मैं सिर्फ तुम्हारी हूंँ : पुस्तक का आत्मनिवेदन : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"







मुझे पढ़ी जिसने इस जग में, जीवन तिमिर मिटाया है।
नन्हें बालक हो या बूढ़े, ज्ञान –अमृत को पाया है।।
अक्षर अक्षर शब्द बने हैं, मंद बुद्धि खुल जाते है।
रामायण भगवत गीता में, भगवन दर्शन पाते हैं।।

अलग –अलग शाखाएंँ मेरी, मनुज मुझे अपनाते हैं।
कभी मित्र बन अश्रु बहाते, अपनी व्यथा सुनाते हैं।।
रग –रग में बहते हैं मेरे, लोरी गीत कहानी हैं।
सागर से भी गहरी मानो, साधु संत की बानी है।।

खोलो जरा इतिहास को तुम, राजाओं की हैं बातें।
वेद ग्रंथ अरु झलकारी की, मुझमें सारी सौगातें।।
आज विश्व भी आगे बढ़ता, लगती सबसे न्यारी हूंँ।
नहीं धरा पर कोई अपना, हांँ मैं सिर्फ तुम्हारी हूंँ।।

कभी अकेले नहीं समझना, आना मेरी बाहों में।
पाँव गड़े गर कंटक साथी, फूल बिछा दूंँ राहों में।।
मुझ बिन जीवन व्यर्थ तुम्हारा, है जीवन की सच्चाई।
समझ सको तो समझो सारे, बातों में हैं गहराई।।

हूंँ किताब मैं इस दुनिया की, जरा मुझे तुम पहचानों।
ज्ञान भरा हैं भाषाओं का, शब्द शब्द को तुम जानो।।
लक्ष्य साध कर जो भी पढ़ते, परछाई बन जाती हूंँ।
जन्म मरण तक हर मानव के, मैं तो साथ निभाती हूंँ।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़



मैं समय हूँ । 🕛 कृष्ण कुमार वर्मा की कविता



मैं समय हूँ ।
मेरी परवाह करना सीखो ।
मेरे साथ चलो , कदम मिलाकर ..
अन्यथा छूट जाओगे , इस भागमभाग में ।
मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता हूँ ।
लोगो के सोच से , मैं आगे निकलता हूँ ।
हाँ ! मैं समय हूँ ।
जिंदगी के सफर पर , मुझे पहचान लो ।
चलना पड़ेगा साथ में , अच्छे से ये जान लो ...
-------------------




कृष्ण कुमार वर्मा
रायपुर , छत्तीसगढ़

पौप्सी 🦌 (हिरण)के घर अँधेरा " बालकथा श्रीमती अंजू जैन गुप्ता





सुन्दरवन के घने जंगलों में पौप्सी नाम का एक हिरण रहता था।उसकी सैंटी नाम के मगरमच्छ (🐊) के साथ बहुत गहरी मित्रता थी।वे दोनों रोज़ एक - दूसरे से अवश्य मिलते थे और अपनी सभी बातें एक-दूसरे को अवश्य बताते थे।

किंतु पौप्सी इस बार तीन दिनों से सैंटी से  नही मिला था और इस बात से सैंटी बहुत परेशान था।उसने सोचा कि चलो ,मैं स्वंम  ही जाकर पौप्सी से मिल लेता हूँ।

जैसे ही सैंटी पानी से बाहर आया और सुंदरवन के घने जंगलों की ओर जाने लगा उसे राह में साइबेरियन बतख मिलती है।वह सैंटी से पूछती है ,"अरे -अरे सैंटी भाई कँहा दौड़े चले जा रहे हो?  ; तुमने तो आज मुझे हाय --हैलो भी नही किया।

तभी सैंटी कहता है," कि मुझे माफ़ कर  दो बहन , मैं अपने मित्र पौप्सी को ढूँढ रहा हूँ।वह मुझे तीन दिनों से मिलने नही आया"।तभी बतख बोलती है," कि अच्छा पौप्सी ,उसे तो मैंने आज ही देखा है।वह तो अपने घर में परेशान बैठे है क्योंकि तीन दिनों से उसके घर में बिजली नही आ रही है और बहुत अँधेरा है"।

 तभी सैंटी कहता है ,"अच्छा बहन, धन्यवाद मैं जल्दी से जाकर उसकी मदत करता हूँ और देखता हूँ कि उसकी समस्या क्या है"।तभी बतख कहती है, " रूको-रूको मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ"।,

 हाँ-हाँ बहन अवश्य चलो।

अब वे दोनो पौप्सी के घर पहुँच जाते है।सैंटी को देखते ही पौप्सी उसके गले लग कर रोने लगता है और कहता है,"मित्र मुझे माफ़ कर दो ,मैं तुमसे मिलने नही आ सका, क्योंकि मेरे घर पर तीन दिनों से बिजली नही है"।सैंटी पौप्सी को चुप कराते हुए कहता है ,"कोई बात नही ,चलो हम अपने महाराज  टाइगर शेरा के पास चलते है ।वह जरूर इस समस्या का कोई न कोई समाधान (हल) निकाल देंगे"।

तीनों शेरा के पास पहुँच कर उन्हें   सारी बात बता देते हैं।

शेरा उनकी बात सुनकर ज़ोरों से हसँने लगता है,और कहता है ,"देखा

पौप्सी, मैंने तुम्हें कितना समझाया था कि तुम्हें बिजली बचानी चाहिए उसका दुरूपयोग नही करना चाहिए, पर तुम मेरी बात नही सुनते थे ,

जब सैंटी से मिलने जाते थे तो भी लाइटें  और पंखा खुला छोड़कर चले जाते थे"।तभी 

पौप्सी कहता है," कि महाराज बिजली को तो हम बना सकते है  जितनी चाहे  बना लेंगे फिर हमें इसे बचाने की जरूरत क्यों है"।तभी साइबेरियन बतख भी बोलती है ,"हाँ- हाँ महाराज पौप्सी सही तो कह रहा है "।

उन दोनों की बात सुनकर शेरा कहता है ,"नही- नही बच्चों ऐसा नही है"।अच्छा पहले तुम मुझे बताओ ,कि अगर तुम्हारे घर में आटा थोड़ा है और अचानक से ज़ोर से आँधी तूफ़ान व बारिश आ जाए , और सभी दुकानें भी बन्द हो जाए तब तुम्हारी मम्मी रोटियाँ  कैसे बनाएगी ? तब पौप्सी बोलता है," कि महाराज उस समय हम आटे का सोच- समझकर  इस्तेमाल करेंगे और जितनी चपाती खानी है उतनी ही लेंगे ज्यादा लेकर बर्बाद नही करेंगे और कभी-कभी चावल भी खा ले लेंगे"।

शेरा कहता है ,क्यों आटा तो तुम  बाज़ार से ला सकते हो  या फिर इन्तज़ार कर सकते हो कि जब आँधी तूफ़ान और बारिश रुकेंगे तब जाकर ले आएँगे फिर आटे को बचाने की जरूरत क्यों है ? तभी पौप्सी कहता है, "नही- नही महाराज   अगर आँधी तूफ़ान को रूकने में समय लगा तो बाज़ार को खुलने में भी समय लगेगा तब तक हम भूखे तो नही रह पाएँगे न"।

तब शेरा हसँते हुए कहता है , " देखा पौप्सी जिस प्रकार बारिश के मौसम में तुम्हे घर के राशन को बचाने की जरूरत पड़ी उसी प्रकार  हमें बिजली को बचाने की जरूरत पड़ती है।

हम बिजली को बना तो सकते है ,परंतु बिजली को बनाने के लिए हमे तेल ,पानी व कोयला आदि की जरूरत पड़ती है।और कोयले को बनने मे लाखों साल लग जाते है अगर हमें कोयला नही मिल  पाएगा तो हम बिजली भी नही बना पाएँगे। "


शेरा कहता है , " बच्चों क्या तुम्हें पता है कि सुबह से शाम तक सभी कार्यो को करने के लिए हमें बिजली की आवश्यकता होती है अगर हम बिजली नही बचाएंगे तो एक दिन ऐसा आएगा जब पूरी दुनिया ही अँधकार में चली जाएगी इसलिए हमें बिजली को बचाना चाहिए। " 


शेरा की बात सुनकर सैंटी बोलता है  , " हम तो उतनी ही बिजली का प्रयोग करते हैं जितनी जरूरत है ।महाराज  सभी कार्य तो बिजली से होते है फिर क्या हम वे सब करना छोड़ दे ? "


तभी शेरा कहता है, " नही नही पौप्सी  तुम्हे  सभी कार्यो को छोड़ने की जरूरत नही है ,बस इसका थोड़ी सी सावधानी से प्रयोग करने की जरूरत है जैसे जब तुम कमरे से बाहर जाओ और उस समय कमरे मे कोई  न हो तो   लाइट और पंखा आदि बंद कर देना चाहिए। हमें ज्यादा वाॅट वाले बल्ब की जगह कम वाॅट वाले या एल ईडी बल्ब का प्रयोग करना चाहिए। हमें कपड़ो को सुखाने के लिए ड्रायर या वाशिंग मशीन का प्रयोग न करके उन्हें धूप में सुखाना चाहिए। "


तभी साइबेरियन बतख 🦆 बोलती है , " हाँ हाँ महाराज मुझे पता है जब घर में  प्राकृतिक रोशनी अर्थात सूर्य की रोशनी आ रही हो ,हमें तब भी बिना बात बल्ब नही जलाना चाहिए। 

तभी शेरा कहता है," शाबाश बच्ची तुम सही कह रही हो।,किंतु हमारा पौप्सी  तो कुछ भी नही करता ।यह जब भी घर से बाहर जाता है अपने घर की लाइटें व पंखे सब खुले छोड़कर चला जाता है।इसी का नतीज़ा है कि तीन दिनों से इसके घर मे लाइट नही है और अँधेरा है। "


पौप्सी रोने लगता और कहता है, " हाँ हाँ महाराज" मैं सब बात समझ गया और अब से बिजली की बचत भी करुँगा और उसका गलत इस्तेमाल भी नही करुँगा। मुझे माफ़ किजिए महाराज। कृपया करें, अब तो मेरे घर बिजली प्रदान किजिए। " 


तभी शेरा अपने मंत्री ऊर्जा सिंह को बुलाता है और कहता है, " ऊर्जा जल्दी से पोप्सी के घर की बिजली ठीक कर आओ जो कि तुमने मेरे कहने से काट दी थी। " 


शेरा कहता है , " यह तो हमने इसे सबक सिखाने के लिए किया था, अगर हम ऐसा नही करते तो सच मुच ही पूरे जंगल पर संकट आ जाता "। 


अब पौप्सी के घर रोशनी हो जाती है और बिजली आ जाती है।


सभी बच्चे शेरा का धन्यवाद करते हैं और वादा करते है कि अब कभी भी बिजली का दुरुपयोग या उसे बर्बाद नही करेंगे। वे समझ गए की बिजली को बनाने में प्रयोग होने वाले स्त्रोत धीरे - धीरे नष्ट होते जा रहे है इसलिए हमें बिजली का सोच समझकर ही उपयोग करना चाहिए। 



~ अंजू जैन गुप्ता

रविवार, 25 जून 2023

सोमवार, 19 जून 2023

टिल्लू जी की संगीत सभा: शरद कुमार श्रीवास्तव

 







टिल्लू मेढ़क  ने तालाब  से बाहर  आ कर देखा। भीषण गर्मी के महीने  मे  बादल  दूर दूर तक  दिखाई  नहीं दे रहे है।  तालाब  भी लगातार  सूख ही रहा है । टिल्लू ने सोचा कि लगता है इस गर्मी मे खानापानी की  व्यवस्था पर विशेष  ध्यान  देना पड़ेगा ।  यह सोचकर टिल्लू तालाब  के मेड़ पर लगे हुए विशाल पीपल  के पेड़ की जडों के नीचे बिल बनाकर  रहने की सोचने लगा।    यहाँ पर तालाब  की नमी मे अभी तक इस गर्मी मे छोटे छोटे कीड़े  मकोड़े भी भोजन के लिए उपलब्ध हैं और खुद  के रहने की सुखद व्यवस्था भी यहाँ है

नम जमीन, पीपल  की ठन्डी छांव मे उस मेढ़क को ए सी का आनन्द  आ रहा था।  मस्ती मे झूमते हुए  उसने अपनी पुरानी मधुर धुन मे टर्र टो - टर्र टों गीत  गाना शुरू कर  दिया ।  यद्यपि मेघराजा तो दूर तक  नही थे फिर भी टिल्लू जी के कर्णप्रिय सुर की आवाज तालाब  के किनारे पीपल  के पेड़ की छाँव  मे   मछली की टोह मे बैठे बगुलेे महाराज एकटक स्वामी जी के कानो मे  पड़ी।   उसने भी सोचा कि क्यों न मै भी टिल्लू मेढ़क की संगीत  सभा मे शामिल  हो जाऊँ ।   इधर टिल्लू जी की टर्र टो - टर्र टों  और उधर  एकटक स्वामी जी की क्वाॅक क्वाॅक ।    संगीत  सभा का आनन्द  पीपल के वृक्ष  पर बैठे कौवे कालू जी भी ले रहे थे उन्होंने इन कंठों के साथ  युगलबंदी शुरू कर  दिया ।   इस  संगीत मय वातावरण  मे तालाब के पास से गुजर  रहे एक  सियार से नहीं रहा गया उसने भी हुक्की- हुआ, हुक्की- हुआ  करना प्रारंभ  कर दिया ।   इधर टर्र टों टर्र  टों,  क्वाॅक क्वाॅक और  कालू जी का काँव काँव और  उधर हुक्की हुआ हुक्की हुआ  ।   पास से जा रही  लोमड़ी को भी इस संगीत  मंडली के साथ  नाचने की इच्छा हुई  वह ताल मिला कर  छम-छम  नाचने लग गई।   भीषण  गर्मी से परेशान  भालू जी भी आ गए  उन्होने काले मेघ को बुलाने के लिए  मंजीरे  पर पूरी भक्तिभाव  से गाना शुरू कर दिया  " काले मेघा पानी दे ।  काले मेघा पानी दे "  ।   काफी दूर  जा रहे बादलों को आखिरकार इन संगीतकारों पर  दया आ गई  और उन्होंने  खूब  पानी बरसाया ।

इसीलिए  बच्चो कष्ट  मे भी धैर्यपूर्वक खुश  रहने से कष्ट के दिन  भी निकल  जाते है और  खुशहाली लौट आती है। 



शरद कुमार श्रीवास्तव 

//सुन्ना मोर गांँव// प्रिया देवांगन "प्रियू" की छत्तीसगढी प्रेरक रचना

 




सुनलव संगी सुनव मितान।देवव थोरिक येती ध्यान।।
कलजुग के कर लौ पहिचान। मनखे हावय बड़ परशान।।

गिल्ली डंडा फुगड़ी रेल।नइ होवय अब कखरो मेल।।
कहाँ लुकागे जम्मों खेल।घर मा खुसरे लगथे जेल।।

अब्बड़ सुन्ना लागे खोर।करे नहीं कोनो हर शोर।।
राँय राँय के दिन हर आय।गरमी मा मनखे उसनाय।।

कहाँ गँवागे सुग्घर गाँव।नंदावत हे इँखरो नाँव।।
बबा कका मन रहे सियान।बइठे चौरा बाँटय ज्ञान।

आमा अमली लावय टोर। चार चिरौंजी गुठलू फोर।।

तेंदू महुआ कुर्रू जाम। बेचय लइका पावय दाम।।


घर मा राखय गरुआ गाय। ताजा ताजा गोरस पाय।।

गोबर मा लीपय घर द्वार। लक्ष्मी किरपा के भरमार।।


कइसे कइसे दिन हर आय। मनखे मन जम्मों दुरियाय।

नहीं एकता घर परिवार। बिरथा होगे ये संसार।।





//रचनाकार//

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


फादर्स डे पर अंजू जैन की रचना

 










भूल सुधार   कृपया शवास के स्थान पर  श्वास  पढ़ें

*बरसात का मौसम आने वाला है* रचनाकार पशुपति पाण्डेय

 



मैनें पेड़ से फोन कर के पूछा कैसे हो, कहाँ रहते हो, आजकल दिखाई नहीं देते


पेड़ बोला मात्र चालीस साल पहले तक हम बहुत सारे नीम, पीपल, बड़, कीकर, शीशम, जांडी, आम, जामुन, जाळ, कंदू, शहतूत व लेसुवे आदि आपके आसपास ही रहते थे। 


याद करो तब तक आपके घरों में फर्नीचर के नाम पर खाट, पीढे व मूढ़े ही होते थे। खाट व पीढे के सिर्फ पावे हमारी लकड़ी से बनते थे। सेरू व बाही बाँस की ही होती थी, मूढ़े सरकंडे से बने होते थे।


फिर आप लोगों को पता नहीं क्या हुआ आपने हमें अखाड़ बाडे काटना शुरू कर दिया। हमारी लकड़ी से डबल बैड, सोफे, मेज, अलमारी व कुर्सी आदि बना कर अपने घरों में भर ली। आप स्कूलों में टाट बिछाकर पढ़ा करते थे फिर हमें काट कर बैंच बना डाले। नजर घुमाओ और देखो कोई तीस चालिस साल पुराणा पेड़ आसपास है कि नहीं


हम पेड़ आजकल आपके घर, दफ्तर व स्कूल कालेजों में ही हैं।


मैनें फिर पेड़ से पूछा कि आज तो विश्व पर्यावरण दिवस है चलो एक पेड़ मैं लगा देता हूँ।


पेड़ भड़क गया और कहा कि जन्मजात मुर्ख हो या पढ़लिख कर हो गये, लगता है हमारी लाश से बणे सोफे या डबल बैड पर बैठकर, ए•सी• चलाकर, *सोशल मीडिया से प्रभावित हो कर फोन कर रहे हो। बाहर निकल कर देखो इस 48℃ के तापमान में हमारी वृद्धि कैसे होगी। अरे वे पश्चिमी जगत वाले अपने मौसम व मान्यताओं के हिसाब से दिन निर्धारित करते हैं और तुम अक्ल के अंधे भारतीय आँख भींच कर उन्हें मानने लगते हो।*


पेड़ एक नहीं अनेक लगाना पर मानसून आने पर। जेठ के महीने में पेड़ लगायेगा आड़ू, पानी तेरा बाप देगा। अषाढ़ से फागुन तक जितने मर्जी लगा लेना।


फिर पेड़ गाना गाने लगा "तेरी दुनिया से दूर, चले हो के मजबूर, हमें याद रखना"


इतना कह कर पेड़ ने फोन रख दिया।





पशुपति पाण्डेय 

सहायक महाप्रबंधक 


शनिवार, 17 जून 2023

सबक : प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना




लगी सिसकने चिड़िया रानी, देख सभी घबराये।
कौआ कोयल मैना तोता, पास जरा सा आये।।
क्यों आंँखें गीली करती हो, हमको तनिक बताओ।
परेशान बैठे हैं सारे, इतना नहीं सताओ।।
 
धीमी धीमी बोली चिड़िया, देह घुसी बीमारी।
पेट दर्द सोने ना देता,इससे मैं हूंँ हारी।।
चलो पास डॉक्टर के चिड़िया, कोयल मैना बोली।
मगर डरी थी ये चिड़िया जो,जुबान तक ना खोली।।


उड़ कर कौआ संँग में लाया, डॉक्टर गिल्लू राजा।
हुई बड़ी आंँखें चिड़िया की,बज गया बैंड बाजा।।
सुई निकाली गिल्लू ने जब, जोर जोर चिल्लाई।
गुपचुप चिवड़ा और समोसे, याद सभी की आई।।

हाथ जोड़ कर माफी मांँगी, कभी नहीं खाऊंँगी।
आम सेब अरु केला खाकर, ताकत मैं लाऊंँगी।।
बीमारी जब देह लगी तो, आया होश ठिकाना।
गिल्लू ने सबको समझाया, सादा भोजन खाना।।



//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़






बुधवार, 7 जून 2023

पर्यावरण दिवस का समारोह




जब से इस साल जेष्ठ- आषाढ का मौसम आया है गर्मी का प्रकोप छाया हुआ है ।  हरवक्त  लू भरी गर्म हवाएं चल रही हैं ।   लेकिन नन्ही चुनमुन  को चैन  कहाँ है।  उसे तो हर समय  तेज धूप  मे तपते हुए  पक्षियों को देखकर  उन बेसहारा पक्षियों की चिंता सता रही है ।  


वृक्ष  कम हो गए  है आखिर  ये पंछी भला कहाँ जाएं ।  चुनमुन   बड़ी हो गई  है ।   उसके कुत्ते और  बिल्ली भी अब उसके साथ  नहीं हैं ।   वे सब  दूर  चले गए  है ।  फिर  चुनमुन  की अब खिलौनों या गुड़ियों से खेलने-कूदने की उम्र  थोड़े ही है ।  उसे बस इन पक्षिंयों के लिए कुछ  करना चाहिए ।  इसी सोच को अंजाम  देने के लिए एक-दिन चुपचाप  घर  मे सामान सप्लाई के लिए  आए कार्टन को लिया और अपने एस. यू. पी. डब्लू. की कैंची और  अन्य  समानो की मदद  से  "चिड़ियों का एक घर "  अर्थात  एक घोंसला तैयार  किया।  उसने फिर उस घोंसले को अपने घर के किचन के बाहर खिड़की के छज्जे पर अपने सुयश  भइया की सहायता से रखा दिया । 


चुनमुन  की मम्मी भी  बहुत  दयावान  है , वे भी रोज एक प्याली मे साफ पानी चिड़ियों की प्यास  बुझाने के लिए  रखती है  और  चावल तथा अन्न के कच्चे पक्के कण भी रखती हैं।  लेकिन चुनमुन  ने इस  गर्मी मे चिड़ियो का घोंसला तैयार किया  है उन्हे मालूम  नहीं है।  सुयश भैया चुनमुन  को बहुत प्यार  करते हैं परन्तु उन्हे यह पसन्द  नहीं आता हर पल  चुनमुन  इस  कड़ी घूप मे घोंसले की निगरानी करे ।  लेकिन चुनमुन  तो हमेशा इन चिड़ियों के घोंसले मे आगमन और  उनके आतिथ्य के लिए उत्सुकता से तैयार बैठी रहती थी ।  लुकछिप  के कोई  मौका निकाल कर  वह उसके बनाए कार्टन के घोंसले को निहार आती थी ।  


काफी प्रतीक्षा के बाद  वह भी उदासीन  हो गई  थी कि एकदिन उस कार्टन  से बहुप्रतीक्षित किसी  चिड़िया की चहचहाहट  सुनाई  दी।  सुयश भाई  ने भी उस चहचहाहट  को सुना और  अपनी बहन  को बधाई  दी । 

 दोनो ने शाम को डाइनिंग  टेबल  पर इस बात  को सबको बताया ।  मम्मी-पापा  दोनो बहुत  खुश हुए  और  चुनमुन  को बहुत  प्यार और आशीर्वाद  दिया ।   पापा जी ने बच्चों को समझाया कि यह एक दीर्घकालीन  हल नही॔ है ।  हमे अधिक से अधिक पौधा -रोपण करना चाहिए  जिससे इन निरीह  पक्षियों को राहत  मिल  सके और  पर्यावरण का भी नियंत्रण हो सके।  कल विश्व  पर्यावरण दिवस  पर  हमलोग  भी कम से कम 5 पौधे  लगायेगे ।  पापा जी की इस बात  पे  नन्ही चुनमुन  और  उसके बड़े भाई  सुयश  को बहुत  खुशी हुई और  अपने पापा पर बहुत  गर्व महसूस हुआ। 




शरद कुमार श्रीवास्तव 






मंगलवार, 6 जून 2023

हमारी सुरक्षा, हमारे हाथ

 





चुस्की और मुस्की गिर के घने जंगलों  में अपने परिवार के साथ रहती थी। चुस्की एक  समझदार और बुद्धिमान बिल्ली थी और टिप्सीउसकी छोटी बहन थी।वैसे तो दोनो एक- दूसरे से बहुत प्यार करते थे किंतु तुरंत ही छोटी - छोटी बातों पर झगड़ने लगते थे।

एक दिन दोनो बहनें माँ के साथ बाज़ार जा रही थी, तभी टिप्सी सड़क पर हाथ छुड़ाकर दौड़ना शुरू कर देती है किन्तु माँ शीघ्र ही दौड़कर टिप्सी को पकड़ लेती हैं। तभी चुस्की कहती है कि टिप्सी माँ ने कितनी बार बताया है , "कि हमें सड़क के सभी नियमों का पालन करना चाहिए , सड़क पर यूँ दौड़ना नहीं चाहिए"। तभी टिप्सी कहती है ,"हाँ-  हाँ दीदी मुझे तो पता है ,पर  क्या आपको  पता है कि जब आप पापा के साथ  स्कूटी पर जाती हो ,आपको भी हमेशा हैलमेट  पहनना चाहिए। 

हाँ- हाँ टिप्सी , "मुझे मत बता मुझे सब पता है।"

तभी माँ कहती हैं ,"अच्छा चलो बहुत हो गई तुम दोनो की बातें अब जल्दी से अपनी - अपनी पसंद की आइसक्रीम लो और घर चलो।"आइसक्रीम खाते - खाते सभी घर पहुँच जाते हैं। उनके घर पहुँचते ही पापा कहते है ,"चुस्की  चलो जल्दी करो मैं तुम्हें ट्यूशन छोड़कर आ जाता हूँ।" तभी चुस्की  अपना हैलमेट और बैग लेकर आ खड़ी होती है और पापा  के साथ चली जाती है।

अब रात का समय है  8:30 बज गए है और बाहर अचानक ज़ोरों  से बारिश शुरू हो जाती है तभी टिप्सी कहती है ,"कि मम्मा बाहर तो इतनी तेज़ बारिश हो रही है अब  पापा दीदी को ट्यूशन से वापस लेकर कैसे आएंगे। "पापा तो स्कूटी पर गए हैं।

माँ कहती हैं ,टिप्सी इतनी तेज़ बारिश है जरूर वे दोनो कहीं रूक गए होगें  तभी पापा चुस्की को अचेतन हालत में घर लेकर आते है और बताते है कि हमारे साथ एक दुर्घटना हो गई हैं।

कहते है ,"मैं तो ठीक हुँ मुझे ज़्यादा चोट नही आई क्योंकि मैंने हैलमेट पहना हुआ था " किंतु चुस्की तो होश में ही नही थी उसके सर पर,मुहँ से और माथे से खून आ रहा था।उसे बहुत चोट लगी थी।चुस्की को देखकर टिप्सी भी घबरा जाती है तभी शेरा(कुत्ता), और मिटटू (तोता) भी चुस्की की मदद के लिए आ जाते हैं।



वे दोनो भागे-भागे  टिंकू (खरगोश)डाॅक्टर के पास जाते हैं और कहते हैं ,"डाॅकटर अंकल जल्दी हमारे साथ चलो ,हमारी मित्र चुस्की घायल हो गई है ।उसे आपकी जरूरत है। 



टिंकू  जल्दी से अपना बैग उठा कर चुस्की के पास पहुँच जाते हैं। टिंकू डाॅक्टर चुस्की की मरहम- पट्टी  कर उसे दवा भी खिला देते हैं।अगले दिन पापा उसके सभी टैस्ट भी करा देते है।

अब अगले दिन जब चुस्की  थोड़ा  सा     ठीक होती है ,तो माँ चुस्की से पूछती है कि, तुमने हैलमेट क्यों नहीं पहना था? चुस्की कहती है," कि मम्मा मैंने पहना हुआ था किंतु बीच रास्ते में हम कुछ देर के लिए रूक गए थे ,तब उतार दिया था। जब हम फिर से चले तो मैं हैलमेट पहनने लगी थी, तभी पापा बोले कि अब पूरी तो भीग गई हो रहने दो मत पहनो हैलमेट और फिर मैंने नही पहना।"

माँ चुस्की और पापा दोनो को समझाती हैं ,"कि हैलमेट कोई छाता नहीं है कि जो हमें बारिश से बचाए यह तो हमारा सुरक्षा कवच है जो हमें सड़क पर अचानक से होने वाली दुर्घटनाओं में लगने वाली चोट से बचाता है।", अगर तुमने हैलमेट पहना  होता तो तुम्हें इतनी चोट नहीं लगती। तभी टिप्सी कहती है ; क्या पापा आपको भी नही पता कि  हमें हैलमेट पहन कर रखना चाहिए, देखो मेरी दीदी की कितनी चोट लग गई है।

पापा कहते है ,"नहीं बेटा, मुझे सब पता है मगर कभी- कभी हम लापरवाही कर देते हैं , हमें ऐसी लापरवाही नही करनी चाहिए। ट्रैफिक  के सभी नियमों का पालन करना चाहिए।" 

तभी वहाँ माँ आ जाती है और सबको कहती है कि समझे कुछ  ; जीवन अनमोल होता है और जब कभी हम स्कूटर, स्कूटी या बाइक पर हो तो  हैलमेट पहनना चाहिए और अगर कार में हो तो सीट बैल्ट लगानी चाहिए ।ये सब हमें जुर्माने से बचने या पुलिस के डर से नही बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए करना चाहिए।

तब सब कहते हैं , हाँ जी सब समझ आ गया अब कभी ऐसी गलती नहीं होगी।

तभी टिंकू डाॅक्टर भी आ जाते हैं और कहते  हैं कि," चुस्की तुम्हारी सभी रिपोर्ट सही है अब मैं चलता हुँ तुम अपना ध्यान रखना।" तभी मम्मी  सबके लिए आइसक्रीम ले आती हैं और सब मज़े से आइसक्रीम खाते हैं उनको आइसक्रीम खाते हुए देख शेरा और मिटटू भी वँहा आ जाते हैं और कहते हैं , चुस्की हमें भी आइसक्रीम खानी है । माँ उन दोनो को भी आइसक्रीम दे देती हैं। अब सभी मज़े से आइसक्रीम खाते हैं।



अंजू जैन गुप्ता

गुलाब परी के फफोले (पर्यावरण संरक्षण दिवस पर विशेष)

 


गुलाब परी सो कर उठी । उठ कर अपने घर के सामने वाले झरने पर मुँह धोने के लिए हाथ बढ़ाया तो झरने  में  पानी नहीं था । आज हवा सो गई थी । हवा आज झरने तक ओस की बूँदें भरकर नहीं लाई थी । सबेरे ही गर्मी का दैत्य लाल लाल आँखों से डरा रहा था ।   गुलाब परी के शरीर पर फफोले पड़ गये थे । यद्यपि उसके पापा मम्मी ने उसे सात मुलायम गद्दों के ऊपर सुलाया था , फिर भी प्रदूषण की वजह से गुलाब परी के गद्दों के नीचे धूल की एक कण की वजह से गुलाब परी के बदन पर फफोले पड़ गये थे । गुलाब परी की मम्मी को अपनी बच्ची की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी । उसने अपनी बच्ची की तकलीफ़ की शिकायत महारानी प्रकृति से की । महारानी ने आदेश जारी किया कि गुलाब परी की तकलीफ के कारणो का पता लगाया जाय ।



एक  नन्ही रंग-बिरंगी तितली को इस काम के लिए रानी ने लगाया ।        उस तितली ने हवा,जल और भूमि को दोषी पाया । तितली ने अपनी रिपोर्ट कोयल को प्रस्तुत किया । 



कोयल ने हवा की बात सुनी । हवा ने अपने बचाव  में  अपने  साथ साथ जल और भूमि का पक्ष रखा । प्रदूषण से भरपूर हवा , कोयल के सुर को भी नुकसान पहुंचा रही थी । अतः पेड़ के ऊपर पत्तों के बीच मे छुपकर, जज कोयल ने हवा की बात सुनी। गन्दी सन्दी हवा ने जज कोयल को अपना पक्ष रखा । हवा बोली कि मानव जाति की वजह से हवा प्रदूषित हुई है । ऑटोमोबाइल से निकला धुँआ और उड़ती धूल फैक्टरियों की चिमनियों से उत्सर्जित गैसें और धुँआ, कचरा कचरे को जलाना भी हवा के प्रदूषण के कारण रहे हैं जो ओजोन परत में छेद कर रहे हैं और एक जटिल प्रक्रिया के दौरान प्रदूषण फैल जाता है । जज कोयल ने अपनी मीठी आवाज में हवा से निदान भी पूछा । हवा ने भूमि और जल की तरफ के पक्ष कोयल के समक्ष रखे । जिनमे मुख्य थे कि इन्सान अपने आस पास निजी और सामुहिक सफाई का ध्यान रखें । अधिक से अधिक पेड़ लगाए। अपने दैनिक जीवन शैली में बदलाव लाएं कम से कम आटोमोबाइल वाहनों का प्रयोग करें । पानी और बिजली को बचाए ताकि ऊर्जा के लिए जंगल नहीं कटे।




कोयल ने मामले को गंभीरता से लिया और प्रकृति महारानी से सिफारिश की कि मनुष्यों को कड़े और स्पष्ट शब्दों में निर्देश और चेतावनी दी जाऐ ताकि इस पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा बनी रहे और गुलाब परी को या किसी और को कोई नुकसान या तकलीफ नहीं हो।




शरद कुमार श्रीवास्तव

प्रश्नचिह्न एक लघुकथा





          विवेक रात को घर आते ही साधना से पूछा- " माँ...! तुमने खाना खा लिया ? बाबू जी कहाँ है ? वे खा लिये ?


          घड़ी पर एक नजर डालते हुए साधना बोली - " विवेक ! तू कैसी बात करता है बेटा ? हम लोग तेरे बगैर कभी खाना खाये हैं ?" विवेक बोला– " अगर रात अधिक हो जाए तो खाना खा लिया करो। यूँ इंतजार मत किया करो। " विवेक के स्वर में चिड़चिड़ाहट थी।           तभी रघुवीर जी कमरे से बाहर निकले। बोले- " क्यों रे ! तुम्हारे साथ नहीं खायेंगे तो किसके साथ खायेंगे। एक तू ही तो है हमारे आँखों का तारा; दूसरा है ही कौन हमारा ? " साधना बोली– " बेटा, ये ठीक बात नहीं है। जैसे–जैसे तू बड़ा होते जा रहा है, तेरे व्यवहार में रूखापन आते जा रहा है। तू हमेशा गुस्से में रहता है। सीधा मुँह बात नहीं करता। बहुत ही घमंड है तुझे; और पता नहीं किस बात पर ? क्या काम करता है बता ?  मैं तेरे ऑफिस जा के बात करती हूँ। "



         " माँ ...! मैं कुछ भी काम करूँ ? आप लोग मेरे काम में टांग न अड़ाये तो बेहतर होगा। " बीच में ही विवेक खाना छोड़ कर चला गया। 


          अगली सुबह विवेक के घर के सामने भीड़ थी। तरह–तरह के चर्चे हो रही थी। तभी अचानक पुलिस की गाड़ी हार्न देेते हुए विवेक के घर के पास आकर खड़ी हुई। विवेक पसीना–पसीना हो गया। वह भागना तो चाहा, पर भाग नहीं पाया। रघुवीर व साधना अपने किस्मत को कोसने लगे, भला किसी को क्या बोलते। आँखें भीग गयीं। आखिरकार पता चल ही गया कि विवेक दो नंबरी काम- जुआ, सट्टा और बहुत कुछ करता है। घर तक को गिरवी रख डाला है। जमीन–जयजाद में भी हाथ मारने की कोशिश की है। विवेक का सारा भंडा फूट गया। दो पुलिस वाले उसे पकड़ कर ले गये। रघुवीर और साधना के आर्द्र स्वर निकल रहे थे- " आखिर हमारी परवरिश में क्या कमी रह गयी...? "


          रघुवीर व साधना के विवेक को दिये संस्कार पर प्रश्नचिह्न लग रहा 



//लेखिका//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़


नन्हीं चिड़िया//प्रिया देवांगन "प्रियू"





भटक रहे हैं हम बेचारे, कहाँ कहाँ अब जायेंगे।

जरा बताओ हमको मानव, कैसे प्यास बुझायेंगे।।

सूरज दादा नहीं समझते, नीर सभी पी जाते हैं।

ग्रीष्म काल की इस बेला में, हर दिन वे तरसाते हैं।।


नीर भरे नयनों से कोयल, कू कू गीत सुनाती है।

मैना अरु गौरैया रानी, आकर गले लगाती हैं।।

चिंता में पक्षी हैं डूबे, कोई नीर पिलाओ ना।

तड़प तड़प कर मर जायेंगे, मेघ धरा में आओ ना।।


वृक्ष लतायें ठूँठ पड़े हैं, गर्म हवाएँ

बहती हैं।

पीर हमारी देख धरा भी, सहमी सहमी रहती है।।
कोयल कहती गौरैया से, शांत रहो छोटी बहना।

हम मानव के घर जायेंगे, व्यथा हमारी तुम कहना।।


साहस भर कर जाते पक्षी, पीड़ा उन्हें सुनाते हैं।
कानन-वन की सारी बातें, चूँ चूँ वे बतलाते हैं।।
हाथ जोड़ते विनती करते, थोड़ा सा रख दो पानी।
प्यास बुझा कर उड़ जायेंगे, हम नन्हीं चिड़िया रानी।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

पर्यावरण दिवस पर एक बालगीत : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 विश्व  पर्यावरण दिवस पर यह रचना पुनः प्रकाशित करी जा रही हैकत



आओ मिलजुल हम पेड़ लगाऐं

पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं

आओ मिलजुल हम पानी बचाऐं

पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं

आओ मिलजुल कूड़ा न फैलाऐं

पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं

आओ मिलजुल धुआँ न फैलाऐ

पर्यावरण बचाऐं पर्यावरण बचाऐं

आओ मिलजुल शोर मत मचाऐ

पर्यावरण वचाऐं पर्यावरण बचाऐं

आओ मिलजुल पॉलीथिन हटाऐं

पर्यावरण बचाऐं पर्यावरण बचाऐं




शरद कुमार श्रीवास्तव 

बुद्ध (दोहे) सुशील शर्मा


 


शुद्धोधन के घर लिया ,

   जन्म शाक्य कुल बुद्ध।

अल्प मातृ सुख ही मिला ,

   जीवन राजस शुद्ध।


नाम लुंबनी ग्राम का ,

      गौतम उनका गौत्र।

सिद्धि प्राप्त जन्मे महा ,

     शाक्य वंश के पौत्र।


यशोधरा प्रिय भामिनी,

      राहुल शिशु नवजात।

जरा मरण दुख मन व्यथित ,

      कष्ट भरी थी रात।


पल छिन में त्यागा सकल  ,

          राजपाठ का मोह।

दिव्य ज्ञान की खोज में ,

        घर परिवार विछोह।


देवदत्त के तीर से, 

     घायल था जब हंस।

प्राणदान उसको दिया ,

      कर कर्तव्य प्रशंस।


अनगिन जप तप लीन थे ,

    नित आहार निरोध।

वैशाखी की पूर्णिमा ,

      पाया सच्चा बोध।


धम्म धर्म निर्माण कर,

    सिद्ध साध्य परिवेश।  

सारनाथ में बैठ कर ,

     दिया प्रथम उपदेश।


अष्टांगिक के मार्ग का ,

     लिया सत्य संकल्प।

पंचशील सिद्धांत में ,

   बोधिसत्व परिकल्प।


हिरणवती का शालवन ,

         कुशीनगर की गोद।

महामोक्ष धारण किया ,

         परिनिर्वाण प्रमोद।


भटके तब सिद्धार्थ थे ,

       बैठ गए तो बुद्ध।

खुद से खुद लड़ते रहे ,

     वह जीवन का युद्ध।


डॉक्टर सुशील  शर्मा