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शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

मैले कपड़े संकलन सुनील कुमार सिंहा

 



 

एक दिन की बात है। एक मास्टर जी अपने शिष्य के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे, पर बावजूद इसके मास्टर जी मुस्कुराते हुए चलते रहे। 


मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा। पर इसके बावजूद मास्टर जी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। 


मास्टर जी पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया।


उस व्यक्ति के जाते ही शिष्य ने आश्चर्य से पूछा, “मास्टर जी आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया और तो और आप मुस्कुराते रहे, क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुँचा?”


मास्टर जी कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।


कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर जी के कक्ष तक पहुँच गए। मास्टर जी बोले, “तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया।”


मास्टर जी कुछ देर बाद एक मैले कपड़े को लेकर बाहर आये और उसे शिष्य को थमाते हुए बोले, “लो अपने कपड़े उतारकर इन्हें धारण कर लो ?”


कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया।


मास्टर जी बोले, “क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता।


जीवन में याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।


संकलन 

सुनील कुमार  सिंहा

कालपी

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