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सोमवार, 16 जनवरी 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

हाथी और दरजी

पहाड पर एक गाँव मे एक दर्जी  रहता  था. गाँव के लोग उसे कपड़े सिलने को देते थे . वह उनको सिलकर अपना और अपने परिवार का लालन पालन करता था ।   उसी गाँव मे एक हाथी भी रहता था ।  हाथी दर्जी की  दुकान के सामने खड़ा हो जाता था और दर्जी को काम करते हुये  देखता था ।   हाथी के दुकान के सामने खड़े होने की  वजह  से दर्जी की  दुकान की रौनक बढ़ जाती थी।  धीरे-धीरे  दर्जी और हाथी की कुछ दिनों बाद दोस्ती हो गयी थी । 
हाथी दर्जी के ब च्चे को अपनी पीठ पर बैठाकर कभी कभी दर्जी के  गाँव की सैर करा लाता था।  इसके बदले मे दर्जी उस  हाथी केले खाने के  लिए  देता था।  दर्जी के बच्चे  को दर्जी द्वारा  उस हाथी को खिलाना-पिलाना बिल्कुल पसंद नही था।
एक बार दर्जी   को दुकान का सामान लाने शहर जाना पड़ा।  हाथी रोज की तरह जब  दर्जी की दकान पर आया तब उसने देखा कि दुकान बन्द  है  ।    उसे आश्चर्य  हुआ  और उसे  लगा कि दर्जी अभी सो रहा है जबकि दिन सर के ऊपर तक निकल आया था ।  हाथी ने सोचा कि अगर दर्जी अभी  तक  सो रहा हो तो उसे जगा दिया जाय ।   दर्जी के बहुत  नुकसान  हो  रहा  है ।   इसलिये   हाथी ने  जोर  से  चिंघाड़ कर आवाज लगाई कि दर्जी अगर  सुने तो दुकान खोल कर अपने रोजी रोटी पर  ध्यान दे।   लेकिन  दर्जी  तो पहले ही  शहर जा  चुका था ।   उसके लड़के ने हाथी के चिंघाड़ने का कुछ  ध्यान नहीं  दिया   और न कुछ  हाथी से  बोला ।   हाथी ने दुबारा आवाज  लगाई  लेकिन  दर्जी के  बेटे  ने  इस बार  भी  कोई  उत्तर  नहीं  दिया ।  
हाथी ने उत्सुकता  वश अपनी  सूंड  दर्जी  की  दुकान  के  ऊपर से दुकान  के  अंदर  डाल  दिया ।    इस पर दर्जी के  बेटे ने  शैतानी मे  हाथी की सूंड  में   सुई चुभो दिया ।   अब हाथी दर्द  से तिलमिला  उठा  और क्रोधित  हो  गया  ।    वह गया और तालाब  से अपनी  सूंड  में  पानी  भरकर  ले  आया  और  दर्जी की  दुकान  में  नये और पुराने सभी  कपड़े  भिगोकर  खराब  कर दिया तथा  वह गांव  छोड़कर  कहीं  चला  गया  और कभी वापस  नहीं  आया।






शरद कुमार  श्रीवास्तव


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