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गुरुवार, 26 सितंबर 2019

शामू : एक धारावाहिक कहानी




शामू-2
अभी तक
शामू एक  भिखारी का बेटा था  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता था  ।  दूसरे बच्चो के साथ   वह  कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था।  उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में  आता था । एक बार उसका  पिता  उसको पढने  का सपना  दिखाया    आगे  पढिये :
गतांक  से आगे
ऐसा शायद ही कभी  होता हो,  जब शामू  अपने पिता  के साथ  कहीं  बाहर जाता हो ।   उस दिन जब शामू अपने पिता के साथ स्कूल  के  लिये  जा रहा था  तो उसके  साथी  उसे  कौतुहल भरी नजरों से देख रहे थे ।     लालू ने उससे पूछ लिया शामू तू कहाँ सैर करने जा रहा है ।  शामू कुछ नहीं बोला ।  इस पर  बिहारी  बोला , लालू ये अच्छे  काम के लिए  जा रहा है तूने खालीमूली  टोक दिया है देखो काम बनता है कि नहीं बनता है।   वे दोनो थोड़ी देर में  स्कूल के परिसर के   बाहर  थे ।   स्कूल  के बाहर  खड़े  गार्ड  ने उन्हें   रोका ।  वह बोला कि अरे अंदर कहाँ जा रहे हो।   बाबा, यह घर नहीं है, स्कूल है । यहां भीख नहीं मिलती है।   बच्चे पढ़ते हैं यहां।   बिहारी बोला, सरकार, बच्चे को पढ़ाना है  इसी लिए यहाँ आया हूँ।    गार्ड हँसा बोला  पहले बच्चे को साफ़ सुथरा बनाओ ,  साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहनाओ तब स्कूल में लाना।   उसने स्कूल में घुसने तक नहीं दिया।
बिहारी और शामू उदास मन से वापस घर चले आये।   रास्ते में शामू ने अपने पिता से कह कर  कपड़ा धोने वाले साबुन की एक टिकिया खरीदवाई और दूसरे दिन तड़के उठकर सड़क के नल पर रगड़  रगड़  कपडे धो रहा था।   मंगू और चन्दू  उसे  कपड़ों को साबुन से रगड़ रगड़ कर धोता देखकर खूब हँसे वे बोले, लगता है कि आज काली भैस को धो कर उजली बछिया बना दोगे।   यह   काली कमीज़ साफ़ नहीं होने वाली थी।   शामू ने अपने  पिता को नए कपडे दिलवाने  के लिए  नहीं कहा। .  बिहारी  समझता था,  कि शामू को   अंदर स्कूल जाने की  इच्छा है इसलिए  अपने भीख माँगे पैसों से बचाए  पैसों से  कुछ  पैसों लेकर वह गया और   अपने  कसबे में शामू के लिए कपडे देखने लगा।  बिहारी ने,  पुराने कपडे से बर्तन खरीदने वाले, फेरीवाले, से दो सेट  नेकर कमीज खरीद लिए ।   फेरी वाले से ही उसने जूते भी खरीद लिए।
अगले सप्ताह एक  नये उत्साह   के  साथ  शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ  स्कूल गया।   गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया।   वह बोला इस स्कूल में काफी पहले से बच्चों का नाम लिख लिया  जाता है।   बहुत पैसा भी पड़ता है।   केवल बड़े घरों के बच्चे पढ़ते हैं।   तुम्हे अगर अपने बच्चे को पढ़ाना है तो सरकारी स्कूल जाओ।    बिहारी क्या जाने सरकारी ,गैर सरकारी स्कूल ? शामू रोने जैसा होने लगा।  बिहारी  निराश  हो  कर बोला चल यहाँ से चल  पढना तेरी किस्मत  मे नहीं है ।
शामू का पिता बिहारी अपने काम पर चला  गया  था ।  शामू दादी के पास  लेटे लेटे  सोंच  रहा था  कि  हम गरीब हैं तो क्या   पढ़ाई  लिखाई  हमारे लिए  नहीं  है ।    हम क्या  पढ़ नही सकते ।  बड़े  आदमी  नहीं  बन सकते हैं  ।   वह फिर  सोचा  कि  जैसे  मछली  का  बच्चा  मछली  होता है  चिडिया  का बच्चा  चिड़िया  होता  है। वकील का बेटा वकील होता है।  उसी तरह  भिखारी  का  बेटा  भिखारी  ।  अपने  स्वयं के  उत्तर  से वह  संतुष्ट नहीं  हुआ  ।  उसने  अपनी  दादी  से पूछा  कि  क्या  हम हमेशा  भिखारी  ही रहेंगे ।   दादी  बोली नहीं  बेटा  अगर मेहनत करोगे  तो अपनी  किस्मत  बदल भी  सकते  हो।
शामू  दादी की  बातें सोचते सोचते सो गया ।  उसने सपने मे देखा  कि एक पहाड़  सी किताब  नदी  के  उस  पार  रखी  है ।  वह  किताब  तक तैर के  जाना चाहता है  लेकिन  मगरमच्छ उसको पहुचने नहीं  दे रहे हैं 


आगे अभी और है


शरद कुमार श्रीवास्तव 

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