । हाथ ठिठुरते देखो भाई ।।
धूप लगे अब बड़े सुहाना  । बाबा बैठे गाये गाना ।।
भजिया पूड़ी सबको भाये । गरम गरम चटनी सँग खाये ।।
टोपी पहने काँपे लाला । आँखों में है चश्मा  काला ।।
आते झटपट खोले ताला । राम नाम की जपते माला ।।
बच्चे आते शोर मचाते । लाला जी को बहुत सताते ।।
धूम धड़ाका करते बच्चे । लेकिन मन के बिल्कुल सच्चे ।।
ताजा ताजा फल को खाओ । रोज सबेरे घूमने जाओ ।।
सुबह शाम अब दौड़ लगाओ । बीमारी सब दूर भगाओ ।।


                          महेन्द्र देवांगन माटी ( शिक्षक) 
                          गोपीबंद पारा पंडरिया 
                          जिला- - कबीरधाम 
छत्तीसगढ़ 
8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com 


सयानी चिडिया : मधु चौहान




सयानी चिडिया
नीले पंखों वाली चिडिया      
बडी सयानी लगती है।
नन्हीं प्यारी आँखों से 
जग निहारा करती है।
                   रोज सवेरे सबसे पहले 
                   समूचा आकाश नापती है।
                   भर के चोंच में दाने अपने
                   नन्हें बच्चों को खिलाती है।
चूँ -चूँ करके राह देखते 
माँ को देख बच्चे कहते 
कब आएँगे पंख हमारे ? 
उडेंगे कब हम संग तुम्हारे

                     दुनिया हमें दिखा दो माँ 
                     उड़ना हमें सिखा दो माँ
                     माँ कहती - थोडा सब्र करो
                      दाने खाकर बडे बनो।

जल्द आएँगे पंख तुम्हारे          
देखोगे सुंदर नजारे
होगा तुम्हें सुखद अहसास
सुनकर माँ की मीठी बातें
सो जाते सपनों में जाकर।


                                             मधु चोैहान



बर्लिन और बर्लिन की दीवार : शरद कुमार श्रीवास्तव





बर्लिन जर्मनी की राज धानी है अभी  10.11.2014 को इस राष्ट्र ने इसे पश्चिमी जर्मनी और जर्मनी गणराज्य को विभाजित करने वाली दीवार को ढहाने की सिल्वर जुबली अर्थात 25 वी वर्षगांठ मनाई
दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति एक सैनिक सन्धि से हुई जिसमे जर्मनी 1949 मे दो भागो मे बंट गया पश्चमी जर्मिनी अमेरिका द्वारा समर्थित तथा पूर्वी जर्मिनी एक गण राज्य के रूप मे सोवियत रूस द्वारा सम्रथित था दोनो राष्ट्रों मे पूर्वी  जर्मनी से बेहतर काम के अवसरो की तलाश मे भारी पालायन प्रारम्भ हुआ पूर्वी जर्मनी मे गणतन्त्र के खर्चे पर फ्री मे उच्च शिक्षा लेकर पश्चिमी जर्मनी लोग भाग जाते थे.  दूसरी समस्या गुप्तचरी जोरो पर थी और उसपर कोई अंकुश नही लग पा रहा था.  इस पर वर्ष 1962 मे रातोरात पहले कंटीले तार लगाए गये फिर 45 किलोमीटर लम्बी दीवीर खड़ी की गई इसके लिये तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति निकिता खुर्शचेव की स्वीकृति थी .  इस दीवार के बनने से पालायन काफी कम हो गया लेकिन इस दीवार के दोनो पार जर्मनी निवासियों के अपने ही लोग थे जो रातों रात अलग हो गये थे अतः इसके बनने का खूब विरोध हुआ. लोग चोरीछुपे दीवार पार करने की कोशिश मे  पकड़े जाते थे . कुछ मामलों मे जान भी लोगों ने गंवाई.  कभी दीवार से छगांग लगाकर कभी गुब्बारे मे तो कभी सुरगं बनाकर दीवार पार करने की कोशिश होती थी परन्तु सुरक्षा व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी पैंतालीस किलोमीटर पर सेना की लगभग 90 चौकियाँ थी.  1989 मे सोवियत राष्ट्र की पकड़ ढीली पड़ी और दीवार के दोनो ओर के राष्ट्रों ने बर्लिन की दीवार उसके बनने के  लगभग 28 वर्षों बाद गिरा दी और वर्ष 1990  मे फिर दो महान जर्मन राष्ट्रों का आपस मे विलय हुआ .  क्या हम अपने दिलों की दीवारे नहीं हटा सकते ?


शरद कुमार श्रीवास्तव 

मंजू श्रीवास्तव की कविता : दीपों का आया त्योहार



दीपों का आया त्योहार,
खुशियां लाया बेशुमार |
झिलमिल करते दीपक न्यारे,
मानों आसमां से उतरे तारे |
सबने अपने आंगन को,
रंग बिरंगे दीपों से सजाया |
महान टिमटिम करते दीपों का,
कारवाँ ज़मीं पर उतर आया |
मन के अंधेरे दूर हुए,
मन में प्रेम के दीप जले |
पर्यावरण को प्रदूषण से बचायें,
प्रदूषण मुक्त दिवाली मनाएं |
गिले शिकवे सब भूलकर,
सबको गले लगायें  |
पटाखे रहित दीपों का त्योहार,
खुशियां मिलें बेशुमार |




                                मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

बुधवार, 14 नवंबर 2018

सुदीक्षा कक्षा - नौ एमिटी इंटरनेशनल स्कूल की रचना मेरे चाचा नेहरू



चाचा का है जन्मदिन
सब बच्चे इठलाएँगे
चाचा नेहरु की जेब में गुलाब रख
दुनिया को महकाएँगे ।

हमारे प्यारे चाचा नेहरु
सारे जग से  न्यारे चाचा नेहरु
शुद्ध थे उनके सारे विचार
बच्चों से था उन्हें बहुत ही प्यार

प्रशंसनीय कार्य व आचरण ने
बनाया उनको मनुष्य महान
दयालु व सदाचारी होने के कारण
आज तक उनको मिलता है सम्मान ।

पंडित जवाहरलाल नेहरु, बच्चों के चाचा नेहरु को
उनके जन्मदिन पर याद करें
सबके प्यारे, बच्चों के राजदुलारे
चाचा को -
नत शिर होकर प्रणाम करें ।

                 - सुदीक्षा सरकार
                   कक्षा - नौ 
                   एमिटी इंटरनेशनल स्कूल


मधु चौहान की रचना मेरी परछाईं

                   
      
   एक मैं और एक वो मुझ -सी 
   मैं श्वेत वो स्याह श्याम - सी 
   कभी जुदा, कभी मुझ में समाती
   बनकर एक अनजाना साथी 
   खेले मुझ संग आँख- मिचैली
   तपती दोपहरी की हमजोली
   मैं और मेरी परछांई 
   एक दिन मैं हँसकर यूँ बोली-
   ”क्यों तू साथ मेरे है चलती
   आगे- पीछे कभी दाएँ- बाएँ
   पर छोड़ मुझे कहीं न जाती ?” 
   हँस कर इठला कर वो बोली-
   ”तुझ से बना मेरा ये रुप
   कैसे रहँू भला तुझ से दूर ?”
   साथ चाहे कोई छोड़ दे तेरा 
   पर मैं साथ निभाऊँगी
   जलती धूप में भी संग तेरे
   आगे- आगे आऊँगी
   कैसे तुझे छोडँू और बनूँ पराई
   आखिर हँू तो तेरी परछांई 
   आखिर हँू तो तेरी परछांई ।। 

 
    मधु चौहान

                                  

बल दिवस पर सुशील शर्मा की कृति: मनहरण घनाक्षरी (8887 वर्णों पर यति,समान्त पदान्त)



फूलों जैसे हम प्यारे,
माँ के हैं राजदुलारे,
पापा की आंखों के तारे,
हाथ तो मिलाइए।

टन से बजी है घण्टी,
गुरुजी की उठी शंटी,
सबक तो याद नही,
अब शंटी खाइए।7

चुन्नू मुन्नी है चिल्लाते,
धीमे से हमें बुलाते,
पापा क्यों आंख दिखाते,
आप समझाइए।

हम नन्हे से हैं बच्चे,
मन के हैं सीधे सच्चे,
हमें देख कर आप,
जरा मुस्कुराइए।

                       सुशील शर्मा

मधु त्यागी का बालगीत : देश हमारा




देश हमारा सबसे न्यारा,
है सबको प्राणों से प्यारा।
सुंदर इसे बनाएँगे, 
फूलों सा महकाएँगे।

उत्तर में है खड़ा हिमालय,
गाता गौरव गाान।
दक्षिण में सागर लहराता,
और इसके चरणों को धोता।
हरे भरे हैं खेत यहाँ पर,
झरने मीठे गीत सुनाते।

भिन्न- भिन्न हैं धर्म यहाँ पर,
भिन्न भिन्न भाषाएँं।
भिन्न भिन्न है जाति सबकी,
भिन्न भिन्न हैं वेश।
पर किसी तरह का भेद नहीं है,
और नहीं है द्वेश।

मातृभूमि के चरणों में हम,
मिलकर अपना शीश नवाएँ।
नवजीवन की अलख जगाएँ,
और धरती को स्वर्ग बनाएँ।


             - मधु त्यागी

गुराशीष सिंह , कक्षा - दसवीं ,ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल की बालकथा : हिफ़ाज़त सैक्टर - 46, गुड़गाँव


           
                          

एक बार एक महात्मा सत्संग करने जा रहे थे , रास्ते में उनकी नज़र एक लड़के पर पड़ी जो पेड़ के नीचे लेटे - लेटे भगवान से बातें कर रहा था, ‘‘ हे भगवान मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है, ऐसा कर तु नीचे आ जा, हम दोनों मिलकर रहेंगे । मैं तुम्हे अपनी भेड़ों का दूध पिलाऊँगा, तुम्हारे मैले कपड़े धोऊँगा, हम दोनों मिलकर खेलेंगे ।’’ उसने भगवान को कभी देखा नहीं था इसलिए वह अपनी कल्पना में भगवान को वैसा ही देख रहा था जैसा वह स्वयं था   
तभी  महात्मा  उसे डाँटते हुए बोले , ‘‘अरे ! मूर्ख लड़के तूने भगवान को क्या समझा है , तू उनका अपमान कर रहा है। तुझे तो प्रभु का नाम लेने का भी कोई हक नहीं, क्योंकि तू दलित है।’’ 
महात्मा के कटु वचन सुनकर लड़के की आँखों में आँसु आ गए। दुखी होकर वह बोला, ‘‘ हे महात्मन मैंने प्रभु को कभी देखा नहीं पर मैं यह जानता हूँ कि जिसने मुझे दलित बनाया है उसी ने आपको महात्मा बनाया है।’’ 
लड़का रोते- रोते वहाँ से चला गया और महात्मा जी अपने रास्ते चले गए, अपनी मंज़िल पर पहुँच कर उन्होंने सत्संग करना आरंभ किया परंतु आज वह बात नहीं थी जो पहले हुआ करती थी। दुखी होकर उन्होंने ईश्वर से कारण पूछा तो स्वयं उसके अंतर्मन से आवाज़ आई,‘‘आज तुमने एक अबोध बालक का नहीं अपितु मेरा दिल दुखाया है। मैं किसी मंदिर, मस्जि़्ाद, गुरुद्वारे में नहीं रहता, मैं तो सबके दिलों में वास करता हूँ और मेरे घर की हिफाज़त करना तुम्हारा काम था । 
                                                               -      गुराशीष सिंह
                                                                      कक्षा - दसवीं
                                                                     ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल
                                                                      सैक्टर - 46, गुड़गाँव

प्रिया देवांगन " प्रियू" की रचना: चलो चले एक पेड़ लगायें










चलो चले एक पेड़ लगायें  ।
पेड़ लगाकर पर्यावरण बचाये।।
पेड़ो से मिलती है  शुद्ध हवा।
शुद्ध हवा हर रोग से बचाये।।
मीठे मीठे फल लगेंगे।
रंग बिरंगे फूल खिलेंगे।।
बागों में हरियाली होगी ।
चारों तरफ खुशहाली होगी ।।
शुद्ध वातावरण मिलेगा ।
राही को छांव मिलेगा ।।


प्रिया देवांगन " प्रियू"
    पंडरिया 
जिला - कबीरधाम 
 (छत्तीसगढ़)

दीवाली के रंग , पटाखों के संग: महेंद्र देवांगन "माटी




खुशियों की बहारें लेकर, आई है दीवाली ।
सबके मन "अनार " फूट रहा, छाई है खुशहाली।।
इठलाती गलियों से निकले, रंग-बिरंगी "फूलझड़ी " ।
नाज नखरा अपना दिखाये, "चुरचुटिया "की लड़ी।।
गोल-गोल जब " चरखी" घूमे, पप्पू खूब चिल्लाये ।
बड़े मजे से शुभम भैया," राकेट" खूब चलायें ।।
"पिस्तौलें " लेकर निकला है, देखो छोटू राजा ।
दौड़ा-दौड़ा कर सबको मारे, बजादे बैंड़ बाजा।।
" तोता" की आवाज सुनकर, नाचे प्रिया रानी ।
"ताजमहल " जब फूटे धड़ाम से,कान दबा ले नानी ।।
गली-गली में फूट रहा है, धड़ाधड़ "एटम बम" ।
जोर सब आजमा रहे, किसमें कितना है दम ।।
कोई मनाये खुशी तो, कोई करे गुस्सा ।
किसी का फटाका जोर से फूटे, किसी का निकला फुस्सा।।

महेंद्र देवांगन "माटी "
पंडरिया छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com 

परी महाजन की रचना :चाचा नेहरू

गुलाब का फूल है जिनकी पहचान
टोपी बढ़ती है जिनकी शान
बच्चों पर देते थे जान
ऐसे थे चाचा नेहरु महान।

विश्व शांति की छेड़ी तान
प्रगति का दिया हमें ईनाम
अमन-शांति का दिया पैगाम
गुलाबों सा महकाया हिंदुस्तान।

भारत को करवाया स्वतंत्र
भरा हर दिल में प्रेम का मंत्र
हार न होगी, ये भी समझाया
आगे बढ़ने का पाठ हमें पढ़ाया

बच्चों से है इनका पुराना नाता
ये हर दिल समझ ना पाता
जन्मदिवस किया बच्चों के नाम
हे चाचा नेहरु, तुम्हें शत-शत प्रणाम ।



                         










                                                         परी महाजन
                                                         कक्षा - नौ डी
                                                         ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल
                                                         गुरूग्राम

अनवी पाल की बाल रचना : जन्मदिन का कार्ड





   दादाजी के जन्मदिन पर            
   सोचा था कार्ड बनाऊँगी 
   जैसे कार्ड सबको देती हँू
   दादू को भी देके दिखाऊँगी 

                सोच रही थी कुछ अलग ढंग से
                अपना प्यार जताऊँगी
                जिसे देखकर दादू खुश हों
                ऐसा कुछ दिखलाऊँगी

   इसी सोच की उधेड़ बुन में
   प्यारा समय याद आ गया     
   दादू ने कितना लाड़ किया
   सोच के मन इतरा गया

                दादू के कंधों पर  बैठकर मैं
                मेला देखने जाती थी
                रोज स्कूल की छुट्ठी पर मैं
                आइसक्रीम लेकर खाती थी

   ये सब सोचकर समझ में आया                  
   मैं वो वक्त दोबारा नहीं ला सकती                   
   जो दादू जितना प्यार दिखाएगा
   मैं ऐसा कार्ड नहीं बना सकती ।

                                      अनवी पाॅल
                                            कक्षा - चार सी 
                                            एमिटी इंटरनेशनल स्कूल