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मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

नदियों : महेन्द्र देवांगन माटी




नदियाँ 
( सार छंद) 
कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने ।
मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।।

सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती ।
सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।।

खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते ।
उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।।

स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती ।
विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।।

गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा ।
भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।।

विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते ।
माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।।

शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ ।
पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।।



                    महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) 
                   शरदििञत्रड         पंडरिया छत्तीसगढ़ 
                   86024073त53
mahendradewanganmati@gmail.com

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