एक बार एक महात्मा सत्संग करने जा रहे थे , रास्ते में उनकी नज़र एक लड़के पर पड़ी जो पेड़ के नीचे लेटे - लेटे भगवान से बातें कर रहा था, ‘‘ हे भगवान मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है, ऐसा कर तु नीचे आ जा, हम दोनों मिलकर रहेंगे । मैं तुम्हे अपनी भेड़ों का दूध पिलाऊँगा, तुम्हारे मैले कपड़े धोऊँगा, हम दोनों मिलकर खेलेंगे ।’’ उसने भगवान को कभी देखा नहीं था इसलिए वह अपनी कल्पना में भगवान को वैसा ही देख रहा था जैसा वह स्वयं था
तभी महात्मा उसे डाँटते हुए बोले , ‘‘अरे ! मूर्ख लड़के तूने भगवान को क्या समझा है , तू उनका अपमान कर रहा है। तुझे तो प्रभु का नाम लेने का भी कोई हक नहीं, क्योंकि तू दलित है।’’
महात्मा के कटु वचन सुनकर लड़के की आँखों में आँसु आ गए। दुखी होकर वह बोला, ‘‘ हे महात्मन मैंने प्रभु को कभी देखा नहीं पर मैं यह जानता हूँ कि जिसने मुझे दलित बनाया है उसी ने आपको महात्मा बनाया है।’’
लड़का रोते- रोते वहाँ से चला गया और महात्मा जी अपने रास्ते चले गए, अपनी मंज़िल पर पहुँच कर उन्होंने सत्संग करना आरंभ किया परंतु आज वह बात नहीं थी जो पहले हुआ करती थी। दुखी होकर उन्होंने ईश्वर से कारण पूछा तो स्वयं उसके अंतर्मन से आवाज़ आई,‘‘आज तुमने एक अबोध बालक का नहीं अपितु मेरा दिल दुखाया है। मैं किसी मंदिर, मस्जि़्ाद, गुरुद्वारे में नहीं रहता, मैं तो सबके दिलों में वास करता हूँ और मेरे घर की हिफाज़त करना तुम्हारा काम था ।
- गुराशीष सिंह
कक्षा - दसवीं
ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल
सैक्टर - 46, गुड़गाँव
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