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गुरुवार, 26 सितंबर 2019

हाथी की डकार : शादाब आलम




हाथी की डकार

बीच सभा में हाथी ने जब

मारी एक डकार ।

हुएं मूर्छित भालू, बन्दर

चूहा, शेर, सियार ।।


होश उन्हें आते, हाथी ने

सच्ची बात कबूली ।

बोला मैंने आज नाश्ते

में खायी थी मूली।


                          शादाब आलम 

अर्चना सिंह की रचना :अंधियारे से सीख, हे मानव






अंधियारे से सीख, हे मानव

जीवन इतना भी सरल नहीं

जो अब भी न सीख सका तो

खो कर पाने का अर्थ नहीं।

धन, मकान,अहम् धरा रहेगा

जाएगा कुछ तेरे साथ नहीं।

समय का चक्र ही है सिखाता

धर्म ,सदाचार के बाद है कहीं।

अपना पराया जल्द समझ ले

वक्त का साया गुम हो न कहीं।

पछता कर क्या कर पाएगा?

न होगा जब आसपास कोई।

क्षमा,दया,सुविचार ही धर्म है

मानवता का है श्रृंंगार यही।

हर बात में सीख हँसना हँसाना

रोने के लिए तो है उम्र पड़ी।

जीवन का कर रसपान हर दिन

व्यर्थ ही न गुजर जाए यह कहीं।

जीवन खुद में ही है मधुशाला

खोज इसी में नित चाह नई।


अर्चना सिंह
Archana Singh😊

भगवान बुद्ध : शरद कुमार श्रीवास्तव




  



  भारत के उत्तर में , नेपाल की तराई मे स्थित, कपिलवस्तु राज्य के राजा शुद्धोदन और रानी महामाया के पुत्र का नाम सिद्धार्थ था। बालक सिद्धार्थ जब मात्र सात दिन के ही थे तो उनकी माता का निधन हो गया था।  उनका लालन पालन मौसी गौतमी ने किया तथा शिक्षा विद्वानो के द्वारा दी गई।  बचपन से ही सिद्धार्थ, बहुत तेज बुद्धि के और अति कोमल हृदय वाले बालक थे।   वे जो भी पढ़ते वह उन्हें तुरन्त याद हो जाता था. संवेदन शील इतने थे कि एकबार वे हिरण का शिकार करते समय उनकी नजर उस हिरन की माँ की भीगी आँखों मे तैरते दया याचना के निवेदन पर पड़ी कि बस सिद्धार्थ बिना शिकार किये लौट आये. मूक पशुओं के प्रति हिंसा को वह खराब मानते थे । उनका कहना था कि जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो उसे लेने का हमे कोई अधिकार नहीं है.
इनके पिता और शुभ चाहने वालो सिद्धार्थ के कोमल विचारों के कारण  डर था कि सिद्धार्थ कही सन्यासी न हो जायँ इसलिये इनका विवाह कम उम्र मे यशोधरा नामक सुन्दर बालिका से कर दिया जिससे उनको एक पुत्रकी प्राप्ति हुई थी।क्ष सिद्धार्थ का मन कभी संसारिक सुखों मे बंध नही सका. एक बार वह नागरिक भ्रमण पर अपने सारथी के साथ जा रहे थे रास्ते मे उन्हे बहुत बीमार आदमी दिखाई दिया जो बहुत कष्ट मे था सारथी ने बताया कि बीमार होने पर सबको कष्ट उठाना पड़ता है. सिद्धार्थ बहुत दुखी हुए. फिर एकबार एक बूढा दिखाई दिया जो लाठी ले कर बडे कष्ट से चल रहा था उसकी आँखे धंसी थीं और पूरे शरीर मे झुर्रिया थीं उन्हे सारथी ने पूछने पर बताया कि यह बूढ़ा है बूढ़ा होने पर सबकी यही दशा होती है. सिद्धार्थ को बहुत दुख हुआ . इसी प्रकार एक मृत व्यक्ति को देखा सारथी ने बताया कि सबको एक दिन मरना पडता है .
इन घटनाओं ने सिद्धार्थ को गहरे चिन्तन मे डाल दिया. वे मनुष्य के इन कष्टो के निवारण हेतु चिन्तन करते रहतेथे. एक दिन जब सब लोग सो रहे थे वे उठे अपनी पत्नी और पुत्र को देखा फिर अपने मन मे आये दौर्बल्य को दृढ़ता से दूर किया. सारी राजसी वेषभूषा राजसी सुख त्याग कर साधारण वेषभूषा मे ज्ञान प्राप्ति के लिये गाँव गाँव जँगल जँगल मे वे निकल पड़े कुछ दिनो के बाद वे बोध गया पहुचे जहाँ उन्हे वट वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और तबसे उनका नाम भगवान बुद्ध पड़ा.
बुद्ध भगवान के बौद्ध धर्म के अनुयायी सारे विश्व मे है और उनकी संख्या विश्व के सब धर्मो के अनुयायियो से सबसे अधिक है।




          शरद कुमार श्रीवास्तव 



शामू : एक धारावाहिक कहानी




शामू-2
अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा था  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता था  ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था।  उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में  आता था । एक बार उसका  पिता  उसको पढने  का सपना  दिखाया    आगे  पढिये :
गतांक  से आगे
ऐसा शायद ही कभी  होता हो,  जब शामू  अपने पिता  के साथ  कहीं  बाहर जाता हो ।   उस दिन जब शामू अपने पिता के साथ स्कूल  के  लिये  जा रहा था  तो उसके  साथी  उसे  कौतुहल भरी नजरों से देख रहे थे ।     लालू ने उससे पूछ लिया शामू तू कहाँ सैर करने जा रहा है ।  शामू कुछ नहीं बोला ।  इस पर  बिहारी  बोला , लालू ये अच्छे  काम के लिए  जा रहा है तूने खालीमूली  टोक दिया है देखो काम बनता है कि नहीं बनता है।   वे दोनो थोड़ी देर में  स्कूल के परिसर के   बाहर  थे ।   स्कूल  के बाहर  खड़े  गार्ड  ने उन्हें   रोका ।  वह बोला कि अरे अंदर कहाँ जा रहे हो।   बाबा, यह घर नहीं है, स्कूल है । यहां भीख नहीं मिलती है।   बच्चे पढ़ते हैं यहां।   बिहारी बोला, सरकार, बच्चे को पढ़ाना है  इसी लिए यहाँ आया हूँ।    गार्ड हँसा बोला  पहले बच्चे को साफ़ सुथरा बनाओ ,  साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहनाओ तब स्कूल में लाना।   उसने स्कूल में घुसने तक नहीं दिया।
बिहारी और शामू उदास मन से वापस घर चले आये।   रास्ते में शामू ने अपने पिता से कह कर  कपड़ा धोने वाले साबुन की एक टिकिया खरीदवाई और दूसरे दिन तड़के उठकर सड़क के नल पर रगड़  रगड़  कपडे धो रहा था।   मंगू और चन्दू  उसे  कपड़ों को साबुन से रगड़ रगड़ कर धोता देखकर खूब हँसे वे बोले, लगता है कि आज काली भैस को धो कर उजली बछिया बना दोगे।   यह   काली कमीज़ साफ़ नहीं होने वाली थी।   शामू ने अपने  पिता को नए कपडे दिलवाने  के लिए  नहीं कहा। .  बिहारी  समझता था,  कि शामू को   अंदर स्कूल जाने की  इच्छा है इसलिए  अपने भीख माँगे पैसों से बचाए  पैसों से  कुछ  पैसों लेकर वह गया और   अपने  कसबे में शामू के लिए कपडे देखने लगा।  बिहारी ने,  पुराने कपडे से बर्तन खरीदने वाले, फेरीवाले, से दो सेट  नेकर कमीज खरीद लिए ।   फेरी वाले से ही उसने जूते भी खरीद लिए।
अगले सप्ताह एक  नये उत्साह   के  साथ  शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ  स्कूल गया।   गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया।   वह बोला इस स्कूल में काफी पहले से बच्चों का नाम लिख लिया  जाता है।   बहुत पैसा भी पड़ता है।   केवल बड़े घरों के बच्चे पढ़ते हैं।   तुम्हे अगर अपने बच्चे को पढ़ाना है तो सरकारी स्कूल जाओ।    बिहारी क्या जाने सरकारी ,गैर सरकारी स्कूल ? शामू रोने जैसा होने लगा।  बिहारी  निराश  हो  कर बोला चल यहाँ से चल  पढना तेरी किस्मत  मे नहीं है ।
शामू का पिता बिहारी अपने काम पर चला  गया  था ।  शामू दादी के पास  लेटे लेटे  सोंच  रहा था  कि  हम गरीब हैं तो क्या   पढ़ाई  लिखाई  हमारे लिए  नहीं  है ।    हम क्या  पढ़ नही सकते ।  बड़े  आदमी  नहीं  बन सकते हैं  ।   वह फिर  सोचा  कि  जैसे  मछली  का  बच्चा  मछली  होता है  चिडिया  का बच्चा  चिड़िया  होता  है। वकील का बेटा वकील होता है।  उसी तरह  भिखारी  का  बेटा  भिखारी  ।  अपने  स्वयं के  उत्तर  से वह  संतुष्ट नहीं  हुआ  ।  उसने  अपनी  दादी  से पूछा  कि  क्या  हम हमेशा  भिखारी  ही रहेंगे ।   दादी  बोली नहीं  बेटा  अगर मेहनत करोगे  तो अपनी  किस्मत  बदल भी  सकते  हो।
शामू  दादी की  बातें सोचते सोचते सो गया ।  उसने सपने मे देखा  कि एक पहाड़  सी किताब  नदी  के  उस  पार  रखी  है ।  वह  किताब  तक तैर के  जाना चाहता है  लेकिन  मगरमच्छ उसको पहुचने नहीं  दे रहे हैं 


आगे अभी और है


शरद कुमार श्रीवास्तव 

सोमवार, 16 सितंबर 2019

श्रीमती वीना श्रीवास्तव की एक अनमोल रचना

श्रीमती वीना श्रीवास्तव की पुण्यतिथि 27 अगस्त को थी इस उपलक्ष्य में उनकी याद में उनकी एक  कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं 

























मन के छोटे से उपवन मे
फूल खिले हैं रंग बिरंगे
जिन्हें देखकर उठती रहती
मन में मेरे नई तरंगे
इन फूलों पर भँवरे मंडराकर
गुनगुनाकरगीत सुना कर
इनका मीठा रस पी जाकर
इठ्लायेंगे  मस्ती में
तितलियां झूमेंगीं मन की बस्ती में
स्वछन्द बिहंगजन फुदकफुदक कर
इस डाली से उस डाली पर जाकर
फूलों पे या पत्तों में छुप जाकर
मधुर-मदिर कल्लोल  सुनाकर
चिड़ियाँ,भी मेरा मन हर्षाएँगी,
प्रेम सुधा बरसा जाएँगी
सुरभि प्रवाहित मस्त पवन
जीवन बसंत का सुआगमन
सिंचित  करदेगा जीवन पौध को
भर देगा हर्षित अनमोल उमंग अनंत
वीणा श्रीवास्तव

ग़ज़ल कोई तो आगे बढ़ो (हिंदी दिवस पर ) डॉ सुशील शर्मा
















आज हिन्दी को बचाने कोई तो आगे बढ़ो।
दर्द हिंदी का सुनाने कोई तो आगे बढ़ो।

हिन्द का अभिमान हिंदी हिन्द की पहचान है।
लाज भाषा की बचाने कोई तो आगे बढ़ो।

भक्ति मीरा ने लिखी है सूर ने दर्शन लिखा।
दास की मानस सुनाने कोई तो आगे बढ़ो।

दिव्य गीता गा रही है ज्ञान के गुणगान को।
ग्रंथ साहब को सुनाने कोई तो आगे बढ़ो।

आज वृन्दावन अकेला ढूँढता रसखान है।
कृष्ण केे रस को सुनाने कोई तो आगे बढ़ो।

है कबीरा अब कहाँ जो मन को अनहद नाद दे।
आज केशव गुनगुनाने कोई तो आगे बढ़ो।

अब कहाँ वो 'उर्वशी' अब कहाँ 'आँसू' करुण।
ओज 'वीणा 'का सुनाने कोई तो आगे बढ़ो।

अब कहाँ 'कामायनी ' है अब कहाँ है "कनुप्रिया।
आज मधुशाला पिलाने  कोई तो आगे बढ़ो।

अब नहीं होमर व इलियट अब न रूमी को पढ़ें।
सूर तुलसी को पढ़ाने कोई तो आगे बढ़ो।

आज भारत का युवा डूबा है इंग्लिश भाष में।
भाष हिन्दी मन बसाने कोई तो आगे बढ़ो।

देव की भाषा सदा से नागरी लिपि बद्ध है।
विश्व की भाषा बनाने कोई तो आगे बढ़ो।

है हमारी मातृभाषा हिन्द की ये शान है।
हिन्द का गौरव बढ़ाने कोई तो आगे बढ़ो।


                      डॉ सुशील शर्मा


शिकारी की टोपी : शरद कुमार श्रीवास्तव






एक जंगल में एक शिकारी अपने कुत्ते के साथ जा रहा था। रास्ते में उसकी टोपी गिर गई। उधर एक चूहा अपने बिल से निकला और टोपी में जा बैठा। टोपी में बैठकर उसनें अपनी बासुरी निकाली और बजाने लगा। एक मेंढक ने जब बांसुरी की पीं-पीं आवाज सुना तो टोपी के पास आ कर बोला- इस टोपी में कौन है।
टोपी से चूहा बोला मैं कुटुरमुटुर चूहा, आप कौन हैं ? मेंढक बोला मैं छप-छप मेंढक हूं क्या मै अन्दर आ सकता हूं ?   चूहा बोला आपका स्वागत है आजाइए। मेंढक अन्दर चला गया और अपनी टर्रटों टर्रटों की आवाज़ में गीत गाने लगा।
एक लोमड़ी उधर से निकल रही थी उसनें भी टोपी के पास आ कर पूछा इस टोपी में कौन है टोपी से आवाज आई कुटुर मुटुर चूहा, थप थप मेंढक और आप  कौन हैं।  मैं हूं चालबाज लोमड़ी क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ?  हाँ हाँ क्यों नही आप आ जाइये भीतर।  
 वह  भी टोपी में छमछम छमछम नाचने लगी। थोड़ी देर में उधर एक भेड़िया आया। उसने भी आते ही पूछा कि इस टोपी में कौन है?  टोपी से आवाज़ आई कुटुरमुटुर चूहा, थपथप मेढक चालबाज लोमड़ी और आप कौन हैं?  भेड़िया बोला दगाबाज भेड़िया नाम है मेरा। क्या मैं अंदर आ जाऊँ।  टोपी से आवाज़ आई अच्छा आजाइये।  भेड़िया टोपी में घुस गया और अन्दर जा कर ढपली बजाने लगा। एक अच्छी डान्स पार्टी तैयार होगयी थी कि उधर से एक भालू आया वह भी टोपी में घुसना चाहता था। उसनें पूछा कि इस टोपी में कौन कौन है।
सबने अपना नाम बताया कि मै किकुटुरमुटुर चूहा, थपथप मेढक चालबाज लोमड़ी तथा दगाबाज़ भेडिया और पूछा आप कौन हैं?  मैं हूँ कालू भालू मैं भी अन्दर आजाऊँ।. कुटुरमुटुर चूहा, थपथप मेढक चालबाज लोमड़ी दगाबाज भेड़िया सब लोगो ने एक साथ कहा अब जगह नही है लेकिन कालूराम भालूजी कहाँ मानने वाले थे। झगड़ा हो ने  लगा।

इतने मे पीहू की नीद खुलगई।  उसने देखा कि फर्श पर उसकी सुन्दर वाली कैप पड़ी है और उसके आसपास उसके खिलौने वाले जानवर बिखरे पडे हैं।  उसे याद आया कि उसकी मम्मी ने आफिस जाते समय कहा था पीहू खिलौने खेलने के  बाद उन्हें डिब्बे में बन्द करके रख देना।  उसनें सोचा कि अगर मैंनें मम्मी का कहना मान लिया होता तो ये आपस में लड्नहीं पाते और मेरी कैप भी गन्दी नहीं होती।  पीहू ने खिलौने डिब्बे में बन्द कर दिये और कैप झाडकर पहन ली।


                          शरद कुमार श्रीवास्तव 

जय गणेश देवा ( सरसी छन्द ) महेन्द्र देवांगन माटी





गौरी पूत गणपति विराजो , मंगल कीजै काज ।
रिद्धी सिद्धि के स्वामी हो तुम,  रख लो मेरी लाज ।।1।।

पहली पूजा करते हैं सब , करें आरती गान ।
गीत भजन मिलकर गाते हैं, आँख मूंदकर ध्यान ।।2।।

लड्डू मोदक भाते तुमको, मूषक करे सवार ।
माथे तिलक लगाते भगवन , और गले में हार ।।3।।

ज्ञान बुद्धि के देने वाले,  सबके तारण हार ।
आया हूँ मैं शरण आपके,  कर दो बेड़ा पार ।।4।।



       महेन्द्र देवांगन माटी
       पंडरिया (कवर्धा)
       छत्तीसगढ़
       8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com

बाल गणेश : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"






मूसक ऊपर चढ़ कर आये , बाल गणेश हमारे द्वार ।
हाथ जोड़ कर भक्त खड़े हैं,  विनय करें सब बारंबार ।।

फूल पान सब अर्पण करते , दीप जलाये घर पर आज।
हम क्या जानें पूजा भगवन , आप बचाओ हमरे लाज।।

लड्डू मोदक बहुत सुहाये, सभी लगाये तुमको भोग ।
पूजे जो भी सच्चे दिल से , मिट जाये जी सारे रोग।।

बच्चे बूढे खुश हो जाये, मोदक खाये बाल गणेश ।
आशीर्वाद सभी को देते , काटे पल भर में सब क्लेश।।

करें आरती दीप जलायें,  माँगें सब तुमसे वरदान ।
ज्ञान बुद्धि दो हमको दाता, मिट जाये सारे अज्ञान।।

ज्ञान की दीपक जलाने आये ,श्री गणपति हमारे घर।
शिव गौरी के साथ मे आये , लंबोदर जी हमारे घर।।


           प्रिया देवांगन "प्रियू"
           पंडरिया छत्तीसगढ़
priyadewangan1997@gmail.com

कुण्डलिया छंद (हिंदी दिवस पर विशेष ) डॉ सुशील शर्मा




14 सितम्बर  हिन्दी  दिवस की हार्दिक बधाई
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1
लहराती द्युति दामनी ,घोल मधुरमय बोल।
हिन्दी अविचल पावनी ,भाषा है अनमोल।
भाषा है अनमोल,कोटि जन पूजित हिंदी।
फगुवा रंग बहार ,गगन में चाँद सी बिन्दी।
कह सुशील कविराय ,प्रेम रंग रस बरसाती।
कोकिल अनहद नाद ,तरंगित मन लहराती।

2
हिंदी भाषा दिव्य है ,स्वर्ग सरिस संगीत।
हिन्दी ने ही रचे हैं ,दिव्य काल गत गीत।
दिव्य काल गत गीत ,रची तुलसी की मानस।
संस्कृत का आधार ,लिए हिन्दी का मधुरस।
कह सुशील कविराय ,मातु के माथे बिन्दी।
नेह नयन अनुराग ,समेटे सबको हिन्दी।

3
हिन्दी ही व्यक्तित्व है ,हिन्दी ही अभिमान।
हिन्दी जीवन डोर है ,हिन्दी धन्य महान।
हिंदी धन्य महान ,राष्ट्र की गौरव भाषा।
चेतन चित्त विभोर ,हृदय की चिर अभिलाषा।
आदि अनादि अमोघ ,मध्य जिमि नारी बिन्दी।
सुंदर सुगम सरोज ,हमारी प्यारी हिंदी।


   डाॅ सुशील  शर्मा 

शनिवार, 7 सितंबर 2019

किस्सा मिस्टर मुसद्दीलाल : शरद कुमार श्रीवास्तव






मुसद्दीलाल जी रोज प्रातःकाल टहलने के लिये जाते हैं, यह मैंने सुना तो था । परन्तु अपनी आँखों से देखने का मौका आज सुबह ही मिला।  प्रातःकालीन सैर तो सैकड़ों लोग करते हैं  लेकिन उनके बेढंगी शारीरिक बनावट और उसपर उनका नगाड़े जैसा पेट देखने में हास्यप्रद लगने वाले अपने मुसद्दी लाल जी भी करते है ऐसा मैंने पहले तो नहीं बताया था परन्तु मुझे लोगों से पता चला था ।   लोग इस बात को भी मजाक बना देते हैं परन्तु मेरा मानना है कि किसी की शारीरिक बनावट जो भगवान की देन है पर हसना अच्छी बात नहीं है ।आज गुड़िया की मम्मी ने सुबह-सुबह ही मुझे सोते से उठा दिया था। बोली आज दूधवाला नहीं आयगा, वह मुझे कल ही बता कर गया है।   मैं तैयार होकर  दूध ले आया और लाकर घर में दे दिया ।   फिर  मैंने सोचा कि बिस्तर मे पुनः वापस जाने से तो अच्छा है कि प्रातःकालीन की सैर का मजा लिया जाये । दौड़ने वाले जूते पहन कर मै भी टहलने निकल गया । 

कुछ ही दूर सड़क पर मुसद्दीलाल जी भी मिल गए। प्रातःकालीन नम्स्कार अभिवादन करके हम साथ साथ चलने लगे कि अचानक एक स्थल पर पहुचते ही अचानक मुसद्दी जी तेज़ दौड़ने लगे और मै पीछे रह गया। उसी दिन किसी  काम से मुसद्दीलाल जी मेरे आफिस आये तो मैंने उनसे सुबह भ्रमण के दौरान अचानक दौड़ने का कारण पूछा तो वह बड़े भोलेपन से बोले , भाईसाहब, आपने देखा नहीं था वहाँ एक नोटिस बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है ” स्पीड १० कि मी प्रति घन्टा”। मेरी स्पीड तो तीन या चा कि मी ही रहती है न । मै हँस भी नहीं पा रहा था। मैने उन्हें समझाया कि वह तो मोटर वाहनों के लिखा हुआ होता है आप के लिये नहीं । बाद मे जब भी उनकी इस बात का ख्याल आता है तो मै अपनी हंसी रोक नहीं पाता हूँ ।

                         शरद कुमार श्रीवास्तव 
       

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

हे वीणा वाली : वंदना : प्रिया देवांगन "प्रियू"





वीणा वाली शारद मैया , हमको दे दो ज्ञान।
नन्हे नन्हे बच्चे हैं हम , करें आपका ध्यान।।

चरणों में हम शीश झुकाते , करते हैं सम्मान।
हाथ जोड़ कर विनती करते , करेंगे न अपमान।।

दीप ज्ञान की जल जाये माँ , करते सभी  प्रणाम।
हम भी आगे बढ़ते जायें , जग में हो सब नाम।।

आशीर्वाद हमें दो माता , करें नेक हम काम।
पढ़ लिख कर विद्वान बनें हम , रौशन कर दो नाम।।





रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़

छोटे छोटे हाथ जोड़कर ( ताटंक छंद)
















छोटे छोटे हाथ जोड़कर,  प्रभु को शीश झुकाता हूँ ।
पूजा पाठ न जानू भगवन , लड्डू भोग चढ़ाता हूँ ।।

ज्ञान बुद्धि के दाता हो तुम,  संकट सब हर लेते हो ।
ध्यान मग्न हो जो भी माँगे , उसको तुम वर देते हो ।।

सूपा जैसे कान तुम्हारे  , लड्डू मोदक खाते हो ।
भक्तों पर जब संकट आये, मूषक चढ़कर आते हो ।।

पहिली पूजा करते हैं सब , बच्चों के तुम प्यारे हो ।
नहीं कभी भी गुस्सा करते,  सब भगवन से न्यारे हो ।।

छोटे छोटे बालक हैं हम , शरण आपके आते हैं ।
दूर करो सब संकट प्रभु जी,  भजन आपके गाते हैं ।।


महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

जय गणेश देवा रचना : प्रिया देवांगन "प्रियू"





जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
रोज करो पूजा पाठ ,और करो सेवा।।

लड्डू मोदक तुमको भाये , फूल पान मिलके चढ़ाये।
धूप आरती रोज लगाये , चरणों मे हम शीश नवाये।।

मूसक के तुम हो सवारी , एक दन्त के तुम हो धारी।
लंबोदर महाराज कहलाते , पेट तुम्हारा है सबसे भारी।।

अन्धे को तुम आँख  देते , कोढ़िन को तुम देते काया।
सबकी भव बाधा को हरते , बढाते हो सबकी माया ।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
रोज करो पूजा पाठ , और करो सेवा।।


























प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़

भारतवर्ष : रचना प्रणव अग्रवाल






अपने अधिकारों को तो खुले आम माँग रहे हो,
फिर क्यों अपने कर्तव्य से भाग रहे हो।
मोदी जी को तो सभी को लाना हे,
पर घर से बाहर नहीं निकलना है।

आज़ाद भारत के लिए कुछ करना है,
तो अपना कर्तव्य निभाओ।
इससे सभी का फायदा,
तुम भी अपना अधिकार पाओ।

आओ सब मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएँ,
भ्रष्टाचार और आतंकवाद को दूर भगाएँ।

वीर शहीदों के आज़ाद भारत का सपना करो साकार,
अपना अधिकार माँगो तब, जब बन जाओ जिम्मेदार।
आओ मिलकर अपनी संस्कृति बचाएँ,
और आज़ाद भारत को बेहतर बनाएँ।

आओ सब मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएँ,
भ्रष्टाचार और आतंकवाद को दूर भगाएँ।



                   - प्रणव अग्रवाल
                      कक्षा - नौ सी
                      एमिटी इंटरनेशनल स्कूल


मेरी माँ, मेरी पहचान : रचना रूपाशी अरोरा






मेरी माँ, मेरी पहचान

है उसकी गोद सबसे अच्छी

है वो सबसे सच्ची

सुनाया करती कहानियाँ

ताकि झट-पट आ जाए निंदिया


माँ,माता,अम्मी,मम्मी

नाम हैं उसके अनेक

है वो पूरी दंनिया से परे

वह हमें चलना सिखाती

वह हमें पढ़ना सिखाती

और रोने पर हमें चुप कराती

वह हर बार सहारा बनती

और मेरी पहचान बनती

उसने ही दुनिया को देखना सिखाया

और मुझे हर मुसीबत से बचाया

उनके लिए मैं हूँ

भगवान का दिया हुआ एक वरदान

लेकिन -

वह मेरी पहचान है

वह मेरी दुनिया है

उसका प्यार बेइंतहा है

वह मेरी माँ है।


       - रूपाशी अरोड़ा
          कक्षा - नौ
          एमिटी इंटरनेशनल स्कूल

समायरा वर्मा की कविता : जिन्दगी







ज़िंदगी है एक भूल भूलैया

नहीं दिख रही मुझे कोई मंजिल

जहाँ रोक सकूँ मैं अपनी नैया।

यह रास्ता हैै बहुत लंबा

थककर अंदर से आवाज़ आती है

अब तो तू थम जा।

लेकिन दिल रोक लेता है और कहता है

थक मत, अभी तो पंख फैलाकर उड़ना है तुझे

आने वाले किसी भी तूफान से नहीं डरना है तुझे।

अपनी मंज़िल को छूकर ही दम लेना है।

अपनी कमज़ोरियों को हराकर

अब आगे बढ़ना है तुझे

रोज़- रोज़, एक- एक कदम चलना है

और कुछ अलग करके सबसे आगे बढ़ना है।

हर पल , एक नई कठिनाई से लड़ना है

इतना समझ आ गया है कि

इन मुश्किलों का सामना भी खुद ही करना है मुझे।

अब तो कोई रोक कर दिखाए..........

आसमानों से भी ऊपर उड़़ना है मुझे।




                         समायरा वर्मा
                         कक्षा - नौ ई
                         एमिटी इंटरनेशनल स्कूल