सोमवार, 26 अप्रैल 2021

स्कूल लौटने की चाह :: अंजू जैन गुप्ता की बालकथा


 

साल 2021और मार्च का महीना था। रिया, अतुल, इशिता, मान्या,अमित और रोली आदि सभी  बच्चे खुश थे, कि कुछ ही दिनों में वे सब नई-नई व अगली कक्षाओं (classes)में चले जाएँगे।पर अचानक ही एक वायरस,कोरोना वायरस ने आकर पूरी दुनिया को हिला दिया। हर जगह लाॅकडाउन लगा दिया गया। सभी स्कूल, कालेज व दफ्तर बंद कर दिए गए। अब घर में बैठे हुए सभी बच्चे भी परेशान हो गए। 


तभी दूसरी ओर  अतुल और इशिता का शोर सुनकर उनकी मम्मी दौड़  कर  आती है, और कहती हैं," अरे! बच्चों तुम दोनों किस बात पर इतना शोर कर रहे हो? तभी अतुल कहता है ,"मम्मा-मम्मा देखो न इशिता को इतना भी नही पता कि वायरस क्या होता है"?यह कह रही है कि वायरस तो डाकू है जो सबको परेशान कर रहा है और उन्हें मार भी रहा है इसको तो  पुलिस ही पकड़ कर जेल में डाल सकती है। यह कहते ही अतुल जोर से हंसने लगता है ,तभी माँ कहती है "नहीं- नहीं बेटा अपनी छोटी बहन की बातों पर हँसते नहीं है अगर उसे कुछ पता नहीं है, तो उसको समझाते हैं"। तुम उसकी मदद नहीं करोगे तो कौन करेगा?इतना सुनते ही अतुल कहता है हाँ- हाँ मम्मा आप ठीक कह रहे हो। अब इशिता मम्मी से कहती है कि मम्मा आप ही बताइए न ये वायरस क्या है?भैया तो कुछ बता ही नहीं रहे बस हँसते ही जा रहे है। 



अब मम्मी कहती है ,कि तुम दोनों इधर आओ मैं तुम्हें बताती हूँऔर मम्मी कहती है," कि वायरस तो बहुत छोटे- छोटे  कीटाणु होते हैं जिन्हें हम माइक्रोस्कोप की सहायता से ही देख सकते है"। तभी अतुल बोल पड़ता है कि इशिता अब तुम सोचोगी कि ये माइक्रो स्कोप क्या होता है?इशिता कहती है कि हाँ हाँ भैया बताओ न,तब अतुल बताता है कि, "माइक्रो स्कोप एक यंत्र (instrument) होता है जिसके द्वारा हम सूक्ष्म से सूक्ष्म अर्थात छोटे से छोटे कीटाणुओं को देख सकते है"। 



  यह कीटाणु हमें बिना इस यंत्र के दिखाई नहीं देते हैं किन्तु ये हमारे आस-पास के वातावरण में ही पाए जाते है।वायरस भी ऐसे ही होते है।  अब उनकी मम्मी बताती है कि कुछ वायरस कम नुकसान पहुँचाते है तो कुछ ज़्यादा जैसे कि हमें आमतौर पर जब कभी खाँसी -जुकाम होता है तो वह चार या पाँच दिनों में ठीक हो जाता है ।यह भी हमें वायरस के कारण ही होता है जो कि हमें ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचाता है।जिस वायरस ने चारों ओर हाहाकार मचाया हुआ है उसका नाम 'कोरोना वायरस 'है और यह एक जानलेवा वायरस जो कि  पलक झपकते ही लोगों की जान ले लेता है। तभी अतुल बोल पड़ता है ,कि हाँ -हाँ मम्मा मुझे पता है यह वायरस तो एक -दूसरे के सम्पर्क में आने से और भी जल्दी फैल जाता है तभी इशिता बोलती है हाँ -हाँ मम्मा  देखों न ,तभी तो  हमारे स्कूल भी इन दिनों बंद कर दिए गए हैं और आनलाइन पढाई हो रही है ।अब तो हमारा घर में मन भी नही लगता बस जल्दी से स्कूल खुल जाए फिर हम पढाई के साथ -साथ स्कूल जाकर खूब मस्ती भी करें। 



तभी मम्मी कहती है ,हाँ -हाँ    बच्चो जल्द ही तुम्हारे स्कूल भी खुल जाएँगे और तुम सब भी पहले जैसी मस्ती कर पाओगे  कयोंकि इस जानलेवा वायरस की वैक्सीन भी अब  बन गई है और धीरे -धीरे यह सबको लग जाएगी तब सब कुछ पहले जैसा ही हो जाएगा।



 मम्मी बोली तुम्हें तब तक मेरी कुछ  बातें माननी होगी। बोलों मानोगे ? अतुल और इशिता दोनों कहते है ,हाँ- हाँ मम्मा जल्दी बताओ , हम तो स्कूल  जाने के लिए कुछ भी करेंगे। आपकी सारी बातें मानेगे। तब मम्मा कहती है कि वादा करो कि इस कठिन समय में हमें एक दूसरे का साथ देना है और कोरोना से बचने के लिए जब भी हम घर से बाहर निकले तो मास्क लगाना है, सबसे दो गज की दूरी रखनी है, हाथों को बार बार साबुन से धोना होगा और साथ ही कोरोना की वैक्सीन लगवानी होगी तभी हम कोरोना को हरा पाएँगे और संसार की खुशियों को वापिस लौटा पाएँगे दोनों बच्चे अपनी मम्मी की बात मान जाते है और खुशी से उछल पड़तेज है। 


अंजू जैन गुप्ता

कालू और पिंगू बालकथा शरद कुमार श्रीवास्तव

 


एक बार की बात है एक कौवा था। उसका नाम कालू था। वह बहुत बदमाशी करता था। वह खुद तो बड़ा कामचोर था और  दूसरे जानवरों को बुला बुलाकर, कांव कांव करता उन्हे  मूर्ख  बनाता और बहुत मस्ती करता था। उसकी मुलाकात एक चालाक लोमड़ी से  हुई थी जिसका नाम पिंगू था  ।   पिंगू  चतुर भी थी उसे  कालू की फिजूल की हरकतों का पता चल चुका था  कि कालू बिना किसी बात के जानवरों को रोक कर ऐसे ही अपना और उनका समय नष्ट करता है और उनका कांव - कांव करके उपहास उड़ाता है अतः उसने कालू को सबक  सिखाने को सोचा ।  



एक बार  कालू कहीं से रोटी लाकर पेड़ पर खाने बैठा ही था कि पिंगू लोमड़ी वहाँ आ गई ।   उसने कालू से कहा तुम्हारी आवाज बहुत  प्यारी है जरा मुझे अपना प्यारा गाना सुनाओ।   कौआ सयाना था वह बोला पिंगू मौसी पिछली बार तुमने मेरी तारीफ  कर  मेरी रोटी का टुकड़ा मुझसे ले गईं थी और मेरा गाना भी नही सुना था  ।   लोमड़ी  बोली मै कहाँ ले गयी थी वह यहीं पास मे खड़े बिल्ली खा गई थी चाहे बिल्ली से पूछ  लो।  इतने मे बिल्ली  भी आ गईं कौवे उससे  कहा मौसी तुम मेरी रोटी का टुकड़ा उठाकर  भागी थी ।   बिल्ली  ने कहा मैंने तो नही लिया था  अपने पेड़ पर बैठे चिंटू बन्दर से पूछो वही बहुत  शैतान  है उसी ने शायद  लिया हो ।  कालू जैसे ही चिंटू  की तरफ देखा चिन्टू ने झपट कर उसकी रोटी को छीन  लिया ।  कालू काँव काँव करके उड़ गया।

दूसरो का समय नष्ट  करके मुर्ख बनाने वाला कालू अगर समय रहते अपनी रोटी खा लेता तो चिंटू बंदर  उससे रोटी का टुकडा  नहीं छीन पाता।



 शरद कुमार  श्रीवास्तव 

 


चुटकुले : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव

 




1 अध्यापक नये छात्र से-तुम लगातार मुस्कुरा क्यों रहे हो ?
नया छात्र- जी मेरा नाम हँसमुख  है।

 2 
रानी — अशोक तुम गोरे कैसे हो गए
अशोक- मै पहले कोयला बेचता था अब दूध बेचता हूँ।
3
अध्यापक- देशाटन से लाभ पर निबन्ध लिखो।
शिखर ने लिखा- पढाई लिखाई और स्कूल से छुट्टी मिल जाती है
4
अध्यापक — मै तुम्हें नालायक से लायक कैसे बनाऊँ।
शाश्वत- बस आप ना कहना बन्द कर दे।

"कन्या भोज" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना




छन्न पकैया छन्न पकैया, माता घर घर जाती।
नौ कन्या बनकर के माता, खुशियाँ वह बिखराती।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटी दुर्गा काली।
सदा करो रक्षा तुम मानव, बनकर के तुम माली।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मैया दर्शन देती।
नौ दिन तक जो पूजा करते, सारे दुख हर लेती।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटी सभी बचाओ।
जग को रौशन करती बेटी, धरती पर तुम लाओ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, नव दिन जोत जलाओ।
मनोकामना पूरी होगी, कन्या भोज कराओ।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

वीर जवान" (दोहा) प्रिया देवांगन प्रियू

 





रक्षा खातिर देश के, छोड़े घर अरु द्वार।
जान हथेली पर रखे, बिछड़ गए परिवार।।

बहती आँखे नीर है, बिछड़े बेटा आज।
खून पसीना एक कर, रखते माँ की लाज।।

चलते हैं अंगार पर, ले बन्दूकें हाथ।
है भारत के शेर ये, नहीं झुकाते माथ।।

गर्मी सर्दी ठंड हो, चाहे हो बरसात।
रहते सीमा पर खड़े, कैसी हो हालात।।

भारत माँ के वीर जब, चलते सीना तान।
आतंकी को मारते, मिले उसे सम्मान।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


"करतब" (कुण्डलियाँ) स्व महेंद्र देवांगन "माटी" की रचना

 

करतब करती रोज के , देखे सब हैरान ।
चल जाती है डोर पर , नन्ही सी है जान ।।
नन्ही सी है जान , खूब वह नाचा करती ।
चढ़ती ऊँचे बाँस , नहीं वह फिर भी डरती ।।
देते पैसे लोग  , उसी से राशन भरती ।
पैसे खातिर देख , रोज वह करतब करती ।।



महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

रविवार, 25 अप्रैल 2021

"भाग्य" (सरसी छंद) स्व महेन्द्र देवांगन माटी की रचना

 





भाग्य भरोसे क्यों बैठे हो, काम करो कुछ नेक।
कर्म करो अच्छा तो प्यारे, बदले किस्मत लेख।।

जो बैठे रहते हैं चुपके, उसके काम न होत।
पीछे फिर पछताते हैं वे, माथ पकड़ कर रोत।।

जो करते संघर्ष यहाँ पर, उसके बनते काम।
रूख हवाओं के जो मोड़े, होता उसका नाम।।

कर्म करोगे फल पाओगे, ये गीता का ज्ञान।
मत कोसो किस्मत को प्यारे, कहते सब विद्वान।।

"माटी" बोले हाथ जोड़कर, करो नहीं आघात।
सबको अपना साथी समझो, मानो मेरी बात।।

रचनाकार
महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

नन्ही चुनमुन ने अपनी दोस्त पम्मी का जन्मदिन मोबाइल पर मनाया : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


फागुन मास होली के साथ  समाप्त हुआ ।  चैत्र के साथ चन्द्रमा की गति पर आधारित वर्ष  की शुरुआत  हो गई। चैत्रीय नवरात्र अर्थात  बसन्त का मौसम आ गया जब न अधिक  ठण्डी न अधिक  गर्मी ही होती है।  पेडों पर नये पत्ते नई कलिंयाँ आती है  और उन पर मंडराती  तितलियाँ भौंरे भी आ जाते हैं ।  खेतों मे गेंहू सरसों मनमोहक  फसलें तैयार हो जाती हैं ,  पेड़ पर जामुन आम बौरों से भरे हुए हो जाते हैं यानि कि बसन्त  के आगमन  से सब खुश हो जाते है ।

बसन्त  के आगमन पर चुनमुन  भी बहुत खुश थी । उसका स्कूल  खुलने वाला था उसके लिए  उसके मम्मी पापा स्कूल की नयी यूनीफॉर्म कापी किताब  सब लाए  थे वैन वाला भी आ गया था कि पता चला पिछले साल जिस डाकू कोरोना ने सबको परेशान कर  रखा था और जिसे सब लोग "भाग गया" सोंच  रहे थे और मास्क का प्रयोग    करना छोड दिए थे  वह भरपूर  ताकत और अपने नये साथियों के साथ आ गया है और  फिर सबको धमका रहा है।   स्कूल बन्द हो गए कहीं आना जाना भी बन्द हो गया ।  ऑनलाइन  क्लास  शुरू हो गईं है   पम्मी को वह कभी कभी ऑनलाइन  क्लास  की हाजिरी  के समय ही देख पा रही थी ।

 पम्मी  चुनमुन की पिछले दो  साल  से दोस्त  थी ।   लंच के पीरियड मे लंच के बाद खूब खेलते थे कभी पकड़म पकड़ाई तो कभी कटिम कुट्टा  खेलती थी।   अब कभी कभी मम्मी के फोन से बातचीत  हो जाती है।   पिछले सप्ताह  जब  चुनमुन  को पता चला कि पम्मी का जन्मदिन  आनेवाला है  तब उसने अपनी मम्मी से कहकर पम्मी को एक प्यारा सा उपहार  भेज दिया था । 

 अभी चुनमुन  उसके बारे मे सोंच  रही थी कि आज तो पम्मी का जन्मदिन  है बस उसी समय मम्मी नेउसे फोन लाकर  दिया फोन पर पम्मी की  काल थी चुनमुन  ने मोबाइल  पर पम्मी को जन्मदिन  की बधाई  दी और खूब बातें कीं तभी चुनमुन  की मम्मी एक प्लेट मे एक पेस्टरी चिप्स और एक रसगुल्ला रख कर  दे गईं ।  इस तरह चुनमुन ने पम्मी घर बिना गये हुए  ही पम्मी क जन्मदिन  अपने घर पर ही मना लिया ।



शरद कुमार  श्रीवास्तव 

प्रिन्सेज डॉल, फूल और प्यारी तितली शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना

 


बसंत  का मौसम  है ।   प्रिन्सेज डॉल के  बगीचे मे खूब सुन्दर प्यारे प्यारे  फूल खिले हुये हैं ।  डाॅल,  स्कूल  जाने से पहले  अपने  बगीचे में  जरूर  जाती है । फूलों  को हँसता  देख कर  उसको बहुत  अच्छा  लगता  है ।    उसे गुलाब बहुत पसंद  है ।  वह देखने  में  सुंदर  तो हैं ही उनकी खुश्बू भी   प्रिन्सेज डॉल को  बहुत  पसंद  है  ।  वैसे उसे दूसरे  फूल  भी पसन्द  हैं जैसे   डाहलिया, गुलदावदी , पैन्जी,  पाॅपी आदि लेकिन ये   फूल तो जाड़े के  फूल हैं  जो  प्रिन्सेज डॉल को  पसन्द  है ।    बेले के  फूल तो गर्मियों मे आते हैं   जिसकी  मोहक खुश्बू और उनका सफेद प्यारा  रंग  भी  प्रिन्सेज को पसंद  है  ।   परन्तु  गुलाब  के  फूल की  बात   ही  कुछ और  है  ।   हर  मौसम  में गुलाब  हँसते खिलखिलाते बहुत  प्यारे   नजर आते हैं।    उस दिन प्रिन्सेज को  बगीचे  में   प्यारी प्यारी  तितलियाँ  भी  दिखाई  दीं  ।    प्रिन्सेज  को  बड़ा  मज़ा  आ गया  ।  वह एक  तितली  के  पीछे  दौड़ी जो  गुलाब  के  फूल  के  ऊपर आ बैठी थी और  उस फूल से बातें  कर  रही  थी  ।   प्रिन्सेज डॉल को आता देख  कर  वह झट से  उड़ गई । डाॅल उसके  पीछे दौड़  रही थी लेकिन  उसको वह पकड़  नहीं  पा रही  थी ।    इतने मे पीछे  से  किसी  ने प्रिंसेस  डॉल को  आवाज़  लगाई ।   उसने देखा  कि  गुलाब के  फूल  से  से आवाज  आ रही है ।     गुलाब के  फूल  की  उदासी भी फूल  की  रंगत से साफ दिखाई  दे  रही  थी  ।     उसकी  दो  चार  पंखुड़ियाँ  झड़ गई  थी   और  गुलाब  का फूल  उससे  कह रहा था कि   काफी दिनों  के  बाद  उसकी  तितली  बहन उसके पास  आई थी  और तुम  ने उसे उड़ा दिया ।   उसी  समय  डॉल के  कान के  पास  से   तितली  निकली ।   वह भी  कह रही थी  कि  मै   इतने दिनों  के  बाद अपनी बहन  से मिलने  आई थी  और तुम मुझे  पकड़ने के  लिये  दौड़  पडीं  यह तो अच्छी  बात नही  है  ।   प्रिन्सेज डॉल बोली  मैं  क्या  करूँ  मुझे  तितलियाँ  बहुत  पसंद  हैं  ।   इस पर तितली  बोली लेकिन  पकडने से तो मेरे पंख टूट जायेगें  और मै मर जाऊँगी ।   प्रकृति ने सुन्दर  चीजें  बनाई है सिर्फ  देखने के  लिए  उन्हें  तोड कर बर्बाद  करने  के  लिए  नहीं  ।   प्रिन्सेज को याद  आया कि  जब जादूगर  ने उसे  पकड़  लिया  था तब उसे कितना बुरा लगा  था ।   वह अपनी मम्मी  के  लिए  कितना  रोई थी ।  उसने तुरन्त  उसे तितली  से माफी  मांगी और कहा कि  तुम हमेशा इसी तरह फूलों  से  मिलने  आया  करना ।   हम बच्चे तुम्हें  विश्वास  दिलाते हैं  कि  हम सिर्फ  तुम्हें  देखेंगे  और तुमको पकडेगा नहीं ।   इतने में  स्कूल  की वैन का हार्न बजा और प्रिन्सेज डॉल स्कूल  चली गई ।



शरद कुमार  श्रीवास्तव 



"माँ कुछ चमत्कार करो"




मुझ पर थोड़ी दया करो माँ, कुछ ऐसा उपकार करो।
नया वर्ष में माँ तुम अपनी, चमत्कार साकार करो।।

संकट में है सारे मानव, त्राहि त्राहि है मचा हुआ।
रोते रोते दिन है कटते, मुक्ति धाम है सजा हुआ।।
टूट पड़ो माँ काली बनकर, राक्षस का संहार करो।
नया वर्ष में माँ तुम अपनी, चमत्कार साकार करो।।

रोजी रोटी खातिर मानव, भटक रहे दुनिया सारी।
ऐसा कलयुग आया साथी, विपदा टूट पड़ी भारी।।
छोटे छोटे बच्चे हैं माँ, कुछ ऐसा उपकार करो।
नया वर्ष में माँ तुम अपनी, चमत्कार साकार करो।।

आना जाना बंद सभी का, घर पर ही सोये रहते।बच्चे बूढ़े भूखे बैठे, मात पिता खोये रहते।।
जो पापी अत्याचारी है, उस पर तुम तलवार धरो।
नया वर्ष में माँ तुम अपनी, चमत्कार साकार करो।।


रचनाकार 
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


"आज के दोहे" स्व महेंद्र देवांगन "माटी" की रचना (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया



आजकाल के छोकरे, चला रहे सब नेट।
आये कोई द्वार में, खोले कभी न गेट।।

काम धाम अब छोड़ के, करते रहते चेट।
पढ़े लिखे सब घूमते, होय मटिया मेट।।

पहले खोलो वाट्सप, देखो सब मैसेज।
कापी राइट पेस्ट कर, तू भी सब को भेज।।

भेजे ना सन्देश जो, कुप्पा उसको जान।
करे कभी ना वाह भी, बोझा उसको मान।।

रचनाकार
महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

होली का हुड़दंग

 





होली का त्योहार आया पिछले साल  की तरह इस वर्ष  भी कोई होली खेलने बाहर नहीं गया।  घर बाहर  सब जगह कोरोना  के कारण  सन्नाटा पसरा हुआ था ।  आयुष  को  दो साल  पूर्व  की होली याद आ गई  जिसे याद कर  उसके चेहरे पर मुस्कराहट  फैल गई।  उसे याद  आया :-


होली को आयुष  घर मे जैसे ही  घुसा सारा घर हँस  पड़ा।   वह बाहर से एकदम काले मुहँ वाला बन्दर बन कर  आया  था       बाहर  रोड  पर   किसी ने  उसके  चेहरे  पर  काला रंग लगा दिया  था ।   आयुष  के  पापा बोले  आप सब क्यों  हँस  रहे  हैं  ।   मनीष  बोल पड़ा  कि किसी  बच्चे  ने आयुष के  चेहरे पर  काला रंग पोत  दिया  है  ।  हमारी  कालोनी  में  तो सब लोग  सफाई  से होली खेलते हैं कोई  गन्दे रंगों  से नही खेलता  है ।  पापा   आयुष से पूछो यह मेन  रोड की तरफ होली  खेलने  गया  ही क्यों  था ।   पापा  ने कहा कि हाँ  ठीक ही तो   है  कि  होली के  हुड़दंग  मे छोटे  बच्चों  को  बहुत  एहतियात  के  साथ  होली  खेलना चाहिए  ।  बच्चों  की  त्वचा  बहुत  कोमल  होती है  और  हुडदंग  में  लोग खराब  रंगों  का  भी  इस्तेमाल करते हैं  जिससे स्किन इंफेक्शन  होने  का  डर रहता  है  ।    इसीलिए  मैंने  तुम सब  लोगों  को हाथ  पैरों  और मुह मे  मास्चराइजर  तथा  बालों  में जैतून  का  तेल   लगवाया था

मनीष  बोला  कि   पापा होली  तो मेल मिलाप और प्रेम - सौहार्द    का त्योहार  है  हमे सूखे  अबीर गुलाल  से  होली खेलना  चाहिए  ।    पापा आगे  बोले  हमे प्राकृतिक  रंग  भी उपलब्ध  हैं  जैसे  टेसू के  फूल इत्यादि   जो  गांवों  में  तो मिल  जाते हैं  और  पंसारी की  दुकानों  पर  भी  मिल  जाते उनका गीला रंग  बना  कर  होली खेलने  का  मजा ही   कुछ  और है  ।  

मम्मी  ने  पकवानों  के  साथ  खाना  भी  लगा  दिया  ।   आज के  दिन  तो तरह  तरह के  पकवान  भी  बनते हैं  और हर जगह  थोड़ा  बहुत  तो खाना  ही  पड़ता  है  इसलिए  मम्मी  ने  खाने  की  टेबल पर  कहा  कि  बच्चों  बाहर अधिक   खाना खाने  से  बचना  अगर  खाना  ही  पडे तो बिल्कुल  नाममात्र  ही  खाना  चाहिए ।

  शाम  को  घर के  सब लोग  दादी  बाबा  के  घर  पर  गये दादी  बाबा  ने सब बच्चों  को  गले लगाया  और होली का  उपहार  दिया


शरद कुमार श्रीवास्तव 

शामू 3

 







अभी तक
शामू एक भिखारी का बेटा है और वह अपनी दादी के साथ रहता है । दूसरे बच्चो के साथ वह कचड़ा प्लास्टिक, प्लास्टिक बैग कूड़े से बीनता है । उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में आता है । एक बार उसका पिता उसको पढने का सपना दिखाता है शामू अपने पिता के साथ स्कूल के लिये गया था । स्कूल के बाहर खड़े गार्ड ने उन्हें रोका और बोला कि अंदर कहाँ जा रहे हो। साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहन कर स्कूल में आना। शामू ने ड़क के नल पर रगड़ रगड़ कपडे धो डाले मना कर दिया। अगले सप्ताह एक नये उत्साह के साथ शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ स्कूल गया। गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया। सरकारी स्कूल जाओ। बिहारी क्या जाने सरकारी ,गैर सरकारी स्कूल ? शामू रोने जैसा होने लगा। बिहारी निराश हो कर शामू से बोला चल यहाँ से चल पढना तेरी किस्मत मे नहीं है ।




आगे पढ़िए



शामू अपनी कथरी पर हड़बड़ा कर उठ बैठा। यह देखकर दादी बोली सो जा बड़ी रात है उठ कर क्यों बैठ गया है? वह बोली पास घड़ा है पानी निकाल कर पी ले और सो जा। शामू रोने लगा । वह रो रो कर कहने लगा मुझे किताब चाहिए। मुझे किताब चाहिए। दादी बोली अभी तू सो जा सुबेरे तुझे किताब दूँगी। शामू ने सबेरे उठते ही दादी से किताब की फरमाइश की. दादी ने एक पोटली निकाली और उसे खोल कर एक किताब निकाली। अपने हिसाब से तो दादी ने बहुत जतन से, सुरक्षित रखी थी वह किताब। किताब के पीले पड़े पन्ने लेकिन उस किताब को ऐतिहासिक विरासत बता रहे थे। शामू ने उस किताब को अपनी छाती से काफी देर लगाए रखा फिर उसने दादी से पूछा यह तेरे पास कहाँ से आई। दादी बोली यह तेरे बाप बिहारी के लिए तेरा दादा लाया था । लेकिन बिहारी किताब छोड़ भागता था । इसी से आज भीख मांग रहा है। लेकिन तू तो कुछ पढ़कर कुछ बन तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
थोड़ी देर बाद शामू अपने रोज के काम से बाहर निकल गया। आज रास्ते में उसे चंदू मिल गया। उसके साथ मांगू और हरी भी थे। मांगू बोला, हो आये स्कूल, पढ़ आये। हम जानते हैं लिखना पढ़ना अपनी किस्मत में नहीं है। तू बेकार ही गया था, बेकार की सुनने के लिए । चंदू बोला होगया ना सारा कुछ। तेरा किस्सा अगर खत्म हो गया तो चल काम पर फिर लग जा। इस बार एक चुम्बक लगा डंडा शामू के हाथ में चन्दू ने दिया। बोला अब प्लास्टिक पन्नी के साथ तुम सबको लोहा भी जमा करना है। जमीं पर गिरा लोहे का टुकड़ा इस डंडे से उठा कर झोले में रख कर मुझे देना फिर अपन लोग मिल कर मजा करेंगे। शामू को तो जैसे खेलने का एक अच्छा जुगाड़ मिल गया था उसे घुमाया फिराया और बोला मैं तो बल्ला भांज रहा हूँ फिर उसने कंधे पर रखा और फिर बोला लो अब मैं गार्ड साहब बन गया हूँ गार्ड नहीं पुलिस अंकल बन गया हूँ. मांगू बोला लो अब गुल्ली डंडे का डंडा हो गया। चंदू बोला , नहीं यह तो ना क्रिकेट का बल्ला है और ना सिपाही की बंदूक और यह गुल्ली डंडे वाला डंडा भी नहीं है। इसे बस रोटी रोजी ही समझना तोडना फोड़ना नहीं दुबारा और नहीं मिलेगा। . शामू की क्षणिक खुशियाँ भी धराशाही हो गयी और वह निकल पड़ा प्लास्टिक पन्नी लोहा खोजने के लिए। वह साधारणतः दो लोगों से अधिक बच्चे साथ साथ निकलते थे ।  उस दिन शामू  अकेले ही  निकल गया  था ।  वह आपनी बस्ती  से बाहर  निकल  गया  था ।   एक कार मैकेनिक  के  गैरेज के  बाहर पडे कचडे के मलबे से लोहे के टुकड़े बीन रहा था  कि गैरेज का मालिक आ गया और उसको पकड़ लिया और बोला चोरी कर रहा था ।  शामू  बोला  नही  कचड़े में  से लोहा  बीन रहा था ।  उस गैरेज  के  मालिक के इशारे पर उसके लोगों ने उसे पकड़ कर गैरेज के एक  कोने में  उसे बैठा  दिया ।


आगे  पढिये  अगले अंक में


शरद कुमार  श्रीवास्तव 

"पापा की गुड़िया"




मैं पापा की गुड़िया रानी, मेरे अच्छे साथी थे।
खेल खेल में हम दोनों भी, बनते घोड़े हाथी थे।।

छोड़ कभी न अकेले मुझको, साथ मुझे ले जाते थे।
चाट पकौड़े बड़े मजे से, पापा मुझे ख़िलाथे थे।।

प्यार दिये भरपूर मुझे वह, कहानी वह सुनाते थे।
रुठ जाती बातों पर मैं जब, आकर प्यार जताते थे।।

कहाँ गए वो दिन भी सारे, याद बहुत अब आती है।
हर छोटी छोटी बातें ही, मुझको बहुत रुलाती हैं।।

क्यों करते हो ऐसा भगवन, कैसे अब विश्वास करूँ।
दूर किये खुशियों से अपनी, क्या तुझसे अब आस करूँ।।

सपनें देखे मिलकर दोनों, सारे सपनें टूट गए।
हँसते रोते दिन भी सारे, पीछे सारे छूट गए।।

जब भी आता जन्मदिन पापा, साथ सदा मनाते थे।
गुब्बारे और आइसक्रीम , केक हमेशा लाते थे।।

दूर हुए क्यों मुझसे पापा, याद बहुत ही आती है।
बात दिलों को छू ने वाली, आँखे नम हो जाती है।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


होली की उम॔गें कृष्णा वर्मा की ,चना

 


फाल्गुन मास का यह रंगभरा त्यौहार ,

विविध रंगों के साथ , मस्ती की बहार ।

गुलाल , पिचकारी से खेले हमेशा ,

प्रफुल्लित सा यह भरा अतुल विश्वास ।


खुशियों की उमंगे , अपनों का प्यार 
,
नँगाड़े की धुन में , देखो झूमे सपरिवार ।

भांग की मदहोशी में , दोस्तों का साथ 

जीवन की डोर में , बिखेरता हाथो हाथ ।



चलिए मिलजुल कर करे , प्रेम का प्रसार
 
सद्भावना से मनाए , होली का यह त्यौहार ... 





◆ Happy HOLI ◆
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✍️ कृष्णा वर्मा , रायपुर  9009091950